भ्रष्टाचार को खुद पाल-पोष रहा है रेल प्रशासन
कुर्सियां बदलने को तबादला मानता है प्रशासन
सतर्कता विभाग ने जब्त किए लेखा विभाग के दस्तावेज
प्रशासनिक भ्रष्टाचार में यूनियन पदाधिकारियों की बड़ी भूमिका
गोरखपुर ब्यूरो : ‘रेल समाचार’ द्वारा 24 अक्टूबर 2018 को “पूर्वोत्तर रेलवे के लेखा विभाग में चल रही सुनियोजित लूट” शीर्षक से प्रकाशित खबर के बाद पूर्वोत्तर रेलवे के लिखा विभाग में भूचाल आ गया था. रेल प्रसाशन ने खबर का तुरंत संज्ञान लेते हुए सतर्कता विभाग को त्वरित कार्यवाही करने का निर्देश दिया. सतर्कता विभाग ने उसी दिन मामले से संबंधित सभी फाइलें तथा अभिलेख लेखा विभाग से जब्त कर लिया था.
लेखा विभाग के अधिकारियों ने भी प्रारंभिक जांच में भ्रष्टाचारजनित वेतन निर्धारण को गलत मानते हुए नए वेतन निर्धारण को तुरंत निरस्त करते हुए संबंधित स्टाफ का पूर्व वेतन पुनर्स्थापित कर दिया था. लेखा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर ‘रेल समाचार’ को बताया कि उक्त कार्य विवादित सहायक लेखाधिकारी, प्रशासन (एएफए/एडमिन) के स्पष्ट लिखित आदेश पर किया गया था. अधिकारी का कहना था कि उक्त एएफए का लेखा विभाग में इतना आतंक एवं भय व्याप्त है कि उसके गलत आदेश मानने के लिए अधीनस्थ कर्मचारी मजबूर थे.
‘रेल समाचार’ को विभागीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में जोड़तोड़ की कार्यविधि कुछ ऐसी थी कि लाभार्थी कर्मचारी द्वारा सजातीय एएफए/एडमिन को एक आवेदन, जो विसमुलेधि/प्रशासन को संबोधित है, दि. 21.12.10 को दिया जाता है. उसमें दि. 01.01.2006 के स्थान पर दि. 29.05.07 की नई तिथि से वेतन निर्धारण का विकल्प समय रहते हुए विभाग को दिया गया था, जिस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई. संबंधित कर्मचारी ने अपने आवेदन के साथ एक विकल्प देने का पत्र दि. 21.12.2010 भी संलग्न किया था.
सूत्रों का कहना है उक्त आवेदन पर संबंधित कार्यालय अधीक्षक (ओएस) द्वारा अपने लिपिक को विकल्प पत्र खोजने का आदेश दिया. खोजने पर लिपिक को विकल्प पत्र मिल जाता है, जिस पर चर्चित सहायक लेखाधिकारी/प्रशासन द्वारा त्वरित कार्यवाही करने का आदेश मिसिल पर दि. 09.07.2018 को दिया जाता है और आगे की परिमार्जित वेतन निर्धारण की कार्यवाही संबंधित द्वारा संपन्न कर एरियर बनाने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी जाती है.
लेखा विभाग की इस पूरी संदिग्ध विभागीय कार्य प्रणाली में निम्न संदेहात्मक बिंदु ‘रेल समाचार’ की छानबीन में सामने आए हैं-
1. यदि कर्मचारी ने समय से विकल्प दे दिया था, तो उस पत्र पर कोई पावती क्यों नहीं है?
2. संबंधित कर्मचारी क्या अपने स्वजातीय अधिकारी की सहायक लेखाधिकारी/प्रशासन के पद पर तैनाती होने और सेटिंग होने का इंतजार कर रहा था?
3. यदि समय से विकल्प दिया गया था और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी, तब उसके लिए 8 साल इंतजार करने के बाद दि. 26.08.2018 को आवेदन देने का क्या औचित्य था?
उपरोक्त बिन्दु पूरे प्रकरण में प्रमाणिक रूप से भ्रष्टाचार होना सिद्ध करते हैं. अब जब सतर्कता विभाग द्वारा इस पूरे मामले की गहराई से जांच की जाएगी, तब भ्रष्टाचार स्वतः सिद्ध पाया जाएगा.
प्रशासन ने प्रथमदृष्टया पूरा प्रकरण संदिग्ध पाया है. अतः वेतन निर्धारण पूर्ववत कर दिया गया है. लगभग सभी विभागीय कर्मचारियों का मानना है कि अब यह आवश्यक हो गया है कि निष्पक्ष सतर्कता जांच की दृष्टि से उक्त मगरूर अधिकारी को गोरखपुर से बाहर स्थानांतरित कर जांच की जानी चाहिए, जिससे जांच प्रभावित न हो.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर रेलवे, लेखा विभाग में 10 वर्ष से भी अधिक समय से बहुचर्चित एओ/एडमिन के कृपा-पात्र एक ही अनुभाग में लगातार कार्यरत हैं. पिछले वर्ष हुए ट्रांसफर के बावजूद संबंधित सीनियर एसओ को उनके संबंधित अनुभागों से आज तक नहीं हटाया गया है.
उपरोक्त मामले में कहीं न कहीं यूनियन की भी संदिग्ध भूमिका होने की पूरी आशंका है, क्योंकि जैसे ही ‘रेल समाचार’ की उपरोक्त शीर्षक खबर प्रकाशित हुई और प्रशासन के आदेश पर सतर्कता विभाग ने मामले से संबंधित सभी दस्तावेज फौरन जब्त कर लिए, वैसे एक यूनियन के पदाधिकारी ने उबलते हुए ‘रेल समाचार’ को फोन करके संबंधित कर्मचारियों, जिनका नया वेतन विवरण प्रकाशित हुआ था, का पक्ष नहीं लेने का डंका बजाया गया. हालांकि उक्त मामले में उनका पक्ष लेने का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि पूरा मामला सिर्फ विभाग प्रमुख और रेल प्रशासन से संबंधित था, जिसके बारे में ‘रेल समाचार’ द्वारा दोनों को पहले ही अवगत कराते हुए उनका पक्ष लिया गया था. तथापि उनसे कहा गया कि वह अपना पक्ष लिखकर ईमेल कर सकते हैं, फिर भी आजतक उन्होंने अपना पक्ष नहीं भेजा.
बहरहाल, पूर्वोत्तर रेलवे, लेखा विभाग के उपरोक्त कदाचार में पीएफए, एफए/जी और एएफए/एडमिन की मिलीभगत अब जगजाहिर हो चुकी है. इस प्रकरण में जिस तरह से यूनियन की प्रतिक्रिया सामने आई, उससे जाहिर है कि उसकी भी कहीं न कहीं संदिग्ध भूमिका रही हो सकती है. फिलहाल दो कर्मचारियों के वेतन का पुनर्निर्धारण करके यह देखा जा रहा था कि उसका प्रभाव क्या होता है, जबकि आगे ऐसे करीब 50-55 कर्मचारियों का भी पुनर्निर्धारण किया जाना था. जहां एक-एक कर्मचारी का पुनर्निर्धारित वेतन का लगभग 18-20 लाख रुपये का एरियर्स बन रहा हो, और अचानक वह ‘रेल समाचार’ की एक सामान्य खबर पर एक झटके में छिन जाए, उससे यूनियन पदाधिकारियों का नाराज होकर ‘रेल समाचार’ के ब्यूरो प्रमुख और संपादक को ‘देख लेने’ और जान से मारने की धमकी देना, कतई अस्वाभाविक भी नहीं है.
जाहिर है कि रेल प्रशासन खुद उपरोक्त प्रकार के भ्रष्टाचार को न सिर्फ प्रश्रय दे रहा है, बल्कि बखूबी पाल-पोष भी रहा है. संवेदनशील पदों पर लंबे समय से बैठे कर्मचारियों और अधिकारियों को निर्धारित समय पर हटाना तो दूर, उनके तबादले करके भी वर्षों तक पेंडिंग कर दिए जाते हैं. प्रशासनिक भ्रष्टाचार में मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों और उनके तथाकथित सक्रिय कार्यकर्ताओं की भी बड़ी भूमिका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता. यह भी सही है कि जब तक अधिकारी ईमानदार नहीं होंगे, तब तक यूनियनों को नियंत्रित कर पाना असंभव है. रेल प्रशासन कुर्सियों की अदला-बदली को जब तक तबादला मानता रहेगा, तब तक प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर किसी प्रकार का अंकुश लग पाना संभव नहीं है. फिलहाल इसका एक ही विकल्प है कि आवधिक तबादलों पर सीवीसी और सतर्कता विभाग के दिशा-निर्देशों का पक्षपातरहित और कड़ाई से पालन किया जाए.