“राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-5”

सीसीटीवी प्रोजेक्ट के टेंडरिंग प्लेटफॉर्म पर बिडर्स ने उठाए सवाल

बिडिंग में खुद भी शामिल है टेंडरिंग प्लेटफॉर्म प्रोवाइडर टीसीआईएल

1500 करोड़ की लागत से 6000 स्टेशनों पर लगाए जाने हैं सीसीटीवी

नई दिल्ली : रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई, रोलिंग स्टॉक के रख-रखाव, रेलवे बोर्ड, आईसीएफ, आरसीएफ इत्यादि के टेंडर्स में भारी जोड़तोड़, पक्षपात और किसी कंपनी विशेष को ध्यान रखकर बनाई जाने वाली टेंडर कंडीशंस के तमाम आरोपों के बाद अबबहुराष्ट्रीय सीमेंस और कार्वी डेटा मैनेजमेंट सर्विसेज सहित तीन अन्य कंपनियों ने रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि उसके सीसीटीवी इंस्टॉलेशन प्रोजेक्ट के लिए जिस टेंडरिंग प्लेटफॉर्म के जरिए बिड मंगाई जा रही है, वह न्यूट्रल (पक्षपातरहित) नहीं है. इससे बिडिंग प्रोसेस में हितों का टकराव होने की आशंका है. उल्लेखनीय है कि केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2018-19 के बजट में इस प्रोजेक्ट की घोषणा की थी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सीसीटीवी इंस्टॉलेशन प्रोजेक्ट के प्रथम चरण में लगभग 1,500 करोड़ रुपये की लागत से 6,000 रेलवे स्टेशनों पर सर्विलांस कैमरे लगाए जाने हैं. जबकि इसके दूसरे चरण में सवारी गाड़ियों के सभी डिब्बों में कैमरे लगाए जाएंगे. रेलवे बोर्ड ने इस पूरे प्रोजेक्ट को लागू करने की जिम्मेदारी रेलटेल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को सौंपी है.

रेलटेल को भेजे पत्र में ‘सीमेंस लि.’ ने लिखा है कि ‘बेहतर यह होगा कि बिडिंग सर्विस प्लेटफॉर्म न्यूट्रल हो. इससे बिडर्स का भरोसा बढ़ेगा और यह जनहित में भी होगा.’ सीमेंस ने पत्र में रेलवे बोर्ड से मांग की है कि ‘फाइनैंशल बिड’ की रीटेंडरिंग की अनुमति दी जाए. कंपनियों की शिकायत है कि रेलटेल द्वारा टेलिकम्युनिकेशंस कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (टीसीआईएल) का ई-प्लेटफॉर्म इस्तेमाल किया जा रहा है, जो खुद इस सीसीटीवी प्रोजेक्ट की एक एक्टिव बिडर है.

जबकि दूसरी कंपनी ‘कार्वी डेटा मैनेजमेंट सर्विसेज’ ने सीधे रेलवे बोर्ड विजिलेंस को पत्र लिखकर कहा है कि ‘रेलटेल ने वेब बेस्ड बिडिंग प्लेटफॉर्म के लिए टीसीआईएल को सर्विस प्रोवाइडर नियुक्त किया है. जबकि टीसीआईएल इस टेंडर की एक्टिव बिडर भी है. यह केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन है, जो बिडर और जिस प्लेटफॉर्म पर बिडिंग होनी है, उसकी ओनर कंपनी दोनों एक ही हैं.’

शिकायत करने वाली कंपनियों का दावा है कि रेलटेल और टीसीआईएल की कथित मिलीभगत के चलते वे बिड प्रोसेस पूरा नहीं कर पाईं. कार्वी ने पत्र में लिखा है कि ‘यह तीन अन्य बिडर्स (सीमेंस, कार्वी और आईटीआई) को रोकने के लिए साफ तौर पर रेलटेल और टीसीआईएल के बीच सांठगांठ का मामला है. वेब बेस्ड ई-टेंडरिंग (टीसीआईएल) सर्विस प्रोवाइडर टीसीआईएल को तकनीकी रूप से डेटा का एक्सेस हो सकता है, इसलिए बिड की पूरी गोपनीयता सुनिश्चित करना मुमकिन नहीं है.’

एक बिडिंग कंपनी के सीनियर एग्जिक्यूटिव ने उसकी पहचान उजागर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया कि ‘रेलवे का अपना बिडिंग प्लेटफॉर्म है, लेकिन उसने टेंडरिंग के लिए उसका इस्तेमाल करने के बजाय यह काम उसने एक थर्ड पार्टी को दे दिया. रेलवे ने ऐसा क्यों किया, न तो यह किसी को पता है, और न ही किसी की समझ में आ रहा है.’ इस संदर्भ में जब रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई, तो उन्होंने कंपनियों के लगाए आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि बिडिंग प्लेटफॉर्म पूरी तरह पारदर्शी है.

रेलवे बोर्ड के प्रवक्ता का कहना है कि ‘टीसीआईएल, केंद्र सरकार की सर्टिफाइंग एजेंसी एसटीक्यूसी से एक सर्टिफाइड पोर्टल है और यह ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के लिए यह पूरी तरह सुरक्षित प्लेटफार्म है. उनका कहना था कि ऐसे पोर्टल्स पर आने वाली बिड, बिडर्स के डिजिटल सिग्नेचर के जरिए एनक्रिप्शन के साथ अपलोड की जाती हैं. उन्हें कोई अनधिकृत व्यक्ति, यहां तक कि ई-टेंडरिंग प्लेटफॉर्म का ओनर भी नहीं देख सकता और न ही उसके साथ कोई छेड़छाड़ कर सकता है.’

बहरहाल, उपरोक्त पूरे मामले में भले ही रेलवे बोर्ड, रेलटेल और उनके प्रवक्ता चाहे जो सफाई और दुहाई दे रहे हों, मगर ‘रेल समाचार’का मानना है कि रेलवे के पूरे टेंडर सिस्टम में कुछ खास कंपनियों की सेंध लग चुकी है, जहां इन्हीं खास कंपनियों को ध्यान में रखकर अथवा उनके बताए अनुसार विभिन्न टेंडर्स की कंडीशन बनाई जा रही हैं और सरकारी राजस्व को खुलकर लूटा जा रहा है. इतना खुला भ्रष्टाचार और खुली लूट इससे पहले कभी नहीं हुई, जितनी पिछले चार-पांच सालों, और खासकर पिछले डेढ़ साल में हुई है. अब ये भी सर्वज्ञात है कि यह सारी मनमानी सीबीआई, सीवीसी का कद छांटकर और विभागीय विजिलेंस को एक कोने में बैठाकर की जा रही है.

स्रोत : ईटी