चुनिंदा कंपनियों को फेवर करने की खुली पोल
‘भेल’ को मिला मीडिया में हल्ला मचाने का लाभ
शिकायत के बाद आईसीएफ ने भेल को ‘सूटेबल’ ठहराया
ईएनएचएम, ओबीएचएस, यात्री सुविधा, बड़ी खरीद में भारी पक्षपात
सुरेश त्रिपाठी
पिछले कुछ वर्षों के दौरान रेलवे के कामकाज में पारदर्शिता का घोर आभाव देखने में आया है. जहां तक विभिन्न बड़े सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट्स एवं टेंडर्स की बात है, तो वर्तमान निजाम में छोटे व्यवसायी धरासाई हो गए हैं अथवा प्रतिस्पर्धा से उन्हें कुछ इस तिकड़म से बाहर कर दिया गया है कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है और वह चिल्लाने या हल्ला मचाने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे हैं अथवा कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के अलावा उनके सामने अन्य कोई विकल्प नहीं बचा है. अधिकारियों की धृष्टता और मनमानी का यह आलम है कि उन्हें विजिलेंस, सीवीसी और सीबीआई जैसी किसी भी जांच एजेंसी का कोई भय नहीं रह गया है.
ऐसे में यदि भारत सरकार के ही एक उपक्रम ‘भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि.’(भेल) ने मीडिया का सहारा नहीं लिया होता, तो चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) को इसके सीएमडी अतुल सोबती द्वारा की गई लिखित शिकायत का भी न तो किसी को कोई पता नहीं चलता और न ही तब उसे आनन-फानन में ‘योग्य’ करार दिया जाता. भेल के सीएमडी सोबती ने आईसीएफ़ द्वारा कंपनी विशेष को फेवर करने के लिए बनाई गई टेंडर कंडीशन के संबंध में सीआरबी को हाल ही में लिखित शिकायत भेजी थी. उनकी यह शिकायत 12 नवंबर को एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित होने के बाद रेलवे बोर्ड से लेकर पूरी भारतीय रेल में भारी हड़कंप मच गया. इसके परिणामस्वरूप जहां एक तरफ रेलवे के मनमानी, तिकड़मी और अपारदर्शी कामकाज की कलई खुल गई, तो दूसरी तरफ आईसीएफ ने आनन-फानन में 13 नवंबर को भेल को उक्त टेंडर के लिए ‘सूटेबल’ कर दिया.
प्राप्त जानकारी के अनुसार भेल ने सीआरबी को की गई अपनी लिखित शिकायत में कहा है कि आईसीएफ द्वारा प्रोपल्शन सिस्टम की आपूर्ति, स्थापना इत्यादि से संबंधित 27 सितंबर 2018 को प्रकाशित टेंडर में कुछ चुनिंदा कंपनियों को फेवर किया जा रहा है. उसने शिकायत में यह भी कहा कि उक्त टेंडर की कंडीशंस कुछ विशेष कंपनियों को फेवर करने के लिए इस प्रकार बनाई गई हैं कि इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी और सरकारी उपक्रम होने के बावजूद उसे दरकिनार कर दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि पेरम्बूर, चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री(आईसीएफ) द्वारा 141 इलेक्ट्रिक ट्रेन सेट्स के लिए प्रोपल्शन सिस्टम की आपूर्ति (फुल वेस्टिबल्ड, अंडरस्लंग इक्विपमेंट, आटोमेटिक क्लोजिंग डोर सिस्टम, 25 केवी एसी फुली एयरकंडीशंड ईएमयू रेक्स की डिज़ाइन, आपूर्ति, परीक्षण और स्थापना) का टेंडर नं. 08182040, दि. 27.09.2018 को प्रकाशित किया गया था. यह टेंडर करीब 1200 से 1500 करोड़ रुपये का बताया गया है. हालांकि टेंडर डॉक्यूमेंट में इसकी विज्ञापित लागत कहां दर्शाई गई है, यह काफी खोजने पर भी नहीं दिखी. यह टेंडर कल गुरूवार, दि. 15.11.2018 को 14.15 बजे खुलने वाला है. भेल ने शिकायत में कहा है कि उक्त टेंडर में सिर्फ तीन कंपनियों को फेवर करने के लिए उसे प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया गया है, जबकि वह वर्षों से रेलवे को इलेक्ट्रिक इंजनों सहित अन्य विद्युत् उपकरणों की आपूर्ति कर रही है. इसके साथ ही निजी क्षेत्र की एक अन्य कंपनी ने टेंडर का समय कुछ और बढ़ाए जाने की मांग की है.
सीआरबी अश्वनी लोहानी को लिखे उक्त पत्र में भेल के सीएमडी अतुल सोबती ने कहा है कि उपरोक्त प्रक्रिया से प्रतिस्पर्धा कम होगी, जिससे लागत बढ़ेगी. सीएमडी/भेल ने लिखा है कि उक्त टेंडर की ‘एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया’ में बदलाव किए जाने से भेल को मिलने वाली बल्क क्वांटिटी से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने लिखा है कि इससे पहले के टेंडर में क्वालीफाइंग क्राइटेरिया सिर्फ एक एसी रेक (एक ट्रेन सेट) की आपूर्ति का था, जिसे उपरोक्त टेंडर में बढ़ाकर दस ट्रेन-सेट्स कर दिया गया है. उन्होंने आगे लिखा है कि उन्हें बताया गया है कि केवल तीन कंपनियां इस बल्क टेंडर के लिए एलिजिबल हो सकती हैं, जबकि वह (भेल) एकमात्र पीएसयू होने के बावजूद इससे बाहर हो गई है. यदि कंडीशंस को नहीं बदला जाता है, तो भेल को न सिर्फ अपनी कम्पिटीटिव बिड सब्मिट करने से वंचित किया जाएगा, बल्कि इससे न्यूनतम प्रतिस्पर्धा होने पर उचित रेट भी रेलवे को नहीं मिल पाएंगे, जिससे इसकी लागत काफी बढ़ जाएगी.
इसके अलावा भारतीय रेल के लिए रोलिंग स्टॉक बनाने वाली एक अन्य बड़ी कंपनी ‘टीटागढ़ वैगंस’ ने भी उक्त टेंडर सब्मिट करने का समय और बढ़ाने की मांग की है. कंपनी का कहना है की इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक बिड्स मिल सकेंगी. पता चला है कि जीएम/आईसीएफ़ को भेजे गए पत्र में टीटागढ़ वैगंस ने कहा है कि उसे लगता है कि टेंडर सब्मिट करने का जो समय दिया गया है, वह प्रोजेक्ट के वॉल्यूम को देखते हुए इसके लिए विस्तृत, ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक और आकर्षक टेक्नो-कमर्शियल प्रस्ताव बनाने हेतु पर्याप्त नहीं दिया गया है. इसलिए उसका निवेदन है कि टेंडर सब्मिशन की तारीख कम से कम दो महीने और बढ़ाई जानी चाहिए. वहीं एक अन्य कंपनी, जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहती है, का आरोप है कि उक्त टेंडर की कंडीशंस सिर्फ एक कंपनी विशेष को फेवर करने के लिए बनाई गई हैं. इस कंपनी का कहना है कि वह जल्दी ही इस संबंध में कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) और पीएमओ में शिकायत दर्ज कराएगी, क्योंकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उक्त टेंडर कंडीशंस ‘मेक इन इंडिया’ के उद्देश्य को पूरा नहीं कर रही हैं.
ज्ञातव्य है कि फरवरी 2018 में निविदा प्रतिस्पर्धा में उचित अवसर न मिलने पर कुछ कंपनियों की शिकायत पर डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पालिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) ने एक ट्रेन-सेट प्रोजेक्ट के लिए ऐसी ही विवादास्पद टेंडर प्रक्रिया को लेकर हस्तक्षेप किया था, जिसमें एक कंसोर्टियम के तहत सिंगल टेंडर प्राप्त करने वाली रोलिंग स्टॉक मैन्युफैक्चरर मेधा एकमात्र बिडर थी. इस संदर्भ में रेलवे बोर्ड को लिखे गए एक पत्र में डीआईपीपी सेक्रेटरी रमेश अभिषेक ने कहा था कि उक्त ट्रेन-सेट के टेंडर के लिए बनाई गई एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया सार्वजनिक खरीद के लिए ‘प्रथम दृष्टया’ असंगत थी, इसमें ‘मेक इन इंडिया’ की वरीयता का ध्यान नहीं रखा गया. उल्लेखनीय है कि रमेश अभिषेक के इस पत्र के बाद उक्त टेंडर रद्द कर दिया गया था.
भेल की उपरोक्त शिकायत और एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित तत्संबंधी खबर के परिणामस्वरूप आईसीएफ ने अगले ही दिन 13 नवंबर को टेंडर की ‘एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया’ को रिलैक्स करके भेल को ‘मेरिट’ पर नहीं, बल्कि एक पीएसयू के नाते ‘सूटेबल’ कर दिया. यह जानकारी ‘रेल समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त हुई है. सूत्रों का कहना है कि भेल की वित्तीय स्थिति और मानव संसाधन इस लायक नहीं है कि वह ऐसा कोई बड़ा प्रोजेक्ट नियत समय में पूरा कर सके. सूत्रों ने बताया कि भेल के पास एक हजार करोड़ रु. से ज्यादा का आर्डर पहले से ही पेंडिंग है. इसमें से आरसीएफ का लगभग 672 करोड़ और आईसीएफ का करीब 400 करोड़ रु. का आर्डर है. उन्होंने बताया कि आरसीएफ ने जनवरी 2018 में प्रोटोटाइप डिज़ाइन सब्मिट करने का जो आर्डर दिया था, वह जुलाई 2018 में सौंपना था, मगर अब तक भी भेल ने उक्त डिज़ाइन का आर्डर पूरा नहीं किया है. जबकि अब भेल ने इसकी अवधि एक साल और बढ़ाकर अगले साल नवंबर तक उक्त डिज़ाइन सौंपने का समय मांगा है.
सूत्रों का कहना था कि जो आर्डर हाथ में है, उसे तो भेल पूरा नहीं कर पा रही है, मगर उसे और आर्डर चाहिए. इस तरह तो कभी कोई प्रोजेक्ट पूरा ही नहीं हो पाएगा. यही नहीं, सूत्रों ने यह भी बताया कि भेल ने 400 करोड़ का जो आईसीएफ का ऑर्डर पिछले महीने अक्टूबर में लिया है, उसका अब तक ‘एक्सेप्टेंस’ भी नहीं दिया है. ऐसे में भेल को और ऑर्डर देकर रेलवे अपने हाथ-पैर कटाकर बैठ जाएगी. इसके अलावा भेल की परफोर्मेंस से निराश होकर रेलवे बोर्ड के बढ़ते दबाव के चलते आईसीएफ ने खुद ही थ्री-फेज मेमू ट्रेन बनाने की पहल अपने स्तर पर शुरू कर दी है. जहां तक टीटागढ़ वैगंस द्वारा टेंडर का समय बढ़ाने के लिए लिखे गए पत्र की बात है, तो सूत्रों का कहना है कि टीटागढ़ वैगंस का ऐसा कोई पत्र जीएम/आईसीएफ को अब तक नहीं मिला है.
हालांकि ‘रेल समाचार’ द्वारा पूछे जाने पर कंपनी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है. तथापि आईसीएफ के हमारे विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार टीटागढ़ वैगंस को आईसीएफ से सात रेक (ट्रेन-सेट) का डेवलपमेंट ऑर्डर दिया गया है. परंतु कंपनी ने अब तक अपनी तरफ से इस ऑर्डर का ‘एक्सेप्टेंस’ नहीं दिया है. सूत्रों का कहना है कि उपरोक्त वातावरण को देखते हुए ऐसा लगता है कि पुराने ऑर्डर पूरा करने की अपेक्षा कंपनियों के बीच नए और ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर लेने की होड़ मची हुई है. उनका कहना है कि एक हजार करोड़ से ज्यादा का ऑर्डर लेकर बैठी भेल का तो सालाना टर्नओवर भी शायद इतना नहीं होगा. परंतु सरकारी उपक्रम होने की धौंस दिखाकर वह ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर लेकर बैठना चाहती है. इसके अलावा सूत्रों का यह भी कहना है कि भेल खुद भी तो रेलवे से ऑर्डर लेकर आउटसोर्स करती है.
आईसीएफ सूत्रों का कहना है कि भेल की अपेक्षा ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत सीमेंस, बम्बार्डियर, ऑल्सटॉम इत्यादि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ज्यादा काम किया है. इसके अलावा टेंडर खुलने के बाद ही यह तय किया जा सकता है कि एल-1 या एल-2 कौन होता है, उससे पहले यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी कंपनी को जानबूझकर दरकिनार किया जा रहा है. जहां तक ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत प्रोजेक्ट करने के दबाव की बात है, तो वह भेल के अतिरिक्त उपरोक्त घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सहभागिता से भी पूरा किया जा सकता है.
सूत्रों का यह भी कहना है कि भेल के पास रेलवे के टावर वैगन (डीईटीसी) का एक और बड़ा ऑर्डर है. इसके लिए भेल ने प्रोटोटाइप की आपूर्ति की है, जिसका फिटमेंट छह महीने बाद हो पाया था, मगर इस फिटमेंट के तुरंत बाद उसमें आग लग गई थी. इसके बावजूद भेल ने इसकी और सप्लाई लेने का दबाव बनाया हुआ है. जबकि यह बात भी सामने आई है कि जब पीएसयू को ऑर्डर जाता है, तो निजी कंपनियां पीएसयू को फेवर करने का आरोप लगाती है और जब निजी कंपनियों को ऑर्डर जाता है, तो पीएसयू यही आरोप लगाने लगता है.
सूत्रों का कहना है कि रेलवे की वरीयता जल्दी से जल्दी मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क के लिए आटोमेटिक डोर क्लोजिंग सिस्टम वाले 47 एसी ईएमयू रेक बनाकर उनकी आपूर्ति करने की है. इसके लिए रेलमंत्री का भारी दबाव भी है. इनका ऑर्डर मुंबई रेल विकास कारपोरेशन (एमआरवीसी) ने दिया है. सूत्रों ने यह भी बताया कि ईएमयू का जो एक एसी रेक मुंबई में चल रहा है, उसका ऑर्डर भेल को वर्ष 2012 (टेंडर वर्ष 2010) में दिया गया था, मगर उसकी आपूर्ति भेल ने तीन साल बाद वर्ष 2015 में की थी, जबकि छह साल बीत जाने के बाद भी उसने दूसरे रेक की आपूर्ति अब तक नहीं की है. यह ऑर्डर कुल 13 एसी ईएमयू रेक का है. जानकारों का कहना है कि निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा यही एसी ईएमयू रेल एक साल के अंदर बना दिया जाता है, जबकि भेल ने 13 में से मात्र एक रेक तीन साल में सप्लाई किया औ छह सालों ए भी दूसरा रेक अब तक नहीं दे पाई है.
बहरहाल, रेलवे में चल रही उपरोक्त तमाम खींचतान और उठापटक से यही संदेश जा रहा है कि वहां सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके अलावा यह भी सच्चाई है कि आरडीएसओ, डीएलडब्ल्यू और आरसीएफ से लेकर तमाम उत्पादन इकाईयों द्वारा कुछ कंपनियों को खुलेआम फेवर किया जा रहा है. इसके साथ ही पिछले चार-पांच सालों से रेलवे की कार्य-प्रणाली में पारदर्शिता का घोर आभाव देखा जा रहा है, जहां लफ्फाजी और दिग्भ्रमित करने वाली बयानबाजी ज्यादा हो रही है, जबकि धरातल पर कोई बुनियादी प्रगति परिलक्षित नहीं हुई है. यह भी सच है कि ईएनएचएम, ओबीएचएस, यात्री सुख-सुविधाओं (पैसेंजर एमिनिटी) के कॉन्ट्रैक्ट्स और टेंडर्स में भारी धांधली, मनमानी, पक्षपात तथा भ्रष्टाचार हो रहा है, उस पर हुए ऑर्बिट्रेशन और अदालती मामले इसका प्रमाण हैं. परंतु इन तमाम मनमानियों और भ्रष्टाचारों पर अंकुश इसलिए नहीं लग सका है, क्योंकि अंकुश लगाने वाले खुद इस सब में शामिल हैं, इसलिए जांच एजेंसियों का भय किसी को नहीं रह गया है.. क्रमशः