ओईएम के नाम पर कंपनी का लगातार किया जा रहा फेवर

श्रमिक पोर्टल पर ठेकाकर्मियों की मजदूरी का हिसाब नहीं दे रही है कंपनी

डेढ़ साल में दो करोड़ का काम, टेंडर किया 15 करोड़ का, बिना अनुमति की सब्लेटिंग

पावर कार मेंटीनेंस में ओईएम का एकाधिकार बनाए रखने में रेलवे बोर्ड की मुख्य भूमिका

सुरेश त्रिपाठी

मध्य रेलवे मुंबई मंडल में लोकमान्य तिलक टर्मिनस यार्ड में पावर कार मेंटीनेंस का काम कर रही कंपनी को लगातार फेवर किया जा रहा है। पहले इस कंपनी को यह टेंडर देने के लिए गलत तरीके से लोयेस्ट पार्टी (एल-1) को दरकिनार करके ओईएम के नाम पर फेवर किया गया। इसके बाद बैक डेट में सब्लेटिंग की अनुमति देकर फेवर किया गया और अब श्रमिक पोर्टल पर ठेकाकर्मियों का हिसाब नहीं देने के बावजूद ठेका रद्द न करके लगातार फेवर किया जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कंपनी को पहले मुंबई के अपने जिस डीलर को सब्लेटिंग की बैक डेट में रेलवे ने अनुमति दी थी, कंपनी ने उस डीलर को हटाकर औरंगाबाद के दूसरे डीलर को यह टेंडर पुनः सब्लेट कर दिया है। तथापि इसकी पूर्व अनुमति लेना कंपनी ने जरूरी नहीं समझा। इसके बावजूद संबंधित अधिकारी अपनी आंखें मूंदे हुए हैं।

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बताते हैं कि पिछले करीब डेढ़ साल से चल रहे इस ठेके में कंपनी को अब तक एक भी बिल का भुगतान नहीं किया गया है, क्योंकि कंपनी ने अपने ठेकाकर्मियों को दी गई मजदूरी का कोई हिसाब अब तक श्रमिक पोर्टल पर अपलोड नहीं किया है। इसके चलते उसका भुगतान सीनियर डीएफएम, मुंबई मंडल ने यह कहकर रोक दिया है कि कंपनी पहले श्रमिक पोर्टल पर अपने श्रमिकों को भुगतान की गई मजदूरी का हिसाब दे, क्योंकि श्रमिकों की मजदूरी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मुख्य नियोक्ता (रेलवे) की है।

कंपनी द्वारा श्रमिकों की मजदूरी का हिसाब श्रमिक पोर्टल पर अपलोड न कर पाने का असली कारण यह बताया जा रहा है कि चूंकि कंपनी द्वारा सीधे कोई काम नहीं किया जा रहा है, इसलिए वह श्रमिक पोर्टल पर श्रमिकों की मजदूरी के भुगतान का कोई हिसाब नहीं दे पा रही है। यही स्थिति पूरी भारतीय रेल में लगभग सभी संबंधित ओईएम की है। जब ओईएम कंपनियां यह काम किसी भी डीलर से, वह भी सब्लेटिंग की पूर्व अनुमति लिए बिना, करवाती हैं, तब सवाल यह उठता है कि ओईएम को ही यह रखरखाव ठेके देने का औचित्य क्या रह जाता है? इसके बावजूद संबंधित अधिकारियों द्वारा इन कंपनियों का लगातार फेवर किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि पावर कार मेंटीनेंस का यह ठेका करीब 15 करोड़ का था, जिसे कंपनी ने अपनी तिकड़मबाजी से लोयेस्ट-1 को दरकिनार करवाकर लगभग 11 करोड़ में हासिल करके लगभग 7-8 करोड़ में मुंबई के अपने एक डीलर को बिना पूर्व अनुमति के सब्लेट कर दिया था। बताते हैं कि पिछले करीब डेढ़ साल के दौरान 25-30 पावर कारों में सिर्फ एक ही इंजन से काम चलाया जाता रहा। यदि कहीं दूसरा इंजन भी फेल हो जाता, तो गाडियां पिट जातीं, मगर इस पर संबंधित अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। बताते हैं कि आज भी कुछ पावर कार में एक ही इंजन से काम चलाया जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले करीब डेढ़ साल में कंपनी को सिर्फ लगभग दो करोड़ का बिल भुगतान हुआ है. हालांकि बताते हैं कि इसके पहले करीब साढ़े नौ करोड़ का भी बिल बना था, मगर किन्हीं कारणों से वह बिल अटक गया. जानकारों का कहना है कि जब पिछले डेढ़ साल में सिर्फ दो करोड़ का ही काम हुआ है, तो इसका मतलब यह हुआ कि काम इतने का ही था, जबकि टेंडर की विज्ञापित लागत 14 करोड़ 91 लाख 20 हजार 206 रुपये 37 पैसे थी और इसी वैल्यू के अनुसार टेंडरर्स की एलिजिबिलिटी तय हुई थी, जिससे टेंडरर्स का पार्टिसिपेशन काम हुआ. उनका कहना है कि यदि काम सिर्फ दो करोड़ का ही था, अथवा यह 4-5 करोड़ का भी होता, तब इसकी एलिजिबिलिटी उसके अनुसार तय होती और तब 20-25 टेंडरर्स इसमें भाग लेते थे.

ज्ञातव्य है कि पूरी भारतीय रेल में पावर कारों का मेंटीनेंस ओईएम कंपनियों को ही दिया गया है। फिर भी पिछले कुछ दिनों के अंतराल में दो बार नई दिल्ली स्टेशन पर पावर कारों में भीषण आग लग चुकी है और जब तब ऐसी घटनाएं कहीं न कहीं होती ही रहती हैं। रेल एवं यात्री संरक्षा के साथ यह बहुत बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है। पावर कार मेंटीनेंस में ओईएम का एकाधिकार बनाए रखने में रेलवे बोर्ड की मुख्य भूमिका है। इसका प्रमाण यह है कि खुर्दा रोड और पुणे मंडलों के ऐसे ही टेंडर लोएस्ट-1 के पक्ष में वर्क ऑर्डर तैयार होने के बाद भी टेंडर रद्द करके तथाकथित ओईएम को एक्सटेंशन दे दिया गया.

विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि कुल 3-4 ओईएम कंपनियां अपना यह एकाधिकार बनाए रखने के लिए भारी-भरकम राशि की दस्तूरी संबंधित अधिकारियों को बांटती हैं। यही वजह है कि जो टेंडर अब तक 4-5 करोड़ में होते थे, उनकी लागत बढ़कर अब 15-20 करोड़ तक पहुंच गई है। यही वजह है कि पूर्व एमआरएस ने रिटायर होने से पहले इन ओईएम के फेवर में एक ऐसा पत्र जारी कर गए, जो कहता है कि जोनल पीसीएमई चाहें तो वह नॉन-ओईएम को भी कंसीडर कर सकते हैं। परंतु इस पत्र की तिकड़मी भाषा को ध्यान में रखते हुए किसी भी पीसीएमई ने आज तक यह दुस्साहस नहीं किया है। सूत्रों का कहना है कि ओईएम कंपनियों ने इस पत्र के लिए पूर्व एमआरएस को करीब 50 लाख रुपये का चढ़ावा चढ़ाया था! क्रमशः