अव्यवस्था का शिकार मध्य रेलवे का मुंबई मंडल!
रेलकर्मियों के साथ हो रहा है जातीय भेदभाव और पक्षपात
चेकिंग स्टाफ से एक वाणिज्य अधिकारी करवा रहा है अपना धंधा
अनावश्यक कार्यों के जरिए इंजीनियरिंग विभाग पोत रहा है पहाड़
कुर्ला–वडाला हार्बर लाइन का ब्लाक फेल, शून्य वर्किंग के बजाय दर्शाई गई शत–प्रतिशत प्रोग्रेस
मध्य रेलवे का मुंबई मंडल पिछले दो सालों में पूरी तरह सड़ चुका है। यह कहना है मंडल के तमाम रेलकर्मियों का। उनका कहना है कि 14 अक्टूबर की शाम को पूरे एक घंटे तक छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) पर लाइट नहीं थी। सभी प्लेटफार्मों पर अंधेरा छाया हुआ था। परंतु मंडल के किसी अधिकारी को इसकी तनिक भी परवाह नहीं थी।
कहीं ट्रेनों में आग लग रही है, तो कहीं ट्रेन डिरेल हो रही है। अभी शनिवार, 26 अक्टूबर को इगतपुरी में 12534 डाउन पुष्पक एक्सप्रेस का एक कोच डिरेल हो गया। काफी मशक्कत के बाद उक्त कोच को काटकर करीब दो घंटे बाद ट्रेन को आगे के लिए रवाना किया जा सका। पटरी की हालत देखकर ही आसानी से यह समझा जा सकता है कि उसकी इतनी दुर्दशा का कारण मंडल के इंजीनियरिंग अधिकारियों की काहिली और निकम्मापन है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 21-22 अक्टूबर को कुर्ला से वडाला के बीच हार्बर लाइन पर रात्रि ब्लाक लिया गया था। इसमें एक इंच भी काम नहीं हुआ, मगर कागज पर शत-प्रतिशत प्रोग्रेस रिपोर्ट लगाई गई है। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार टीआरटी मशीन सिर्फ वडाला तक ही आ पाई थी। सूत्रों ने बताया कि एक जगह रेल को काटने के लिए पूरी तरह गर्म किया जा चुका था, तथापि ट्रैक मशीन को उसके ऊपर से निकाला गया, ऐसे में उक्त मशीन पटरी से लुढ़क सकती थी।
जबकि नियमानुसार उसे कम से कम 20 मिनट बाद ही निकाला जाना चाहिए था। जीएम, डीआरएम और पीसीई उपरोक्त ब्लाक की पूरी डिटेल मंगवाकर इसका जमीनी निरीक्षण करें, सारी हकीकत और मंडल के इंजीनियरिंग विभाग की लापरवाही और पूरा निकम्मापन खुद-ब-खुद उजागर हो जाएगा। वास्तव में कुछ अधिकारियों की ऐसी भ्रष्ट कार्य-प्रणाली ही रेलवे की बरबादी का प्रमुख कारण है।
मंडल में कहीं चोरी हो रही है, तो कहीं छिनैती। अवैध हाकरों और किन्नरों पर मंडल प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। इस मामले में यही हाल पूरे जोन का है। चारों तरफ गंदगी की भरमार है, परंतु इस मद में खर्च की गई राशि का कोई हिसाब नहीं है। भ्रष्टाचार का चौतरफा बोलबाला है। तेली के घर बहुत तेल होता है, फिर भी वह पहाड़ नहीं पोतता, मगर मुंबई मंडल के इंजीनियरिंग विभाग ने कुर्ला यार्ड में पानी निकासी की नालियां बनाकर इस कहावत को गलत साबित कर दिया है। जबकि रेलकर्मियों की कालोनियों की मरम्मत के लिए उसके पास न समय है, और न ही फंड है।
एक रेलकर्मी ने बताया कि लोकल ट्रेनों की कोई टाइमिंग ही नहीं रह गई है। इस रेलकर्मी ने बताया कि जहां 14 अक्टूबर को दादर-सीएसएमटी के बीच लोकल को 35 से 40 मिनट लगे, वहीं 22 अक्टूबर को 40 मिनट। अभी इनकी कोई निर्धारित टाइमिंग नहीं है। यह सही है कि मंडल के लाखों उपनगरीय रेलयात्री वास्तव में अत्यंत सहनशील हैं, वरना अब तक मंडल प्रशासन उनके साथ इतनी नाइंसाफी नहीं कर पाता। उल्लेखनीय है कि 01.10.19 को रेलमंत्री के साथ हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग में मध्य रेलवे पर पंक्चुअलिटी सुधारने का विशेष उल्लेख किया गया था।
एक अन्य रेलकर्मी ने बताया कि आज भायखला से सीएसटी 28 मिनट में पहुंचा हूं। वहीं डोंबिवली से सीएसटी के बीच रोज लोकल से यात्रा करने वाली एडवोकेट प्रिया सहित सैकड़ों लोकल यात्री ट्विटर पर रोजाना हजारों शिकायतें कर रहे हैं। उनकी ये शिकायतें सिर्फ इधर से उधर फॉरवर्ड होती हैं, उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। तमाम रेलकर्मियों के साथ ही सैकड़ों लोकल यात्रियों का भी यही कहना है कि निकम्मों ने मुंबई लोकल की हालत बदतर कर दी। रोज कहीं न कहीं कुछ न कुछ फेलियर होता ही है। एक दिन की बात हो, तो भी समझ में आता है। यहां पिछले दो साल से यही सब चल रहा है। न कहीं कोई ज्ञापन, न कहीं कोई आंदोलन। पहले यदि कहीं दस मिनट की गड़बड़ होती थी, तो मुलुंड में, घाटकोपर में, हकले आंदोलन करने पटरी पर आ जाते थे। आज उनकी सत्ता है, तो जनता की कोई परेशानी उन्हें नजर ही नहीं आ रही है।
मुंबई मंडल के कई वाणिज्य कर्मचारियों का कहना है कि मंडल का वाणिज्य विभाग नेतृत्व विहीन है। ब्रांच ऑफिसर को पता ही नहीं है कि उसे कब क्या करना है अथवा कब क्या करना चाहिए। वह कुछ निहितस्वार्थी तत्वों से घिरा हुआ है, जो उसे अपने मन-मुताबिक चलाते हैं। जबकि इसका फायदा उसके मातहत कुछ धंधेबाज वाणिज्य अधिकारी उठा रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ़ टारगेट के चक्कर में आए दिन मंडल में कोई न कोई चेकिंग स्टाफ पब्लिक से पिट रहा है। इसकी कोई चिंता मंडल प्रशासन को नहीं है। दो दिन पहले इसी तरह आधी रात के करीब कुर्ला स्टेशन पर टिकट चेक कर रहे सीनियर टीसी एस. के. सिंह को एक यात्री ने पत्थर मारकर बुरी तरह घायल करके भाग गया।
इन वाणिज्य कर्मचारियों ने बताया कि मंडल का एक वाणिज्य अधिकारी दिवाली पर अपना करोड़ों का डेकोरेटिव सामान टिकट चेकिंग स्टाफ के माध्यम से बिकवा चुका है। कुछ बेशर्म और बेहया स्टाफ भी उसका हमाल बना हुआ है। कर्मचारियों का कहना था कि दीवाली से करीब 15-20 दिन पहले से इस अधिकारी के बड़े-बड़े कार्टन डीसीटीआई ऑफिस सहित लगभग सभी सीटीआई कार्यालयों से उनके गंतव्य पर टिकट चेकिंग स्टाफ के माध्यम से पहुंचाए गए, मगर किसी स्टाफ ने चूं तक नहीं की। जबकि अन्य स्टाफ द्वारा यह हमाली करने में लगे स्टाफ को न सिर्फ खरी-खोटी सुनाई जाती रही, बल्कि काफी लानतें भी दी गईं, मगर बेशर्म स्टाफ फिर भी हमाली में लगा रहा और इस तरह उसने धंधेबाज अधिकारी को लाखों-करोड़ों कमाने में अपना महती योगदान दिया।
जिन वाणिज्य कर्मियों के खिलाफ गबन के बावजूद वैसी कारवाई नहीं हुई, जैसी एक स्टाफ को नौकरी से बर्खास्त करके की गई, उनके पीछे कौन अधिकारी है? किसने उन्हें बचाया? यह जांच का विषय है। यहां किसी की तरफदारी की बात नहीं हो रही, बल्कि बात ये की समान अपराध में सामान दंड क्यों नहीं होना चाहिए था? यदि बाकी लोगों को बचाया गया है, अथवा उन्हें बचने का मौका दिया गया है, तो उस बर्खास्त कर्मचारी को क्यों नहीं दिया गया? जबकि वह भी गबन की राशि को भरने की प्रक्रिया में था।
मंडल प्रशासन का उद्देश्य सिर्फ टिकट चेकिंग से टारगेट के नाम पर नए कीर्तिमान स्थापित करने का है। बड़े अवॉर्ड प्राप्त करके अपनी पीठ थपथपाने का है। कितने लोग इस कारण से अवसाद में हैं। गंभीर बीमारियों का शिकार हैं। कई लोग पिछले एक-दो वर्षों में अपनी जान तक गवां चुके हैं। इसकी किसी को परवाह नहीं है। टारगेट के कीर्तिमान भी यात्रियों कि मजबूरी का फायदा उठाकर मुंबई से जाने वाली उत्तर भारतीय गाड़ियों में स्लीपर क्लास में जानवरों से भी बुरी हालत में ठूंस कर भरे गए यात्रियों की बदौलत है। एलटीटी का ये टारगेट मंडल के कुल टारगेट का 85% है। अगर सही जांच हो जाए, तो सारे आंकड़े धरे रह जाएंगे।
कर्मचारियों का कहना था कि रेलवे में आने से लेकर अब तक मुंबई मंडल में ही जमे इस वाणिज्य अधिकारी द्वारा वाणिज्य कर्मचारियों के साथ जातीय भेदभाव और पक्षपात किए जाने के भी कई मामले सामने आए हैं। यह पक्षपात और भेदभाव राजधानी, शताब्दी और दुरंतो एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में लगाए गए चेकिंग स्टाफ की लिस्ट देखने से ही जाहिर हो जाता है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा हाल ही में कम अर्निंग के लिए करीब 15-20 चेकिंग स्टाफ को इस अधिकारी द्वारा ओपन डिटेल बैंचों से निकालकर स्टेशनों पर पदस्थ किया गया है। जबकि कई स्टाफ, जिनकी अर्निंग उनसे भी काफी कम है, उन्हें बैच में ही बनाए रखा है। कर्मचारियों का कहना है कि इस अधिकारी ने यूनियनों से जुड़े कुछ दबंग स्टाफ के लिए दो अलग अलग-अलग बैच बनाकर दोनों यूनियनों को भी बखूबी साध रखा है। उनका यह भी कहना था कि यदि यूनियनों की इन्हीं दोगली और निहितस्वार्थी नीतियों के कारण ही रेलवे में भ्रष्टाचार जड़ों तक जा पहुंचा है तथा यही रेलवे के निजीकरण का आधार बन रहा है।
उल्लेखनीय है कि कुछ महीनों पहले मंडल के एक वरिष्ठ चेकिंग स्टाफ को कई लाख की अर्निंग रेलवे के खाते में जमा नहीं करके हड़प जाने के आरोप में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। परंतु मंडल में आज भी ऐसा तमाम चेकिंग स्टाफ है, जिस पर रेलवे का पांच लाख से पचीस लाख तक बकाया है। इस रेल राजस्व को संबंधित वाणिज्य स्टाफ (टीसी, बीसी, पीसी, जीसी और ईसीआरसी) ने रेलवे के खाते में जमा करने के बजाय खुद अपने निजी स्वार्थ में खर्च कर लिया है।
हालांकि इस बकाया राशि की रिकवरी कच्छप गति से रेल प्रशासन द्वारा की जा रही है, परंतु रेलकर्मियों का सवाल यह है कि नौकरी से बर्खास्तगी की जो कारवाई एक स्टाफ के विरुद्ध की गई, वही समान कारवाई दूसरे स्टाफ के साथ भी क्यों नहीं की गई अथवा क्यों नहीं की जानी चाहिए? उनका यह भी कहना है कि जिस-जिस स्टाफ पर जितनी राशि का बकाया है, प्रशासन उसको सार्वजनिक करे और इस राशि का चार्ट स्टाफ के नाम के साथ मंडल कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर लगाया जाना चाहिए।
मुंबई मंडल में शुरू से जमे इस वाणिज्य अधिकारी, जो स्टाफ से अपना बिजनेस करा रहा है और माल कमा रहा है, की जांच बेहद जरूरी है। अब तो इसने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि मेरा प्रमोशन जेए ग्रेड में होने जा रहा है और मैं यहीं सीनियर डीसीएम बनकर बैठूंगा। इसीलिए मंडल का डरपोक वाणिज्य स्टाफ इसकी जी-हजूरी में लगा हुआ है। क्रमशः