“राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-7”
‘कमिंस इंडिया’ ने बिना अनुमति टेंडर सब्लेट किया, अधिकारी मौन!
अधिकारियों द्वारा अवैध सब्लेटिंग को अब रेगुलराइज करने की कोशिश
कंपनी ने किया स्टैंडर्ड जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट का खुला उल्लंघन
सीनियर डीईई/कोचिंग द्वारा जानबूझकर की गई दोगुना से ज्यादा बजटिंग
सुरेश त्रिपाठी
हाल ही में मुंबई मंडल, मध्य रेलवे द्वारा टेंडर नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/एलटीटी/2017-03, दि. 05.01.2018 के अंतर्गत कंप्रीहेंसिव ऐनुअल मेंटीनेंस ऑफ डीजल इंजन पॉवर कार का कांट्रेक्ट कमिंस इंडिया लि. को दिया गया है. कंपनी ने रेलवे की पूर्व अनुमति के बिना ही यह मेंटीनेंस वर्क अपनी डीलर‘पावरिका लि.’ को सब्लेट कर दिया है. इस प्रकार कंपनी ने ‘इंडियन रेलवे स्टैंडर्ड जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट’ में दिए गए प्रावधानों का खुला उल्लंघन किया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार अब मुंबई मंडल के संबंधित अधिकारियों द्वारा कंपनी की इस मनमानी के विरुद्ध उक्त कांट्रेक्ट तत्काल रद्द करने के बजाय पिछली तारीख (बैक डेट) से इस अवैध सब्लेटिंग को अधिकृत करने की अवैध प्रक्रिया की जा रही है.
ज्ञातव्य है कि कमिंस इंडिया द्वारा बिना पूर्व अनुमति यह टेंडर अपनी डीलर फर्म ‘पावरिका लि.’ को सब्लेट करके ‘इंडियन रेलवे स्टैंडर्ड जनरल कंडीशन ऑफ कांट्रेक्ट’ का खुला उल्लंघन किया गया है. रेलवे के तमाम कॉन्ट्रैक्ट्स की उक्त स्टैंडर्ड गाइडलाइन्स के पेज-25 पर पैरा-7 में स्पष्ट उल्लेखित है कि ऐसा कांट्रेक्ट तुरंत रद्द कर दिया जाएगा. तथापि संबंधित अधिकारियों द्वारा कंपनी की मनमानी को अनदेखा करके उसका खुला फेवर किया जा रहा है. जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में न सिर्फ भारी भ्रष्टाचार की गंध आ रही है, बल्कि इसमें उच्च अधिकारियों की मिलीभगत होने का भी पूरा अंदेशा है.
Indian Railway Standard General Conditions of Contract: As on 30th June 2014.Page No. 25:
“7. The Contractor shall not assign or sublet the contract or any part thereof or allow any person to become interested therein any manner whatsoever without the special permission in writing of the Railway. Any breach of this condition shall entitle to the Railway to rescind the contract under Clause 62 of these conditions and also render the Contractor liable for payment to the Railway in respect of any loss or damage arising or ensuing from such cancellation; provided always execution of the details of the work by petty contractor under the direct and personel supervision of the Contractor or his agent shall not be deemed to be sub-letting under this clause. The permitted subletting of work by the Contractor shall not establish any contractual relationship between the sub-contractor and the Railway and shall not relieve the Contractor of any responsibility under the Contract.”
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि अब संबंधित अधिकारी बैंक डेट से कमिंस इंडिया को टेंडर सब्लेटिंग की अनुमति देने की जल्दी में हैं और पहला बिल निकालने की जल्दी में इसलिए हैं कि जिससे बाद में सब मिलकर एक-दूसरे को बचाएंगे, क्योंकि बिल में हस्ताक्षर होने के बाद सभी जवाबदेह होंगे. सूत्रों का यह भी कहना है कि यही घालमेल इस टेंडर के एलाटमेंट में भी तब किया गया था, जब एल-1 फर्म को अवैध रूप से बाईपास करके कमिंस इंडिया को यह टेंडर दिया गया था. देखें- ‘रेलसमाचार.कॉम’ द्वारा दि. 26.10.2018 को “टेंडर की टेक्निकल बिड स्क्रूटिनी में अनियमितता” शीर्षक से प्रकाशित पूरी खबर. सूत्रों ने बताया कि कंपनी का पहला बिल जल्दी से जल्दी बनाकर भेजने के लिए एसएसई/कुर्ला डिपो को निर्देशित किया गया है, जो कि करीब 10-15 वर्षों से लगातार इसी डिपो में पदस्थ है.
शिवसेना सांसद आनंदराव अडसूल ने रेलमंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर उपरोक्त टेंडर में हुए घालमेल और भ्रष्टाचार की शिकायत की है. जबकि एल-1 रही फर्म ने इसकी शिकायत पहले ही सीवीसी से की थी. खबर यह भी है कि विजिलेंस ने इस पूरे मामले में लीपापोती करके संबंधित अधिकारी को क्लीन चिट दे दी है. जबकि सांसद श्री अडसूल ने अपनी लिखित शिकायत में वर्ष 2016 में डीजी सेट, अल्टरनेटर, पॉवर कार एवं अन्य इक्विपमेंट्स के कंप्रीहेंसिव ऐनुअल मेंटीनेंस कांट्रेक्ट (टेंडर नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/सीएसटीएम/2014-32) का हवाला देते हुए लिखा है कि उक्त टेंडर संबंधित अधिकारी द्वारा एक पीएसयू को बाईपास करके एक निजी फर्म को इसलिए दे दिया गया था, क्योंकि पीएसयू से उक्त अधिकारी को कोई कमीशन नहीं मिलने वाला था. इसके साथ उन्होंने लिखा है कि एलएचबी-आरएमपीयू के एक अन्य ऐनुअल मेंटीनेंस कांट्रेक्ट के टेंडर (नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/सीएसटीएम/2014-36) को दो-दो बार इसलिए रद्द कर दिया गया, क्योंकि संबंधित अधिकारी को कंपनी ने 50 लाख रुपये का कमीशन देने से मना कर दिया था. इसके अलावा भी सांसद श्री अडसूल ने अपने पत्र में कई ऐसे अन्य टेंडर्स में किए गए घालमेल सहित मध्य रेलवे विजिलेंस द्वारा जांच में की गई कोताही का भी उल्लेख किया है.
अब जहां तक कमिंस इंडिया द्वारा अपनी डीलर फर्म ‘पावरिका लि.’ को उपरोक्त टेंडर सब्लेट किए जाने का मलमा है, तो इस टेंडर के बारे में जानकारों का कहना है कि इसकी दोगुना से ज्यादा बजटिंग की गई थी. उनका कहना है कि उक्त टेंडर की विज्ञापित लागत लगभग 15 करोड़ रुपये थी. जबकि कमिंस इंडिया को यह टेंडर करीब 11 करोड़ रुपये में दिया गया है. जानकारों का कहना है कि कमिंस इंडिया का यह रिकॉर्ड रहा है कि वह रेलवे से टेंडर लेकर पावरिका को 70-75% लागत पर सब्लेट कर देती है. उनका कहना है कि इसका अर्थ यह है कि पावरिका को यह काम करीब 7-7.50 करोड़ में सब्लेट किया गया है. अब पावरिका भी तो मुफ्त में यह काम नहीं कर रही होगी, यानि वह भी तो डेढ़-दो करोड़ का अपना प्रॉफिट निकालेगी. इसका तात्पर्य यह है कि उक्त टेंडर वर्क कुल मिलाकर लगभग 5-5.50 करोड़ का ही है. इसका अर्थ यह है कि इस टेंडर की बजटिंग दोगुना नहीं, बल्कि तीन गुना ज्यादा की गई है.
इस संदर्भ में ‘रेल समाचार’ ने पक्ष जानने के लिए सबसे पहले कुर्ला टर्मिनस/डिपो पर कार्यरत ‘पावरिका’ की गाड़ियों में लिखे लैंड लाइन नंबर पर कॉल किया. इस पर किसी मनोज नामक व्यक्ति से बात हुई. उससे जब यह पूछा गया कि उसकी कंपनी ‘पावरिका लि.’ किस आधार पर कुर्ला डिपो में कार्यरत है, तो उसने यह कहकर जवाब देने से टाल दिया कि इस बारे में उनके इंजीनियर पावसकर और मैनेजर जगताप से बात की जाए. तत्पश्चात जब इंजी. पावसकर और मैनेजर जगताप से उनके मोबाइल पर संपर्क करके उनसे भी उपरोक्त सवाल किया गया, तो पावरिका के इन दोनों कार्मिकों का कहना था कि वह कमिंस इंडिया के अधिकृत डीलर हैं, इसलिए वहां कार्य कर रहे हैं. परंतु जब उनसे यह कहा गया कि अधिकृत डीलर होने का क्या यह मतलब है कि रेलवे के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुसकर वह किसी का भी काम करेंगे? उनसे यह भी पूछा गया कि उक्त कार्य का टेंडर क्या सीधे उनकी फर्म ‘पावरिका’ को मिला है? इस पर उन्होंने गोलमोल जवाब दिया. तथापि पुनः जब उनसे यह कन्फर्म करने की कोशिश की गई कि यदि उनकी फर्म को सीधे टेंडर नहीं मिला है, तो वह किस आधार पर उक्त कार्य कर रहे हैं, क्योंकि किसी कंपनी का डीलर होना इसका पर्याप्त आधार नहीं हो सकता है? इस पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. कमिंस इंडिया का पक्ष जानने के कई प्रयास किए गए, परंतु उसके किसी प्रतिनिधि से संपर्क स्थापित नहीं हो सका.
तत्पश्चात इस बारे में ‘रेल समाचार’ ने सीधे वर्तमान सीनियर डीईई/कोचिंग एस. एल. स्याली से प्रत्यक्ष बात की और उनसे जब यह पूछा कि कुर्ला मेंटीनेंस डिपो में पावरिका लि. किस आधार पर कार्यरत है? तो उनका भी यही कहना था कि पावरिका- कमिंस इंडिया की अधिकृत डीलर है. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि क्या अधिकृत डीलर को टेंडर दिया गया है, यदि नहीं, तो क्या कमिंस इंडिया ने अपना उक्त टेंडर उसको सब्लेट किया है? यदि हां, तो क्या कमिंस इंडिया ने इस सब्लेटिंग की पूर्व लिखित अनुमति रेलवे से ली है? इस पर श्री स्याली का कहना था कि टेंडर में सब्लेटिंग का प्रावधान है. इसके बाद जब उनसे यह कहा गया कि प्रावधान होना और लिखित अनुमति दिया जाना दोनों अलग हैं. क्या रेलवे ने कमिंस को इसकी लिखित अनुमति दी है? इस पर उनके पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था.
बहरहाल, उक्त टेंडर में शुरू से अब तक न सिर्फ तमाम घालमेल किए गए हैं, बल्कि पक्षपात और भ्रष्टाचार का खुला खेल हुआ है. जबकि इस पूरे खेल के बारे में मध्य रेलवे विजिलेंस सहित सभी संबंधित उच्चाधिकारी भी बखूबी अवगत हैं. तथापि सिर्फ पूर्व सीनियर डीईई/कोचिंग को बचाने के लिए समस्त लीपापोती की गई और अब पिछली तारीख से कंपनी को सब्लेटिंग की अनुमति प्रदान करके उक्त तमाम पक्षपात और खामियों पर पर्दा डालने की भी कोशिश की जा रही है. इस प्रकार रेल राजस्व अथवा जनता की गाढ़ी कमाई को खुलेआम लूटा और लुटाया जा रहा है. जबकि जानकारों की राय में कंपनी ने इंडियन रेलवे स्टैंडर्ड जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट की सेवा-शर्तों का खुला उल्लंघन किया है, जिसके चलते इसके क्लॉज़-62 के तहत उक्त कांट्रेक्ट तुरंत रद्द किया जाना चाहिए.