ट्रैफिक/कमर्शियल में होने जा रहे हैं कुछ महत्वपूर्ण बदलाव
संजीव गर्ग से निकालकर नवीन शुक्ला को सौंपी जा रही कैटरिंग
हटाए जा रहे हैं झगड़ालू सीसीएम/प.म.रे. और कदाचारी सीसीएम/द.पू.म.रे.
नहीं गली चितरंजन स्वाईं की दाल, सीओएम/द.पू.म.रे. में आएंगे यू.के.बल
भावी ‘चॉइस पोस्टिंग’ के लिए अधिकारी ने छोड़ा प्रिंसिपल सीओएम का पद
‘ऊपरवाला’ मेहरबान तो दोनों साथ मिलते हैं ‘चॉइस पोस्टिंग और चॉइस प्लेस’
अकर्मण्यता के चलते ‘भोपाल कांड’ को सुलझाने में अक्षम साबित हुए सीसीएम
दस साल से ज्यादा एक ही जगह जमे लोगों को दर-बदर किए बिना सारी कवायद अधूरी
सुरेश त्रिपाठी
रेलवे बोर्ड, ट्रैफिक निदेशालय ने कुछ जोनल रेलों में ट्रैफिक एवं कमर्शियल डिपार्टमेंट के शीर्ष अधिकारियों की पदस्थापना में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जाने का प्रस्ताव तैयार किया है. जानकारों के अनुसार जहां एक तरफ प्रस्तावित बदलावों के मद्देनजर ऐसा लगता है कि कार्यक्षम और योग्य अधिकारियों को आगे लाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ खानपान नीति को लेकर जिस तरह का दबाव अधिकारियों पर बनाया जा रहा है, उससे सभी अधिकारी न सिर्फ डरे हुए हैं, बल्कि इसके फलस्वरूप वाजिब परिणाम भी फलीभूत नहीं हो पाएंगे.
जानकारों का यह भी कहना है कि जहां कुछ बदनाम और घोषित कदाचारी अधिकारियों के मामले में कोई ठोस निर्णय लिए जाने की जरूरत है, वहीं ऐसा लगता है कि रेलवे बोर्ड किसी अदृश्य राजनीतिक दबाव में है. तथापि, लालू प्रसाद यादव के समय लिए गए कदाचारपूर्ण एवं विवादस्पद निर्णयों की पृष्ठभूमि के बावजूद रेलवे बोर्ड द्वारा कुछ ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं, जिनसे सभी संबंधित अधिकारी डरे हुए हैं. उनका कहना है कि एक तरफ ऐसा लगता है कि सक्षम और योग्य अधिकारियों को फ्रंट में लाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ कुछ ऐसा कदम उठाया जा रहा है जिससे कि सभी अधिकारी दहशत में आ गए हैं.
रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से ‘रेलवे समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार एडीशनल मेंबर/टूरिज्म एंड कैटरिंग संजीव गर्ग से ‘कैटरिंग’ निकालकर अथवा छीनकर नवीन शुक्ला को सौंप दी गई है और श्री शुक्ला को एडवाइजर/मोबिलिटी से एडवाइजर/कैटरिंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. सूत्रों का कहना है कि यह काम रेलमंत्री की पहल पर किया गया है, क्योंकि रेलमंत्री खानपान नीति में अपनी सुविधानुसार कुछ बदलाव करवाना चाहते हैं, जिसके लिए संजीव गर्ग ने विभागीय प्रक्रिया अपनाने की बात कही थी, जो कि रेलमंत्री को नागवार लगी, क्योंकि रेलमंत्री किसी फाइल पर खुद हस्ताक्षर करने के मूड में नहीं हैं. परिणामस्वरूप उन्होंने संजीव गर्ग से कैटरिंग ही छीन ली. ऐसा सूत्रों का कहना है.
बहरहाल, सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार एडवाइजर/मोबिलिटी की पोस्ट को डाउनग्रेड करके उस पर ईडी/एनएफआर रहे आतिश सिंह को भेजे जाने का प्रस्ताव है. जबकि ईडी/कैटरिंग की पोस्ट को समाप्त करके सुश्री स्मिता राव को ईडी/एनएफआर बनाया जा रहा है. इसके अलावा 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे एडीशनल मेंबर/ट्रैफिक अंबरीश कुमार गुप्ता की जगह एजीएम/उ.प.रे. अनुराग को और एडीशनल मेंबर/आईटी संजय दास की जगह सुश्री सुनीरा बस्सी को लाया जा रहा है, जो कि वर्तमान में सीएओ/पीएमएस/उ.रे. के पद पर कार्यरत हैं.
इसी प्रकार पूर्व रेलवे के प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधक (प्रिंसिपल सीओएम) अजय बेहरा को पूर्व तट रेलवे, भुवनेश्वर में प्रमुख मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (प्रिंसिपल सीसीएम) के पद पर भेजा गया है, जबकि उनकी जगह वर्तमान प्रिंसिपल सीसीएम/पूर्व रेलवे एस. एस. गहलौत को प्रिंसिपल सीओएम/पूर्व रेलवे बनाया जा रहा है और प्रिंसिपल सीसीएम/पूर्व रेलवे के पद पर एम. एल. ए. अप्पा राव को लाने का प्रस्ताव है. इसके अलावा सीटीपीएम/दक्षिण पूर्व रेलवे पी. के. जेना को प्रिंसिपल सीसीएम बनाकर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, बिलासपुर में भेजा जा रहा है, जबकि 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे प्रिंसिपल सीओएम/द.पू.म.रे. जे. एन. झा की जगह पूर्व रेलवे के वरिष्ठ उप-महाप्रबंधक (एसडीजीएम) यू. के. बल को पदस्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है.
प्रिंसिपल सीसीएम/द.पू.म.रे. ने अशालीन हरकतों से फैलाई भयानक गंध
जानकारों का कहना है कि वर्तमान प्रिंसिपल सीसीएम/द.पू.म.रे. को पूर्वोत्तर रेलवे के प्रिंसिपल सीसीएम के पद पर ट्रांसफर किया जा रहा है, जो कि उनके लिए एक बेहतर जगह होगी. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) ने द.पू.म.रे. मुख्यालय सहित बिलासपुर और रायपुर मंडलों का निरीक्षण दौरा किया था. बताते हैं कि उक्त दौरे के समय कई लोगों ने प्रिंसिपल सीसीएम/द.पू.म.रे. की कई कदाचारीपूर्ण गतिविधियों की शिकायत सीआरबी से की थी. जानकारों का मानना है कि सीआरबी से की गई इन्हीं शिकायतों के मद्देनजर प्रिंसिपल सीसीएम/द.पू.म.रे. का तबादला किया जा रहा है. इसके अलावा बताते हैं कि जीएम/द.पू.म.रे. भी उन्हें पसंद नहीं कर रहे हैं. इसके साथ ही कुछ स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि उत्तर रेलवे के पूर्व प्रिंसिपल सीसीएम की ही तरह वर्तमान प्रिंसिपल सीसीएम/द.पू.म.रे. ने भी अपने कदाचार और अशालीन हरकतों की भयानक गंध मचा रखी है.
वरिष्ठ अधिकारी खुद भी जिम्मेदार
इसके साथ ही मेट्रो रेलवे कोलकाता के प्रिंसिपल सीओएम सुरजीत दास को पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर में प्रिंसिपल सीसीएम के पद पर लाया जा रहा है और वर्तमान प्रिंसिपल सीसीएम/प.म.रे. एम. पी. मेहता को हटाकर उनकी पोस्टिंग फिलहाल कैडर में वहीं की जा रही है. जानकारों का कहना है कि इन दोनों वरिष्ठ अधिकारियों के साथ यह व्यवहार उचित नहीं है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि इसके लिए यह दोनों वरिष्ठ अधिकारी खुद भी जिम्मेदार हैं. जहां तक सुरजीत दास की बात है, तो उनमें ‘पीने’ की एक ही बुरी लत बताई जाती है, जबकि उनकी विश्वसनीयता के प्रति कोई शक नहीं है. जानकारों का कहना है कि यदि श्री दास की विश्वसनीयता में कोई कमी होती, तो न वह कभी द.पू.म.रे. के पूर्व महा-कदाचारी महाप्रबंधक की मुखालफत करते, और न ही तब उन्हें प्रिंसिपल सीओएम/द.पू.म.रे. जैसे अत्यंत कमाऊ पद से असमय हटाकर तीसरी बार मेट्रो रेलवे में भेजा जाता. ऐसे में उनके साथ न्याय की बात तो तब होती, जब या तो पूर्व रेलवे, कोलकाता में ही अथवा उनकी पुरानी जगह द.पू.म.रे. में उन्हें प्रिंसिपल सीओएम के पद पर पुनर्स्थापित किया जाता.
प्रिंसिपल सीसीएम/प.म.रे. की वहीं पर कैडर में पोस्टिंग से बेइज्जती
अब जहां तक बात एम. पी. मेहता की है, तो प्राप्त जानकारी के अनुसार उनको प्रिंसिपल सीसीएम/प.म.रे. के पद से हटाने का प्रमुख कारण उनका झगड़ालू स्वाभाव बताया जा रहा है. जानकारों का कहना है कि इसी स्वाभाव के चलते उन्हें न ही जीएम पसंद करते हैं और न ही प.म.रे. का कोई अन्य विभाग प्रमुख उनके साथ काम करने को तैयार है. बताते हैं कि सीसीएम/पीएस के साथ भी उनकी नहीं पटती है. इसके अलावा प्रिंसिपल एफए एंड सीएओ सहित कुछ अन्य विभाग प्रमुखों ने भी उनकी शिकायत की है. इसके साथ ही भोपाल मंडल में सीनियर डीसीएम द्वारा 15-20 खानपान स्टाल धारकों की ट्रालियों को आनन-फानन बंद करा दिए जाने के मामले को भी सही ढ़ंग से निपटाने में वह अक्षम साबित हुए हैं. इसके चलते उनसे न सिर्फ जीएम, बल्कि रेलवे बोर्ड के अधिकारी भी नाराज हुए हैं.
राजनीतिक दबाव के चलते ‘भोपाल कांड’ को सुलझाने में सब अक्षम साबित हुए
हालांकि भोपाल मंडल के विवादास्पद और राजनीति से प्रेरित मामले को स्थापित नियमों के अंतर्गत ही बेहतर ढ़ंग से सुलझाया जा सकता था, जिसके लिए प्रिंसिपल सीसीएम मेहता सहित जीएम, डीआरएम और रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारी भी न सिर्फ अक्षम साबित हुए हैं, बल्कि काफी हद तक दोषी भी हैं. इसका तत्काल निपटारा भ्रष्ट सीनियर डीसीएम का तबादला करके किया जा सकता था, जो कि पहले प्रति ट्राली-प्रतिमाह दस-दस हजार रुपये की वसूली कर रहा था और बाद में तमाम नियमों को ताक पर रखकर राजनीतिक दबाव में हटाई गई ट्रालियों की बहाली के लिए संबंधित स्टालधारकों से दो-दो लाख रुपये की रिश्वत की मांग अपने दलालों के माध्यम से कर चुका है. इसकी लिखित शिकायत रेलवे बोर्ड को की गई है, जिसकी प्रति ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद है.
न्याय की गुहार लगाते दर-दर भटक रहे स्टालधारक और बेरोजगार हुए वेंडर
बताते हैं कि अब इस ‘भोपाल कांड’ को सुलझाने की जिम्मेदारी डीआरएम को सौंपी गई है. इस बात को भी लगभग 15 दिन बीत चुके हैं, मगर डीआरएम महोदय भी अब तक इस मामले में कोई उचित निर्णय नहीं ले पाए हैं. जबकि कोर्ट का आदेश, नियम-कानून सब कुछ पक्ष में होने के बावजूद संबंधित स्टालधारक और बेरोजगार हुए सैकड़ों वेंडर न्याय के लिए मंडल और जोन से लेकर रेलवे बोर्ड तक अपनी गुहार लगाते भटक रहे हैं. तथापि, अब तक उन्हें कहीं से भी न्याय नहीं मिल पाया है. बताते हैं कि स्थापित नियमों के घोर उल्लंघन और रिश्वत मांगे जाने की शिकायत पर एएम/टीएंडसी ने हाल ही में सीनियर डीसीएम/भोपाल को फोन करके बहुत लताड़ लगाई है, मगर उसे पद से हटाने के लिए उन्होंने भी कुछ नहीं किया. यह भी पता चला है कि डीआरएम सहित प.म.रे. मुख्यालय, जबलपुर के भी कई वरिष्ठ अधिकारी सीनियर डीसीएम/भोपाल को तत्काल हटाए जाने के पक्ष में थे, मगर उसे इसलिए नहीं हटाया गया, क्योंकि आरक्षित वर्ग का होने के साथ ही फिलहाल राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने के कारण उससे कोई पंगा नहीं लेना चाहता है.
भावी ‘चॉइस पोस्टिंग’ के लिए छोड़ा प्रिंसिपल सीओएम का पद
जानकारों का मानना है कि उपरोक्त तमाम विसंगतियों के बावजूद एक वरिष्ठ अधिकारी (मेहता) को विभाग प्रमुख के पद से हटाकर वहीं कैडर में उसकी पोस्टिंग किए जाने को उसकी बेइज्जती के रूप में ही देखा जाएगा. इससे बेहतर होता कि उन्हें वहां से शिफ्ट करके अन्य किसी जोन में भेज दिया जाता. उनका यह भी कहना है कि भावी ‘चॉइस पोस्टिंग’ के लिए बी. के. सिंह उत्तर मध्य रेलवे का प्रिंसिपल सीओएम पद छोड़कर पश्चिम रेलवे में सीओएम/सेफ्टी जैसी साइड लाइन और बेकार की पोस्ट पर जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने ट्रैफिक कैडर के वर्तमान पितृ-पुरुष के साथ कभी काम किया था और दोनों की बेगमें आपस में बहुत सगी सहेली हैं. उनका कहना है कि वरिष्ठ अधिकारियों की पोस्टिंग में इस तरह का ‘गणित’ चलाए जाने के कारण ही आज ट्रैफिक/कमर्शियल डिपार्टमेंट बदतर स्थिति हैं, बल्कि पूरे ट्रैफिक कैडर की भी लुटिया डूब रही है.
जुगाड़ से पूर्व एसडीजीएम/प.रे. को प्रिंसिपल सीसीएम बना दिया गया
इसी प्रकार कुछ समय पहले पश्चिम रेलवे में भी एक ट्रैफिक अधिकारी को ‘ओब्लाइज’ करने के चक्कर में ट्रैफिक कैडर के वर्तमान पितृ-पुरुष ने अपने विवेक से काम नहीं लिया. हालांकि जानकारों का कहना है कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में शायद ही कभी अपने विवेक का सही इस्तेमाल किया होगा. बताते हैं कि हाल ही में डीआरएम/मदुरै से निकले अधिकारी को पश्चिम रेलवे में प्रिंसिपल सीसीएम बनाया गया था. सेफ्टी/पंक्चुअलिटी के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी फ्रंट लाइन ट्रैफिक अधिकारियों से अनजानी खुंदक रखने वाले अन्य कैडरों के अधिकारियों की ही तरह जीएम/प.रे. की भी प्रिंसिपल सीसीएम के साथ पटरी नहीं बैठ रही थी, क्योंकि वह जीएम के मुंहजबानी और ऊटपटांग आदेशों का पालन करना जरूरी नहीं समझते थे.
बताते हैं कि मीटिंग्स के दौरान जीएम/प.रे. अक्सर प्रिंसिपल सीसीएम के साथ अत्यंत बेइज्जतीपूर्ण तरीके से पेश आ रहे थे. इसी बात का फायदा उठाकर तत्कालीन एसडीजीएम/प.रे. ने जीएम से प्रिंसिपल सीसीएम बनने के लिए अपनी सिफारिश लगा दी और इसके लिए मंत्री सेल से भी दबाव बना दिया गया. परिणामस्वरूप इस वरिष्ठ अधिकारी को हटाकर और पोस्ट को डाउनग्रेड करके उसकी जगह तत्कालीन एसडीजीएम/प.रे. को प्रिंसिपल सीसीएम बना दिया गया. इसी बीच शायद कैडर के वर्तमान पितृ-पुरुष अथवा रेलवे बोर्ड का जमीर जाग गया और उन्होंने इस वरिष्ठ अधिकारी का दिल्ली के लिए हुआ तबादला रद्द करके उसे पश्चिम रेलवे में ही एसडीजीएम बना दिया गया. इससे जीएम/प.रे. की जान सांसत में आ गई है, क्योंकि अब उसी अधिकारी, जिसकी वह मीटिंग्स में बेइज्जती कर रहे थे, के प.रे. विजिलेंस का प्रमुख बन जाने से जीएम की प्रत्येक ऊल-जलूल हरकत पर उसकी गहरी नजर रहने वाली है.
‘चॉइस पोस्टिंग और चॉइस प्लेस’ दोनों एक साथ सबको नहीं मिलते !
हालांकि इस उठापटक के चलते डीआरएम/पुणे से निकले एक अन्य वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारी की एसडीजीएम/प.रे. बनने की मुराद पूरी नहीं हो पाई और उन्हें सीसीएम/पीएम बनकर ही संतोष करना पड़ा है. कई बार ‘चॉइस पोस्टिंग और चॉइस प्लेस’ दोनों एक साथ सबको मुहैया नहीं किया जा सकता है. शायद इसी बात का खामियाजा पश्चिम रेलवे के पूर्व प्रमुख मुख्य अभियंता (प्रिंसिपल पीसीई) को भी भुगतना पड़ रहा है. बताते हैं कि ‘चॉइस पोस्टिंग और चॉइस प्लेस’ का गणित गड़बड़ा जाने के कारण ही उन्हें लंबी छुट्टी पर जाने के लिए विवश होना पड़ा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार विभागीय कलह के चलते उन्हें मुंबई में ही मध्य रेलवे का प्रिंसिपल पीसीई बनाया गया था. परंतु वहां की पोस्ट खाली न हो पाने के कारण उन्हें पुनः सीएसओ/प.रे., जिस पर वह शुरू में पू.म.रे. से आए थे, के पद पर जाने को कहा गया, क्योंकि तब तक प्रिंसिपल पीसीई/प.रे. के पद पर एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी को पदस्थ किया जा चुका था. ऐसे में उन्हें मुंबई से बाहर अन्य जोन का ‘ऑप्शन’ भी दिया गया, मगर वह उन्हें मंजूर नहीं हुआ. जानकार अधिकारियों का मानना है कि आपसी कलह करने वाले ऐसे सभी संबंधित अधिकारियों को एक साथ अलग-अलग जोनों में भेजकर ही ऐसी समस्याओं का निदान किया जाना चाहिए.
पूर्व सीसीएम/उ.रे. को दिल्ली से बाहर भेजे बिना सारी कवायद अधूरी
बहरहाल, जानकारों का यह भी कहना है कि जब तक पूर्व सीसीएम/उ.रे. को दिल्ली से बाहर और प्रिंसिपल सीओएम/द.रे. एवं प्रिंसिपल सीसीएम/द.रे. जैसे 30-35 सालों से एक रेलवे, एक ही शहर में जमे कदाचारी वरिष्ठ अधिकारियों को अन्यत्र दर-बदर नहीं किया जाता, तब तक उपरोक्त तमाम कवायद अधूरी है. उनका कहना है कि कदाचारी पूर्व सीसीएम की ही मंशा को पूरा करने के लिए उ.रे. के कई मंडल अधिकारियों के अविवेकपूर्ण तबादले किए गए. बताते हैं कि रेलवे बोर्ड के कहने के बावजूद अब तक उक्त तबादले रद्द नहीं किए गए हैं. जबकि पूर्व सीसीएम वहीं बैठकर न सिर्फ साजिशें कर रहे हैं, बल्कि डीसीएम का निलंबन वापस लेने के लिए दबाव बनाने के साथ ही उसको भावी कार्रवाई से बचाने के लिए पिछली तारीखों में शिकायतें लेकर फाइलों में घुसाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं.
विश्वसनीय सूत्रों का यह भी कहना है कि पूर्व सीसीएम/उ.रे. का मन इसलिए बढ़ा हुआ है, क्योंकि रेलवे बोर्ड ने केंद्रीय गृहमंत्री को उनकी कथित अनुनय-विनय के बाद पूर्व सीसीएम/उ.रे. को दिल्ली से बाहर नहीं भेजने का आश्वासन दिया है. बताते हैं कि इसी राजनीतिक संरक्षण की बदौलत जीएम/उ.रे. और सीआरबी के खिलाफ निलंबित डीसीएम अथवा उसके लड़के के माध्यम से एट्रोसिटी के फर्जी मामले दायर करवाने की उसी तरह साजिश रची जा रही है, जिस तरह दो पत्रकारों के साथ ही सीनियर डीसीएम/मुरादाबाद के खिलाफ पूरी तरह फर्जी मामला अदालत में दायर किया गया है.