पता नहीं कब सुधरेगी रेलवे? और कब सुधरेगी रेलवे की कार्य-संस्कृति?
कब तक अधिकारीगण निरीक्षण के बहाने शॉपिंग और देव-दर्शन करते रहेंगे?
कब एक ईमानदार सीआरबी के दिशा-निर्देशों का पालन करना सीखेंगे अधिकारी?
मुंबई : खतौली की भीषण रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्रालय का निजाम बदल गया है. नए रेलमंत्री पीयूष गोयल और नए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) अश्वनी लोहानी ने घरों-दफ्तरों में लगे फील्ड कर्मियों को उनकी निर्धारित ड्यूटी पर वापस भेजे जाने सहित रेलवे की कार्य-संस्कृति में सुधार लाने के कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं. तथापि, उनके इन दिशा-निर्देशों पर अब तक समुचित अमल सुनिश्चित नहीं हो पाया है, जबकि 9 सितंबर तक घरों-दफ्तरों से फील्ड कर्मियों को निकालकर उनकी निर्धारित ड्यूटी पर भेजे जाने की रिपोर्ट सभी जोनों एवं मंडलों के अधिकारियों द्वारा सीआरबी को दी जानी थी. परंतु यह काम अब तक नहीं हो पाया है. पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में तो इसका तोड़ दफ्तरों में काम करने के बहाने घरों में काम करवाने के लिए फील्ड कर्मियों से आवेदन तक मंगा लिए गए हैं.
रेलकर्मियों से निजी गुलामी करवाने की अधिकारियों की मानसिकता और उनके कारनामे देखकर कर्तव्यनिष्ठ रेलकर्मियों को रेलवे की कार्य-संस्कृति और रेल व्यवस्था में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है. पता नहीं रेलवे कब सुधरेगी? और कब सुधरेगी रेलवे की कार्य-संस्कृति? कब रेल अधिकारियों की मानसिकता में सुधार आएगा? कब तक अधिकारीगण निरीक्षण के बहाने शॉपिंग और देव-दर्शन करते रहेंगे? एक ईमानदार सीआरबी के दिशा-निर्देशों का पालन करना कब सीखेंगे अधिकारीगण? कब उसके पद-चिन्हों पर चलने का प्रयास करेंगे यह अधिकारी? ऐसे न जाने कितने सवाल कर्तव्यनिष्ठ और मेहनतकश रेलकर्मियों के मन में घुमड़ रहे हैं. इसी संदर्भ में कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कार्यरत एक ऐसे ही समर्पित रेलकर्मी ने संपादक, ‘रेलवे समाचार’ के नाम लिखे एक पत्र में यह कहते हुए अपने मन की व्यथा व्यक्त की है कि अधिकारियों द्वारा अपने पद एवं अधिकार का दुरुपयोग कब बंद होगा? प्रस्तुत है उक्त रेलकर्मी द्वारा व्यक्त की गई उसकी आंखों देखी सच्चाई उसकी ही कलम से-
संपादक महोदय,
‘सीआरबी महोदय को रेलवे के कल्चर (कार्य-संस्कृति) को सुधारने के लिए अभी काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी. यह आकलन मैं सिर्फ उत्तर मध्य रेलवे जोन के कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर चल रही विभिन्न गतिविधियों को देखकर कर रहा हूं, बाकी अन्य जगहों के कल्चर की जानकारी तो आपकी निर्भीक पत्रकारिता से मिल ही जाती है, जिसमें दक्षिण रेलवे मजदूर यूनियन (एसआरएमयू) के सामने रेल प्रशासन का घुटने टेकना भी शामिल है. ऐसा लगता है कि सीआरबी लोहानी साहब को भी रेलवे की ब्यूरोक्रेसी बहुत गंभीरता से नहीं ले रही है. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैंने इसे प्रत्यक्ष देखा और महसूस किया है. लेकिन उम्मीद की आस अभी टूटी नहीं है.’
‘सीआरबी महोदय के निर्देश पर भी बंगलों और सरकारी रेलवे आवासों में काम करने वाले रेल कर्मचारी नाम मात्र के कम हुए हैं. यदि मैं केवल कानपुर सेंट्रल की बात करूं, तो आप यूं समझ लीजिए कि तृतीय श्रेणी कर्मचारियों (पद की क्षमता के अनुसार) के घरों में जब कम से कम 3-4 रेलकर्मी प्रतिदिन काम कर रहे हैं, तो अधिकारियों की तो बात ही क्या है?’
‘स्टेशन अधीक्षक, कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन, आर. एन. त्रिवेदी के घर पर तीन विभागीय सफाई कर्मचारी प्रतिदिन काम करते हैं, जबकि ड्यूटी रोस्टर में मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक (सीएचआई) इन्हें स्टेशन पर कार्य करते हुए दिखाते हैं. इसके अलावा स्टेशन पर जो भी अवैध गतिविधियां संचालित हैं, उनमें भी इनका हप्ता बंधा हुआ है. और ये हप्ता वसूली उनके दो खास पोर्टर करते हैं. इन दोनों पोर्टर्स की ड्यूटी केवल उगाही करने और स्टेशन अधीक्षक के साथ-साथ चलने की है. यह मैं सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं, क्योंकि इस हमाम में सब नंगे हैं.’
‘मजे की बात यह है कि सीआरबी महोदय ने हाल ही में कानपुर सेंट्रल स्टेशन के निरीक्षण के बाद स्टेशन अधीक्षक और अन्य की तारीफ की थी. बस यही सिस्टम में खामी है कि कैसे सही और गलत की पहचान हो?’
‘एक उदाहरण आज यानि गुरुवार, 21 सितंबर का और लीजिए, इलाहाबाद मंडल के दो अधिकारी आज निरीक्षण के लिए सैलून लेकर कानपुर आए थे. निरीक्षण के बाद उनका सैलून गाड़ी सं. 12947, अहमदाबाद-पटना अजीमाबाद एक्स. में जुड़ना था. गाड़ी पनकी स्टेशन (कानपुर सेंट्रल स्टेशन से 14 किमी.) पर अपने निर्धारित समय से एक घंटा पहले ही 17.40 पर आ चुकी थी. परंतु कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर यह गाड़ी 19.28 (निर्धारित आगमन 18.55) पर आयी.’
‘गाड़ी का यह अनावश्यक विलंब सबकी समझ से बाहर था. परंतु एक स्टाफ ने बताया कि ‘साहब’ की फेमिली और उनके साथ में आए एक इंजीनियरिंग अधिकारी (ब्रांच ऑफिसर) की फेमिली जेड-स्क्वायर माल में शॉपिंग कर रही हैं, इसलिए जब तक वह लोग आ नहीं जायेंगे, तब तक यह गाड़ी विलंबित रहेगी. उक्त स्टाफ की यह बात सही इसलिए लग रही है, क्योंकि जो गाड़ी कानपुर सर्कल में एक घंटा पहले (बिफोर) ही आ चुकी थी, वह निर्धारित समय से आधा घंटा लेट कैसे हो गई? ऐसी ही अन्य कई घटनाएं हैं, जिन्हें जानकर एक समझदार और जागरूक रेल कर्मचारी को बड़ा झटका लगता है कि पता नहीं रेलवे कब सुधरेगी?’
– एक रेल कर्मचारी, कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन, कानपुर.