बैताल पचीसी – आज का बैताल कौन?

“राजधर्म के अनुसार राजा के लिए सही समय पर सही बात बोलना आवश्यक है। राजा सब कुछ जानते हुए चुप नहीं रह सकता!”

शुभ्राँशु

बचपन में ‘चंदामामा’ बाल-पत्रिका में विक्रम और बैताल की कहानियाँ आपने भी पढ़ी होंगी। हर कथा में महाराजा विक्रमादित्य की पीठ पर बैठा बैताल हर बार एक नई कहानी सुनाता है। फिर उससे राजा के विवेक को चुनौती देता हुआ एक प्रश्न पूछता है। हर कहानी में एक क्लिष्ट कथानक होता था, जिसका कोई सीधा समाधान हम बच्चों को नहीं सूझता था, पर बैताल का प्रश्न तो राजा के लिए होता था, न कि चंदामामा के बाल-पाठकों के लिए।

प्रश्न होता था, “हे राजन्, यदि तुमने जानते हुए भी मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया, तो तुम्हारे सिर के हजारों टुकड़े हो जाएँगे।” राजा हर बार एक समुचित उत्तर देता, पर उसके मौन तोड़ने के कारण बैताल उड़कर फिर पेड़ पर जा लटकता। राजा फिर अगली रात बैताल को ढ़ोने के लिए बाध्य हो जाता था, फिर एक कठिन प्रश्न का उत्तर देने के लिए।

दशकों बाद आज समझ आया कि बैताल-राजा विक्रमादित्य को ट्रेनिंग दिया करता था राजोचित चिंतन करने और न्याय-अन्याय का भेद समझने में। ट्रेनिंग इस बात की भी होती थी कि “राजधर्म के अनुसार राजा के लिए सही समय पर सही बात बोलना आवश्यक है। राजा सब कुछ जानते हुए चुप नहीं रह सकता!” महाराज विक्रमादित्य के उत्तर अक्सर हम बच्चों की समझ से परे होते थे। अब यदि हम आज विक्रम और बैताल की कहानियाँ दुबारा पढ़ें, तो शायद बैताल की जटिल कहानियों, उसके कठिन प्रश्नों, और राजा विक्रमादित्य के विद्वतापूर्ण उत्तरों का सार बेहतर समझ में आए।

पुराने जमाने में राजा में ही समस्त शक्तियां निहित होती थीं – वही शासक, वही न्यायाधीश, वही कानून-व्यवस्था, वही आंतरिक सौहार्द्र और शांति का रखवाला, और वही सेना का प्रधान सेनानायक होता था। आज ये दायित्व बॉंट दिए गए हैं और हर एक क्षेत्र का अलग रखवाला बना दिया गया है। परंतु क्या वास्तव में हर विभाग-प्रमुख को अपने-अपने कार्यक्षेत्र के लिए बराबर का और पूर्ण जवाबदेह भी बना दिया गया है? या उनकी नाकामी और बेइमानी का प्रतिफल बेचारा राज्य का प्रधान ही सहता है, हर पॉंच वर्ष में?

अतः हे जागरूक नागरिक, हे प्रबुद्ध पत्रकार, हे समाज के सुविज्ञ नेतागण, जागो ! बैताल बनो ! और जो भी विक्रमादित्य तुम्हें नजर आता है, जिससे भी तुम प्रश्न करना चाहते हो, जो जानते हुए भी तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर नहीं देना चाहता, उससे बार-बार प्रश्न करो! शायद तुम्हारे प्रश्नों से प्रमादी के सिर के हजार टुकड़े हो जाएँ।

तो चलो, दिल्ली—रेल विभाग, दमकल विभाग, पुलिस विभाग, आयकर विभाग, और न्यायपालिका से शुरु करते हैं। विक्रम और बैताल की कहानियाँ तो “बैताल पचीसी” तक ही रुक गई थीं, पर हमें शायद “बैताल हजारी” तक जाना पड़े! थकना नहीं, रुकना नहीं!

साभार : “Generally Speaking