यह मंत्री समेत रेलवे के अधिकारियों की अनुभवहीनता के कारण हुआ हत्याकांड है -अजीत भारती
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रेलवे स्टेशन पर भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा आदि के लिए एक अलग से एसपी होते हैं। रेलवे का अपना पुलिस (सुरक्षा) बल होता है। भीड़ पहुँची, भगदड़ मची, सिविक सेंस नहीं है, जनसंख्या अधिक है, आदि से पहले प्रश्न यह है कि क्या ये सारी सूचनाएँ रेलवे को कल पता चलीं?
सुरक्षा बल कहाँ था? इतने लोग आए कैसे? क्या मंत्रालय की तरफ से स्टेशन पर भीड़ नियंत्रण हेतु कोई योजना थी? योजना होती, तो पहली बैरिकेडिंग मुख्य द्वार पर होती। दूसरी टिकट काउंटर के पास। तीसरी प्लेटफॉर्म के प्रवेश द्वार पर। ऐसा कुछ नहीं था।
यदि रेलवे को नई ट्रेन की घोषणा करनी थी, तो क्या हवा से ट्रेन बनाकर ला दी गई? या पहले से तय था? फिर अचानक यह घोषणा क्यों? जब हर दिन महाकुंभ के यात्रियों की भीड़ है, तो ऐसे सारे लोगों के लिए अलग से एक या दो प्लेटफॉर्म आरक्षित कर सकते थे। जब उस रूट की ट्रेन न होती, तो बाकी ट्रेनें भी आ सकती थीं।
यह मंत्री समेत रेलवे के अधिकारियों की अनुभवहीनता (लापरवाही) के कारण हुआ हत्याकांड है। आप चाहे जितना, ‘नारेबाजी हुई’, ‘अफवाह फैलाई गई’ या ‘सीढ़ी से एक व्यक्ति फिसला.. और…’ जो चाहे कह लें, मूल बात यह है कि इतनी भीड़ प्लेटफॉर्म पर पहुँची कैसे, और रेलवे वाले क्या घास छील रहे थे?
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अश्विनी वैष्णव को अतिरिक्त पदभार से मुक्त करना चाहिए। उनके पास तीन बड़े मंत्रालय हैं। रेल राज्यमंत्री कौन हैं, किसी को जानकारी नहीं है, क्योंकि वे त्रासदी में भी अनुपस्थित हैं। इस मंत्रालय का भार किसी ऐसे व्यक्ति को मिलना चाहिए, जो यूपी-बिहार के लोगों के अराजक व्यवहार और भीड़ की समस्या को देखता-समझता हो।
वर्तमान रेलमंत्री का अनुभव तकनीकी है, जनमानस से जुड़ाव का नहीं। वे जिस मंत्रालय के योग्य हैं, उन्हें वही दिया जाए। रेलवे की पटरी पर ट्रेनों के लड़ जाने, पटरी से उतरने या कोहरे में हुई दुर्घटना पर तो हम कर्मचारियों को दोष दे सकते हैं, पर यह तो पूरी तरह से टॉप स्तर के लोगों की विफलता है।
यह कैसे संभव है कि हर दिन करोड़ों की भीड़ प्रयागराज जा रही है और रेलवे ने दिल्ली जैसे केन्द्रीय स्थल को वहाँ से जाने वाली भीड़ के लिए तैयार नहीं किया था? हर बात को षड्यंत्र कहकर टाला नहीं जा सकता।
ऐसे समय में रेल मंत्रालय को विशेष दल बनाकर कार्य करते हुए अपनी कार्यकुशलता का परिचय देना चाहिए था। यहाँ ऐसा लग रहा है कि यह लोग ऐसी त्रासदी को आवश्यक एवं प्रतीक्षित आपदा मानकर बैठे हुए थे कि एक दिन तो ऐसा हो ही जाना है।