November 6, 2024

दिनों-दिन बदहाली की ओर बढ़ रहा कल्याण का मंडल रेलवे अस्पताल

Central Railway Divisional Hospital, Kalyan

मध्य रेलवे के मंडल रेलवे अस्पताल कल्याण की दुर्व्यवस्था लगातार चर्चा का विषय बनती है। मंगलवार, 5 नवंबर को एक कर्मचारी द्वारा व्हाट्सएप पर तमाम गंदी चादरों और मरीजों के गंदे कपड़ों के गट्ठरों की फोटो के साथ अस्पताल में चल रही कई अनियमितताओं के डीटेल प्राप्त हुए। सीएमएस से संपर्क करने पर पता चला कि वे बाहर हैं। बाद में पता चला कि वे छुट्टी पर हैं। यह फोटो और डीटेल जीएम, डीआरएम के साथ मुंबई मंडल के अधिकारियों को भी भेजे गए थे।

तत्पश्चात् अपने कुछ विश्वस्त सूत्रों से संपर्क करने पर जानकारी मिली कि मंगलवार को अस्पताल में मरीजों के सारे ऑपरेशन इसलिए रद्द करने पड़े, क्योंकि डॉक्टरों और ओटी स्टाफ को पहनने के लिए धुले हुए साफ कपड़े नहीं थे। यही नहीं, यह स्थिति पिछले कई दिनों से चल रही है। जबकि अस्पताल प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी थी, तथापि उसने इसकी उचित व्यवस्था करने के बजाय छुट्टी पर जाना अधिक आवश्यक समझा।

अनेकों दवाओं की अनुपलब्धता तथा प्रॉपर पोटेंसी की दवाएँ उपलब्ध न कर पाना मंडल रेलवे अस्पताल (#DRH) कल्याण का दुर्भाग्य बन चुका है। सीएमएस के सामने, यूनियन के सामने रो-रोकर थक चुके पेशेंट खिन्न होकर चुप बैठ गए हैं। उन्होंने यह सोच लिया है कि जीवित रहना है, तो अनुपलब्ध दवाओं को चुपचाप बाजार से खरीद कर काम चलाना पड़ेगा।

अब तो इस #DRH के मैनेजमेंट की अकर्मण्यता के चलते तब सारी हदें पार हो गई जबकि अगस्त में ठेकेदार द्वारा रेलवे अस्पताल कल्याण की गंदी चादरों की लाट ले जाकर 23 सितंबर को धुले हुए कपड़े अस्पताल में हैंडोवर करने के बाद से उस धोबी का इस अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारियों ने मुंह भी नहीं देखा। कितने आश्चर्य की बात है कि जिस अस्पताल में 200 से अधिक बेड हों, महीने में डेढ़ सौ से अधिक ऑपरेशन होते हों, ऐसे हॉस्पिटल में करीब डेढ़ महीने से कपड़े धोने वाला ठेकेदार आया ही नहीं है।

बात यह है कि इस ठेकेदार का जब से इस अस्पताल में अनुबंध हुआ है, तब से ही वह विवादों के घेरे में रहा है। ठेकेदार अस्पताल प्रशासन पर पेमेंट न करने का आरोप लगाता रहा और अस्पताल स्टाफ की ओर से ठेकेदार द्वारा चादरों और अन्य कपड़ों की धुलाई सही न होने का आरोप लगता रहा। लेकिन इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच ठेकेदार का अनुबंध खत्म हो गया। तब आपात स्थिति में अकर्मण्य अस्पताल प्रशासन द्वारा ठेकेदार के हाथ-पैर जोड़कर उसको तीन महीने का एक्सटेंशन दिया गया।

सितंबर माह में वह 3 महीने का एक्सटेंशन भी खत्म हो गया और ठेकेदार आगे काम करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुआ तथा अस्पताल प्रशासन से दुखी होकर भाग खड़ा हुआ। #Railwhispers द्वारा मामला उजागर होने के बाद पता चला है कि उसी ठेकेदार को बुलाकर उसे एक्सटेंशन देकर कपड़ों की धुलाई के लिए किसी तरह अस्पताल प्रशासन ने प्रयास शुरू किया है।

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि, रेलवे में कॉन्ट्रैक्ट लेने के लिए लोग लाइन में लगे रहते हैं, कल्याण रेलवे अस्पताल प्रशासन की ऐसी क्या विशेषता है कि यहां पर कोई ठेकेदार आने को तैयार ही नहीं होता है? दिन भर सीएमएस और सहायक नर्सिंग अधिकारी की कथित गंभीर मंत्रणाएं तो चलती रहती हैं, परंतु शायद चादरों और अन्य कपड़ों की धुलाई का मुद्दा उसका विषय कभी भी नहीं रहा, वरना कॉन्ट्रैक्ट का रिन्यूअल या नया ठेकेदार जून में ही नियुक्त हो गया होता।

सोचने वाली बात यह है कि आज DRH कल्याण में गंदी चादरों तथा पेशेंट के गंदे कपड़ों के ढ़ेर के ढ़ेर पड़े लगभग सड़ने को आ रहे हैं। जब कोई नया ठेकेदार आकर इनकी धुलाई करेगा तो फंगस और नमी के चलते इनमें से अनेकों कपड़े फट जाएंगे। इससे रेलवे का कितना बड़ा आर्थिक नुकसान होगा, इसका अंदाजा तो कपड़े धोने के बाद ही लग पाएगा।

ऑपरेशन थिएटर (ओटी) में एक विकलांग वाशिंग मशीन है, जो बेचारी रोते-गाते थोड़ा-थोड़ा काम कर लेती है। बहुत लंबे समय से ओटी का काम उसी विकलांग मशीन के सहारे चल रहा है। पता चला है कि सीएमएस ने सेवानिवृत्त लोगों की ओपीडी की तरह ही एक जबरदस्त प्लान बनाया है कि हर वार्ड को एक वॉशिंग मशीन दे दी जाए, सिस्टर, आया, वार्ड बॉय, ड्रेसर, पेशेंट को छोड़कर धुलाई के काम में लग जाएं। और चूंकि अस्पताल में इतनी चादरों एवं अन्य कपड़ों को सुखाने की जगह तो है नहीं, तो शायद हर पैरामेडिकल स्टाफ कपड़ों के सूखने तक अपने हाथ में टांग कर खड़ा रहेगा।

वार्ड की नर्सों द्वारा यदि एएनओ को बेडशीट गंदी होने या फ्रेश बेडशीट की सप्लाई न होने आदि की शिकायत की जाती है, तो एएनओ बुरी तरह से फट पड़ती हैं और कह देती हैं कि इससे संबंधित शिकायत लेकर मेरे पास नहीं आना। स्टाफ का कहना है कि जब प्रशासनिक अधिकारी ही इस तरह का व्यवहार करेगा, तो पेशेंट/कर्मचारी शिकायत कहां करे?

एक नया क्लर्क, जिसकी केवल दो साल की सर्विस हुई है, जो अनुकंपा के आधार पर नौकरी में सीनियर क्लर्क में आया है और दो साल में ही ओएस बन गया। चूंकि नौकरी बिना मेहनत के, बिना संघर्ष के मिली है, इसीलिए उसका दिमाग सातवें आसमान पर रहता है। और वह लगन से न तो काम करता है, न ही सीखना चाहता है। ऐसे क्लर्क के हाथ में वाशिंग की बिलिंग और कॉन्ट्रैक्ट का काम दिया हुआ है। न तो क्लर्क को इस बात की चिंता है, और न ही प्रशासन को इस बात की परवाह है कि पेशेंट का क्या हाल हो रहा है?

ओटी की क्या दुर्गति हो रही है? अब यह नौबत है कि वार्ड की सिस्टर को यदि पेशेंट गंदे कपड़े होने की शिकायत करते हैं, तो वे पेशेंट को अपने घर से चादर लेकर आने की सलाह देती हैं। यह समझ में नहीं आता कि जिस अस्पताल पर प्रति माह करोड़ों रुपये का खर्च केवल मरीजों को स्वस्थ करने के उद्देश्य से किया जा रहा हो, जिस अस्पताल में दवाओं की अनुपलब्धता होना घोर प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करता हो, जो अस्पताल गंभीर चिकित्सकीय आरोप के चलते मेडिकल डिकेटेगराइज नर्स को फिर नर्सिंग के कार्य में लगाकर अक्षम्य अपराध कर रहा हो, अब ओटी और वार्डों को बिना धुले कपड़ों से चला रहा हो, उस अस्पताल प्रशासन से क्या उम्मीद की जा सकती है? क्या मंडल रेल प्रबंधक एवं पीसीएमडी इस पर कुछ संज्ञान लेंगी?

एक रिटायर्ड डिप्टी एएफ एंड सीएओ का कहना है कि “आजकल रेलवे अस्पतालों में बड़ी ही मनमानी चल रही है। रिटायर्ड कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ तो यह बहुत ही ज्यादा हो रहा है। अस्पताल वालों ने सीनियर सिटीज़न के लिए कल्याण में एक अलग ही ओपीडी बना दी है। कहने को तो टाइमिंग 09.00 से शाम चार बजे तक है, लेकिन इस ओपीडी में काम दस बजे से ही शुरू होता है। डॉक्टर दस बजे आते हैं। फार्मासिस्ट काउंटर दस बजे ही खुलता है। यदि किसी व्यक्ति को रुटीन के अलावा और किसी दवा की जरूरत है, तो उधर मुख्य अस्पताल में भागो। पुल पर पैदल चलने वालों के लिए रास्ता भी ठीक नहीं है। मध्य रेलवे के भायखला जोनल हॉस्पिटल में भी कमोवेश यही हाल है।” एक अन्य अधिकारी का कहना था कि “मध्य रेलवे का मेडिकल डिपार्टमेंट पूरी तरह से राम-भरोसे है!”

भायखला जोनल हॉस्पिटल का संदर्भ आया है, तो यहां उसकी भी कार्यप्रणाली पर एक दृष्टि डालना आवश्यक हो जाता है। पता चला है कि सोमवार, 4 नवंबर को कल्याण रेलवे अस्पताल से एक गंभीर रूप से बीमार महिला मरीज को भायखला जोनल हॉस्पिटल में एंबुलेंस से भेजा गया था। जोनल हॉस्पिटल भायखला के प्रभारी स्टाफ ने उक्त महिला मरीज को एंबुलेंस से नीचे उतारे बिना ही यह कहकर लौटा दिया कि उसके साथ उसका कोई निजी अटेंडेंट (रिश्तेदार) नहीं है, इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा सकता। भायखला अस्पताल का यह न केवल एक गंभीर गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार था, बल्कि यह डॉक्टरी पेशे को कलंकित करने वाला भी था। मध्य रेलवे प्रशासन को रेलवे अस्पतालों के इस दुराचार पर गंभीर संज्ञान लेना चाहिए।