November 7, 2024

सरकारी पेंशनर्स पर इतना मेहरबान क्यों हैं सरकार !

“सरकारी नौकरी यानि नौकरी में रहते हरामखोरी, अतिरिक्त कमाई का लोभ और रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा!” -चंद्र किरण सोनरिक्शा

80 वर्ष से अधिक उम्र के केंद्रीय सरकारी पेंशनर्स को 20 से 100% तक अधिक पेंशन देने की घोषणा चकित करने वाली है और चिंता भी पैदा करती है। आखिर क्यों? क्या ऐसी उनकी कोई मांग थी? क्या सरकार ने कोई ऐसा अध्ययन किया कि उनकी वित्तीय हालत अच्छी नहीं है? क्या सरकार के पास छप्पर फाड़कर कहीं से पैसा आया है, जो इन बुजुर्गों के लिए इतनी दयालुता दिखा रही है?

मानवीय पक्ष से विचार करें तो बुजुर्गों-विकलांगों-गरीबों की चिंता करना हर कल्याणकारी सरकार की जिम्मेदारी है और सरकार उसे पूरा कर रही है। लेकिन एक तर्क के साथ, यदि एक तरफ दुनिया की भुखमरी में हम सबसे पिछड़े देशों में हैं, और खुशहाली आदि के अन्य पैमानों पर भी हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, तो हमें यह विचार करना होगा कि पहले हम भविष्य की उस नौजवान पीढ़ी, उन नवजात बच्चों, उन कुपोषित माताओं-मजदूरों की चिंता करें, न कि पहले से ही खाए-पिए-अघाए उन बुजुर्गों की, जिनका जीवन सरकारी नौकरी में पहले से ही सभी पैमानों पर देश के अंतिम आदमी से सौ गुना अच्छा है। पूरा देश इन बुजुर्गों के योगदान का सम्मान करता है।

सरकारी नौकरी में रहते हुए तो सुविधाओं का कोई अंत है ही नहीं, रिटायरमेंट के बाद उनको अच्छी खासी पेंशन मिलती है हजारों लाखों में। अभी इसी हफ्ते सरकार ने तीन प्रतिशत महंगाई भत्ता (डीए) और बढ़ा दिया है। सभी सरकारी कर्मचारियों को मुफ्त मेडिकल सुविधाएं हैं, और अब तो सरकार ने ऐसे कदम उठाए हैं कि किसी भी अस्पताल में आप उपचार के लिए जा सकते हैं और कैशलेस सुविधा मौजूद है। रेल और कुछ विभागों में रिटायरमेंट के बाद सरकारी पास भी मिलते हैं तो डिफेंस और दूसरी नौकरियों में रियायती दर पर सामान आदि भी। इस उम्र तक आते-आते तो आपकी जरूरतें भी न्यूनतम हो जाती है फिर इतनी अधिक वृद्धि क्यों?

नौकरी में रहते हुए सरकारी घर, दफ्तर आने-जाने के लिए वाहन आदि की सुविधा, लीव ट्रैवल कंसेशन, लीव इनकैशमेंट, पीएफ, बोनस आदि तो है ही। यही कारण है कि सरकारी बजट में पेंशनधारियों का बोझ मौजूदा सरकारी कर्मचारियों से लगभग दो गुना है। लगभग 35 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारी हैं और 70 लाख पेंशनधारी। मेडिकल और दूसरी सुविधाओं की वजह से औसत उम्र भी बहुत अच्छी हो गई है। इन्हीं सब कारणों से 2004 में पुरानी पेंशन स्कीम के बजाय नई पेंशन स्कीम लागू की गई थी और यह एक मत से उन प्रधानमंत्री और उन मशहूर अर्थशास्त्रियों की सिफारिश पर हुआ था।

एक अच्छी लोक-कल्याणकारी सरकार वह होती है, जो देश के हर नागरिक की चिंता करती है। इसी देश में पत्रकारिता और दूसरे कामों में पूरी उम्र गुजरने के बाद भी न्यूनतम पेंशन की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। कई कोर्ट केस और न्यायालय के आदेश बावजूद भी मालिकों ने बात नहीं मानी। सरकारी कर्मचारी तो मुश्किल से एक प्रतिशत है। 99% जनता के लिए सरकार के पास क्या है? किसान गांव छोड़कर शहरों में मजदूर बनने के लिए अभिशप्त है। घरों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कोई स्कीम है? पिछले दिनों सरकारी महिलाओं के लिए भी हर महीने  माहवारी छुट्टी पर विचार कर रहे हैं। पश्चिम के अमीर देश की नकल करते हुए तो यह बात भली लगती है, लेकिन क्या वे अपने आसपास काम करने वाली मजदूर महिलाओं को ऐसी छुट्टी देना चाहेंगे? वहां तो एक दिन न आने पर उनकी दिहाड़ी काट ली जाती है, नौकरी से निकाल दिया जाता है।

सरकार में काम करने वाली महिलाओं के लिए ही 20 वर्ष पहले चाइल्ड केयर लीव शुरू हुई, यानि वह अपने 18 वर्ष तक के बच्चों की पढ़ाई आदि के लिए 2 वर्ष तक सभी सरकारी वेतन सुविधाओं के साथ घर पर मौज कर सकती हैं। इसी की आड़ में अब पिता को भी कुछ राज्यों ने छुट्टी दे दी है। पहले मातृ अवकाश 3 महीने का मिलता था, अब सरकारी कर्मचारियों को 6 महीने मिलता है, और उसे और भी आगे बढ़ाया जा सकता है, जबकि मजदूर महिलाओं के बच्चे सड़कों और पार्कों में गर्मी बरसात में नंगे घूमते रहते हैं, और निजी क्षेत्र में नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। क्या केंद्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकारें भी ऐसी लोक लुभावनी रेवड़ी बांटने की कोशिश नहीं करेंगी? फिर देश की आर्थिक स्थिति का क्या होगा? पंजाब और हिमाचल प्रदेश पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

 इन्हीं सबका नतीजा है कि उत्तर भारत में सरकारों के पास विकास को बढ़ाने वाले उद्योग आगे नहीं लग रहे और चीन के साथ तनातनी के बावजूद वहां से आयात लगातार बढ़ रहा है। अच्छा तो यह रहे कि सरकार बुनियादी ढ़ाँचे के साथ-साथ ऐसे उद्योग आदि में पूंजी लगाए जिससे रोजगार पैदा हो। बुजुर्गों की इतनी चिंता के बजाय नई पीढ़ी के लिए रोजगार और भविष्य अधिक महत्वपूर्ण है।
 
इस खबर पर एक मशहूर कैंसर डॉक्टर की प्रतिक्रिया थी कि मैं 75 वर्ष के बाद तंत्र पर कोई बोझ नहीं डालना चाहता। सरकारी अस्पताल पहले से ही बुजुर्गों की सेवादारी में ज्यादा लगे हैं बजाय बच्चों-माताओं को या उनके लिए अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं देने के।

पूरे समाज पर बहुत बुरे दूरगामी परिणाम होते हैं जब सरकारी नौकरियों में इतनी बेशुमार सुविधा होती हैं। इसीलिए देश का हर लायक-नालायक आदमी सरकारी नौकरी में जाना चाहता है। एक चपरासी की नौकरी के लिए 10000 से 20000 इंजीनियर पीएचडी किए नौजवान आगे आते हैं। सिपाही की नौकरी हो या कुछ और नौकरी हर पेपर लीक होता है। झारखंड में सिपाही की भर्ती में 20 लोगों की जान दौड़ने में चली जाती है। सरकारी नौकरियों की भर्ती देश में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा माफिया है और उसका कारण ऐसी ही सुविधाएं और रेवड़ी है! यही कारण है राजनेता चुनाव से पहले सरकारी नौकरियों की घोषणा सबसे पहले करते हैं।

हिंदी की मशहूर उपन्यासकार चंद्र किरण सोनरिक्शा ने 50 वर्ष पहले कहा था, “सरकारी नौकरी यानि नौकरी में रहते हरामखोरी और रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा!” इसे पूरा सत्य नहीं भी मानें, फिर भी रोजाना की जिंदगी में तो यह स्पष्ट होता ही है। क्या निजी क्षेत्र के लोग सरकारी कर्मचारियों से कम काम करते हैं? क्या उनके काम की चुनौती इनसे कई गुना अधिक नहीं है? क्या उन्हें नौकरी में कोई सुरक्षा है? क्या उनको कोई ऐसी सुविधा मिलती है? क्या सरकारी स्कूल के शिक्षक  अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं? अब तो कॉलेज में पढ़ाने वाले भी अपने बच्चों को इंग्लैंड अमेरिका भेजते हैं।

पिछले हफ्ते ही उपराष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर चिंता जताई थी कि बच्चे पढ़ने विदेश भाग रहे हैं और पिछले वर्ष अरबों विदेशी पूंजी 14 लाख बच्चे पढ़ने के लिए बाहर ले गए। सरकार को संविधान में जिस समानता की बात की गई है, उसे ध्यान में रखते हुए ऐसे कदम उठाने से पहले कई बार सोचने की आवश्यकता है।

#लेखक-संयुक्त सचिव/भारत सरकार रहे हैं। संपर्क 9971399046