EnHM : क्या रेलवे बोर्ड के नियंत्रण बाहर हो गए हैं जीएम?

क्या रेलवे बोर्ड की गाइडलाइन को कोई जोनल रेलवे बाइपास कर सकता है?

EnHM में ट्रांसफर होते ही सफाई टेंडर्स की लागत दस गुना कैसे बढ़ जाती है?

क्या कथित साफ-सफाई का ये खेल एक छुपी हुई संगठित लूट का खेल नहीं है?

#EnHM : रेल प्रबंधन की विसंगति!👇

चुनिंदा बड़े #स्टेशनों की सफाई व्यवस्था #EnHM को सौंपने का उत्तर रेलवे मुख्यालय द्वारा 22.04.2024 को जारी आदेश रेलवे बोर्ड द्वारा 12.10.2018 और 26.09.2018 को जारी निर्देशों के विरुद्ध है। बोर्ड के निर्देशों के अनुसार, ईएनएचएम के गठन के बावजूद, रेलवे स्टेशनों, स्टेशन परिसरों और रेलवे कॉलोनियों की स्वच्छता क्रमशः कमर्शियल और मेडिकल विभाग के पास ही रहेगी। यह निर्देश जीएम/उत्तर रेलवे के संज्ञान में नहीं लाया गया है।

EnHM विंग के गठन के लिए उत्तर रेलवे मुख्यालय का आदेश

इसका अर्थ यह है कि निरीक्षण और रख-रखाव करेगा कमर्शियल डिपार्टमेंट, यात्रियों की शिकायतों का निवारण करेंगे कमर्शियल और ट्रैफिक डिपार्टमेंट वाले, मगर सफाई के टेंडर और बिलिंग करेंगे तथा मलाई खाएँगे मैकेनिकल डिपार्टमेंट वाले! जानकारों का कहना है कि “भाई, अगर सफाई ही करना था, झाड़ू ही लगाना था, तो “इंजीनियर” काहे बने!”

रेलवे बोर्ड की गाइडलाइन

उत्तर रेलवे मुख्यालय के उपरोक्त निर्देश फील्ड स्तर पर भ्रम की स्थिति पैदा करेंगे, क्योंकि एक ही #डिवीजन में तीन एजेंसियां/विभाग स्वच्छता के लिए जिम्मेदार होंगे। शिकायत प्रबंधन को नुकसान होगा। आम जनता को रेलवे के पदानुक्रम/विभागों के बारे में जानकारी नहीं है। एसएस/एसएम रेलवे का फ्रंट लाइन स्टाफ होने के कारण, उन्हें अभी भी जनता की शिकायतों से निपटना पड़ता है। लेकिन उनके दैनिक निगरानी कर्तव्य अस्पष्ट रहेंगे।

फिरोजपुर मंडल में यह स्थिति पहले से ही सामने आ रही है, जहां स्टेशन मास्टर की #निरीक्षण या दैनिक #उपस्थिति या मासिक रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने की कोई भूमिका नहीं है। यहां तक कि फिरोजपुर मंडल में स्टेशन अधीक्षक (#SS) और स्टेशन निदेशक (#SD) की निरीक्षण रिपोर्ट को भी #SrDME/EnHM द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है। जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक शिकायतों की खराब निगरानी और निवारण हुआ है।

मैकेनिकल मुख्यालय/उत्तर रेलवे द्वारा जारी पत्र के अनुसार, #डिवीजन में सीनियर डीएमई/ईएनएचएम/डीएम के रूप में पद नामित करके इन कर्तव्यों की देखभाल के लिए सीनियर डीएमई को सौंपा गया है और फील्ड स्तर पर #सीडीओ/#डीएमई/#एडीएमई को सौंपा गया है। इन तीनों अधिकारियों को फील्ड स्तरीय निगरानी के लिए भी नामांकित किया गया है, जिनका प्राथमिक कार्य रोलिंग स्टॉक की #संरक्षा और #रखरखाव होना चाहिए। हालाँकि सभी यात्री सुविधाओं और सार्वजनिक शिकायतों के समन्वय के लिए डिवीजन में सीनियर डीसीएम और फील्ड में स्टेशन निदेशक/एरिया ऑफिसर तैनात हैं।

OBHS का प्रबंधन #EnHM द्वारा किया जा रहा है, जिसके पास #RailMadad/#twitter आदि सोशल मीडिया साइट्स पर सबसे अधिक सार्वजनिक शिकायतें हैं। ऐसे निर्णय लेने से पहले EnHM विंग का अब तक का गहन विश्लेषण और अवलोकन होना चाहिए था। यदि एक संरक्षा विभाग (मैकेनिकल डिपार्टमेंट) को EnHM का कॉस्टोडियन होना चाहिए, तो यह आवश्यक है कि इसे कमर्शियल विभाग के अंतर्गत पूरी तरह से विशिष्ट होना चाहिए, क्योंकि अंततः सार्वजनिक शिकायतें और यात्री इंटरफेस कर्तव्य और प्रबंधन कमर्शियल विभाग के पास ही है। मैकेनिकल विभाग को रोलिंग स्टॉक रखरखाव और इसकी संरक्षा, रोलिंग स्टॉक डिजाइन और रखरखाव के क्षेत्र में नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

रेलमदद के उपरोक्त सभी आँकड़े उत्तर रेलवे मैकेनिकल डिपार्टमेंट की कार्य प्रणाली की गवाही स्वयं दे रहे हैं!

विचारणीय बिंदु

  1. यदि #EnHM विंग इतना उत्तम है तो #OBHS को ENHM में स्थानांतरित क्यों नहीं किया जाता?
  2. एनएसजी-4 से 6 तक स्टेशनों को भी लेने का प्रयास क्यों नहीं?
  3. केवल बड़े स्टेशन ही क्यों, जहां टेंडर बड़े होते हैं, क्योंकि नोटिस अलग होता है?

लखनऊ में-

दूर कहीं यार्ड में बैठने वाले सीडीओ को स्टेशन पर स्वच्छता का प्रभारी बनाया गया है, जिसका कार्यालय यार्ड में होता है। क्या इसका मतलब यह है कि #यात्री को किसी भी शिकायत के लिए यार्ड में जाना होगा?

इतना हताश क्यों???

मैकेनिकल मुख्यालय, उत्तर रेलवे की एडवाइस के आधार पर दिल्ली और लखनऊ डिवीजन में एक नोट जारी किया गया है, जहां कई रिपोर्टों के अनुसार #स्वच्छता में कई गुना सुधार किया गया है और भारत के उच्चतम कार्यालयों से प्रशंसा प्राप्त की गई है। भारत की माननीय #राष्ट्रपति ने लखनऊ मंडल के दौरे के दौरान लखनऊ स्टेशन पर #स्वच्छता के स्तर की सराहना की।

एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि “स्टेशनों की साफ-सफाई को मानक स्तर पर बनाए रखना और सतत मॉनिटरिंग दोनों काम कामर्शियल विभाग को ही करना पड़ता है। स्टेशन या ऑनबोर्ड की शिकायतों पर पहला सामना कमर्शियल विभाग को करना पड़ता है। न जाने मैकेनिकल विभाग की गिद्ध दृष्टि यहां पर कैसे पड़ गई?” उनका कहना है कि “सभी इंजीनियरिंग विभागों का लगभग सारा काम कांट्रैक्ट पर कराया जा रहा है, तो फिर इन विभागों में स्टाफ की भीड़ क्यों है? इनके भी पद सरेंडर किए जाएँ? असल में सारा खेल ही लूट का है। इसको ऐसे समझें कि जो साफ-सफाई व्यवस्था कामर्शियल दो रुपये में कराता था, वही मैकेनिकल का तथाकथित विंग EnHM दस रुपये में करा रहा है, बस यहां तड़का लगा दिया जा रहा है-प्रचार और प्रशंसा को स्पॉन्सर कर दिया जा रहा है।”

क्या यह बोर्ड की सहमति से हुआ?

प्रश्न यह है कि जीएम/उत्तर रेलवे ने क्या यह निर्णय रेलवे बोर्ड की पूर्व अनुमति से लिया है? जबकि इस बारे में #RailSamachar द्वारा पूछताछ करने पर रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों का कहना है कि “बोर्ड की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी जोनल रेलवे, बोर्ड की गाइडलाइन को बाइपास नहीं कर सकता!”

बोर्ड के उपरोक्त स्पष्टीकरण के बाद क्या यह माना जाए कि जीएम/उत्तर रेलवे ने एक पुनः तत्कालीन सीएओ-२/उत्तर रेलवे और वर्तमान सीबीई सुरेश सपरा के मामले जैसा ही तिकड़म किया है, या फिर इस बार भी उन्हें अंधेरे में रखकर मैकेनिकल अधिकारियों द्वारा यह खेल कराया गया है?

जानकारों का कहना है कि सुरेश सपरा को पोस्ट के साथ दिल्ली से लखनऊ ट्रांसफर किए जाने के मामले में जीएम/उत्तर रेलवे को वर्तमान मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर ए. के. खंडेलवाल ने ऐसा करने का कंसेंट व्हाट्सएप पर दिया था, तो क्या यह माना जाए कि इस बार मेंबर/टीआरएस सतीश कुमार ने भी ऐसा ही कुछ किया है?

जानकार बताते हैं कि साफ-सफाई का सारा कामकाज मैकेनिकल डिपार्टमेंट के पास हो, यह पहल वर्तमान डीआरएम/लखनऊ की है। उल्लेखनीय है कि रेलवे के मैकेनिकल, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल और सिग्नल एंड टेलीकॉम, इन चारों विभागों का लगभग सारा काम कांटैक्ट पर हो रहा है, जबकि रेलवे के इन चारों विभागों के तथाकथित इंजीनियर या तो बाबूगीरी कर रहे हैं, या फिर केवल मॉनिटरिंग! ऐसे में क्या यह इंजीनियर कहलाने लायक रह जाते हैं?

अब ये 1 जून से 24 जून 2024 के सभी आँकड़े भी देखें और तय करें मैकेनिकल डिपार्टमेंट, उत्तर रेलवे की कार्य तत्परता

अंत में जानकारों का कहना है कि कोई जीएम, बोर्ड की गाइडलाइन को मनमाने तरीके से कैसे बाइपास कर सकता है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि रेलवे बोर्ड या तो अपनी अथॉरिटी गंवा चुका है, या फिर जोनल जीएम पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रह गया है!