सेंट्रल रेलवे मेडिकल विभाग में किसे मिलने थे, किसे मिले बंगला प्यून!
सेंट्रल रेलवे के मेडिकल डिपार्टमेंट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कोई विभाग प्रमुख (#PHOD) किस प्रकार से अपनी मनमानी करके अपने कुछ खास लोगों को उपकृत करता है, इसका ताजा कारनामा पिछले दिनों सेंट्रल रेलवे मेडिकल डिपार्टमेंट में हुआ है। छोटे-छोटे प्रोग्राम आयोजित करके महिला कल्याण समिति की अध्यक्षा और महाप्रबंधक को खुश करके किस तरह से अपना स्वार्थ पूरा किया जा रहा है, ये यहां साफ दिखाई देता है।
सभी #PHOD, #DRM और #GM, #SDGM को घर-पहुँच मेडिकल फैसिलेटी देकर उनसे किस तरह से अपने सही-गलत काम कराए जा रहे हैं, यह फिलहाल उनकी समझ से बाहर है। हालाँकि ये खेल नया नहीं है, इस खेल में पूर्व जीएम और पूर्व सीआरबी तक का भी इस्तेमाल किया गया था। किस तरह से अपना पूरा कार्यकाल सेंट्रल रेलवे में पूरा किया जाता है और सामान्य प्रशासन तथा कार्मिक विभाग को भी ठेंगा दिखाकर अपने मनचाहे डॉक्टर की पोस्टिंग करवाई जाती है, ये सेंट्रल रेलवे के मेडिकल डिपार्टमेंट में देखने को मिल जाएगा।
सेंट्रल रेलवे मेडिकल डिपार्टमेंट में कुछ डॉक्टरों का एक समूह है जिसे उनका पूरा गैंग कहा जाता है। ये अलग बात है कि सोशल मीडिया पर प्रचार और छोटे-छोटे कार्यक्रमों की बड़ी फोटोग्राफी की शौकीन सेंट्रल रेलवे की #PCMD को मेडिकल डिपार्टमेंट में असली जरूरत की चीजे दिखाई नहीं देती हैं। पूरा रेल प्रशासन जानता है कि चार महीने रिटायरमेंट के बाकी रहते भी किस प्रकार पूर्व PCMD को इन्होंने जोन से बाहर का रास्ता दिखाकर यह पोस्ट हथियाई है।
अब तो और भी मजेदार बात यह है कि दो महीने बाद खुद रिटायर होने जा रही PCMD ने अपने लिए क्लिनिकल ड्यूटी की पोस्टिंग की जुगाड़ पहले ही कर ली है और उसके लिए भायखला में ही पोस्ट की व्यवस्था की जा चुकी है। जबकि कमाल की बात ये है कि पिछले दशकों से उन्होंने कभी किसी मरीज का इलाज किया ही नहीं, तो वे क्लिनिकल ड्यूटी प्राप्त करके अगले तीन वर्षों तक रेलवे पर एक बोझ बनकर ही रहेंगी। इसका कोई मेडिकल लाभ मरीजों को तो होने से रहा।
अब एक नए कारनामे की खबर और मिली है कि भायखला में डॉक्टर्स को मिलने वाले कॉन्ट्रैक्ट बंगला प्यून भी अपने चहेतों को दिलवा दिए गए हैं। वह भी बहुत जूनियर, और डेंटल डिपार्टमेंट के अपने खास डॉक्टर को भी बंगला प्यून दिलवा दिया है। जबकि डेंटल डिपार्टमेंट के ये डॉक्टर न तो कोई इमरजेंसी ड्यूटी करते हैं और न ही वरिष्ठता में इसके योग्य थे। जबकि कई सीनियर #SAG और #HAG के असली हकदार डॉक्टर्स को ये बंगला प्यून उपलब्ध नहीं कराए गए।
सतर्कता विभाग को इसका संज्ञान लेना चाहिए। हालाँकि इसकी संभावना कम है, क्योंकि सतर्कता विभाग को इसकी जानकारी न हो, ये संभव नहीं है, लेकिन खुद के और परिवार के अन्य गैर-रेलवे लोगों के लिए मुफ्त की दवाईयाँ अगर मिल रही हों तो वे भी कोई कारवाई क्यों करेंगे!
सूत्रों का ये भी कहना है कि कुछ सीनियर डॉक्टर्स ने बंगला प्यून गलत तरीके से जूनियर डॉक्टर को दिए जाने और सीनियर तथा लगातार इमरजेंसी ड्यूटी करने वाले डॉक्टर्स की उपेक्षा करने का ये मामला GM के सम्मुख रखा है, लेकिन शायद अभी तक मामले में कुछ हुआ नहीं। हालाँकि खबर यह भी है कि जीएम ने सीपीओ/एडमिन को बुलाकर इस मामले में चर्चा अवश्य की है, मगर फिलहाल कोई फाइनल निर्णय नहीं हुआ है। सीनियर डॉक्टर्स को यह संदेह है कि अपने गैंग के चहेते डॉक्टरों को बंगला प्यून मिलने के बाद अब शेष पोस्टें सरेंडर करने की साजिश की जा रही है।
अब जब दो महीने बाद पीसीएमडी रिटायर होने जा रही हैं, तो सुनने में आया है कि चार-पाँच अप्रैल को एक मेडिकल कांफ्रेंस आयोजित करने की तैयारी हो रही है जिसमें रेलवे बोर्ड से डीजी/रेलवे हेल्थ सर्विसेस को भी बुलाकर अपने नंबर बढ़वाने का एक और प्रयास किया जा रहा है। इस कांफ्रेंस में पीसीएमडी से उपकृत हुए गए डॉक्टर हो सकता है कुछ बड़े गिफ्ट भी प्रदान करें।
बहरहाल, रेलमंत्री, सीआरबी, डीजी/आरएचएस को इन तिकड़मों का संज्ञान अवश्य लेना चाहिए। जहां तक बंगला प्यून का मामला है, जीएम को इस मामले का तुरंत संज्ञान में लेकर जो असली हकदार हैं और दिन-रात मरीजों की देखभाल करने वाले सीनियर डॉक्टर हैं, उन्हें ही बंगला प्यून उपलब्ध कराने चाहिए। इसके साथ ही जानबूझकर किए गए बंगला प्यून के इस गलत आवंटन पर संबंधितों की जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि पीसीएमडी का मानना है कि वह “एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी” हैं, जैसे सीआरबी की पोस्ट पर एक्सटेंशन दिया जा रहा है, वैसे ही उन्हें भी दिया जाना चाहिए। सूत्रों का यह भी कहना है कि 4-5 अप्रैल को होने जा रही कथित मेडिकल कांफ्रेंस में रिटायरमेंट वसूली भी होगी।
जानकारों का कहना है कि क्लीनिकल ड्यूटी किसी भी डॉक्टर को वहाँ नहीं दी जानी चाहिए जहाँ से वह रिटायर कर रहा हो, बल्कि किसी अन्य यूनिट अथवा अन्य रेलवे में उसे भेजा जाना चाहिए, क्योंकि वहीं उसे रखे जाने से वह स्वयं तो कोई काम नहीं करता अर्थात् मरीज नहीं देखता, और न ओपीडी करता है, वहाँ उससे सारे जूनियर और पूर्व मातहत होते हैं, इसलिए कोई उसे कोई खास ड्यूटी करने का आदेश भी देने का साहस नहीं जुटा पाता। ऐसे में रिटायरमेंट के बाद सिस्टम पर बोझ बने यह तथाकथित अनुभवी सीनियर डॉक्टर सीएमएस/सीएमडी/एमडी के चेंबर्स में दो-तीन घंटे बैठकर अपनी वरिष्ठता का रौब झाड़कर निकल लेते हैं! रेल मंत्रालय, रेल प्रशासन और विशेष रूप से भारत सरकार अर्थात् प्रधानमंत्री को इस विषय पर विशेष संज्ञान लेकर विचार करना चाहिए, क्योंकि उन्हीं की पहल पर ये कथित वरिष्ठ अनुभवी डॉक्टर बिना कुछ किए समस्त सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं!