November 12, 2023

“खर्च करो” मूलमंत्र के सामने सेफ्टी सिक्योरिटी पंक्चुअलिटी और कार्य की गुणवत्ता को दे दी गई तिलांजलि

इस सरकार में यह ऐसा दौर आया है जो अब तक देखा नहीं गया था, यह पहली बार हो रहा है कि सारा जोर केवल पैसा खर्च करने पर है!

रेल का वातावरण पिछले कुछ सालों से ऐसा है कि डीआरएम सहित डिवीजनों के सारे ब्रांच अफसरों को केवल पैसा खर्च करने पर झोंक दिया गया है। इसके लिए रेल प्रशासन ने अपने सालों पुराने “सेफ्टी, सिक्योरिटी और पंक्चुअलिटी फर्स्ट” के बोध वाक्य को या तो तिलांजलि दे दी है, या फिर इसे उठाकर ताक पर रख दिया है! अथवा यह केवल कागज पर और भाषणों में उपयोग करने के लिए रह गया है!

रेलवे के एकाउंट्स विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी बताते हैं कि “इस सरकार में यह ऐसा दौर आया है जो अब तक कभी देखा नहीं गया था। यह पहली बार हो रहा है कि सारा जोर केवल पैसा खर्च करने पर है।”

काम की गुणवत्ता (#Quality) और वास्तविकता में भौतिक स्तर पर काम हुआ है या नहीं, और अगर हुआ भी है, तो कैसा हुआ है और कितना हुआ है, यह भी पूछने वाला कोई नहीं है। केवल हर तरफ से आज की तारीख में सभी यही देख रहे हैं, चेज कर रहें हैं कि “अब तक पैसा कितना खर्च हुआ? और अगर नहीं हुआ है, तो क्यों नहीं हुआ!?”

“खर्च करो” रेल का आज यही मूलमंत्र है। हर हर सप्ताह, हर पखवाड़े, हर महीने इसी की पोजीशन ली-दी जा रही है।

पहले काम और काम की भौतिक गुणवत्ता देखी जाती थी, लेकिन अब यह मान लिया गया है कि अगर पूरा पैसा खर्च हो गया है, तो काम भी पूरा हो गया है।

काम किसका पूरा हुआ, यह समझने वालों के लिए भी समझना मुश्किल नहीं है।

रेल में यह भी पहली बार हुआ है कि इंजीनियरिंग ओपन लाइन एवं कंस्ट्रक्शन के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, और टेंडर सहित सारे निर्माण कार्य करवाने का दायित्व गतिशक्ति प्रकोष्ठ को सौंप दिया गया है, जहां छाँट-छाँटकर डेंटेड-टेंटेड अधिकारी पदस्थ किए गए हैं, या उन्होंने अपनी पोस्टिंग वहाँ अपने जुगाड़ से करवाई है।

अब इस तरह की स्थिति में चोरों की चांदी नहीं होगी तो किसकी होगी! अगर किसी विभाग के एक ही जगह पर साल भर के अंदर दूसरी बार #CBI की धाड़ बड़े अधिकारी पर होती है, और वे रंगेहाथ पकड़े जाते हैं, तो सिस्टम में ऊपर से प्रायोजित इस कोढ़ पर किसी की दिव्यदृष्टि क्यों नहीं पड़ रही?

इसमें जब तक उसके ऊपर के अधिकारी और रेलवे विजिलेंस के जिम्मेदार अधिकारी नहीं नापे जाएंगे, तब तक शक की सुई सीधे मंत्री जी तक पहुंचेगी।

एक अति वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी ने आशंका जताई कि सरकार शायद जानबूझकर ऐसा कर रही है, क्योंकि जब इस तरह के मानक होंगे और ऐसी प्राथमिकता होगी तो आने वाली कोई भी नई सरकार भ्रष्टाचार के किसी मामले को जाँच करने में भी डरेगी, क्योंकि ये इतनी बड़ी संख्या में होंगे कि इन पर हाथ डालना ही अव्यवहारिक और विद्रोह की स्थिति पैदा कर देने वाला होगा, क्योंकि यह इक्के-दुक्के नहीं परंतु बहुसंख्यक होंगे।

ठीक उसी तरह का मामला है जब कोई एक हत्या एक व्यक्ति या तीन चार लोगों द्वारा की जाए और दूसरी ओर वही हत्या भीड़ के द्वारा की जाए।

पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में जातीय बंदरबाँट

पूर्व मध्य रेलवे के कई वरिष्ठ कर्मचारी बताते हैं कि सीई/एनई आर. के. बादल और उनके स्वजातीय एईएन/ निर्माण पिछले तीन वर्षों से हाजीपुर से सुगौली नई लाइन के निर्माण में हर स्तर पर सिंडिकेट बनाकर व्हाइट कॉलर्स क्राइम के तहत करोड़ों की लूट कर रहे हैं। इसमें ठेकेदारों और मातहत निरीक्षकों की भ्रष्ट टीम शामिल है। इसमें 4 से 10 वर्षों से भी अधिक समय से कई लोग एक ही कार्यालय में पदस्थापित हैं, चूँकि भ्रष्टाचार ही इनका शिष्टाचार बन गया है, इसीलिए सभी की पदस्थापना जहां की तहां बरकरार है।

उनका कहना है कि ऐसी ही स्थिति अन्य चीफ इंजीनियरों की भी है, जो अपने स्वजातीय अधिकारियों के पक्ष मे वर्क एलॉटमेंट मनचाहे ठेकेदारों को मनचाहे निरीक्षकों के साथ करवाते हैं। फिर ऐसे में सीएओ/नार्थ/ईसीआर का भगवान ही मालिक है!

उनका यह भी कहना है कि सीबीआई और ईडी को ऐसे अधिकारियों का भी ध्यान में रखने की जरूरत है, ताकि इनमें भय पैदा हो, अन्यथा इनकी इस अराजकता को नियंत्रित करना कठिन हो जाएगा।

ऊपरवाले उत्तरदायी क्यों नहीं!

पूर्वोत्तर रेलवे के एक बड़े अधिकारी कहते हैं, “जब #PHOD ट्रैप हुआ, तो उसके #GM को ढ़केलकर साइड में बैठा दिया! इसी तरह पाँच लाख लेते रंगेहाथ पकड़े गए उत्तर रेलवे इस #DyCE के बॉस #सीएओ/सी और महाप्रबंधक/उत्तर रेलवे को भी अब झाड़ू लगाने के लिए साइडिंग में भेजा जाए!”

एक बड़े कांट्रेक्टर का कहना है कि “राज्य का अधिकारी ट्रैप होता है तो उसके मंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो केंद्र के अधिकारी के लिए केंद्रीय मंत्री को क्यों नहीं? अब कुछ धूर्त लोग कहेंगे कि ऐसा थोड़े ही होता है! तो उनसे मेरा यही कहना है कि हाँ, ऐसा ही होता है, व्यवस्था में सुधार की जिम्मेदारी ऊपर से तय करनी होती है, क्योंकि भ्रष्टाचार का उद्गम सदैव ऊपर ही होता है! एक बार जब ऊपरवालों की गर्दन नाप दी जाती है तब नीचे सब ठीक हो जाता है!”

https://twitter.com/railwhispers/status/1722541534250446863?s=48