November 9, 2023

नौकरशाह पांडियन: उम्मीदों का आकाश

आजादी के बाद ऐसे अनेक उदाहरण हैं, और ऐसे उदाहरण लगातार बने रहने चाहिए। जाति, वंशवाद, धर्म की राजनीति का विकल्प ऐसे ही सक्षम अधिकारी हो सकते हैं। आशा है राजनीति के क्षेत्र में पांडियन का आविर्भाव और उत्थान देश के तंत्र और लोकतंत्र दोनों के लिए उम्मीदों का आकाश साबित होगा!

प्रेमपाल शर्मा

उड़ीसा कैडर के आईएएस अधिकारी वी. के. पांडियन को उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिए जाने की खबर ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। पूरे देश के प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र को इसका स्वागत करना चाहिए। विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए यह बहुत प्रेरणादायक खबर है कि यदि आप पूरी निष्ठा से जनता के बीच उनकी भलाई के काम करेंगे, प्रशासन की योजनाओं को सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाएंगे, तो आपको उसका अच्छा फल भी मिलेगा।

50 वर्षीय पांडियन का मूल राज्य तमिलनाडु है, लेकिन उड़ीसा के गांव-गांव में भी वह उतने ही लोकप्रिय हैं। क्यों? अपनी सादगी, कर्मठता और सरकार की उन सभी योजनाओं को सफल बनाने के लिए। पंचायत, स्कूल और विश्वविद्यालय का कायाकल्प हो या सिंचाई विभाग से लेकर चिकित्सा सुविधा; उड़ीसा में एम्स की स्थापना से लेकर पुरी को विश्व विख्यात शहर बनाने की योजना। इसीलिए 11 वर्ष से नवीन पटनायक के दाहिने हाथ बन चुके हैं। नवीन पटनायक का यह पांचवा कार्यकाल है और उम्मीद की जा रही है कि पांडियन जैसे अधिकारियों के सहयोग से जनता में भी वह उतने ही लोकप्रिय हैं। उड़ीसा सरकार को भी श्रेय देने की जरूरत है जिसने उन पर भरोसा किया और इस लायक समझा कि उनको सेवानिवृत्ति दिलाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। हीरे की कीमत जौहरी ही जानता है।

उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ वी. के. पांडियन

वर्तमान केंद्र सरकार में भी ऐसे कई उदाहरण हैं। रेल और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव भी उड़ीसा कैडर के ही आईएएस अधिकारी रहे हैं। उड़ीसा में साइक्लोन आने पर उनकी सूझबूझ और मेहनत का लोहा और केस स्टडी आज भी लोगों को बताया जाता है। विदेश मंत्री जयशंकर भी नौकरशाह से आज राजनीतिक पद संभाले हुए हैं। आजादी के बाद ऐसे अनेक उदाहरण हैं, और ऐसे उदाहरण लगातार बने रहने चाहिए। जाति, वंशवाद, धर्म की राजनीति का विकल्प भविष्य में ऐसे ही सक्षम अधिकारी हो सकते हैं।

पांडियन को कैबिनेट मंत्री का पद पांच ‘टी’ यानि ट्रांसपेरेंसी, तकनीक टीमवर्क, टाइम, ट्रांसपोर्टेशन जैसे शब्द दिए गए हैं। यह सब 21वीं सदी  के प्रशासनिक तंत्र के लिए अनिवार्यता बन चुकी है। भारतीय लोकतंत्र में सूचना के अधिकार से लेकर राज्य की बेहतर व्यवस्था के लिए यह सब अब आवश्यक है और यह उन्होंने कर दिखाया। इसी का फल उन्हें मिला है। इस पर किसी तरह की राजनीति करना बेमानी होगी।

लोकतंत्र का विकास लोक के हित के साथ जुड़ा हुआ है। उनकी समस्याओं का समाधान हो। उसे नौकरशाह करें या राजनीतिज्ञ करें, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। क्या यह उस राजनीति से अलग नहीं है जहां किसी अनपढ़ महिला या पुरुष को राज्य की सत्ता उनके वंशवादी या राजशाही के अंदाज में सौंप दी जाती है? क्या यह लगातार चलने वाली वंशवादी जातिवादी धर्मवादी राजनीति का अच्छा विकल्प नहीं है? क्या यह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक नहीं है कि तमिलनाडु में पैदा हुआ एक नौजवान, जो फिजियोलॉजी में एमएससी है, उड़ीसा के लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हो जाता है कि वह विकास के नए मॉडल के रूप में सामने आता है! पांडियन की खबर और खूबियां पूरी नौकरशाही के लिए भी उदाहरण हैं। उनकी पत्नी सुजाता कार्तिकेय भी उनके ही बैच की आईएएस अधिकारी हैं, लेकिन इस दंपति पर न सत्ता के दुरुपयोग का कोई आरोप लगा, न जनता से दूरी का।

वी. के. पांडियन – दूर दृष्टि पक्का इरादा

यूपीएससी से चुने हुए अधिकारियों के बारे में कहा जाता है कि निश्चित रूप से वे सर्वश्रेष्ठ हैं, लेकिन सत्ता उनके गुण-मेरिट का वैसा उपयोग नहीं कर पाती और इसीलिए ये धीरे-धीरे आराम-तलब और भ्रष्टाचार की तरफ बढ़ते जाते हैं। 70 के दशक में भारत में अमेरिकी राजदूत गैलब्रिथ से लेकर अनेकों राज-समाज के विद्वानों ने भारतीय नौकरशाही को दुनिया की भ्रष्टतम व्यवस्था  बताया है। कई कमेटियों और प्रशासनिक सुधार आयोगों ने भी इन कर्मियों-खामियों पर उंगली रखी है, लेकिन सुधार की तरफ अभी कई कदम उठाए जाने बाकी हैं। पिछले कुछ दशकों में इसमें और भी ज्यादा गिरावट आई है।

आजादी के तुरंत बाद ब्रिटिश काल की आईसीएस का जो मजबूत स्टील फ्रेम मिला था, 1970 तक आते-आते छीजने लगा। मिली-जुली सरकारों और उनके लोक प्रतिनिधियों के अनैतिक दबाव भी इसके लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जो आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के तबादले और शिकायतों के लिए ही अपनी ताकत का प्रदर्शन करते रहे। याद कीजिए बिहार में डीएम कृष्णैया की हत्या और उसका राजनेता आज तक खुले आम संसद के आसपास घूम रहा है। उत्तर भारत में तो नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के किस्से उतने ही प्रचलित हैं जितने राजनेताओं के। इसमें यह राजनीति भी उतनी ही जिम्मेदार है जो उन पर अंकुश लगाने के बजाय उनके साथ साठ-गांठ करके सत्ता में बने रहना चाहती है।

लेकिन प्रश्न उठता है, प्रतिवर्ष लगभग 1000 चुने हुए अधिकारियों में से पांडियन जैसे अधिकारियों की संख्या लगातार कम क्यों हो रही है? इसका बहुत कुछ कारण उनके प्रशिक्षण और राजनीतिक व्यवस्था का है। प्रशिक्षण के दौरान ही इनको हाकम उर्फ राजा जैसी मानसिकता देना सबसे बड़ा अपराध है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि प्रशासनिक सेवा में आने के 2-4 महीने के अंदर ही इनका मिजाज बदल जाता है। ये जनता से दूरी बनाने लगते हैं। अंग्रेजी या अच्छी अंग्रेजी तो इन इनके दंभ में और वृद्धि ही करती है।

इसीलिए वर्ष 2019 में मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू होते ही प्रधानमंत्री ने संसद में यह स्वीकार किया था कि नौकरशाही पर सुधार बाकी है। उन्होंने तो यह भी उंगली उठाई थी कि कैसे एक अधिकारी तेल मंत्रालय में भी सर्वोच्च पद पर पहुंच जाता है और चिकित्सा मंत्रालय में भी। उनका जोर इस बात पर भी था कि वे जनता के सेवक के रूप में सामने आएँ। प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को ऐसे सभी अच्छे अधिकारियों को सिविल सेवा पुरस्कार भी दिया जाता है, लेकिन पुरस्कार और तमगा बांटने से ज्यादा आवश्यक है इनकी प्रशिक्षण-प्रक्रिया पूरी तरह से बदली जाए।

कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि न केवल भाषा, बल्कि वेशभूषा टाई जैसी चीजों की अनिवार्यता इन अधिकारियों के लिए क्यों बनी हुई है? विशेषकर भारतीय परिस्थितियों में? उतना ही आवश्यक हैं इनके लिए भारतीय भाषाओं और कला-संस्कृति को जानना। केवल तकनीकी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। कला-संस्कृति के सरोकार आपको मानवीय ओर प्रशासनिक व्यवस्था में सक्षम बनाते हैं। #पांडियन का चुनाव और उत्थान देश के तंत्र और लोकतंत्र दोनों के लिए उम्मीदों का आकाश साबित होगा।

#प्रेमपाल_शर्मा, पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार। संपर्क: 99713 99046

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