कोहरे के नाम पर ट्रेनों का बुरा हाल!
बेडरोल हो, ऑनबोर्ड सेनिटेशन हो, ऑनबोर्ड कैटरिंग सर्विस हो, सारी मूलभूत यात्री सुविधाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हुई हैं! ट्रेनों की गति और समयबद्धता जैसी प्राथमिकताओं तथा समयबद्ध ट्रेन परिचालन जैसी कोर एक्टिविटी सहित यात्रियों को होने वाली परेशानी से कोई सरोकार नहीं रह गया है, क्योंकि रेलवे के शीर्ष प्रबंधन और नेतृत्व की भी जनता के प्रति कोई सहानुभूति और उत्तरदायित्व नहीं रह गया है!
मोदी सरकार रेलवे के उत्थान (रिफार्म) के लिए लाखों करोड़ रुपये का निवेश कर चुकी है, और लगातार कर रही है, तथापि रेलवे की जमीनी हकीकत में कोई बदलाव हुआ है, ऐसा सर्वसामान्य रेलयात्रियों और जनता के अनुभव में नहीं आ रहा है। यात्री आज भी सामान्य साफ-सफाई, साफ-सुथरे बेडरोल, कोचों में पानी की उपलब्धता, निर्धारित मात्रा में गुणवतापूर्ण खानपान व्यवस्था, समयबद्ध ट्रेन परिचालन, संरक्षा और सुरक्षा इत्यादि मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, क्योंकि रेलवे के शीर्ष प्रबंधन एवं नेतृत्व को अपने-अपने हित साधने से फुर्सत नहीं है।
वर्तमान में उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरने वाली ट्रेनों की चाल से तो बैलगाड़ी युग ही तेज था। वर्तमान में यह अनुभव लाखों रेलयात्रियों का है।
उनका कहना है कि आधुनिकता का दम भरने वाली भारतीय रेल कोहरे में हांफ रही है, जबकि कोहरे को चीरने वाली एंटी फॉग डिवाइस तकनीक पिछले कई सालों से रेल में उपयोग करने की बात सुनी जा रही है और यह भी सर्वज्ञात है कि इसमें लाखों करोड़ का निवेश भी किया गया है।
राजधानी/शताब्दी/दुरंतो/तेजस ऐसी सभी कथित वीआईपी ट्रेनों का हाल बेहाल है। पंक्चुअलिटी का ये हाल तब है जब कोहरे के नाम पर बहुत सी गाड़ियां या तो रद्द कर दी गई हैं, या फिर उनके फेरे घटा दिए गए हैं!
जबकि फेयर (किराए) का तो कोई गणित (हिसाब) ही नहीं रह गया है। कंजूसी, बदहाली, दीनता, हीनता और घटती कमाई के नाम पर पूरी तरह बेइज्जत करते हुए वरिष्ठ नागरिकों की छूट भी यह कहकर छीन ली गई है कि किराए में सर्वसामान्य रेलयात्रियों को पर्याप्त राहत दी जा रही है।
बेडरोल हो, ऑनबोर्ड सेनिटेशन (#OBHS) हो, ऑनबोर्ड कैटरिंग सर्विस हो, सारी मूलभूत यात्री सुविधाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हुई हैं! ट्रेनों की गति और समयबद्धता जैसी प्राथमिकताओं तथा समयबद्ध ट्रेन परिचालन जैसी कोर एक्टिविटी सहित यात्रियों को होने वाली परेशानी से रेल प्रबंधन को कोई सरोकार नहीं रह गया है, क्योंकि रेलवे के शीर्ष प्रबंधन और नेतृत्व की भी जनता के प्रति कोई सहानुभूति और उत्तरदायित्व नहीं रहा है।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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