रेलमंत्री की समझ और उनके सलाहकारों की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह
52 साल का क्राइटेरिया आज और अभी से हटाया जाए अगर रेल को डिरेल होने और ‘लेफ्ट लिबरल ईको-सिस्टम’ तथा ‘खान मार्केट गैंग’ के दुष्चक्र से बचाना है तो!
डीआरएम, जीएम, बोर्ड मेंबर्स की परफॉर्मेंस का हर 3/6 माह में रिव्यू किया जाए, और अपेक्षा पर खरे नहीं उतरने पर बिना किसी किंतु-परंतु के उन्हें पद से तुरंत हटा दिया जाए!
सुरेश त्रिपाठी
डीआरएम पोस्टिंग के लिए 6 अक्टूबर के निर्णय की जितनी आलोचना हुई है, उतनी शायद अब तक रेल मंत्रालय के किसी आर्डर की नहीं हुई थी, और इसके लिए जिस तरह यह कहकर – कि जब यही करना था तो एक साल तक इन नियुक्तियों को रोके रखने का क्या औचित्य था – रेलमंत्री की समझ और उनके तदर्थवाद को जिम्मेदार ठहराया गया, वह भी अभूतपूर्व रहा। इससे रेलमंत्री की समझ पर जो प्रश्नचिन्ह लगा, वह तो लगा ही, मगर इससे उनके कथित योग्य सलाहकारों की योग्यता की भी कलई खुलकर सामने आ गई।
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रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जी! ऐसा नहीं है कि डीआरएम के लिए 52 साल का बेंचमार्क बड़ा सैक्रोसैंक्टम या नॉन-नेगोसिएबल रहा है। पहले भी रेल मंत्रालय के तिकड़मी लोगों ने इसे कभी 55 साल भी किया है, तो कभी 53 और 50 साल भी किया गया है। रिकार्ड मंगाकर देखा जा सकता है। इसलिए अगर रेलवे अर्थात आपका कोई तिकड़मी सलाहकार 52 साल को ‘लक्ष्मण रेखा’ बताकर इसे परम्परागत और तर्कसंगत होने की बात करता है, तो वह न केवल आपको/सरकार को बरगला रहा है, बल्कि यथास्थिति बनाए रखकर अपना एजेंडा चला रहा है। यह भी सोचें कि ये 52 साल का क्राइटेरिया अथवा एज-बैरियर लगाने की सोच के पीछे कितना धूर्त दिमाग रहा होगा!
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बेहतर तो यह होता कि फिलहाल ये पोस्टिंग ऑर्डर रद्द कर, जिन डीआरएम का कार्यकाल खत्म हो चुका है, उनको छोड़कर बाकी सभी डीआरएम का परफॉर्मेंस एक्जीक्यूशन क्यूसीआई से और ऑडिट डिपार्टमेंट से ही करा लेते और जिसका परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं होता, उन सबको हटाकर एक साथ ही सभी डीआरएम की पोस्टिंग उनकी योग्यता के अनुसार की जाती, जो ईक्यूआई टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन किए हों + व्यक्तिगत साक्षात्कार + कम से कम 12/15 साल का फील्ड में यानि डिवीजनों में कार्य करने का अनुभव रखते हों, और कम से कम दो जोनल रेलों और 3/4 डिवीजनों में काम करने का अनुभव रखते हों।
वरना अभी तो आपको ऐसे नमूने मिलते रहे हैं जो शायद ही साल भर भी फील्ड में महत्वपूर्ण पद पर काम किए हों और पूरे करिअर में दो शहरों से ज्यादा जगहों के लिए हिले भी हों। कुछ तो ऐसे हैं कि अधिकांश समय रेलवे से बाहर ही रहे और केवल 52 साल के क्राइटेरिया के कारण दो साल के लिए रेलवे में प्रकट होते हैं, और फिर बाहर की प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) का जुगाड़ कर रेलवे से गायब हो जाते हैं, और जीएम बनकर प्रकट होते हैं, या फिर सीआरबी बनकर!
इनमें से अधिकांश लोग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहरों से बाहर कभी निकले ही नहीं होते। ऐसे लोग व्यवस्था में अपना क्या योगदान देंगे, यह सोचने वाली बात है। ऐसे लोग आकर सबसे ज्यादा हवाई ज्ञान बघारते हैं, जिसका रेलवे की जमीनी हकीकत से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहता। ऐसे लोग या तो रेलवे का विकास दो साल रोक देते हैं, या 20 साल पीछे फेंक देते हैं।
इसी तरह, इसी 52 साल के क्राइटेरिया के प्रोडक्ट हाल फिलहाल सीआरबी रहे अति चर्चित महोदय का फैलाया हुआ रायता ही है जो रेलवे सम्भाल नहीं पा रहा है और व्यवस्था का ऐसा सत्यानाश हुआ है कि गधे के धड़ पर घोड़े का सिर और घोड़े के धड़ पर गधे का सिर लगाकर रेलवे को सरपट दौड़ाने की कोशिश हो रही है। स्मरण रहे कि यहां किसी को भी गधा या घोड़ा बनाने की कोशिश नहीं की जा रही है, यह केवल एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
एक रिटायर्ड मेंबर ने कहा कि “अब नवंबर में जिन डीआरएम का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनका इस 52 साल के क्राइटेरिया के आधार पर चयन कर डीआरएम न बनाया जाए, यह उनके हित में रहेगा, क्योंकि जिस तरह से इस 52 साल के क्राइटेरिया को हटाकर पूरे बैच को ही एलिजिबल मानते हुए पैनल बनाने की चर्चा एक उत्साह और आशा के संचार के साथ सर्वसामान्य से लेकर रेलवे के सभी तबके के लोग करने लगे थे और लोगों की बातों से लगता था कि यह मंत्री स्वतंत्र भारत के इतिहास में रेलवे में सबसे बड़ा क्रांतिकारी बदलाव करने वाले नेता की छवि के साथ याद रखे जाएंगे और यह अपेक्षा इस हद तक देखी गई कि अगर यह काम इस मंत्री और सीआरबी की जोड़ी नहीं कर पाई, तो फिर आगे कोई नहीं कर पाएगा। मेरा मानना है कि रेलमंत्री की इस छवि का टूटना उनका ही सबसे बड़ा फेल्योर होगा।”
एक अच्छी छवि वाले पूर्व फाइनेंशियल कमिश्नर/रेलवेज (एफसी/रेलवेज) ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा, “जब सर्विसेस खत्म हो चुकी हैं और जीएम या बोर्ड मेंबर तक की पोस्टिंग में कैडर रिजर्वेशन या कोटा सिस्टम खत्म हो गया है, तब भी डीआरएम की पोस्टिंग में कोटा सिस्टम क्यों फॉलो कर रहे हो भाई? सबको एक मानते हुए ईक्यूआई + परफार्मेंस + इंटरव्यू आदि के साथ नई चयन प्रक्रिया से जो-जो एलिजिबल लोग हैं, उनका पैनल बनाकर एक-एक कर सबको पोस्ट कीजिए और जब वह पूरा पैनल डीआरएम बन जाए तो नए पैनल बनाकर डीआरएम की सम्भावित लिस्ट तैयार रखिए!”
इसके साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि “इसमें 360 डिग्री वाला जो सिस्टम है उसको हटाते हुए ही डीआरएम/जीएम के लिए इवैल्युएशन किया जाना चाहिए, यह बहुत ही पक्षपाती और खतरनाक है, क्योंकि इसमें जो पूछने वाला है वह कितना पक्षपात रहित और निष्ठावान है, ये सुनिश्चित करना उतना ही अनिश्चित और कठिन है, जितना कि बताने वाला!”
तत्पश्चात उन्होंने यह भी कहा कि “अगर आपको यह इतना ही महत्वपूर्ण लगता है तो फिर आईबी से रिपोर्ट लेकर पोस्टिंग करो, जैसा जजों और अन्य संवेदनशील पदों के चयन में होता है। 360 डिग्री केवल ‘विच हंटिंग है, किसी को मारने का यह आदिम तरीका।”
उन्होंने कहा कि अगर रेलवे को क्रिकेट मान लिया जाए, तो डीआरएम के लिए ये 52 साल का ‘एज-क्राइटेरिया’ और ‘सर्विस वाइज कोटा’ मैच फिक्सिंग के सटोरियों के टूल्स हैं!
इसके अलावा, इस तथाकथित 52 साल के क्राइटेरिया में ‘एज-बैरियर’ के अतिरिक्त अन्य कौन सी क्वालिफिकेशन रखी गई हैं, इसका पता आजतक किसी को भी नहीं है। अतः ऊपर बताई या सुझाई गई क्वालिफिकेशन आज और अभी से तय की जानी चाहिए अगर रेल को डिरेल होने और ‘लेफ्ट लिबरल ईको-सिस्टम’ तथा ‘खान मार्केट गैंग’ के दुष्चक्र से बचाना है तो!
यह इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि 6 अक्टूबर को जिस हड़बड़ी में आकर 20 डीआरएम की पोस्टिंग के आर्डर जारी किए गए, उनमें से किसी की भी फाइलें कनेक्ट नहीं की गईं, जिसके फलस्वरूप जहां एक तरफ सरकार विरोधी गतिविधि के चलते पीएमओ के आदेश पर गृहमंत्रालय से त्वरित प्रभाव से निकाला गया अहंमन्य अधिकारी डीआरएम बन गया, वहीं दूसरी ओर सलाहकार साहब का रिश्तेदार भी डीआरएम में पदस्थ हो गया। एक की पत्नी पिछले लगभग दो महीने से महिला संगठन के जमावड़ों और किटी पार्टियों में शेखी बघार रही थी कि ‘उसके हसबैंड श्योर एंड शॉट डीआरएम बन रहे हैं!’ अगर एक साल की लंबी अवधि में इस कथित 52 साल के क्राइटेरिया को हटाकर यह पोस्टिंग की जाती, और फाइलों को कनेक्ट किया गया होता, तो निश्चित रूप से ये सब बाहर हो जाते!
#RailSamachar एक बार पुनः आगाह करना चाहेगा कि नीचे लिंक में दिए गए पहले के लेखों को ठंडे दिमाग से बिना अहं के गंभीरता से ध्यान लगाकर पढ़ा जाए, जो कि इसी संदर्भ में विस्तार से, हजारों अधिकारियों/कर्मचारियों और रेलवे से जुड़े रहे पूर्व अनुभवी लोगों के फीडबैक पर आधारित हैं। भले ही कुछ और टाइम लिया जाए, लेकिन रेलवे के हित में यह क्रांतिकारी कदम अवश्य उठाया जाए बिना किसी भय या दबाब के, क्योंकि केवल 2/3% लोगों को छोड़कर सभी नए सुधार देखना चाहते हैं। इसमें 52 साल का क्राइटेरिया हटाया जाए और पूरे बैच को एलिजिबल मानते हुए ईक्यूआई टेस्ट और अन्य चयन के मानदंड पर खरे उतरे लोगों का पैनल बनाया जाए, और जब उस पैनल के सभी लोगों की डीआरएम में पोस्टिंग सुनिश्चित हो जाए, तब नया पैनल बनाया जाए।
कृपया पढ़ें: “उपयुक्त सुधार के बिना डीआरएम की पोस्टिंग में जल्दबाजी न की जाए!“
कृपया पढ़ें: “समय की कोई समस्या नहीं, जितना चाहें उतना लें, मगर काम पुख्ता होना चाहिए!“
कृपया पढ़ें: “नीति पुख्ता और स्पष्ट बने, समय भले ही जितना लगे!“
इसके साथ ही नियुक्त किए गए डीआरएम, जीएम और बोर्ड मेंबर्स की परफॉर्मेंस का हर 3/6 माह में रिव्यू किया जाए, और अपेक्षा पर खरे नहीं उतरने पर बिना किसी किंतु-परंतु के उन्हें पद से तुरंत हटा दिया जाए। तभी कड़ा संदेश जाएगा और तब ऊपर से लेकर नीचे तक सभी लोग स्वतः काम करने लग जाएंगे।
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