समुदाय विशेष के अधिकारियों से शोषित/प्रताड़ित हो रहे हैं बहुसंख्यक सरकारी कर्मचारी
बल सदस्यों को ऐसे अनेक कारणों से प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि उनकी अब कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ऐसी तमाम मनमानियों के सामने एक बड़ी बाधा बनकर खड़ी थी, जिसे साजिश और षड्यंत्र करके मृतप्राय कर दिया गया!
केंद्रीय हो, या राज्य सरकार, लगभग हर विभाग, हर कैडर में, कुछेक अपवादों को छोड़कर, एक समुदाय विशेष का लगभग हर अधिकारी खुलेआम बहुसंख्यक मातहतों का मजाक उड़ाता है, उनके धर्म और मान्यताओं के विरुद्ध छींटाकशी करके उन्हें बेइज्जत करता है, नीचा दिखाता है। अपने समुदाय, अपनी बिरादरी के लोगों को ही अपना खास, अपना बगलबच्चा, अपना दलाल अथवा बिचौलिया बनाकर रखता है। और वह यह सब खुलेआम इसलिए करता है, क्योंकि वह जानता है कि उसके इस नियम-विरुद्ध आचरण के खिलाफ सहनशील बहुसंख्यक स्टाफ में से कोई आवाज नहीं उठाएगा। यही स्थिति एससी/एसटी वर्ग के भी अधिकांश अधिकारियों की है। वह भी खुलेआम सामान्य वर्ग के अपने मातहत स्टाफ को हरसंभव तरीके से प्रताड़ित करते हैं, अपमानित करते हैं, और उन्हीं पर काम का सर्वाधिक बोझ डालते हैं। सरकारी कार्यालयों की यही वर्तमान वस्तुस्थिति है, जो कि इन कार्यालयों की उत्पादकता में कमी और भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण बन गई है।
अहमदाबाद मंडल में हाल-फिलहाल तक एक समुदाय विशेष के आरपीएफ अधिकारी बतौर सीनियर डीएससी तैनात थे, जो अपने समुदाय और बिरादरी के लोगों को छोड़कर बाकी सभी स्टाफ को अपने चेंबर में बुलाकर उनसे उनका कुल देवता कौन है, वह किस देवता की पूजा करता है, कौन-कौन सा व्रत-उपवास रखता है, इत्यादि पूछकर उसके धर्म पर भद्दी और अपमानजनक टीका-टिप्पणी किया करते थे। अब यह ट्रांसफर होकर धनबाद मंडल चले गए हैं।
आरपीएफ कर्मी बताते हैं कि इन्होंने अपने समुदाय विशेष के चार-पांच स्टाफ को अपना दलाल बनाया हुआ था, जो सामान्यतः इस समुदाय विशेष के लगभग हर अधिकारी के साथ देखा जाता है, फिर वह भले ही किसी भी कैडर या विभाग का हो। उनके इन्हीं दलालों के कहने पर सब कुछ तय होता था। उनके दलालों के माध्यम से जो स्टाफ आता था वह जहां चाहता था वहां पर उसकी पोस्टिंग हो जाती थी।
उन्होंने बताया कि जो स्टाफ उनके इन दलालों से नहीं मिलता था, वह फिर 8% से 8% में ही रहता था, और जो इन दलालों के माध्यम से आते थे, उनको या तो 8% से 27% में भेज दिया जाता था, या फिर वे 27% से 27% में ही रहते थे। जो इन दलालों से नहीं मिला, उसका ट्रांसफर 27% से 8% में होता था। ज्ञातव्य है कि यह 8% और 27% सिटी अलाउंस है, पहला दूरदराज क्षेत्रों के लिए दिया जाता है, और दूसरा बड़े शहरों में पोस्टिंग पर मिलता है। सामान्य सिपाही के लिए यह भत्ता बहुत मायने रखता है।
यही नहीं, जाति-बिरादरी-समुदाय के नाम पर भीषण भेदभाव और पक्षपात करने वाले यह महोदय आरपीएफ सिपाहियों से तीन च्वाइस भी लिखाकर मंगाकर रखते थे, लेकिन जो लोग दलालों से बात कर लेते थे, वह तो जहां चाहते थे वहां उन्हें पोस्टिंग मिल जाती थी। उनके द्वारा अपने इन्हीं दलालों को अवार्ड से नवाजा गया है। यहां तक कि डीजी स्तर सहित अन्य अवार्ड भी इनके दलालों को दिए गए हैं। डीजी स्तर का अवार्ड इन्होंने एक खासमखास एसआईपीएफ दिलवाया था, वह जो बोल देता था, वही होता था।
बल सदस्यों ने बताया कि आईजी/पीसीएससी के विशेष खासमखास रहे यह सीनियर डीएससी महोदय लगभग एक महीने पहले ही ट्रांसफर होकर धनबाद मंडल गए हैं, लेकिन तीन साल, यानि जब तक अहमदाबाद में थे, बहुसंख्यक स्टाफ को बहुत प्रताड़ित किया। खासतौर पर अपने समुदाय विशेष से इतर स्टाफ को बहुत ज्यादा परेशान किया था, जो कि स्टाफ ने अब यही सब धनबाद मंडल में भी दोहराए जाने की आशंका व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि ऐसा ही एक उदाहरण मुंबई मंडल मध्य रेलवे में भी कुछ समय पहले तक उपस्थित था।
बल सदस्य बताते हैं कि नियमानुसार यह महोदय स्टाफ से तीन च्वाइस पोस्ट लिखकर मंगाकर रखते हैं, लेकिन उसमें जिसने उनके दलालों से बात कर ली, उन्हें तो जो चाहें वह पोस्ट अर्थात जगह पर पोस्टिंग मिल जाती है, परंतु जो उनके दलालों से नहीं मिलता है, उसको 8% से 8% में रखते रहे हैं, जबकि नियम यह है कि जो स्टाफ 8% में है, उसे 27% में अगली पोस्टिंग मिलनी चाहिए, अगर उसने लिख कर दिया है तो, लेकिन वास्तविक धरातल पर ऐसा नहीं होता। उनका कहना है कि यह नियम केवल असहाय आरपीएफ सिपाहियों को दिग्भ्रमित करने, उनका शोषण करने, उन्हें प्रताड़ित करने, केवल कागज की शोभा बढ़ाने तथा अधिकारियों की अवैध कमाई के लिए बनाया गया है।
आरपीएफ कर्मियों का कहना है कि यह तो मात्र एक उदाहरण है, जबकि बल सदस्यों को ऐसे अनेक कारणों से प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि उनकी अब कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ऐसी तमाम मनमानियों के सामने एक बड़ी बाधा बनकर खड़ी थी, जिसे साजिश और षड्यंत्र करके मृतप्राय कर दिया गया। उनका कहना है कि आरपीएफ अधिकारी काम कुछ नहीं करते, मगर उनके पद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही भ्रष्टाचार और मातहत बल सदस्यों का शोषण भी बढ़ता जा रहा है। इसीलिए रेल में अपराधों, अनियमितताओं में कहीं कोई कमी आती/होती दिखाई नहीं दे रही है। सरकार और रेलमंत्री महोदय को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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