अधिकारी की शो-बाजी – काम कम ज्यादा रंगबाजी!
जिस तरह अनधिकृत, अघोषित रूप से टुंडला परिक्षेत्र में उगाही करवाई जा रही है, उससे भी ज्यादा सोफेस्टिकेटेड तरीके से पूरे उत्तर मध्य रेलवे में सभी पार्सल डिपो, माल गोदामों, टिकट चेकिंग, टिकट बुकिंग और टिकट आरक्षण कार्यालयों में कुछ खास-खास सुपरवाइजरों को सेट करके उगाही की माहवारी तय कर दी गई है। जब यह हाल है ऊपर स्तर पर, तब नीचे स्तर पर तो वह सब होना ही है, जो नहीं होना चाहिए!
प्रयागराज ब्यूरो: कुछ रेल अधिकारी, खासतौर पर पिछले कुछ वर्षों में आए नई पीढ़ी वाले, स्वयं को एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी दर्शाने के लिए सोशल मीडिया पर अति-सक्रिय हैं। इनका वास्तविक काम तो कम होता है, या नगण्य होता है, मगर उसकी शो-बाजी अधिक होती है और रंगबाजी तो अपरिमित होती ही है। इस सबके पीछे उनका उद्देश्य स्वयं को न केवल अति योग्य और कर्तव्यदक्ष दिखाना होता है, बल्कि औरों की अपेक्षा ज्यादा निष्ठावान ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ होना भी दर्शाना होता है। ऐसे अधिकारियों के रहते मंत्री, सीआरबी और जीएम द्वारा व्यवस्था में सुधार के लिए किए जा रहे महती प्रयासों पर पानी फिर जाता है।
हालांकि इस सब में भी प्रत्यक्षतः कोई बुराई नहीं है। परंतु जो आप नहीं हैं, वह दर्शाना, आपकी चतुराई नहीं, बल्कि आपकी चालबाजी, मक्कारी और आपके कपटपूर्ण व्यवहार को दर्शाता है। इससे आपका यत्किंचित अल्पावधि का भला भले ही हो सकता है, परंतु इससे आपकी संस्था का, व्यवस्था का, मातहतों का, सहयोगियों का, समाज का कोई भला नहीं होता है। यही नहीं, अपनी इस मक्कारी के लिए अपनी महतारी (मां) की ओट लेना, आपके अति-दुष्ट होने, चालबाज होने, कपटी होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। और फिर सोशल मीडिया पर किसी को ब्लाक कर देने से आपकी यह मक्कारी तब भी छिपी नहीं रह जाती है!
यहां बात हो रही है डीटीएम/टुंडला की, जो ट्विटर सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अत्यंत सक्रिय रहते हैं। इनकी अधिकांश सोशल मीडिया पोस्ट या तो फालतू और बचकानी होती हैं, या फिर स्वयं के बचकानेपन को हाईलाइट करने वाली! जिस टीम का उल्लेख ये अपनी लगभग हर पोस्ट में करते हैं, उसमें वह बुकिंग सुपरवाइजर इनका एकमात्र बगलबच्चा होता है, जो ज्वाइनिंग से लेकर अब तक पिछले 16-17 सालों से लगातार टुंडला स्टेशन पर ही जमा हुआ है।
उल्लेखनीय है कि जब आप किसी भ्रष्ट को अपना खास बगलबच्चा बनाते हैं, और व्यवस्था को उसकी आंख से देखते हैं, तब आपकी निष्ठा और ईमानदारी अपने आप ही संदिग्ध हो जाती है।
21 जून 2022 को ट्विटर पर 2.47 बजे जो पोस्ट इनके द्वारा की गई, उसमें कहा गया कि “मॉम ने घर पर टीम मेंबर्स और उनकी फेमिली को लंच के लिए आमंत्रित किया, केवल उनके हार्ड वर्क के प्रति ग्रेटीट्यूड व्यक्त करने के लिए, और जब जहां जरूरत हो वहां उनके साथ खड़े रहने के लिए! और हां, उन्होंने इस मौके पर फोटो सेशन भी किया!”
जानकारों का कहना है कि “उस कथित टीम में एक एसएस की फेमिली, दूसरी एटीएम की फेमिली और तीसरी उस बगलबच्चे की फेमिली ही इसमें शामिल थी, जो उनका अघोषित सीएमआई भी है। ऐसे में “टीम मेंबर्स” कहने का कोई औचित्य नहीं बनता है। क्योंकि ‘टीम’ तो सही अर्थों में तभी कही जाएगी, जब वहां कार्यरत सभी विभागों के डिपो सुपरवाइजर/इंचार्ज उसमें शामिल हों! बल्कि एक भ्रष्ट को घर बुलाने और फिर उसके साथ बैठकर खाना खाने, और फिर स्वयं को पाक-साफ दर्शाने की कुटिल सौजन्यतापूर्ण शो-बाजी के अलावा इसे अन्य कुछ नहीं कहा जा सकता है!”
उन्होंने यह भी कहा कि “यहां यह भी जांचने की आवश्यकता है कि कथित टीम मेंबर्स को घर बुलाकर खिलाया गया खाना वास्तव में घर पर ही बना था, या बगलबच्चे द्वारा रेलवे कैटरिंग अथवा बाहर से “अरेंज” किया गया था!”
इस संदर्भ में टुंडला स्टेशन के अन्य डिपो सुपरवाइजरों का कहना है कि “यह केवल और केवल इनकी शो-बाजी है, जो लगातार चल रही है! यह काम कम, रंगबाजी ज्यादा करते हैं। पाक-साफ तो बिल्कुल भी नहीं हैं। जहां तक बात टीम मेंबर्स की है, तो जो फोटो दिखाया गया है, उसमें यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए था कि आपके कथित टीम मेंबर्स में कौन-कौन शामिल हैं? जो फोटो अपलोड किया गया है उसमें यह भी जानकारी दी जानी चाहिए थी कि कौन-कौन से टीम मेंबर्स और उनकी फैमिली शामिल थी? अपलोडेड फ्रेम की बात की जाए तो दो-तीन लोगों से ज्यादा कथित टीम मेंबर्स की फेमिली इसमें दिखाई नहीं दे रही है।”
उनका यह भी कहना है कि “लीडर यदि निष्पक्ष होकर टीम का नेतृत्व नहीं करेगा, तो टीम को बिखरने में ज्यादा समय नहीं लगता, साथ ही उसकी लीडरशिप भी जल्दी ही समाप्त हो जाती है।”
इसके अलावा, कई वरिष्ठ कर्मचारियों का यह भी कहना है कि रेल प्रशासन कर्मचारियों के प्रमोशन पर तो नियमानुसार उनके स्थान परिवर्तन पर हमेशा अडिग रहता है। परंतु यही नियम डीटीएम/टुंडला जैसे कुछ चालबाज अधिकारियों के प्रमोशन पर क्यों नहीं लागू किया जाता? यह एक बड़ा सवाल है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान डीटीएम/टुंडला पहले यहीं पर एटीएम के रूप में पदस्थ थे। रेल प्रशासन द्वारा प्रमोशन पर उनका स्थान परिवर्तन क्यों नहीं किया गया, इस बारे में रेल प्रशासन के पास कोई तर्कसंगत जवाब नहीं है।
उल्लेखनीय है कि शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात को लगभग एक-डेढ़ बजे के बीच कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के सबसे व्यस्ततम प्लेटफार्म नं.-1 पर स्थित टिकट बुकिंग कार्यालय के अंदर घुसकर एक अज्ञात व्यक्ति लगभग डेढ़ लाख रुपये की नकदी लेकर चम्पत हो गया और वहीं आजू-बाजू स्थित आरपीएफ एवं जीआरपी थानों को इसकी भनक भी नहीं लगने पाई। यह कैसी पहरेदारी है?
जानकारों का कहना है कि जिस तरह अनधिकृत, अघोषित रूप से टुंडला परिक्षेत्र में उगाही करवाई जा रही है, उससे भी ज्यादा सोफेस्टिकेटेड तरीके से पूरे उत्तर मध्य रेलवे में सभी पार्सल डिपो, माल गोदामों, टिकट चेकिंग/बुकिंग और टिकट आरक्षण कार्यालयों में कुछ खास-खास सुपरवाइजरों को सेट करके उगाही की माहवारी तय कर दी गई है। जब यह हाल है ऊपर स्तर पर, तब नीचे स्तर पर तो वह सब होना ही है, जो नहीं होना चाहिए! जारी…