पोस्ट बेस्ड रोस्टर : संवैधानिक आदेशों की अवहेलना

पूर्व सर्विस के अनुभव का एंटी डेटिंग सीनियरिटी के निर्धारण में इस्तेमाल नहीं होगा

रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके पक्ष में लिया निर्णय

रोटा-कोटा में कैबिनेट की मंजूरी और नोटिफिकेशन निकाले बिना ही बदलाव किया गया

प्रधानमंत्री के निर्देशों, अदालती निर्णयों और संसद के दस्तावेजों को दरकिनार किया गया

डीओपीटी से गुपचुप निकलवाए गए पत्र उच्चस्तरीय आदेशों की अवहेलना का आधार बने

किसी विभाग की ऑफिस नोटिंग्स की कोई लीगल वैल्यू या मान्यता नहीं है -सुप्रीम कोर्ट

एफआरओए द्वारा दिए गए तमाम ज्ञापनों को रेलवे बोर्ड ने किसी संज्ञान में भी नहीं लिया

रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में फैसला लेने के लिए तीन मुद्दों पर चालबाजी की

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड ने पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम मामले में सुप्रीम कोर्ट, अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया और डीओपीटी के आदेशों की अवहेलना करते हुए प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लिया था. इसके अलावा रेलवे बोर्ड ने डीओपीटी से गुप्त रूप से दो पत्र निकलवाए थे, जो उच्चस्तरीय आदेशों की अवहेलना करने का आधार बने थे. डीओपीटी के किसी अदने से अधिकारी के गुप्त पत्र को मानने के चक्कर में रेलवे बोर्ड ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, अटॉर्नी जनरल के सुझावों एवं खुद डीओपीटी मंत्री के लिखित दस्तावेज को दरकिनार कर दिया था.

भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का वर्षों-वर्षों तक जानबूझकर उलंघन करना तथा सरकारी खजाने को अरबों-खरबों रुपयों की वार्षिक चपत लगाना किसी भी संस्था और व्यक्ति के लिए पूरी तरह देशद्रोह की श्रेणी में आता है. इस तथ्य जानते हुए यूपीएससी ने लगातार चार वर्षों तक बढ़े हुए प्रमोटी कोटे पर डीपीसी करने से मना कर दिया था. तथापि रेलवे बोर्ड ने सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच तय रोटा-कोटा के अनुपात में बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए और गजटेड नोटिफिकेशन निकाले बिना ही बदलाव कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अनेकों मामलों में रोटा-कोटा को सर्विस का बेसिक स्ट्रक्चर करार दिया है. सिर्फ रिक्रूटमेंट रूल में बदलाव के बाद ही रोटा-कोटा के अनुपात में तबदीली की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में एम. सुधाकर राव बनाम गोविंद राव मामले में कांस्टीट्यूशन बेंच (संवैधानिक पीठ) के माध्यम से निर्णय दिया था कि पूर्व सर्विस के सेवाकाल का अनुभव पदोन्नति के समय सिर्फ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया में ही इस्तेमाल किया जाएगा, पूर्व सर्विस के अनुभव का एंटी डेटिंग सीनियरिटी के निर्धारण में इस्तेमाल नहीं होगा.

ऐसे संगीन या गंभीर मामले में सीधी भर्ती अधिकारी संगठन (एफआरओए) द्वारा अनेकों रिप्रजेंटेशन रेलवे बोर्ड को दिए गए हैं, फिर भी उन ज्ञापनों पर रेलवे बोर्ड द्वारा कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, ऐसे में यदि मीडिया या किसी जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से यह बात सार्वजनिक होती है, तो रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों पर मोदी सरकार की गाज गिरना तय है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में साफ-साफ कहा है कि किसी भी विभाग की ऑफिस नोटिंग्स की कोई कानूनी वैल्यू या मान्यता नहीं होती है.

रेलवे द्वारा पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच तय रोटे-कोटे पर गलत ढ़ंग से लागू किया गया-