‘त्रिमूर्ति घोटाले’ के कारण हटाए जा सकते हैं सीआरबी
पदोन्नति घोटाले पर शर्मसार हो चुके रेलवे बोर्ड को एक और बड़ा झटका
1714 ग्रुप ‘ए’ रिक्तियों की जगह 4367 अधिकारियों की की गई बंपर नियुक्ति
डेलॉयट कमेटी ने अधिकारी पदोन्नति घोटाले की काली दुनिया से उठाया पर्दा
ग्रुप ‘ए’ के सभी अतिरिक्त पदों को चालाकी से प्रमोटी अधिकारियों से भरा गया
दस हजार करोड़ रुपए से भी अधिक के रेलवे राजस्व को पहुंचाया गया नुकसान
डीओपीटी, वेतन आयोग, डेलॉयट और कोर्ट ने उठाए रे.बो.की कार्य-प्रणाली पर सवाल
युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के साथ रेलवे बोर्ड कर रहा है सौतेला व्यवहार -डेलॉयट रिपोर्ट
रेलमंत्री ने मुलाकात के दौरान खड़ी की इरपोफ नेतृत्व की खटिया, टूट सकता है इरपोफ
सुरेश त्रिपाठी
एक तरफ वर्ग विशेष के कुछ रेल अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण के मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश पर रेलवे बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों (आरबीई 113/1997 एवं आरबीई 117/2016) को धता बताकर भविष्य में आरक्षित वर्ग की रिक्तियों को एडजस्ट करने के बहाने सामान्य वर्ग की वर्तमान रिक्तियों पर आरक्षित वर्ग को पदोन्नतियां देकर खुलेआम व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं, तो दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड, आरबीएसएस और इरपोफ द्वारा आपस में मिलकर अधिकारी पदों के घोटाले पर पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में घालमेल करके उसे दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है. इसी संदर्भ में गत दिनों इरपोफ के शीर्ष पदाधिकारियों द्वारा रेलमंत्री सहित बोर्ड मेंबर्स को मिलकर उन्हें पटना हाई कोर्ट के निर्णय पर दिग्भ्रमित करने की कोशिश भी की गई है. 30 जून से पहले रेलवे बोर्ड को पटना हाई कोर्ट को जवाब देना है, परंतु अब तक रेलवे बोर्ड हजारों करोड़ के इस भयंकर घोटाले के मामले में अपनी दिशा ही नहीं तय कर पाया है.
अधिकारी पदोन्नति घोटाला मामले में चौतरफा मार झेल रहे रेलवे बोर्ड को डेलॉयट कमेटी ने एक और बड़ा झटका दिया है. अदालत के निर्णयों और युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के ज्ञापन से त्रस्त हो चुके रेलवे बोर्ड को डेलॉयट रिपोर्ट से गहरा आघात लगा है. डेलॉयट रिपोर्ट से रेलवे में फैली अधिकारी पदोन्नति घोटाले की अराजक दुनिया का राज अब खुलकर सबके सामने आ चुका है. वैसे भी डीओपीटी, सातवां वेतन आयोग और आर. के. कुशवाहा मामले में पटना कैट एवं पटना हाई कोर्ट के निर्णयों ने रेलवे बोर्ड की नींद हराम कर रखी थी. अब डेलॉयट कमेटी की रिपोर्ट भी चिल्ला-चिल्लाकर रेलवे में पसरे भयानक भ्रष्टाचार की कहानी स्वतः बयां कर रही है.
रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने ‘रैशनल मैनपावर पालिसी फॉर इंडियन रेलवेज’ पर अध्ययन करने के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी ‘डेलॉयट टौचे तोह्मात्सू एलएलपी’ (डेलॉयट कमेटी) की नियुक्ति करके भारतीय रेल की संपूर्ण कार्य-प्रणाली पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करवाई है. इसका उद्देश्य यह है कि भारतीय रेल के बेहतर भविष्य के लिए जो आवश्यक हो, उसमें परिवर्तन किया जा सके. डेलॉयट कमेटी को रेलवे तंत्र के अध्ययन के दौरान कुछ चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगे हैं, जिसमें सबसे प्रमुख है रेलवे में चल रहा ग्रुप ‘ए’ अधिकारी पदों का पदोन्नति घोटाला. इस पूरे प्रकरण पर डेलॉयट कमेटी ने बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं. डेलॉयट कमेटी की एग्जीक्यूटिव समरी के प्रथम तीन पैरा यहां दर्शनीय हैं-
1. The Indian Railways, through RVNL has engaged Deloitte Touche Tohmatsu LLP to carry out a study of the Indian Railways Organisation. The study has been completed over a span of Eight Months (August 2015 to March 2016).
2. The objective of the study is “To undertake and prepare a rational manpower policy for Indian Railways in the context of group ‘A’ services” with the following expected outcome:
* Suggest policies to determine the optimum Gazetted Organisation for Group ‘A’ Officers of Indian Railways in line with organisational goals.
* Suggest the optimum intake (through direct recruitment and promotion channels) of Group ‘A’ Officers keeping in view a reasonable and equitable career progression across Services.
* Suggest means to correct aberrations that have resulted over the years due to lake of coherent recruitment policies.
3. The coverage of the study is limited to the Eight Organised Services of the Indian Railways (Namely – IRAS, IRPS, IRTS, IRSEE, IRSE, IRSME, IRSSE and IRSS) and is also limited to cover only the Group ‘A’ Services within the Gazetted Organisation. For the purpose of “Rational Manpower Policy”, this study includes the following manpower as mandated by the Terms of References:
डेलॉयट कमेटी की पूरी रिपोर्ट का गहन अध्ययन करने के बाद जो प्रमुख बातें निकलकर सामने आई हैं, वह इस प्रकार हैं-
1. बिना किसी मंजूरी के 8 संगठित सेवाओं (आर्गेनाइज्ड सर्विसेस) में जूनियर टाइम स्केल (कनिष्ठ वेतनमान) के पदों को 820 से बढ़ाकर 1647 कर दिया गया. यह आंकड़ा वार्षिक रिक्त होने वाले ग्रुप ‘ए’ के अधिकारी पदों से 200 प्रतिशत ज्यादा है. रेल राजस्व के हजारों करोड़ डुबाने वाली यह घटना रेलवे बोर्ड के कुछ अधिकारियों द्वारा नियमों में जानबूझकर छेड़छाड़ करके ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के प्रति वफादारी दिखाने का सूचक है.
18. Until 2015, the number of Sanctioned Junior Scale Posts was not based on the number of vacancies created in posts above the Junior Scale level. Instead it was a National figur of 1647 Posts across the eight Group ‘A’ Organised Services. There has been no clear basis for this National sanctioned manpower. A basic analysis shows that this number is far in excess of the actual number of vacancies that are created due to retirement or due to additional posts created at levels from Senior Scale to Apex.
2. डेलॉयट रिपोर्ट से स्पष्ट है कि तय 50:50 रोटा-कोटा का उल्लंघन कर ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लिया गया, जिससे अवैध रूप से अतिरिक्त 1480 प्रमोटी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ के पदों का तोहफा पेश किया गया है. इस वजह से युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की भावी पदोन्नतियां अंधकारमय हो गई हैं.
19. These 1647 posts were meant to be comprised of three batches of Direct Recruits at any given point of time and one batch of Promotees from Group ‘B’. The rationale for this was that a Direct Recruit batch spends 3 years in Junior Scale (after the training period) before being promoted to Senior Scale. This implies that, every year, the Direct Recruits and Promotees were inducted into Senior Scale in a 50:50 ratio (i.e. 411 Posts each). However, in reality, this ratio was not maintained and the number of Promotees was far in excess of the number of Direct Recruits. During the period 2001 to 2012, Indian Railways has made a direct recruitment 2259 Officers and promotion of 3739 Officers. This is a deviation from the characteristic of organised Group ‘A’ Services, defined by DoPT which specifies that Direct Recruitment to Group ‘A’ should be at least 50% of the total intake.
3. पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने रेलमंत्रित्व काल में नियमों में संवैधानिक बदलाव करके एक मामूली नोटिस के माध्यम से ग्रुप ‘ए’ पदों की कालाबाजारी की शुरुआत की थी, जिससे वर्ष 2006 से 2012 के बीच ग्रुप ‘ए’ के 1714 रिक्त पदों की जगह 4367 पदों को प्रमोटी अधिकारियों से भरा गया, जिसका सीधा-सीधा फायदा प्रमोटी अधिकारियों को हुआ है इसके परिणामस्वरुप युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का कैरियर गर्त में जाता नजर आ रहा है.
20. From 2006 to 2012, the number of recruitment were 1714. During the same period 4367 Officers were inducted into the eight Group ‘A’ Organised Services through a mix of Direct Recruitment and Promotions. If we consider that Direct Recruit Officers are expected to reach at least the level of SAG during their career, the total number of vacancies created due to retirements and increase in sanctioned manpower of SAG and above during this period was 863. The total intake through Direct Recruitment was 1808.
4. रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 1997 में आए आर. एस. सभरवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को गलत तरीके से लागू कर भारी संख्या में ग्रुप ‘बी’ जेटीएस के पदों का सृजन किया गया. यह पूरा मामला आरक्षण पर आधारित था. परंतु रेलवे बोर्ड ने आरबीएसएस के साथ मिलकर प्रमोटी अधिकारियों को फायदा देने के चक्कर में एक साजिश के तहत इस नियम को सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच में रोटा-कोटा पर लागू करके लगभग 4000 ग्रुप ‘बी’ पदों का सृजन कर लिया.
25. Deloitte recommends that the induction level for Direct Recruits and Promotee should be delinked. The Junior Scale level should be used an induction grade only for Direct Recruits. Group ‘B’ Officers should be inducted in Group ‘A’ by promotion to Senior Scale level directly (instead of being promoted to Junior Scale firstly). This recommendation is in line with practices in other technical Group ‘A’ Services like CPWD and MES. It also aligns with the basis that the promotion of a Group ‘B’ Officer from Group ‘B’ to Junior Scale does not represent any change in role for the incumbent. The Direct Recruit at the Junior Scale level is primarily for ‘on-the-job’ training, performing the same role as a Group ‘B’ Officer in a Group ‘B’ Post. It may also be noted that prior to 1997, there was no separate sanctioned Posts specially for Junior Scale.
5. डेलॉयट रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने की प्रथा न सिर्फ पूरी तरह से गलत है, बल्कि यह समानता के खिलाफ भी है, जो कि रेलवे में प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में पदोन्नति के दौरान दी जा रही है. उल्लेखनीय है कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को एम. सुधाकर राव मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा और अब आर. के. कुशवाहा मामले में पटना हाई कोर्ट द्वारा अवैधानिक घोषित किया जा चुका है. यहां यह भी ज्ञातव्य है कि एंटी-डेटिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिवीजन पिटीशन भी खारिज की जा चुकी है.
26. Incidentally, the above recommendations, also eliminate the need for the antedating policy. Currently, a Group ‘B’ Officer gets the benefit of up to 5 years of antedated seniority which effectively directly promotes him/her to Senior Scale with the promotion to Junior Scale being only on record.
27. This also eliminates the problem of filling a current vacancy with a Group ‘B’ Officer and putting him/her along with a batch that would have been filling vacancies created 5 years ago.
6. डेलॉयट कमेटी ने भी डॉ. आर. एन. भटनागर मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश तथा इस पर निर्गत डीओपीटी के दिशा-निर्देशों को रेलवे द्वारा प्रमोटी अधिकारियों को लाभ देने के चक्कर में नहीं मानने का दोषी पाया है. ज्ञातव्य है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि प्रतिवर्ष रिक्त पदों की गणना के उपरांत ही उनको भरा जाए. इस पर डीओपीटी ने भी दिशा-निर्देश जारी कर सभी केंद्रीय मंत्रालयों को भेज दिया था. फिर भी रेलवे बोर्ड ने इस नियम का पालन नहीं करते हुए अरबों रुपए के रेलवे राजस्व को चूना लगाया है.
7. डेलॉयट कमेटी ने इस अधिकारी पदोन्नति घोटाला प्रकरण को दुरुस्त करने के लिए अनेक सुझाव दिए हैं. जिसमें प्रमुख है कि ‘अगले 10 वर्षों तक ग्रुप ‘ए’ के पदों में भारी कटौती की जाए, जिससे रेलवे कैडर नियंत्रित/नियमित हो सके.’ डेलॉयट कमेटी के सुझाव और पटना हाई कोर्ट का आदेश लागू होते ही वार्षिक प्रमोटी कोटे में भारी गिरावट होना तय है, क्योंकि वर्तमान में 8 आर्गेनाइज्ड सर्विसेस में ग्रुप ‘ए’ के पदों पर वार्षिक 411 प्रमोटी अधिकारियों का प्रमोशन दिया जा रहा है. अब यह आंकड़ा घटकर लगभग 100 से 150 तक रह जाएगा. अर्थात 2010 से 2015 डीपीसी पैनल के प्रमोटी अधिकारियों को फायदा देने के चक्कर में आने वाली प्रमोटी पीढ़ियों को भारी नुकसान सहना पड़ सकता है.
अधिकारी पदोन्नति घोटाले के कारण असमय हटाए जा सकते हैं सीआरबी
रेलवे बोर्ड में जारी पदोन्नति घोटाले पर सही और कारगर नियंत्रण नहीं कर पाने की वजह से सीआरबी उर्फ ‘स्टोरकीपर’ को पीएमओ किसी भी समय उनके पद से हटा सकता है. अर्थात हजारों करोड़ रुपए के अधिकारी पदोन्नति घोटाले का दीमक रेलवे के ‘राज-सिंहासन’ को भी निगल जाएगा. ऐसा कभी किसी ने भी नहीं सोचा होगा. पटना हाई कोर्ट ने भी अपने निर्णय में स्पष्ट कहा है कि सीआरबी को आधारभूत नियमों तक की जानकारी नहीं है, जिसको सीआरबी ने अपने स्पीकिंग आर्डर में विरोधाभासी नियमों को सही ठहराया था. इस संदर्भ में कई पूर्व एवं वर्तमान वरिष्ठ अधिकारियों सहित रेलवे के अन्य तमाम जानकारों का भी यही कहना है कि ‘गैर-अनुभवी मुखिया द्वारा जब तमाम नियमों और परंपराओं को दरकिनार करके किसी मंत्रालय की संपूर्ण कार्य-प्रणाली से सर्वथा अनभिज्ञ किसी अधिकारी को उसके सर्वोच्च पद पर बैठा दिया जाता है, तब उस पूरे मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को उसकी अप्रशिक्षित कार्य-प्रणाली की वजह से नीचा देखना पड़ता है. पिछले तीन सालों से रेल मंत्रालय में भी यही हो रहा है.’
रेलमंत्री ने इरपोफ नेतृत्व को लगाई फटकार
हाल ही में इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (इरपोफ) के शीर्ष नेतृत्व और रेलमंत्री की मुलाकात की फोटो सोशल मीडिया में वायरल हो रही थी. फोटो को देखने मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इरपोफ नेतृत्व दया की भीख मांग रहा है. खबर है कि पूरे पदोन्नति प्रकरण और अदालतों के आदेश के खिलाफ गुहार लगाने वाले इरपोफ नेतृत्व को रेलमंत्री ने आड़े हाथों लिया. बताते हैं कि रेलमंत्री ने उन्हें स्पष्ट कर दिया है कि ‘वह किसी भी स्थिति में रेलवे की छवि को धूमिल नहीं होने देंगे, चाहे इसके लिए नियम बनाना पड़े या किसी को पद से हटाना पड़े. उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि हाई कोर्ट का आदेश उनके लिए सर्वोपरि है.’ इरपोफ नेतृत्व रेलमंत्री से मुंह की खाकर अब रेलवे बोर्ड में मेंबरों के दरवाजे खटखटा रहा है. इरपोफ नेतृत्व को अब तक यह तो समझ ही जाना चाहिए कि पदोन्नति घोटाले के भूत से पूरा रेलवे महकमा डरा हुआ है. आगे कैसी स्थित पैदा होने वाली है, इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं है.
फोटो परिचय : शुक्रवार, 9 जून को रेल भवन में रेलमंत्री के चैम्बर में रेलमंत्री सुरेश प्रभु से पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय और उससे उत्पन्न होने वाली अन्य स्थितियों पर चर्चा करते हुए इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (इरपोफ) के पदाधिकारी बाएं से वित्त सचिव परमेश्वर सेन, महासचिव रमन कुमार शर्मा और सलाहकार जीतेंद्र सिंह.
इरपोफ ने पूरे प्रमोटी कुनबे का भविष्य अंधकारमय किया
कहते हैं कि मनुष्य पद-पैसा, क्षणिक मान-सम्मान और जय-जयकार के लोभ में अपनी आने वाली पीढ़ी के सहज-जीवन को गर्त में डाल देता है. इसका ही सटीक उदाहरण तत्कालीन और वर्तमान इरपोफ नेतृत्व है, जिसने क्षणिक लाभ अथवा पदोन्नति में असंवैधानिक तरीके से प्रमोटी बैच 2010-11 से 2014-15 अर्थात 5 वर्षों के अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में भविष्य में आने वाले सभी प्रमोटी अधिकारियों की पदोन्नति का रास्ते को बंद कर दिया. इरपोफ नेतृत्व ऐसे अनेक ख्वाब दिखाकर विगत 10 वर्षों से अपनी पीठ थपथपा रहा है. यह खेल इरपोफ, आरबीएसएस और रेलवे बोर्ड (त्रिमूर्ति) के तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत और सांठगांठ से होता रहा, जबकि इरपोफ नेतृत्व हमेशा प्रमोटी अधिकारियों के समक्ष वही सुहावनी तस्वीर पेश करता रहा, कि जिससे उसको वाहवाही मिलती रहे. इस प्रकार का अनैतिक गठजोड़ करके पूरे प्रमोटी कुनबे को भारी नुकसान पहुंचाया गया है. जो इस प्रकार है-
1. रेलवे बोर्ड द्वारा अगस्त 2016 में 6 साल पर ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों को सीनियर स्केल में मिलने वाले प्रमोशन के नियम को समाप्त कर दिया गया और इरपोफ नेतृत्व असहाय देखता रहा.
2. डेलॉयट कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 में 32% सीनियर स्केल के पदों को समाप्त कर दिया गया था और इरपोफ नेतृत्व रेलवे बोर्ड में सोफे पर आराम फरमाकर एयरकंडीशन का आनंद लेता रहा. सीनियर स्केल पदों के घटने से रेलवे के सभी विभागों में स्टेगनेशन हो गया है और प्रमोटी अधिकारियों का प्रमोशन लगभग रुक गया है.
3. वर्ष 2016-17 में कैडर रिस्ट्रक्चरिंग के दौरान लगभग 25% जेएजी के पदों को समाप्त कर दिया गया है और इरपोफ नेतृत्व भाषणबाजी तथा मंत्री के साथ फोटो खिंचवाने में मशगूल है. इसका सीधा-सीधा प्रतिकूल असर प्रमोटी अधिकारियों के प्रमोशन पर पड़ने वाला है.
4. पटना हाई कोर्ट ने आर. के. कुशवाहा मामले में दूध का दूध और पानी का पानी अलग कर दिया है. ऐसे में इरपोफ नेतृत्व को सिर्फ पांच पैनल के प्रमोटी अधिकारियों की चिंता सता रही है तथा सुप्रीम कोर्ट से न्याय की झूठी दिलासा दिखाकर उनसे धन उगाही की जा रही है. जबकि अब तक की गई तमाम धन उगाही का कोई हिसाब-किताब नहीं है. इसके साथ ही रेलवे बोर्ड के मेंबर्स के साथ मुलाकात का प्रोपेगंडा करके डूबती हुए ‘टाइटेनिक’ की तरह प्रमोटी कुनबे के सामने मधुर संगीत का तड़का लगाया जा रहा है.
इरपोफ संगठन में पड़ने लगी है दरार
किंकर्तव्यविमूढ़ और दिशाहीन हो चुके इरपोफ नेतृत्व के खिलाफ धीर-धीरे युवा प्रमोटी अधिकारी लामबंद होना शुरू हो गए हैं, जो रसातल में जा रहे प्रमोटी अधिकारियों के भविष्य को बचाने के लिए इरपोफ नेतृत्व में बहुत बड़े उलटफेर की मांग कर रहे हैं. इस पूरे मामले में विगत कुछ महीनों से ‘रेलवे समाचार’ के पास प्रमोटी अधिकारियों के लगातार फोन आ रहे हैं. जिसमें तमाम युवा प्रमोटी अधिकारी कुछ मुद्दों पर चर्चा करके एक सार्थक समाधान निकालने की बात कर रहे हैं, जो निम्न प्रकार से है..
1. इरपोफ को तत्काल भंग कर नई कार्यकारिणी का गठन हो, जिसमें कम से कम 75% प्रतिनिधित्व युवा जूनियर और सीनियर स्केल प्रमोटी अधिकारियों को दिया जाए, जिससे आने वाली प्रमोटी पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए काम किया जा सके.
2. पांचों इंजीनियरिंग विभागों में ग्रुप ‘ए’ के प्रमोटी कोटे में आने वाले कुल पदों में से कम से कम 50% पद बीई/बी-टेक की डिग्री प्राप्त प्रमोटी अधिकारियों के लिए सुरक्षित किए जाएं, जिससे पढ़े-लिखे और काबिल अधिकारियों के आगे आने से रेलवे की उत्पादकता में इजाफा होगा.
‘रेलवे समाचार’ द्वारा इस संपूर्ण ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाला’ प्रकरण पर समयानुसार कई विस्तृत विश्लेषण प्रकाशित किए गए हैं. ये सभी विश्लेषण उपलब्ध तथ्यों और मौजूद दस्तावेजों के आधार पर प्रकाशित किए गए हैं. इस पूरे मामले पर ‘रेलवे समाचार’ ने अपनी स्वतंत्र और निष्पक्ष राय रखी है. एक जिम्मेदार अखबारनवीस और समाचार पत्र होने के नाते हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि रेलवे के सभी वर्गों के कर्मचारियों एवं अधिकारियों को उनका कैडर और उसकी गणना का लेखा-जोखा बताया जाए, जिससे उनमें जागृति पैदा हो और वह किसी बहकावे का शिकार नहीं हों.