उत्तर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल की प्रत्येक गतिविधि की गहन जांच कराई जाए, अस्पताल स्टाफ की मांग
“जितना पैसा सरकार रेफरल और बाहर से पैथालॉजी जांच में खर्च करती है, उससे कम पैसे में रेलवे अस्पतालों को समस्त आधुनिक मशीनों, उपकरणों से सुसज्जित किया जा सकता है। इससे एक तरफ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, तो दूसरी तरफ रेलकर्मियों को उचित और आवश्यक मेडिकल सुविधा मिल सकती है!”
#RailSamachar को दो वीडियो अपने विश्वसनीय स्रोतों से दो दिन पहले प्राप्त हुए हैं। इनमें दो लोग बोतलों के ढ़क्कन खोलकर उनमें भरा सीरप एक बाल्टी में उड़ेल रहे हैं और बाद में उसे सिंक के जरिए नाली में बहाते दिखाई दे रहे हैं। यह दोनों वीडियो उत्तर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल (एनआरसीएच) नई दिल्ली के बताए गए हैं।
पूछताछ किए जाने पर एनआरसीएच के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि “ऐसा लगता है शायद ये दवाईयां कोविड पीरियड में खरीदी गई थीं और अब चूंकि ये एक्सपायर हो गई हैं, तो इनको डिस्कार्ड किया जा रहा है।” उनका कहना है कि “निर्धारित पॉलिसी के अनुसार एक्सपायर हो रही या एक्सपायरी डेट के आसपास की दवाईयों को वापस फार्मा कंपनी को भेजकर नया ताजा स्टाक मंगाया जाना चाहिए।” यही नियम है।
सूत्रों का कहना है कि बाकी ये सच है कि दवाईयां बहुत ज्यादा मात्रा में खरीदी जाती हैं और वह भी सब-स्टैंडर्ड लोकल माल, जो ज्यादा प्रभावी काम नहीं करता, मगर पैसे पूरे दिए जाते हैं। यह सब यहां मिलीभगत से होता है। सूत्रों ने बताया कि एनआरसीएच में आजकल एक डायरेक्टर बैठता है, जिसका हाल ही में घोषित रेलवे बोर्ड अवार्ड की लिस्ट में नाम आया है, उसका भी इस सब में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि एनआरसीएच जैसे अस्पतालों में ऐसे कथित डायरेक्टर लूट में हिस्सेदारी के लिए बैठाए गए हैं, और इसलिए भी कि बोर्ड मेंबर्स और जीएम को प्रोटोकॉल बहुत पसंद है, यह उन्हें बाहर कहीं नहीं मिलता, और न ही बाहर उन्हें कोई भाव देता है।
उनका कहना है कि जबसे वर्तमान चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड ने पदभार संभाला है, तब से यहां एक महिला डॉक्टर की बहुत तूती बोलती है। उसके सामने यहां अस्पताल प्रशासन में किसी की नहीं चलती। सीआरबी का पदभार संभालने के बाद से “बड़े बाबू” ने एनआरसीएच का छह-सात बार दौरा किया है, मगर इससे यहां किसी सुधार का उद्देश्य परिलक्षित होने के बजाय उक्त महिला डॉक्टर को स्थापित करना और अपना खास दर्शाना जाहिर करना ज्यादा था। अत: आवश्यकता इस बात की है कि एनआरसीएच के समस्त कामकाज और आय-व्यय का ऑडिट होना चाहिए।
नाम उजागर न करने की शर्त पर अस्पताल के कई वरिष्ठ पैरामेडिकल स्टाफ का कहना है कि इस समय रेलवे हॉस्पिटल्स में बहुत ज्यादा सुधार की जरूरत है। यह केवल तभी हो सकता है, जब यहां पर मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर करने का सिस्टम खत्म करके रेलवे अस्पतालों को मजबूत किया जाए। उनका कहना है कि सरकार दवाईयों के पैसे तो पूरे के पूरे देती है, लेकिन मरीज फिर भी ठीक नहीं होते, क्योंकि यहां सब-स्टैंडर्ड दवाईयां दी जाती हैं, जिनका केवल चूरन की गोली से ज्यादा महत्व नहीं है। इसीलिए रेलकर्मी प्राइवेट अस्पतालों में जाने को मजबूर होते हैं।
“क्या है एम्पैनल्ड रेफरल अस्पताल का औचित्य?“
उन्होंने बताया कि रेलवे के बड़े अस्पतालों में पेरंबूर के बाद एनआरसीएच दूसरे स्थान पर है, जिसमें हालत ये है कि यहां न तो सीटी स्कैन है और न ही एमआरआई स्कैन की मशीनें हैं। कई बार एक महीने में करोड़ों की तो यहां केवल सीटी स्कैन और एमआरआई हो जाती हैं। उसके सामने फेंकी या नष्ट की जाने वाली दवाईयां तो कुछ भी नही हैं।
उनका यह भी कहना है कि जितना पैसा सरकार रेफरल और बाहर से पैथालॉजी जांच में खर्च करती है, उससे कम पैसे में रेलवे अस्पतालों को समस्त आधुनिक मशीनों, उपकरणों से सुसज्जित किया जा सकता है। इससे एक तरफ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, तो दूसरी तरफ रेलकर्मियों को उचित और आवश्यक इलाज एवं सुविधा मिल सकती है।
उन्होंने कहा कि एनआरचीएच में तो इन सब चीजों को मैनेज करने के लिए बकायदा एक अलग से ऑफिस बना है। उसमें एक यूनियन के बड़े पदाधिकारी साहब ओएस बनकर सालों से यहां बैठे हैं। इन साहब को अलग से सारी टॉप क्लास सुविधाएं दी जाती हैं। ये साहब यहां पर सबसे पावरफुल माने जाते हैं और सुना यह भी है कि इनके बोले गए किसी भी काम को आज तक किसी डॉक्टर या अधिकारी में मना करने का कभी साहस नहीं रहा।
#DrSunitaGupta, #SrDMO/#MCF रायबरेली की कहानी, जिन पर कैंसर की दवाओं की लोकल पर्चेज में करोड़ों के घोटाले का आरोप है।
— RAILWHISPERS (@Railwhispers) December 25, 2021
पूरी भारतीय रेल में सबसे खराब मेडिकल व्यवस्था रेलकर्मियों ने एमसीएफ अस्पताल की बताई है।यहां एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध नहीं है।@RailMinIndia@AshwiniVaishnaw pic.twitter.com/qopykDUVcL
अस्पताल स्टाफ का कहना था कि ये साहब इतने पावरफुल हैं कि इनके डीडीए के दो-तीन बड़े मकान मोतिया खान जैसी पॉश कॉलोनी में हैं। एक मामूली बाबू की हैसियत इतनी नहीं होती है कि वह करोड़ों के मकान ऐसी पॉश जगहों पर खरीद सके। केवल बाहर प्राइवेट हॉस्पिटल में मरीजों को रेफर करवाना, उनके बिलों का भुगतान करवाना, शाम को प्राइवेट हॉस्पिटल के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करके बहुत कुछ मैनेज करना, मरीजों को निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों के हिसाब से उनके हॉस्पिटल में रेफर करवाना और इसके एवज में मोटा कमीशन खाना, बस यही सरकारी जॉब है यहां इन साहब का।
उन्होंने बताया कि यहां ये साहब क्या-क्या करते हैं, किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होती। इन साहब ने अपना घर बदलकर रेलवे का दूसरा बढ़िया घर ले लिया। यह सब खेल यहां बहुत सालों से चल रहा है। अब अगर बात इनकी ड्यूटी की करें, तो ये साहब अपनी ड्यूटी की रोटेशन बराबर बनाकर रखते हैं, जिससे कहीं कोई शिकायत होने पर तुरंत कागज सामने रख दिए जाते हैं। इतनी संवेदनशील सीट पर एक ही व्यक्ति कितने सालों से काम कर रहा है, यह सब रेल प्रशासन को दिखाई नहीं देता। हो सकता है कागजों में ये अपना हिसाब-किताब बराबर रखते हों, इसलिए पकड़ में न आते, लेकिन जिन बिलों पर इन साहब के साइन हैं, वह कैसे बदले जा सकते हैं?
उन्होंने बताया कि इन साहब ने अपनी पत्नी, जो कि एनआरसीएच में ही चीफ नर्सिंग सुप्रिटेंडेंट की पोस्ट पर कार्यरत हैं, को भी डेंटल डिपार्टमेंट जैसे एक मलाईदार विभाग में लगाया हुआ है। ये मोहतरमा भी कई सालों से वहीं काम करती हैं, लेकिन किसी मरीज को इन्होंने आज तक अटेंड नहीं किया। ये वहां पर केवल सामान मंगवाने, उनके बिलों पर साइन करने और यूनियन के काम से घूमने तथा मस्ती करने के काम करती हैं। यहां तक कि इन्होंने रेलवे से स्पॉन्सरशिप लेकर सरकारी कॉलेज से एसएससी नर्सिंग भी कर लिया, जिसका कोई लाभ रेलकर्मियों अथवा अस्पताल को आजतक नहीं हुआ है।
अस्पताल स्टाफ का कहना है कि बाकी ये दवाईयां और लैब जैसे काम तो बहुत मामूली हैं, जो यहां पर धड़ले से होते ही हैं। आज भी अगर सुबह 10 बजे एनआरसीएच की लैब का निरीक्षण किया जाए, तो वहां पर परमानेंट रेलवे स्टाफ से ज्यादा प्राइवेट लैब के टेक्नीशियन बैठे मिलेंगे, जो यहां के मरीजों के सैंपल भी लेते हैं और अपनी लैब का लिए भी ले जाते हैं!
स्टाफ की मांग है कि फार्मेसी, लेबोरेटरी और रेडियो डायग्नोसिस डिपाटमेंट की बकायदा ऑडिट होनी चाहिए कि हर महीने कितनी जांच बाहर से होती हैं और यह यहां पर क्यों नहीं होतीं? जबकि सारी सुविधा यहां पर मौजूद है, डॉक्टर हैं, स्टाफ है, कुछ मशीनें हैं, स्टूडनेट्स है, लेकिन जांच सब बाहर होती हैं। इसका एक ही कारण समझ आता है कि यहां के डॉक्टर्स को प्राइवेट लैब्स द्वारा बड़ा मोटा कमीशन दिया जाता है! उनका कहना है कि यह सारा कमीशनबाजी का खेल उन साहब के माध्यम से खेला जाता है।
उन्होंने बताया कि अस्पताल के डॉक्टर तो खुद इन साहब से पूछकर काम करते हैं। यहां तक वर्तमान एमडी और पहले के जितने भी एमडी रहे, ने भी इन्हीं से मिलकर काम किया है। ये साहब एक फेडरेशन के बड़े साहब के बहुत खासम खास हैं। उन्होंने कहा कि बाकी कहानी फिर कभी बताएंगे!
अब अगर बात प्रूफ की करें, तो प्रूफ के नाम पर कुछ भी नहीं है। हां, लेकिन इन साहब के मकान कहां-कहां हैं, यह जांच करके पता लगाया जा सकता है। इनकी ड्यूटी शानो-शौकत इनके स्पेशल ऑफिस, जो केवल इनके लिए बनाया गया है, को देखकर समझा जा सकता है। इनके रेलवे का आवास लेने के रिकॉर्ड्स से भी पता लग जाएगा कि इन्होंने कुछ साल पहले एक टाइप-2 से टाइप-2 में ही अपना रेलवे आवास चेंज किया था। इसका कारण सर्वज्ञात है। ये साहब यूनियन के पावरफुल पधाधिकारी हैं। इसलिए ये सब कभी पब्लिक डोमेन में नहीं आता है, क्योंकि ऐसा करने की कोई हिम्मत नहीं करता!
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