October 25, 2021

अब शुरू हुई सुनीत शर्मा के एक्सटेंशन/रिएंगेजमेंट की चर्चा!

Suneet Sharma, Chairman & CEO/Railway Board

बतौर चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड जो अधिकारी सात महीने तक जीएम पोस्टिंग करने में अक्षम रहा और नये नियम बनाने की बात कहकर बार-बार मंत्री को गुमराह करता रहा, ऐसे अकर्मण्य अधिकारी को रिएंगेज करके सरकार को क्या हासिल होगा?

पीएमओ और स्वयं प्रधानमंत्री को इस सब की समीक्षा करनी चाहिए और तत्पश्चात व्यवस्था के हित को सर्वोपरि रखकर ही किसी नौकरशाह को एक्सटेंशन देने अथवा रिएंगेज करने का निर्णय लिया जाना चाहिए!

रेलमंत्री को भी इस सबका संज्ञान लेना चाहिए, अन्यथा रेल भवन की राजनीति और तिकड़मबाजी के चलते भारतीय रेल को उत्पादोन्मुख तथा निर्यातोन्मुख बनाने का उनका मुख्य उद्देश्य धरा रह जाएगा!

सुरेश त्रिपाठी

चेयरमैन/सीईओ, रेलवे बोर्ड सुनीत शर्मा के एक्सटेंशन और रिएंगेजमेंट की चर्चा सतह पर आ गई है। हालांकि यह चर्चा तब से रेलवे बोर्ड/रेल भवन के गलियारों में चल रही थी, जब मेंबर फाइनेंस नरेश सलेचा को सेवा विस्तार देने की तैयारी हो रही थी। तब इस बारे में लिखा भी गया था, इस तर्ज पर कि “पहले आप मेरे रिएंगेजमेंट का समर्थन करो, फिर हम आपका करेंगे!” अर्थात पहले तुम मेरी पीठ खुजाओ, फिर हम आपकी खुजाएंगे!

अब इसी तर्ज पर वर्तमान चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड सुनीत शर्मा के भी एक्सटेंशन/रिएंगेजमेंट की चर्चा कुछ चाटुकारों की धूर्ततापूर्ण फीडबैक पर ब्यूरोक्रेसी की गतिविधियों से संबंधित एक वेबसाइट की खबर से सतह पर आ गई है। नरेश सलेचा को रिएंगेजमेंट मिला मंत्री से गांव का नाता जोड़कर – 10 महीने का – अर्थात न इधर के रहे, न उधर के!

चुके हुए और अकर्मण्य नौकरशाहों को सेवा विस्तार (एक्सटेंशन) या पुनर्नियुक्ति (रिएंगेजमेंट) देकर रेल या व्यवस्था का कोई भला हुआ है, ऐसा कहीं नहीं दिखता है, सरकार या मंत्रियों का कुछ भला हुआ हो, तो कहा नहीं जा सकता। तथापि इसके कोई सुपरिणाम भी अब तक सामने नहीं आए हैं, यह सच है।

सर्वप्रथम रेल में इसकी शुरुआत ए. के. मित्तल से हुई थी। उन्हें बतौर सीआरबी दो साल का एकमुश्त एक्सटेंशन/रिएंगेजमेंट दिया गया था। परंतु पहले ही साल में खतौली की भीषण रेल दुर्घटना हो गई। सरकार और रेलमंत्री की बहुत किरकिरी हुई। परिणामस्वरूप रेलमंत्री सुरेश प्रभु और सीआरबी ए. के. मित्तल दोनों को बड़े बेआबरू होकर इस्तीफा देकर जाना पड़ा।

फिर पीएमओ ने अश्वनी लोहानी को सीआरबी और पीयूष गोयल को रेलमंत्री बनाया। लोहानी की गोयल से पटरी नहीं बैठ पाई, क्योंकि दोनों के बीच सेल्फ प्रोक्लेम्ड इंटेलेक्चुअलिटी और सेल्फ पब्लिसिटी की होड़ थी। परिणामस्वरूप मजबूत दावेदारी के बावजूद लोहानी को रिएंगेजमेंट नहीं मिला था।

तत्पश्चात पीयूष गोयल को विनोद कुमार यादव नाम का एक निहायत निकम्मा और अत्यंत तिकड़मबाज रेल अधिकारी मिला। यादव अपनी राजनीतिक पहुंच के बल पर रेलवे में पूरी सर्विस के दौरान हमेशा प्राइम पोस्टिंग में रहे और कभी-भी जमीनी स्तर पर काम नहीं किया था। तथापि राजनीतिक आशीर्वाद और गोयल के फेवर से उन्हें भारतीय रेल के सर्वोच्च पद पर बैठने का अवसर मिल गया।

यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान रेल में जो किया, उससे सरकार अर्थात प्रधानमंत्री के उद्देश्य को ही बट्टा लगा। अगर यादव की तिकड़मबाजी नहीं होती, और गोयल अथवा उनके दलालों का निहित स्वार्थ नहीं होता, तो आज कम से कम पचास वंदेभारत ट्रेन सेट भारतीय रेल की पटरियों पर सफलतापूर्वक दौड़ रहे होते, जो कि अब तक के न केवल सबसे सस्ते ट्रेन सेट हैं, बल्कि विश्व भर की रेल व्यवस्था में भारतीय रेल का डंका बज रहा होता, और इससे ट्रेन सेट के निर्यात का सबसे बड़ा द्वार खुल गया होता।

गोयल और यादव जाते-जाते अपने ही जैसे निकम्मे और अकर्मण्य गुणवत्ता वाले सिपहसालार राहुल जैन को मेंबर ट्रैक्शन एवं रोलिंग स्टॉक (#MTRS) के पद पर अपना प्रतिनिधि बनाकर बैठा गए, जो कि जिस स्पेसिफिकेशन पर दो वंदेभारत ट्रेन सेट बने थे, और जो आज लगभग तीन साल से लगातार बिना किसी बाधा के सफलतापूर्वक दौड़ रहे हैं, उनके निर्माण और उत्पादन में नए स्पेसिफिकेशन को लेकर एक बहुत बड़ी बाधा इसलिए बने हुए हैं, क्योंकि पुराने स्पेसिफिकेशन पर यादव के कहने से जीएम/आईसीएफ रहते हुए वह दो-तीन बार इसका टेंडर रद्द कर चुके थे।

अब राहुल जैन पुराने स्पेसिफिकेशन पर ही वंदेभारत ट्रेन सेट के निर्माण और उत्पादन की सहमति इसलिए नहीं दे रहे हैं, क्योंकि ऐसा करके वह स्वयं फंस जाएंगे, क्योंकि इसी तिकड़मबाजी के चलते यादव और जैन ने दो-तीन बार इसका टेंडर रद्द किया था और पीईडी विजिलेंस के साथ मिलकर उन बारह सक्षम रेल अधिकारियों का कैरियर और भविष्य बरबाद किया, जो वंदेभारत ट्रेन के निर्माण से जुड़े थे।

गोयल और उनके दलालों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई। कागज कुछ भी कह रहे हों, पर सच यही है, जो कि चर्चा में भी है। अब पुनः राहुल जैन ने मंत्री के सलाहकार के नाम पर एक विवाद पैदा करने की कोशिश की और उसके लिए उन्होंने ईडी/एमई/कोचिंग को बलि का बकरा बनाया। अर्थात उनकी तिकड़मबाजी आज भी पूर्ववत जारी है!

अब फिर से वर्तमान चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड सुनीत शर्मा के एक्सटेंशन/रिएंगेजमेंट की चर्चा हो रही है, तो सबसे पहले उनसे और उनकी लॉबिंग करने वाले बाबुओं से यह पूछा जाना चाहिए कि दस महीने के कार्यकाल में सुनीत शर्मा का आउटपुट क्या है? उनकी उपलब्धि क्या है? भारतीय रेल के विकास के लिए इन दस महीनों के कार्यकाल में उनका योगदान क्या है?

क्या भारतीय रेल 23 मार्च 2020 से पहले की पूर्ववत स्थिति में आ गई है? क्या रेल की सामान्य एवं दैनंदिन यात्री शिकायतें उनके प्रयासों से कम हुई हैं? क्या विनोद यादव और पीयूष गोयल का रेल की सालों पुरानी व्यवस्था को बिगाड़ने वाला आईआरएमएस प्लान वह व्यवस्थित रूप से लागू कर पाए हैं? क्या उनके प्रयासों से रेल व्यवस्था में कोई पारदर्शिता आई है? क्या रेल में भ्रष्टाचार पर कोई लगाम लगी है?

क्या वह रेल में संवेदनशील पदों से रेलकर्मियों एवं अधिकारियों के आवधिक स्थानांतरण की नीति लागू करके रेल की प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत कर पाए है? क्या अधिकारियों पर 10/15 साल वाली ट्रांसफर पालिसी लागू कर पाए हैं? क्या वह निर्धारित समय पर जीएम पोस्टिंग और जीएम पैनल सुनिश्चित कर पाए हैं? एक ही जगह, एक ही शहर, एक ही रेल में बीसों साल से जमे अधिकारियों को क्या वह तनिक भी हिला पाए हैं? पीईडी विजिलेंस को अब तक वह क्यों नहीं हटा पाए हैं?

क्या केवल कार्मिक अधिकारियों पर रौब गांठने से और वेबिनार करके रेल की सभी समस्याओं का समाधान हो गया है? दोपहर 12 बजे कार्यालय आकर और रेल का खाना खाकर, रात के 12 बजे तक रेल भवन में बैठे रहने की उपलब्धियां क्या हैं? भारत सरकार का ऐसा कौन प्रिंसिपल सेक्रेटरी है, जो रात के 12 बजे तक काम करता है? कार्यालय में बैठता है? क्या यह वास्तव में अकर्मण्यता की निशानी नहीं है?

भारत सरकार, पीएमओ और स्वयं प्रधानमंत्री को इस सब की समीक्षा करनी चाहिए और तत्पश्चात व्यवस्था के हित को सर्वोपरि रखकर ही किसी नौकरशाह को एक्सटेंशन देने अथवा रिएंगेज करने का निर्णय लिया जाना चाहिए। रेलमंत्री को भी इस सबका संज्ञान लेना चाहिए, अन्यथा रेल भवन की राजनीति और तिकड़मबाजी के चलते भारतीय रेल को उत्पादोन्मुख एवं निर्यातोन्मुख बनाने का उनका उद्देश्य धरा रह जाएगा।

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