August 29, 2021

रेल सेवाओं के निजीकरण के लिए जिम्मेदार हैं यूनियन नेता और रेल कर्मचारी!

अनुपस्थित टिकट चेकिंग स्टाफ से रिश्वतखोरी करके उनकी उपस्थिति लगाने और उन्हें वेतन एवं टीए का फर्जी लाभ देकर रेलवे को चूना लगा रहे लुधियाना के सीआईटी सुरजीत सिंह को जबरन रिटायर तो कर दिया गया, परंतु यह सिलसिला फिरोजपुर मंडल सहित अन्य मंडलों में भी इस या उस रूप में लगातार चल रहा है।

जानकारों का मानना है कि जबरन रिटायर करना कोई दंड नहीं है, बल्कि इस माध्यम से समस्त सेवा लाभ (रिटायरमेंट बेनिफिट्स) देकर सभी आरोपों, गुनाहों, कुकर्मों इत्यादि से संबंधित दोषी कर्मचारी को बाइज्जत बरी कर देना है। जबकि रिश्वतखोरी जैसे सामाजिक अपराधों में लिप्त पाए जाने पर संबंधित कर्मचारी के समस्त सेवा लाभ जप्त कर लिए जाने चाहिए, जिससे दूसरों को इससे कड़ा संदेश मिले।

बहरहाल, फिरोजपुर डिवीजन में चेकिंग स्टाफ का अभी भी प्रॉपर रोस्टर नहीं है। कुछ चहेते दशकों से सिर्फ ओपन चेकिंग ही कर रहे हैं। उनके बारे में वजह ये बताई जाती है कि “वे कमाऊ पूत हैं और रेलवे को तीन-तीन लाख रुपये हर महीने कमाकर देते हैं। आप भी लिखकर दे दो कि हम भी तीन लाख हर महीने कमाकर देंगे, तो आपको भी ओपन स्क्वाड में ले लिया जाएगा।”

उधर जब ऐसा कोई प्रकरण सामने आता है, तब इस बारे में रेलवे बोर्ड कहता है कि “हमारी तरफ से कभी भी टिकट चेकिंग स्टाफ को ऐसा कोई टारगेट नहीं दिया गया है।”

अब देखने वाली बात यह भी है कि जब कोरोना प्रोटोकॉल के दौरान वेटिंग लिस्ट में और बिना टिकट यात्रा करना अथवा करवाना दोनों ही अवैध रहा है, और अभी भी यही प्रावधान लागू है, तब ये कमाऊ पूत तीन-तीन लाख कहां से और कैसे कमाकर दे रहे हैं? क्या लुधियाना का कोई भी बड़ा अधिकारी इन “महाकमाऊ सपूतों” की बनाई हुई हर ईएफटी की जांच कर यह बता सकता है कि ऐसी गलत और गैरकानूनी टिकट काटने वालों पर वे क्या करवाई कर रहे हैं, अथवा अब तक क्या कार्रवाई की है?

इसका दूसरा पहलू यह भी है कि इतना स्टाफ के होते हुए भी लुधियाना हेड क्वार्टर की गाड़ियों के कोच बिना टीटीई के क्यों जा रहे हैं? अगर इसी स्टाफ अर्थात कमाऊ पूतों को गाड़ियों में ड्यूटी पर लगाया जाए, तो किसी स्टाफ को केवल डयूटी दिखाने और टीए कमाने के लिए कोई गलत रसीद भी नहीं काटनी पड़ेगी।

स्टेशन पर परमानेंट डयूटी करने वाले कुछ लोग तो सरेआम यहां तक चैलेंज करते हुए कहते हैं कि “किसी अधिकारी या सीनियर स्टाफ में इतनी हिम्मत नहीं है, जो हमें स्टेशन से हटाकर ऑन बोर्ड ड्यूटी पर लगवा सके।”

सूत्रों का कहना है कि इंचार्ज से लेकर ऊपर तक के बड़े-बड़े अधिकारी यह सब कुछ जानते तो हैं, मगर वास्तव में वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं, क्योंकि स्वयं उन्होंने ही कुछ खास लोगों को दफ्तर में बैठने की वजह बना रखी है, जो उनके लिए हर तरह का काम करते रहते हैं। उन्हें हर तरह की “सुविधा” उपलब्ध कराते हैं।

लुधियाना स्टेशन का एक सत्य यह भी है कि बहुत से लोग टीसी से सीआईटी तक प्रमोट हो गए, मगर उन्होंने कभी-भी किसी गाड़ी में डयूटी नहीं की है। लिखने को तो यहां उनके नाम भी लिखे जा सकते हैं, मगर जब अधिकारी ही सब कुछ देखकर और जानबूझकर आंख-कान बंद किए बैठे हों, तो कोई दूसरा क्या कर सकता है?

अभी हाल ही में दिखावे के लिए कुछ लेडीज स्टाफ और कुछ दूसरे स्टाफ को एकाध गाड़ी में ड्यूटी पर भेजा गया है, जबकि अभी-भी बहुत सारे “सेवादार” स्टेशन पर ही डेरा जमाए बैठे हैं। इनमें से यूनियनों के कुछ तथाकथित नेता भी हैं, जो केवल काम न करना पड़े, इसलिए यूनियनों की शरण लिए हुए हैं। यह हाल सिर्फ लुधियाना में ही नहीं, बल्कि पूरे फिरोजपुर डिवीजन और पूरी भारतीय रेल में भी है।

असंतुष्ट स्टाफ का कहना है कि “किसी को दफ्तर में बिठा रखा है, तो किसी को क्लर्क बना रखा है। इन्होंने टिकट किसी से कभी पूछी नहीं, मगर टिकट चेकिंग का अवार्ड इन्हें मिल जाता है। जब ऊपर के अधिकारी ही अपनी सोच नहीं बदलेंगे, तो नीचे तक किस सुधार की बात हो रही है?”

कुछ दिन पहले ही मंडल कार्यालय से दिखावे के लिए उपरोक्त आदेश जारी किया गया है। जबकि हकीकत में सब को पता है अभी तक ऐसा हो हो रहा है।

कर्मचारियों की कामचोरी और रिश्वतखोरी, यूनियन नेताओं की हरामखोरी और भ्रष्टाचार में उनकी संलिप्तता तथा रेल प्रशासन का उनसे दबकर उनका फेवर किया जाना, यह सब देख-सुनकर सर्वसामान्य आदमी को ऐसा ही लगता है कि “निजी क्षेत्र ही अच्छा है, कम से कम पैसा देकर यथोचित सेवा और सुविधा तो मिल जाती है। अतः रेल की समस्त यात्री सेवाओं का निजीकरण ही कर दिया जाए, तो अच्छा है!”

यह ठीक है कि सभी कार्मिक एक जैसे नहीं हैं, सभी भ्रष्ट भी नहीं हैं, सभी कामचोर भी नहीं हैं, मगर यह भी सत्य है कि रेल की छवि बिगाड़ने और इसके शुरू हुए निजीकरण के लिए भ्रष्ट कामचोर रेलकर्मी और गालबजाऊ-कदाचारी यूनियन पदाधिकारी और तथाकथित नेतागण जिम्मेदार हैं। इसी से बचने के लिए एक नेताजी विभिन्न फोरम में यह कहकर रेल प्रशासन और सरकार को दबाव में लेने की बेलिहाज बेशर्म कोशिश करते हैं कि “रेल कर्मचारी अगर काम नहीं करता है, तो रेल चल कैसे रही है!”

परंतु नेताजी यह भूल जाते हैं कि उनके कामचोर, कर्महीन पदाधिकारियों का अतिरिक्त कार्य बोझ ढ़ोते हुए कर्तव्यशील निष्ठावान कर्मचारियों की कमर झुक गई है और वे समय से पहले बूढ़े हो चुके हैं। यही कारण है कि रेल को निजी हाथों में सौंपने पर बड़ा आंदोलन करने वाले बयान पर नेताजी की चौतरफा थू-थू हो रही है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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