August 8, 2021

“देखो, प्रतीक्षा करो, और पीड़ित रेलकर्मी को अपनी मौत स्वयं मर जाने दो!”

मेडिकल डिपार्टमेंट की अकर्मण्यता और निकम्मेपन के चलते मौत की कामना करते रेलकर्मी!

असाध्य बीमारियों से पीड़ित रेलकर्मी की जिंदा लाश लादकर एक से दूसरे अस्पताल भटकते परिजन

सुरेश त्रिपाठी

मध्य रेल के नवनियुक्त महाप्रबंधक अनिल कुमार लाहोटी को चाहिए कि वह सभी विभागों की अपडेट लेने के बाद पहली फुर्सत में सबसे पहले पीसीएमडी/मध्य रेल का मेंटल चेकअप करवाएं और उनका दिमाग सही करें, क्योंकि मध्य रेल के न जाने कितने कर्मचारी “मेडिकल इन्वैलीडेशन” के मामलों में लंबे समय से कोई यथोचित निर्णय नहीं लिये जाने से जिंदगी और मौत के बीच सालों से जूझ रहे हैं और अब स्थिति यह हो गई है कि उनकी पत्नी और बच्चे ही उनके तुरंत मर जाने की कामना करने लगे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार मेडिकल इन्वैलीडेशन की प्रतीक्षा में ये कर्मचारी बिस्तर पर सालों से पड़े हैं। ईश्वर से अपनी मौत मांग रहे हैं। फिर भी उन्हें मौत नहीं मिल रही है, क्योंकि मांगने मौत नहीं मिलती है। यह सर्वज्ञात है। ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। दो-तीन वर्षों से जिन लोगों को “जीरो वेतन” मिल रहा हो, उनके परिवार का गुजारा कैसे चल रहा होगा, यह सोचकर ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

पता चला है कि मध्य रेलवे में रेलकर्मियों के ऐसे अनेकों परिवार भूखों मरने के कगार पर हैं। अब स्थिति यह है कि उनके परिजनों को तो छोड़िए, उस कर्मचारी की पत्नी ही भगवान से उसके मरने की कामना इसलिए कर रही है कि कम से कम प्रॉविडेंड फंड (पीएफ) और ग्रेच्युटी का पैसा तो मिलेगा। बच्चों के खाली पेट भरने के लिए पेंशन तो मिलेगी। और फिर उसकी जगह किसी एक बच्चे को नौकरी भी मिल जाएगी।

परंतु पीसीएमडी की अकर्मण्यता के चलते महीनों और सालों से अनेकों प्रकार की बीमारियों से बेहाल ऐसे रेलकर्मी कभी अस्पताल में, तो कभी घर में धक्के खा रहे हैं। तथापि मध्य रेलवे के मेडिकल विभाग की राक्षसी प्रवृत्ति के चलते उस कर्मी की जिंदा लाश को लादकर उसके पारिवारिक सदस्य एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते फिर रहे हैं।

पीसीएमडी शायद इस प्रतीक्षा विचारमग्न हैं कि उक्त कर्मी को “मेडिकली अनफिट फ्रॉम ऑल कैटेगरी” करने से तो अच्छा है कि वह स्वयं ही मर जाए? ऐसे में कोई डॉक्टर, कोई रेलवे हॉस्पिटल उस कर्मी को स्वस्थ करने या उसकी जान बचाने के बारे में सोच भी नहीं रहा है।

जानकारों का मानना है कि ऐसे ज्यादातर मामलों में रेलवे के डॉक्टर अर्थात मेडिकल विभाग – “देखो, प्रतीक्षा करो, और पीड़ित रेलकर्मी को अपनी मौत स्वयं मर जाने दो” – का ही रवैया अपनाता है। उनका कहना है कि यही रवैया लगभग सभी जोनल रेलों के मेडिकल डिपार्टमेंट का है।

उनका यह भी कहना है कि “ऐसा इसलिए भी है कि मेडिकल विभाग में डॉक्टरों के आवधिक स्थानांतरण (पीरियोडिकल ट्रांसफर) नहीं होते हैं। इसके चलते उनके अंदर सिस्टम का कोई भय नहीं रह गया है। इस विषय पर रेल प्रशासन को विचार करना चाहिए।”

विचार करके देखें कि यह कितना मर्मांतक वातावरण होगा उस परिवार का, जो अपने आदमी को तिल-तिल करके अपनी आंखों के सामने मरते देख रहा है। उसकी बीमारी और स्वास्थ्य को लेकर दिन-रात मानसिक तनाव में जी रहा है।

ऊपर से वेतन नहीं मिलना उस घर के लोगों को ईश्वर से अपने पति या अपने पिता की मौत की याचना करने को मजबूर कर रहा है। इससे बड़ा अमानवीय कृत्य क्या हो सकता है?

ज्ञातव्य है कि 23 जुलाई 2021 को राज्यसभा में 17 जोनल रेलों में कोरोना पॉजिटिव और कोरोना से हुई रेलकर्मियों की मौतों के आंकड़े प्रस्तुत किए गए। इसमें सबसे ज्यादा रेलकर्मी मध्य रेलवे में कोरोना से मौत का शिकार हुए हैं। जाहिर है कि इस मामले में मध्य रेलवे के हेल्थ डिपार्टमेंट में अक्षमता और अकर्मण्यता का बोलबाला रहा है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पीसीएमडी की अकर्मण्यता और निकम्मेपन का है।

अतः महाप्रबंधक/मध्य रेलवे अनिल कुमार लाहोटी से सद्भावना मुलाकात के दौरान “रेलसमाचार” ने इस अत्यंत आवश्यक एवं मानवीय विषय पर उनका ध्यान आकर्षित किया तथा इस पर जल्द संज्ञान लेते हुए पीड़ित रेलकर्मियों और उनके परिवारों को भूखों मरने से बचाने हेतु पीसीएमडी की यथासंभव जल्दी से जल्दी क्लास लेने की अपील की। श्री लाहोटी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इस पर तुरंत ध्यान देने का आश्वासन दिया है।

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