September 24, 2020

संदीप साइलस के साथ अंततः रेलमंत्री ने किया न्याय

क्या अब संदीप साइलस को मिल पाएगा एएम/ट्रैफिक का पदलाभ!

एक ही मामले में रेलवे बोर्ड और जोनल रेलों में कई-कई फाइलें चलाकर पूरी व्यवस्था तथा उच्च प्रबंधन को गुमराह करते हैं अधिकारी!

सुरेश त्रिपाठी

अपना उल्लू सीधा करने के लिए रेलवे बोर्ड सेक्रेटेरिएट और ट्रैफिक निदेशालय के कुछ तिकड़मी अधिकारी संदीप साइलस के खिलाफ एक ही केस की 6 फाइलें चला रहे थे। इसमें यदि एम. एस. चालिया की भी फाइलें मिला दी जाएं, तो यह संख्या एक ही मामले में 12 फाइलों की हो जाती है।

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय – विभागीय मामला नहीं होने पर किसी अधिकारी के विरुद्ध प्रॉसीक्यूशन नहीं हो सकता – के बाद संदीप साइलस द्वारा पुनः दिए गए ज्ञापन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करके सारा मामला खत्म कर दिया।

ज्ञातव्य है कि पहली फाइल में ही पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु की सिफारिश पर सीवीसी ने रेलनीर से संबंधित कथित घोटाले का मामला बंद कर दिया था।

फिर दूसरी फाइल पर उन्हीं मनगढ़ंत मुद्दों पर रेलमंत्री को गुमराह करके संदीप साइलस और एम. एस. चालिया के खिलाफ प्रॉसीक्यूशन की अनुमति ली गई, ताकि उन अधिकारियों से पहले संदीप साइलस को एचएजी प्रमोशन न मिलने पाए और वह उनसे पहले जीएम अथवा सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड या एडीशनल मेंबर ट्रैफिक न बनने पाएं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व रेलमंत्री द्वारा दी गई प्रॉसीक्यूशन की अनुमति को “विवेक का इस्तेमाल नहीं करने” (नॉन अप्लीकेशन ऑफ माइंड) की कड़ी टिप्पणी करते हुए पूरा मामला खारिज कर दिया था।

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इसके बाद रेलवे बोर्ड विजिलेंस से मिलकर फिर तीसरी फाइल खोली गई। हाई कोर्ट द्वारा केस खारिज करने के बावजूद मामले को कुछ निहित तिकड़मबाजी के चलते बंद नहीं करने दिया गया, ताकि मामला उलझा रहे और संबंधित तिकड़मी अधिकारी विभागीय प्रमोशन भी पा जाए। इस तरह उसके दोनों हाथों में लड्डू रहे और एक मुंह में भी पगुरा रहा था।

फिर चोथी फाइल पर तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक मोहम्मद जमशेद ने अपनी आत्मा की आवाज, जो कि शायद रिटायरमेंट नजदीक आने अथवा रेलवे से हमेशा के लिए बहिष्कृत हो जाने के अहसास से तब तक कुछ जाग चुकी थी, सुनकर जाते-जाते संदीप साइलस एवं एम. एस. चालिया की निलंबन अवधि को सभी आवश्यक बेनीफीट्स के साथ रेगुलराइज कर दिया।

इसके बाद पांचवी फाइल डीओपीटी की लिए खोली गई, ताकि संदीप साइलस पर दुबारा मुकदमा चलाया जा सके। यही नहीं, इसकी अनुमति के लिए मंत्री की टेबल तक संबंधित फाइल पहुंचाने में भी सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड कामयाब रहे।

अब छठवीं फाइल खोली गई सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय पर कि जब कोई विभागीय मामला (डीएंडएआर केस) ही नहीं बनता, तो कोई क्रिमिनल केस भी नहीं चल सकता और प्रॉसीक्यूशन भी नहीं हो सकता।

यहां रेलमंत्री पीयूष गोयल का कथन सही साबित हुआ कि “रेलवे अलग-अलग फाइलों में काम करती है, कोई टीम वर्क नहीं है।” मंत्री का कहना बिल्कुल सही है। यहां एक ही मामले में रेलवे बोर्ड और जोनल रेलों में कई-कई फाइलें चलाई जाती हैं और इस तरह कुछ अधिकारियों द्वारा पूरी व्यवस्था तथा उच्च प्रबंधन को गुमराह किया जाता है।

आखिर में तंग आकर, रेलमंत्री ने दूध का दूध-पानी का पानी किया। सभी 6 फाइलें को मिलाकर जब पढ़ा, तब उन्हें पता चला कि पहली ही फाइल पर अप्रैल 2016 में तीन मेंबर्स, चैयरमैन और खुद पूर्व मंत्री ने माना था कि संदीप साइलस और एम. एस. चालिया दोनों के विरुद्ध तो डिपार्टमेंटल कार्यवाही भी नहीं हो सकती, मुकदमा चलाना तो दूर की बात है।

यही बात इससे पहले सीवीसी ने भी दो बार कही थी। अंततः मंगलवार, 22 सितंबर 2020 पर रेलमंत्री पीयूष गोयल ने अंतिम निर्णय लिया कि “वह भी अप्रैल 2016 में पूर्व रेलमंत्री के फैसले से पूर्णतः सहमत हैं।”

एम. एस. चालिया तो पहले ही रिटायर हो चुके हैं, तथापि उनकी अब तक रोककर रखी गई 20-25 लाख की ग्रेच्युटी का भुगतान रेलवे द्वारा व्याज सहित किया जाना चाहिए।

अब सवाल यह है कि संदीप साइलस को इन बचे हुए कुछ दिनों में क्या उनका उपयुक्त पदभार मिल पाएगा अथवा उन्हें मंत्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए सिर्फ वित्तीय लाभ और रिटायरमेंट बेनीफीट्स से ही संतुष्ट होना पड़ेगा? उल्लेखनीय है कि संदीप साइलस इसी 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड ने रेलमंत्री के निर्णय के तुरंत बाद संदीप साइलस को एचएजी में पदोन्नति दे दी है। अब उन्हें उनका उपयुक्त पद लाभ देने के लिए सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड को ही दो में एक पद (एएम/ट्रैफिक) छोड़ना पड़ेगा। ऐसा माना जाता है कि उपरोक्त तमाम तिकड़मबाजी करके संदीप साइलस को पीछे ढ़केलने की इस साजिश के वही प्रमुख सूत्रधार रहे हैं।

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