August 27, 2020

“अब तक रेल के बारे में देश को कुछ पता ही नहीं था !”

जोनल रेलों और जोनल जनसंपर्क अधिकारियों को अनावश्यक और अनुत्पादक कार्यों तथा बोगस प्रचार में लगाकर रेलवे बोर्ड में बैठकर मौज-मस्ती कर रहे हैं कुछ रिटायर्ड और कुछ निठल्ले जनसंपर्क अधिकारी

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने रेल मंत्रालय को अघोषित रूप से केंद्र सरकार का मीडिया प्रचार तंत्र बना दिया है। इसके अलावा रेल मंत्रालय अपना मुख्य काम – परिवहन (ट्रांसपोर्टेशन) के अतिरिक्त वह सभी काम कर रहा है, जिनका सार्वजनिक यातायात से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है। सोशल मीडिया पर उन चीजों का प्रचार कुछ इस तरह किया जा रहा है, जैसे भारतीय रेल के बारे में अब तक देश में किसी को कुछ पता ही नहीं था। इस ‘महत्वपूर्ण’ कार्य में सभी जोनों/डिवीजनों सहित सभी जोनल जनसंपर्क अधिकारियों को भी झोंक रखा है।

“All CPROs and incharge officers (PR) of Zonal Railways, PUs and PSUs to note that Hon’ble MR will take CPROs VC tomorrow on 25th August, 3 pm. Link will be sent tomorrow.” This message was given to all CPROs of Zonal Railways by DIP/RlyBd.

जहां एक तरफ़ कोरोना महामारी से प्रभावित अन्य देशों ने जान और जहान को ध्यान में रखकर काफी हद तक सफलता पा ली है, वहीं अपने देश में केवल कोरोना पीड़ित और बचाव का ही जिक्र प्रमुखता से किया जा रहा है। तथापि देश भर में कोरोना के मामले 31 लाख की संख्या को पार कर गए हैं।

इसका परिणाम यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था सबसे खराब दौर से गुजर रही है। जीडीपी शून्य से नीचे चली गई है। औद्योगिक विकास ठहर सा गया है। केवल कोरोना के कारण लगभग दो करोड़ से ज्यादा लोगों का रोजगार छिन गया है।

बेरोजगारों की तो बात ही छोड़िए, जिनको रोजगार मिला था, वह भी सड़क पर आ गए हैं। उनके साथ उनसे जुड़े लोग भी बेरोजगार हो गए। सरकार कोरोना से ठीक होने का तो जोर-शोर से प्रचार कर रही है, लेकिन बेरोजगारी को ठीक करने का कहीं कोई जिक्र नहीं है।

दूसरी तरफ रेल द्वारा इस प्रकार का फालतू और बेसबब प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, जैसे कि रेलवे ने कोई बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो, जबकि सर्वसामान्य और सर्वसुलभ ट्रेन ऑपरेशन ठप पड़ा हुआ है। रेल मंत्रालय वह नहीं कर रहा है, जो उसका प्रमुख कार्य है।

जो ट्रेनें चल भी रही हैं, उनमें से हर दिन कोई न कोई स्पेशल ट्रेन विभिन्न राज्यों के प्रतिबंधों के कारण रद्द हो रही है, मगर बातें व्यापार बढ़ाने की हो रही हैं। ऐसा लगता है कि रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड को इस बात का अंदाजा ही नहीं है कि रोड ट्रांसपोर्ट ने उनका व्यापार काफी हद तक हड़प लिया है और आगे भी हड़पने की तैयारी में है।

रेलवे से व्यापार करने वाले व्यापारियों का कहना है कि उन्हें इस वक्त तो रेल सेवा पर बिल्कुल भरोसा नहीं रह गया है, क्योंकि ये कब अपनी सेवाएं बंद कर दें, रद्द कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता, जबकि सड़क यातायात हमेशा चौबीसों घंटे बिना किसी असुविधा के उपलब्ध है।

व्यापारियों का कहना है कि फिलहाल रेलवे से जो प्रमुख व्यापार-व्यवहार हो रहा है, वह भी मजबूरीवश ही किया जा रहा है। जिस दिन उन्हें इसका बेहतर विकल्प मिल जाएगा, उस दिन रहा सहा व्यापार भी रेलवे से विमुख हो जाएगा। रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड भी शायद यही चाहते हैं!

जोनल जनसंपर्क अधिकारियों की व्यथा

भारतीय रेल, देश का एकमात्र ऐसा संगठन है, जहां जनसंपर्क विभाग के अधिकारी जनसंपर्क विभाग के प्रमुख नहीं बन सकते, जबकि जनसंपर्क विभाग की नौकरी के लिए पत्रकारिता में डिग्री/डिप्लोमा अनिवार्य योग्यता है। यह कहना है विभिन्न जोनल रेलों के जनसंपर्क अधिकारियों का।

उनका कहना है कि आज की तारीख में पूरी भारतीय रेल के किसी भी जोनल रेलवे में एक भी सीपीआरओ जनसंपर्क विभाग का नहीं है। सारे दूसरे विभागों से आयातित अधिकारी हैं, जिनके पास न तो जनसंपर्क की कोई विधिवत डिग्री है, न ही इसका कोई अनुभव।

वह बताते हैं कि हद तो यहां तक हो गई है कि कुछ रेलों में जो प्रमोटी सीपीआरओ के रूप में काम कर रहे हैं, वह जनसंपर्क अधिकारियों के सामने इंस्पेक्टर हुआ करते थे, वे दूसरे विभागों में जेए ग्रेड पाकर दूसरे दरवाजे से आकर यहां सीपीआरओ बन ग‌ए हैं और विभाग के सिर पर बैठ ग‌ए हैं।

फिलहाल पूर्व रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे और मेट्रो रेल, कोलकाता में ऐसे ही अधिकारी सीपीआरओ बनकर बैठे हुए हैं। कुछ दिन पहले तक मध्य रेलवे और दक्षिण रेलवे में भी ऐसा ही हाल था।

उन्होंने कहा कि रेलवे में पीआर कैडर को देखने वाला कोई माई-बाप नहीं है, जबकि दूसरे संगठनों में लोग जनसंपर्क विभाग में जीएम तक बड़ी आसानी से बन जाते हैं। क्या दुर्भाग्य है….

उनका कहना है कि “मंत्री जी आठ डिपार्टमेंट का मर्जर करा सकते हैं, जिसका अभी तक न तो सिर का पता है, न ही पांव का, पर अपने ही मंत्रालय के मात्र एक विभाग, वह भी बहुत महत्वपूर्ण जनसंपर्क विभाग का, न तो ट्रैफिक में मर्जर करवा सके, न ही कुछ न्याय करवा पा रहे हैं। प्रमोटी फेडरेशन का एक अदना सा एडवाइजर उन पर भारी पड़ गया। बेचारे मंत्री जी उसके सामने इतने कमजोर और असहाय होंगे, ये तो हम लोगों को मालूम ही नहीं था।”

उन्होंने कहा कि “हम लोगों के लिए अब यह एक कैरियर में प्रमोशन के बजाय एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गया है। लोग पूछते हैं कि आप लोगों का प्रमोशन क्यों नहीं होता है, बाबूओं का भी हो जाता है, वह भी डिप्टी और ज्वाइंट सेक्रेटरी तक बन जाते हैं, पर आप लोग क्यों नहीं बन पाते? उन्हें कोई जवाब देते नहीं बनता!”

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी