August 22, 2020

फार्मेशन में टर्फिंग के बजाय पेवरब्लाक लगाकर 23 करोड़ की फिजूलखर्ची

कोविड-१९ के समय जुलाई-2020 मध्य में पूरी बारात लेकर सामाजिक दूरी का पालन न करते हुए धुरी-लहरामोहब्बत सेक्शन के रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन का निरीक्षण करते सीसीआरएस एस. के. पाठक।

सीसीआरएस निरीक्षण के दौरान उजागर हुआ पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन के अधिकारियों का भ्रष्टाचार

“देश का पैसा क्या तुम लोगों की तिजोरी है, जो इसे अनावश्यक रूप से खर्च कर दिए हो? ये गैरतकनीकी कार्य क्या सिर्फ पब्लिक का पैसा लूटने के लिए किया गया है?” -सीसीआरएस के सवाल

रेलमंत्री को रेलबिक्री, कैडर मर्जर और कार्मिकों की सुविधाएं छीनने इत्यादि के पहले “सुचारु प्रबंधन” से जुड़े सभी तथ्यों का संज्ञान लेना चाहिए !

13 अगस्त 2020 को सीसीआरएस द्वारा पूर्व मध्य रेलवे में कोशी ब्रिज होते हुए सरायगढ़ से कुपहा हाल्ट सेक्शन का निरीक्षण अधिकृत ट्रेन परिचालन के लिए संपादित किया गया। बताते हैं कि काफी समय बाद ऐसा पहली बार हुआ जब सभी संबंधित अधिकारी, सुपरवाइजरों, ठेकेदारों की इस निरीक्षण के दौरान सीसीआरएस द्वारा पूछे गए तकनीकी सवालों के सामने बोलती बंद हो गई। सीसीआरएस ने साफ शब्दों में कहा कि “ये गैरतकनीकी कार्य क्या सिर्फ पब्लिक का पैसा लूटने के लिए किया गया है? मैं इस भ्रष्टाचार के संबंध में रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेजूंगा और पूछूंगा कि लाइन के दोनों ओर फार्मेशन का निर्माण एक समान चौड़ाई में क्यों नहीं सुनिश्चित कराया गया है?”

फार्मेशन के दोनों तरफ स्लोप पर घास (टर्फिंग) के बदले पेवर ब्लॉक लगाकर लगभग 23 करोड़ रुपए से अधिक की फिजूलखर्ची और अनावश्यक उपयोग पर तकनीकी रूप से इसकी कोई जरूरत नहीं होने के बाद भी लगाए जाने पर सीसीआरएस ने भारी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि “देश का पैसा क्या तुम लोगों की तिजोरी है, जो इसे अनावश्यक रूप में लगा दिए हो।”

बताते हैं कि सीसीआरएस ने सभी उपस्थित अधिकारियों, सुपरवाइजरों और ठेकेदारों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि “जब बगल में एनएचएआई की सड़कों के दोनों तरफ घास लगी हुई तुम सभी को दिख रही है, फिर भी एक बार भी किसी ने इस संबंध में विचार क्यों नहीं किया कि आखिर इस फिजूलखर्ची का औचित्य क्या है? जांच एजेंसियों का भी क्या तुम लोगों को कोई भय नहीं रह गया है?”

सरायगढ़ स्टेशन पर कॉलम की घटिया ढ़लाई-स्ट्रेटनेस नहीं होना और स्टील प्लेट की शटरिंग के उपयोग के बदले प्लाई/लकड़ी की शटरिंग के उपयोग पर भी सीसीआरएस ने काफी नाराजगी जताई। वे बार-बार यही कहते सुने गए कि जो अधिकारी एक कॉलम भी ठीक ढ़ंग से नहीं बनवा सकता है, वह ब्रिज कैसे बनाया होगा?

इसी तरह उन्होंने फार्मेशन की चौड़ाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि “यह रेल लाइन के दोनों तरफ एक समान क्यों नहीं है? यह आखिर अंदर क्यों है? यह सारे तथ्य तुम लोगों की लापरवाही को प्रत्यक्ष दर्शा रहे हैं।” उन्होंने सामने खड़े अधिकारियों से सीधा सवाल किया कि “जब फंड की कमी बता रहे हो, तो यह अतिरिक्त अनावश्यक निर्माण कराने की जरूरत क्या थी? इस अतिरिक्त निर्माण पर खर्च हुई राशि की कटौती तुम सबके वेतन से क्यों नहीं करवाई जानी चाहिए?”

सीसीआरएस ने उपस्थित अधिकारियों से यह भी कहा कि “इन सभी अमानक कार्यों को प्लास्टर से ढ़ककर किसी धोखा देना चाहते हैं? ये रेलपोस्ट तीन मीटर से अधिक की दूरी पर क्यों लगाया गया है?” रेल निर्माण और रखरखाव से जुड़े रेलकर्मियों का कहना है कि “उपरोक्त स्थितियों को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि सीआरएस/पूर्व सर्कल द्वारा संपादित सभी ऑथराइजेशन वाले सेक्शनों का सीसीआरएस से दुबारा इंस्पेक्शन कराया जाए और जांच एवं कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।”

पता चला है कि सीसीआरएस की उपरोक्त तमाम तरह की कड़ी फटकारों से पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में सीसीआरएस निरीक्षण के दिन से हंगामा मचा हुआ है। सूत्रों का कहना है कि अब सीएओ/सी/नार्थ “क्वालिटी फर्स्ट” की रट लगाए हुए हैं, जबकि उपरोक्त स्थितियों के मद्देनजर इससे पहले वह सीआरएस/पूर्व सर्कल की कृपादृष्टि से जिन सेक्शनों का ऑथराइजेशन मेनीपुलेट करने में सफल हो गए थे। जबकि जानकारों के अनुसार यात्री और रेल संरक्षा के दृष्टिकोण से सीआराएस/पूर्व सर्कल द्वारा किए गए सभी सेक्शनों का सीसीआरएस से पुनः निरीक्षण कराया जाना आवश्यक है। इसके बाद ही उन पर ट्रेन संचालन किया जाए।

जानकारों ने यह भी कहा कि यदि पीएमओ और रेलमंत्री रेल संरक्षा और निर्माण गुणवत्ता की सुनिश्चितता चाहते हैं, तो उन्हें सीआरएस/पूर्व सर्कल, मध्य सर्कल, पश्चिम सर्कल इत्यादि द्वारा अब तक किए गए सभी रेलखंडों का दुबारा निरीक्षण करने का आदेश सीसीआरएस को देना चाहिए। हालांकि जानकारों ने सीसीआरएस भी निष्ठा और ईमानदारी पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।

कोविड-१९ के समय जुलाई-2020 मध्य में पूरी बारात लेकर सामाजिक दूरी का पालन न करते हुए धुरी-लहरामोहब्बत सेक्शन के रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन का निरीक्षण करते सीसीआरएस एस. के. पाठक। सीसीआरएस का मुख्यालय लखनऊ से दिल्ली करा लेने वाले आईआरएसई-1986 बैच के सीसीआरएस पाठक जी पर रेल अधिकारियों का आरोप है कि उन्हें निरीक्षण के समय कम से कम पांच सौ आदमियों को अपने सामने देखे बिना चैन नहीं मिलता।

भारतीय रेल के कुछेक को छोड़कर लगभग सभी उच्च अधिकारी “यसमैनशिप” पर चल रहे हैं। खुद की सोच और अपने दीर्घ अनुभव को उन्होंने गिरवी रख दिया है। नई लाइनों, डबलिंग आदि का सीआरएस प्रायोजित सिंडिकेट के माध्यम “लेन-देन नीति” के तहत हो रहा है। जहां “मैडमों” अथवा बाहरी लोगों का अनाधिकार और अनावश्यक हस्तक्षेप होगा, वहां व्यवस्था का चौपट होना निश्चित होता है। यही वजह है कि गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन की सोच अब पुरानी बातें हो गईं हैं।

सीआरएस तब निरीक्षण की तारीख देंगे, जब जीएम अथवा सीएओ के निर्देश पर उनके मातहत जाकर सीआरएस कार्यालय में हाजिरी लगाएंगे। मनचाही डेट, डॉक्यूमेंट्स की स्क्रूटनी सिर्फ दिखावा मात्र रह गया है। रेल मंत्रालय से धोखाधड़ी करते हुए सिर्फ लाइन ओपनिंग की धूर्ततापूर्ण सोच से काम किया जा रहा है।

रेलवे सतर्कता संगठन रीढ़विहीन होकर भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। जांच के प्रति कोई गंभीरता नहीं है। परिणामस्वरूप घटिया निर्माण की अधिकता हो गई है। सिर्फ लीपापोती और कमीशन के लिए काम किया जा रहा है। एडवांस टेंडर करने का क्या औचित्य है, यह पूछने वाला कोई नहीं रह गया है। सभी जोनल निर्माण संगठन ठेकेदारों और निर्माण संगठनों के सुप्रीमो या जीएम की मुट्ठी में जकड़ गए हैं। इन्हें खत्म कर देना ही अब शायद रेल हित और देश हित में होगा।

गुणवत्ताविहीन कार्य संपादन पद्धतियों का संरक्षण ऊपर से किया जा रहा है। सिर्फ मीडिया-सोशल मीडिया में प्रगति का बखान करके रेलमंत्री और प्रधानमंत्री की नजरों में आने का कुटिल उद्देश्य प्रमुख हो गया है। जबकि ऊपरी संरक्षण के चलते ही निर्माण संगठनों में वर्षों से पुनःपुन: पोस्टिंग और पदोन्नति के बाद उच्च पदों पर पुनः उसी कार्यालय और कार्यभार पर पदस्थापना को बरकरार रखने का औचित्य आज तक रेल मंत्रालय सिद्ध नहीं कर सका है। परंतु दीर्घावधि पोस्टिंग के मामले में मंत्री को बरगलाने में हर बार सफल होता रहा है।

रेलमंत्री को रेलबिक्री, कैडर मर्जर, कार्मिकों की सुविधाएं छीनने इत्यादि के पहले “सुचारु प्रबंधन” से जुड़े उपरोक्त सभी तथ्यों का संज्ञान लेना चाहिए।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी