July 18, 2020

देर आए ! दुरुस्त आए !!

Indian Railways' Head Qs, Rail Bhavan, New Delhi

रेलवे विजिलेंस की आंख खोल देने वाली सच्चाई !

“विजिलेंस माफिया” की कठपुतली बन चुका है सीवीसी, विभागीय विजिलेंस और पूरा प्रशासनिक तंत्र

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड ने शुक्रवार, 17 जुलाई को अब तक के सबसे भ्रष्ट, कदाचारी और कुख्यात इंवेस्टीगेशन इंस्पेक्टर (आईआई) को उसके गैंग के दो सदस्यों के साथ रेलवे बोर्ड विजिलेंस से तुरंत प्रभाव से बाहर (स्पेयर) करने का आदेश जारी कर दिया। इसके लिए निश्चित ही रेलवे बोर्ड धन्यवाद का पात्र है। अचानक और किसी को कानों-कान खबर न लगने देकर रेलवे बोर्ड द्वारा उठाए गए इस कदम से विजिलेंस माफिया और उसके तमाम दलाल तंत्र में भारी हड़कंप मच गया है।

ज्ञातव्य है कि यह तीनों ही उत्तर रेलवे के ‘नूर’ हैं। फील्ड में कर्मचारी इनके लीडर के नाम को “रेलवे बोर्ड” का पर्याय मानते थे और इनके दलाल चमचागीरी में कर्मचारियों को यह कहकर हड़काते थे कि “रेलवे बोर्ड” मतलब “आरबी” ही है, यानि तुम्हारे लिए वही सब कुछ है। निस्संदेह, “आरबी” और उसके दोनों गुर्गों को रेलवे बोर्ड विजिलेंस से तुरंत बाहर किए जाने की यह खबर जब विभिन्न जोनल रेलों में पहुंचेगी, तो हजारों रेल कर्मचारी खुशियां मनाएंगे, क्योंकि इस माफिया चांडाल चौकड़ी के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दोहन तथा ब्लैकमेलिंग से बुरी तरह संत्रस्त रहे हजारों रेलकर्मियों को अब शायद मुक्ति मिलेगी।

अब जरूरत इस बात की है कि इस “आरबी माफिया” के पूरे कार्यकाल में किए गए कार्यों की सघन जांच कराई जानी चाहिए। इनके मोबाइल की सीडीआर तुरंत निकाली जाए और उसकी जांच की जाए, जिससे इनके पूरे करप्ट नेटवर्क का बहुत बड़ा भंडाफोड़ हो सकता है। पश्चिम रेलवे के स्टाफ ने बताया कि ग्रांट रोड और मुंबई सेंट्रल में टिकट चेकिंग स्टाफ के टीए फर्जीवाड़े के बड़े चर्चित केस में अभी विजिलेंस से बाहर निकले गए “आरबी” के नाम से कुख्यात इस माफिया ने कैसे एक बड़ी डील की थी, और साथ ही आगे का भी हफ्ता बांध लिया था। इसी वजह से इतना बड़ा और संवेदनशील मामला जिस मुकाम पर पहुंचना चाहिए था, नहीं पहुंच पाया। कर्मचारी बताते हैं कि उस केस की भी फिर से किसी निष्पक्ष, तटस्थ और ईमानदार इंस्पेक्टर से गहराई से रिव्यू जांच कराई जाए, तो पूरे मामले की सारी सचाई सामने आ जाएगी। बहुत जल्दी ही इस माफिया गिरोह से जुड़े सभी जोनल रेलवे विजिलेंस में, फील्ड में और रेलवे बोर्ड में बैठे इनके सहयोगियों एवं इस पूरे माफिया गैंग के सभी सदस्यों का नाम भी उजागर किया जाएगा।

रेलवे बोर्ड में ही बने रहने की जुगाड़ शुरू

हालांकि खबर यह भी है कि पर्दे के पीछे के अपने मददगारों के सहयोग से इन तीनों ने रेलवे बोर्ड में ही रुकने की जुगाड़ लगानी शुरू कर दी है, क्योंकि इनको पता है कि अगर ये फील्ड में गए, तो इन्होंने फील्ड में कर्मचारियों पर जितना अत्याचार और ब्लैकमेल किया है, उसका कच्चा चिट्ठा वे सब साक्ष्य के साथ खोलना शुरू कर देंगे।

उत्तर रेलवे, उत्तर पश्चिम रेलवे, मध्य रेलवे और पश्चिम रेलवे आदि जोनों के कई स्टाफ, जिसमें महिला कर्मचारी भी शामिल हैं, बताते हैं कि इनके सताए कई स्टाफ ने इनकी कॉल रिकॉर्डिंग, एमएमएस, व्हाट्सएप स्क्रीन शॉट संजो कर रखे हैं, जो इनकी ऐय्याशी, ब्लैकमेलिंग और अवैध उगाही के लिए योजना बनाकर ईमानदार अधिकारियों के खिलाफ फर्जी कंप्लेंट करवाना, योजनापूर्वक रेलकर्मियों को फंसाना, कंप्लेंट का भय दिखाकर हर तरह से उनका दोहन करना, मनबढ़ई, गाली-गलौज करना, उच्च अधिकारियों के नाम से धमकी और वसूली, पीने के बाद आपे से बाहर होकर अपने सारे दोस्त-दुश्मनों के नाम गिनाना आदि के नंगे सबूत उनके पास मौजूद हैं। उनमें से कुछ मजबूत सबूत “रेलसमाचार” के पास भी उपलब्ध हैं।

इसीलिए यह शातिर तिकड़ी अपने शुभचिंतकों से अपनी पूर्व सेवा के प्रसाद के तौर पर हरसंभव तरीके से बोर्ड में ही कहीं एडजस्ट होने का प्रयास करने की जुगत में जुट गई है, जिससे बोर्ड में होने का प्रभाव दिखाकर लोगों को धमका सके और हाथ-पैर जोड़कर या माफी मांगकर अथवा साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर साक्ष्यों को सामने आने से रोक सके और इसके साथ ही अपना पुराना वसूली रैकेट भी बदस्तूर जारी रख सके। “शायद यही इनके सहभागी और संरक्षकों को भी सूट करेगा, क्योंकि तब कुछ ऐसे भी नाम और चरित्र सामने आएंगे, जो सबको अचंभित कर सकते हैं”, यह कहना है रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का!

इसीलिए बिना देर किए इस तिकड़ी ने अपने गिरोह के गुर्गों के माध्यम से फील्ड में यह मैसेज भी देना शुरू कर दिया है कि “उन्हें रेलवे बोर्ड विजिलेंस से हटाया नहीं गया है, बल्कि वह एक माह की छुट्टी पर गए हैं और लौटकर आने पर बोर्ड में उन्हें इससे भी बड़ी जिम्मेदारी दी जाने वाली है।”

यह तो सही है कि इन्हें रेलवे बोर्ड विजिलेंस से हटाए जाने के बाद इनकी माफिया रिंग का ही कोई अधिकारी होगा, जो इन्हें बोर्ड में अपने साथ रखने की हिमाकत करेगा। सूत्रों के हवाले से खबर यह भी है कि इन्हें रेट्स सेक्शन में एडजस्ट करने की बात रेलवे बोर्ड विजिलेंस के ही एक ईडी ने कही है। यदि वास्तव में ऐसा होता है, तब उक्त ईडी के नाम का भी खुलासा किया जाएगा, और तब पूरे बोर्ड को यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि वास्तव में इस महाभ्रष्ट तिकड़ी का असली संरक्षक कौन है!

जोनल विजिलेंस अधिकारियों की पोस्टिंग्स को प्रभावित करते हैं आईआई

“आरबी” सहित एक्सटेंशन पर चल रहे आईआई/रे.बो. किस तरह जोनल रेलों के सीवीओ/ट्रैफिक की पोस्टिंग को प्रभावित करते रहे हैं, उसकी बानगी उत्तर रेलवे में सीवीओ/ट्रैफिक की पोस्टिंग को लेकर खड़ा किया गया विवाद एक उदाहरण मात्र है। इनका ऐसा दुस्साहस हो भी क्यों न, आखिर इनका विजिलेंस का अनुभव किस काम आएगा? किस तरह से कंप्लेंट करना है, किस माध्यम से करना है, कैसे करना है, जिससे एक ईमानदार अधिकारी के बारे में लोग सशंकित हो जाएं और उक्त ईमानदार अधिकारी अथवा कर्मचारी का नुकसान हो जाए, यही सब तो यह शातिर आईआई/विजिलेंस, रेलवे बोर्ड में रहकर करते और सीखते हैं।

उत्तर रेलवे में जानने वालों को बखूबी पता है कि सीवीओ/ट्रैफिक की पोस्टिंग के मामले में कंप्लेंट से लेकर कई ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ लगातार कई फर्जी कंप्लेंट व्यक्तिगत हित नहीं सधने के कारण इन लोगों के द्वारा ही करके रखी गई हैं। इस कंप्लेंट सहित ऐसी तमाम कंप्लेंट्स की ड्राफ्टिंग किस अधिकारी द्वारा की जाती है, उसका भी खुलासा जल्दी ही किया जाएगा।

खबर है कि उत्तर रेलवे, खासकर दिल्ली मंडल के कुछ पार्सल/गुड्स डिपो के कई इंचार्ज तो इनकी कोरोना काल मे भी वसूली और दारू के साथ अन्य कई नाजायज मांगों से इतने त्रस्त हो चुके हैं कि इनके बोर्ड से हटने की खबर के तत्काल बाद सबूतों के साथ इनकी सामूहिक शिकायत करने का मन बना चुके हैं।

यह माफिया बड़े शातिर तरीके से माइंड गेम खेलता है। इसके चलते कई बड़े अधिकारी भी इनके इस जाल में फंसकर जाने-अनजाने वैसा ही करते हैं, जैसी प्लानिंग इन लोगों ने बना रखी होती है। इसीलिए कई बार जब तक सच्चाई उन तक पहुंच पाती है, तब तक उनके हाथों कोई निर्दोष मारा जा चुका होता है।

इनका माइंड गेम ऐसा होता है कि ये जिसको गलत दिखाना चाहते हैं, वह बड़े अधिकारी (जो मामले का निस्तारण करते हैं) भी इन्हीं के चश्मे से देखना शुरू कर देते हैं। लेकिन अधिकांश अधिकारी इनका खेल नहीं समझ पाते हैं। भले ही लाख स्मार्ट होने के बावजूद ठीक वैसे ही जैसे कोई हिप्नोटाइज होने पर हो जाता है। लेकिन जो हिप्नोटाइज होने का नाटक तो करता है, परंतु वस्तुतः वैसा होता नहीं है, वही इनकी हकीकत को पकड़ पाता है और इन पर नकेल डालने में सक्षम होता है।

ऐसे भस्मासुरों को पालते हैं भ्रष्ट अधिकारी और भ्रष्ट व्यवस्था

रेलवे के सभी कर्मचारी और अधिकारी इस बात को खूब अच्छी तरह जानते और मानते हैं कि बाहर वाले माफियाओं से ज्यादा खतरनाक और रेलवे का नुकसान रेलवे की विजिलेंस और इसके द्वारा पाले-पोसे गए माफिया से ही हो रहा है। रेलवे विजिलेंस को अधिकारी नहीं, बल्कि विजिलेंस इंस्पेक्टर चलाते हैं और इनका साथ देता है बोर्ड और जोनल विजिलेंस में सालों से जमा हुआ क्लेरिकल स्टाफ।

भले ही रेलमंत्री, रेलवे बोर्ड से अधिकारियों और कर्मचारियों की छटनी करते जा रहे हों और एचएजी अफसर तक नहीं बख्शे गए हों, जो अपने कार्यकाल से पहले ही चलता कर दिए गए, लेकिन रेलमंत्री के आदेश को भारतीय रेल के सबसे बड़े माफिया यानि आईआई/विजिलेंस, रे.बो., जिनसे रेलवे के सभी अधिकारी और कर्मचारी कलपते हैं, भय खाते हैं, और हमेशा दहशत में रहते हैं, वह सब इस नियम से परे जान पड़ते हैं।

इतना ही नहीं, जिसकी जितनी बड़ी वसूली, उसका उतना ही लंबा एक्सटेंशन, और पुनः रेलवे बोर्ड में ही दूसरी किसी बड़ी कमाऊ जगह पर “सुनिश्चित रोजगार गारंटी योजना” (अश्योर्ड एम्प्लायमेंट गारंटी स्कीम) यानि “सुनिश्चित विशेष पद आरक्षण व्यवस्था” के तहत अगले 5 साल के लिए पोस्ट पारितोषिक के तौर पर रोक कर रखी जाती है। जैसे पश्चिम रेलवे, मध्य रेलवे और उत्तर रेलवे के अलावा अन्य रेलों में भी कुख्यात तथा अत्यंत चर्चित “आरबी” के लिए उत्तर रेलवे, अंबाला मंडल के टिकट चेकिंग संवर्ग से आए आईआई के लिए पिछले डेढ़ साल से रेलवे बोर्ड के सीटीसी स्क्वाड में जगह आरक्षित करके रखी गई है और तब से इसके प्रभाव में जानबूझकर रेलवे बोर्ड विजिलेंस में आईआई का चयन नहीं हुआ है, जिससे कि “वैकेंसी” का बहाना बनाकर और इन्हें रेलवे बोर्ड विजिलेंस में बनाए रखकर इनकी “अतिविशेष योग्यता” का लंबे समय तक लाभ लिया जा सके!

आपसी समझौते के तहत परस्पर बांट लेते हैं जोन

यह एक देखी-परखी सच्चाई है कि रेलवे बोर्ड के आईआई आपस में परस्पर समझौते के तहत जोन बांट लेते हैं। एक के पास दो से तीन जोन तक भी हो सकते हैं। अगर कोई दूसरा आईआई उसके जोन में चेक करेगा, तो उसे पता होता है कि इस जोन में किसको नहीं छेड़ना है और किस पर घात (ट्रैप) लगाना है। हर जोन का क्षत्रप आईआई ही अपने जोन में जाने वाले आईआई या अधिकारियों का पूरा ख्याल सुनिश्चित करवाता है।

दूसरों की सूचना एकत्र करने, उनकी जानकारी निकालने और उन पर नजर रखने वाला विजिलेंस विभाग अगर अपने इंस्पेक्टरों पर ही सूचना एकत्र कर ले, तो रेलवे का बहुत बड़ा कल्याण हो जाएगा और तब पता चलेगा कि जिनको भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लाया गया था, वे सब भ्रष्टाचार, ब्लैकमेलिंग और निरंकुश अनाचार, अत्याचार, शोषण तथा उत्पीड़न के गढ़ बन गए हैं।

नई चयन प्रक्रिया/परीक्षा नहीं पूरी होने देते आईआई

और तो और दूसरे की गाहे-ब-गाहे जबाबदेही तय करने वाला रेलवे बोर्ड विजिलेंस ऑर्गनाइजेशन पर येन केन प्रकारेण अपने कुख्यात, भ्रष्ट और ब्लैकमेलर आईआई को एक्सटेंशन पर रखने का खुमार इस कदर छाया हुआ था कि रेलवे बोर्ड में ट्रैफिक विजिलेंस के आईआई के चयन के लिए जनवरी में हुई परीक्षा का परिणाम अप्रैल में आता है और सिर्फ व्यक्ति विशेष को एक्सटेंशन पर बनाए रखने की चाहत या बाध्यता में कोरोना का बहाना लेकर साक्षात्कार और फाइनल रिजल्ट की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं की गई है। यहां लिखित परीक्षा का परिणाम एग्जाम संलग्न है।

उल्लेखनीय है कि एक बार पहले भी एक्सटेंशन प्राप्त माफिया इस परीक्षा का पर्चा पैसा लेकर अपने चहेतों को बांट चुका था। नाम उजागर न करने की शर्त पर विभिन्न रेलों से शामिल योग्य और ईमानदार कैंडिडेट्स इस बार भी आईआई/रे.बो. की मलाईदार चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पर्दे के पीछे से निर्धारित बताते हैं और यह भी बताते हैं कि कुछ डील पर्दे के पीछे अभी पूरी नहीं हो पाई है। जानने वाले इसका ठेका एक्सटेंशन प्राप्त आईआई उर्फ “आरबी” के पास बताते हैं, जिसे कल पीईडी/विजिलेंस ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है, जिसकी वजह से कोरोना का बहाना बनाकर रिजल्ट फाइनल करने में सुनियोजित विलंब किया जा रहा है।

जहां रेलमंत्री, सीआरबी और जीएम आदि से लेकर छोटे-बड़े अधिकारी और कर्मचारी भी वेबिनार के माध्यम से सेमिनार, कांफ्रेंस, ट्रेनिंग क्लासेज, व्यक्तिगत काउंसेलिंग, मीटिंग, साक्षात्कार आदि कर रहे हैं और पार्टियों से भी मीटिंग तथा संवाद बनाए हुए हैं, वहीं पता नहीं विजिलेंस इंस्पेक्टर जैसे अति संवेदनशील पदों की चयन प्रक्रिया क्यों नहीं पूरी की जा सकती है? जब हर जगह, हर जोन में कार्मिक विभाग स्क्रीनिंग की प्रक्रिया पूरी कर सकता है, मेडिकल जैसे विभागों में भी कैंडिडेट्स का साक्षात्कार हो सकता है, तो सभी विभागों को नियम-कानून, टाइमलाइन, डिले आदि पर पाठ पढ़ाने वाला विजिलेंस ऑर्गनाइजेशन अपना घर कब साफ करेगा?

अपना घर साफ नहीं करता रेलवे विजिलेंस ऑर्गनाइजेशन

जो विजिलेंस अति निष्ठुरता से हर साल, 4 साल से ज्यादा संवेदनशील पोस्टों पर पोस्टेड किसी भी कर्मचारी को हटाकर दूसरी जगह ट्रांसफर करने का फरमान जारी करता है, वही अपने घर में इस नियम का मखौल उड़ाकर खुलेआम नंगा नाच करता है। जबकि फील्ड में स्टाफ और ब्रांच अफसरों दोनों की कोई न कोई बाध्यता हो सकती है उस जगह पर रहने की और रखने की भी, लेकिन विजिलेंस उनके लिए जीरो टॉलरेंस अपनाता है और अगर इन्हीं के माफिया आईआई या वीआई की शागिर्दी और शह पर ही इनका कोई शागिर्द 4 साल से ज्यादा रखने के लिए उसके ब्रांच ऑफिसर की कंप्लेंट कर दे, तो वो बेचारा वह ब्रांच अफसर शार्तिया परेशानी में फंस जाएगा, भले ही उसका आगे चलकर भाग्य से या किसी भले मानुस की वजह से कुछ नुकसान न हो।

लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण मगर कटु सच्चाई है कि विजिलेंस अपने लिए दोहरा चरित्र रखता है। यह हकीकत है कि “रेलवे विजिलेंस” अपने इसी दोहरे चरित्र और कदाचारी विजिलेंस इंस्पेक्टर्स के चलते रेलवे स्टाफ के बीच सबसे दुर्दांत और घृणित संस्था बन चुकी है। रेलवे की व्यवस्था को बखूबी जानने वाले जानते हैं कि विजिलेंस के उत्पीड़न से बचने के लिए ही अधिकांश वरिष्ठ और भ्रष्ट कर्मचारी यूनियन ज्वाइन करके उनका शेल्टर लेते हैं।

ऐसा नहीं है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस के सारे आईआई भ्रष्ट और माफिया ही हैं, इसमें कुछ ईमानदार लोग भी आते हैं, लेकिन वे माइनॉरिटी में होते हैं। वे या तो चुपचाप बिना एक्सटेंशन के अपना कार्यकाल पूरा करके वापस चले जाते हैं अथवा माहौल देखकर समय से पहले ही अपने पैरेंट कैडर/रेलवे में लौट जाते हैं।

जबकि बिना अपवाद के 4 साल में अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर का फरमान जारी करने वाला विजिलेंस का सत्य इसके एकदम विपरीत है। रेलवे बोर्ड विजिलेंस और जोनल विजिलेंस पलटकर भी अपने घर में नहीं देखते हैं, जिससे कि पहले अपने घर में ही सफाई करने के बाद मंडलों को 4 साल बाद संवेदनशील पोस्टों से लोगों को हटाने का फरमान जारी करते?

अब तक की यह सच्चाई है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस में प्रायः उसी आईआई को एक्सटेंशन मिलता है, जो छटा हुआ माफिया होता है। एक और सच्चाई फील्ड में सभी को पता है, वह यह कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस ट्रैफिक के इन माफिया आईआई की मंथली उगाही लाखों में होती है, और सुरा-सुंदरी जैसी अन्य अवैध सुविधाएं इसके अलावा होती हैं! इसीलिए अति महत्वाकांक्षी स्टाफ रेलवे बोर्ड विजिलेंस सहित जोनल विजिलेंस में पहुंचने के लिए हरसंभव तिकड़म भिड़ाता है और इसके लिए अपनी हर चीज दांव पर लगा देने के लिए तत्पर रहता है।

उल्लेखनीय है कि विजिलेंस में पहुंचने के बाद जब इनकी और इनके अधिकारियों की ट्यूनिंग बैठ जाती है, तब इनका प्रोजेक्शन अत्यंत ही मेधावी, प्रभावी, हार्ड वर्किंग, ऑनेस्ट आदि कहकर किया जाता है, जिससे इनके “एक्सटेंशन” की भूमिका पहले से ही तैयार हो जाती है। यदि कोई स्वतन्त्र जांच एजेंसी इन तथाकथित आईआई या विजिलेंस इंस्पेक्टरों के पूरे कार्यकाल के कार्यों का फील्ड से फीडबैक लेकर परीक्षण करे, तो इस सबसे बड़े ब्लैकमेलिंग और भ्रष्ट तंत्र की वास्तविक कलई खुल जाएगी।

पोस्टिंग का तरीक़ा भी है भ्रष्ट, कम्प्लेंट बनाते/करवाते हैं आईआई

विजिलेंस में पोस्टिंग का तरीका भी भ्रष्ट है और भ्रष्टों की पोस्टिंग का प्रस्ताव देने वाले तो पहले ही भ्रष्ट होते हैं। पूर्व रेलवे सहित कई जोनल विजिलेंस में हुई ऐसी पोस्टिंग इसका उदाहरण हैं। कोई विरला ही ईमानदार अधिकारी विजिलेंस में आता है, जो अपने यहां सफाई करता है और कार्यकाल पूरा कर चुके विजिलेंस इंस्पेक्टरों से लेकर लंबे समय से जमे ऑफिस स्टाफ को हटाता हो। रेलवे बोर्ड विजिलेंस के यह एक्सटेंडेड माफिया इतने शातिर होते हैं कि अपने अधिकांश ईमानदार विजिलेंस अधिकारियों के खिलाफ यही कंप्लेंट करवाते हैं या खुद करते हैं। यह भी एक सच्चाई है।

हर जोन में अपने गिरोह के लोगों के साथ मिलकर यह माफिया यह भी तय करता है कि किस कर्मचारी और अधिकारी के खिलाफ आरटीआई या कंप्लेंट करवानी है और कैसे – किससे करवानी है तथा किसको करनी है। सामान्य या गंभीर कंप्लेंट करनी है, किसी फर्जी संगठन, किसी नेता, सांसद या विधायक के लेटर पैड पर करनी या करवानी है, पीडीपीआई रेजोल्यूशन 2004 के तहत करनी है, या इसी काम में पेशेवर तरीके से लगे लोगों से करवानी है, आदि आदि। क्योंकि विजिलेंस के अनुभव से और पुराने कंप्लेंट को देखकर ये बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि किस तरह की कंप्लेंट से टारगेट अधिकारी या कर्मचारी को अधिकतम तंग किया जा सकता है।

इनको यह भी पता होता है कि किस तरह से कंप्लेंट करने पर कंप्लेंट की जांच इनको मिलेगी या जोनल विजिलेंस को भेजी जाएगी। इस दौरान ये और इनके गिरोह के लोग जिन-जिन अधिकारियों को केस डील करना होता है, उनके पास बड़ी चालाकी से अपने टारगेट कर्मचारी/अधिकारी के विरुद्ध कहानी सुनाते हुए “ओपीनियन” बनाने का प्रयास जारी रखते हैं, जिससे कि कंप्लेंट आने पर संबंधित अधिकारी की भी धारणा वही हो, जो उक्त शातिर माफिया इंस्पेक्टर की होती है। इसके बाद इनका काम बहुत ही आसान हो जाता है और फील्ड में इनकी “नूइसेंस वैल्यू” का फिर से डंका बज जाता है। फिर तो फील्ड में इनका “रेट” अपने आप ही बढ़ जाता है।

सीवीओ/ट्रैफिक/उत्तर रेलवे की पोस्टिंग को प्रभावित करने के लिए विजिलेंस माफिया द्वारा करवाया गया ट्वीट

इनका प्रयास यह होता है कि कंप्लेंट इनको या इनके ही ग्रुप के किसी विजिलेंस इंस्पेक्टर को मार्क हो। यदि उक्त कंप्लेंट इनके प्लान के विपरीत रेलवे बोर्ड या जोन में किसी ईमानदार विजिलेंस इंस्पेक्टर (वीआई) को मार्क हो गई, तो ये अपने गिरोह के विजिलेंस आफिस के क्लेरिकल स्टाफ के माध्यम से उक्त केस फाइल पर नजर रखते हैं और फिर उस वीआई के खिलाफ शिकायत करना-करवाना शुरू कर देते हैं या फिर ट्विटर और व्हाट्सअप जैसे विभिन सोशल मीडिया माध्यमों से बीच बीच में दबाब बनाने के लिए कंप्लेंट भेजवाते रहते हैं।

यही रणनीति यह तब भी अपनाते हैं जब विजिलेंस में कोई पोस्ट खाली होती है और इनको पता चलता है कि जो अधिकारी आ रहा है वह इनके मन-माफिक नहीं है। तब फिर यह सीवीसी से लेकर पीएमओ तक को मनगढ़ंत कहानी की कंप्लेंट विजिलेंस के अनुभव के आधार पर कुछ इस तरह लिखकर भेजना शुरू करते हैं कि इनका उद्देश्य पूरा हो जाए यानि कि या तो इनके ग्रुप या तासीर का कोई अधिकारी आ जाए, या इस तरह का न्यूट्रल समय काटने वाला डमी अधिकारी आए जो इनके “काम” में रोड़ा बनने का प्रयास न करे। यही खेल सीवीओ/ट्रैफिक, उत्तर रेलवे की पोस्टिंग में एक्सटेंशन प्राप्त विजिलेंस माफिया कर रहा है, जबकि लोग समझ कुछ और रहें हैं।

हकीकत में रेलवे को चला रहा है विजिलेंस माफिया

बाहर से भले ही लोगों को लगता हो कि रेलवे में रेलमंत्री और सीआरबी की ही चलती है, लेकिन हकीकत में रेलवे को यह विजिलेंस माफिया ही चला रहा है। रेलवे में जो चौतरफा भ्रष्टाचार का बोलबाला है, वह इसी विजिलेंस माफिया और इसके दलालों की कृपा से है। सामान्य रेलकर्मियों की नजर में तो अंदरूनी व्यवस्था में विजिलेंस के एक्सटेंशन प्राप्त माफिया लोग ही रेलवे में समानांतर सरकार चला रहे हैं। एक्सटेंशन प्राप्त लोगों के इस संगठित माफिया गिरोह में पार्टियां (कांट्रेक्टर्स, ट्रेडर्स, सप्लायर्स आदि),भ्रष्ट अधिकारी/कर्मचारी, मिडलमैन यानि दलाल और इसी मानसिकता के मीडिया से जुड़े कुछ लोग भी होते हैं।

ऐसे लोग सीवीसी, विजिलेंस और प्रशासन के नुमाइंदे नहीं हो सकते, उल्टे यह सभी संस्थाएं इनकी कठपुतली की तरह काम कर रही हैं, क्योंकि उद्देश्य इन संस्थाओं का नहीं, बल्कि इन भ्रष्ट माफियाओं का पूरा होता है, जिसका माध्यम प्रशासन, विभागीय विजिलेंस और सीवीसी आदि संस्थाएं बनती हैं। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता, भले ही इनमें से कोई संस्था अपना मुगालता इस हकीकत से इतर पाल रही हो। इसीलिए हर साल इनके शिकार सैकड़ों ईमानदार, निर्दोष और निरीह सरकारी अधिकारी/कर्मचारी होते हैं।

यह विजिलेंस माफिया जिस स्तर पर अपना गेम खेलता है, वह व्यवस्था में बैठे बहुत से लोगों की सोच से भी परे और खतरनाक है। वस्तुतः यह स्थिति अत्यंत ही भयावह है। प्रधानमंत्री और रेलमंत्री सिर्फ यही ठीक कर दें, तो रेलवे को भरपूर ऑक्सिजन मिल सकती है, और तमाम विरोधाभासी तथा विसंगतिपूर्ण निर्णयों के बावजूद भारतीय रेल व्यवस्था आने वाले लंबे समय तक उनकी अत्यंत ऋणी रहेगी।