स्थानांतरण नीति के विपरीत अटैचमेंट का अनुचित लाभ: अटैच्ड आरपीएफ स्टाफ को लाखों रुपए के यात्रा भत्ते का भुगतान
महीनों से जवानों को नहीं मिल रहीं छुट्टियां, कमांडेंट/आईपीएफ दे रहे हैं जवानों को डीएम से अनुमति लाने का मौखिक आदेश!
सुरेश त्रिपाठी
कोरोनावायरस से संक्रमित होकर रेलवे सुरक्षा बल के कई जवान असमय काल-कवलित हुए हैं और कई जवान फिलहाल आइसोलेशन में हैं। इसके लिए काफी हद तक आरपीएफ प्रशासन भी जिम्मेदार है।
इसके अलावा एक तरफ जहां डायरेक्टिव-32 जैसा एकतरफा आदेश निकालकर लगभग पूरी फोर्स को दर-बदर कर दिया गया और उसके लिए बतौर ट्रांसफर अलाउंस करोड़ों रुपए के रेल राजस्व का नुकसान हुआ, वहीं दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड सहित अधिकांश जोनों और मंडलों में सैकड़ों “फेवरेट स्टाफ” का अटैचमेंट करके उसे लाखों रुपए के ट्रांसपोर्ट अलाउंस (टीए) का अनावश्यक भुगतान किया जा रहा है।
डायरेक्टर जनरल/रेलवे सुरक्षा बल (DG/RPF) अरुण कुमार द्वारा हाल ही में जवानों के वेलफेयर के लिए स्थानांतरण नीति (डायरेक्टिव 32) में बदलाव किया गया था कि एक ही जिले में लगातार 10 वर्षों से अथवा उसी जिले में कुल 15 वर्षों तक तैनात रहने वाले जवानों का स्थानांतरण अन्य जिलों में किया जाएगा।
ऐसा किया भी गया, किंतु डीजी/आरपीएफ की ईमानदारी से कार्य करने की मंशा में सेंध लगाने की कारगुजारी उन बाबुओं द्वारा की जा रही है जो स्वयं भी कई वर्षों से एक ही जिलेे में जमे हुए हैं।
जिन जवानों का स्थानान्तरण किया गया था, उन्हें कुछ समय बाद किसी न किसी कार्य का विशेषज्ञ बताकर वापस उसी जगह या उसी मंडल कार्यालय में मौखिक आदेश से लंबे समय से अटैच करके रखा गया है।
यहां तक कि उन्हें लाखों रुपये के यात्रा भत्ते (टीए) का भी भुगतान किया जा रहा है। जबकि देश में इस समय कोरोना महामारी के कारण ट्रेन एस्ककॉर्टिंग और अन्य बंदोबस्त के लिए जवानों की आवश्यकता उनके सटेशनों पर है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस प्रकार के अनावश्यक अटैचमेंट कई जोनल एवं मंडल मुख्यालयों में हैं। जबकि रेलवे बोर्ड में ऐसे कुल 50-55 जवानों का अटैचमेंट किया हुआ है।
आरपीएफ सूत्रों का कहना है कि जोनों/मंडलों के लिए जब भी रेलवे बोर्ड से सख्ती की जाती है, तब ऐसे लोगों को उनके नियत स्थान पर वापस कर दिया जाता है मगर फिर कुछ समय बाद पुनः अटैच कर लिया जाता है। यह सारा अनियमित कामकाज आरपीएफ अधिकारियों के मौखिक आदेशों पर चल रहा है।
आरपीएफ स्टाफ का कहना है कि डीजी/आरपीएफ यदि चाहते हैं कि उनके द्वारा बनाई गई नीति का सही और ईमानदारी से पालन हो, तो इस तरह के तमाम अनियमित कामकाज के विरुद्ध उचित कार्यवाही करने के लिए वही खुद सक्षम अधिकारी हैं।
उनका कहना है कि ऐसा इसलिए माना जा सकता है कि स्वयं डीजी/आरपीएफ स्थानांतरण नीति के अनुपालन में किसी भी प्रकार के अटैचमेंट के खिलाफ हैं। उनके द्वारा सुरक्षा सम्मेलनों में बार-बार यह कहा जाता रहा है कि किसी एक के फायदे अथवा सुविधा के लिए नियम नहीं बदला जा सकता, लेकिन उन्हें ही यह भी देखना होगा कि ये नियम धरातल पर कितने तर्कसंगत हैं?
यह भी बताया गया है कि रेलवे बोर्ड में स्टॉफ अटैचमेंट से ही लिया जाता है। परंतु यह भी सही है कि यह अटैचमेंट बिना जुगाड़ के किसी सामान्य सिपाही के लिए संभव नहीं है। बोर्ड का वर्क डिस्ट्रीब्यूशन भी अलग है, परंतु बोर्ड में भी ऐसा बहुत कुछ होता है, जो डीजी के संज्ञान में कभी नहीं आने दिया जाता है।
बोर्ड में अटैच जवानों से ऑफिस में चाय बनाने और देने, फाइलें लाने-लेजाने जैसे ऑफिस चपरासी के काम लिए जाते हैं, जबकि उसे हथियारबंद होकर यात्रियों और रेल संपत्तियों की सुरक्षा में तैनात रहना चाहिए। इसके अलावा भी उनसे अन्य तमाम कार्य करवाए जाते हैं, जो एक जवान की ड्यूटी में कदापि शामिल नहीं हो सकते।
बताते हैं कि बोर्ड में अटैचमेंट का पूरा मामला भी डीजी के संज्ञान में नहीं है। स्टाफ का कहना है कि डीजी को इसकी समीक्षा खुद करनी चाहिए और देखना चाहिए कि जो स्टाफ वहां अटैच किया गया है, वह किस जुगाड़ से वहां तक पहुंचा है, क्योंकि उनको बोर्ड में अटैचमेंट की व्याख्या दूसरे तरह से बताई गई है। हालांकि बोर्ड में पहले जो लोग 20-20 सालों से अटैच थे, उन्हें डीजी ने आते ही हटा दिया था। फिर जो नए अटैचमेंट किए गए, उन सभी को 6 महीने तक टीए का गलत भुगतान हुआ है।