October 10, 2019

सरकार कमाऊ ‘कॉनकोर’ को भी निजी हाथों में सौंपने को तैयार !

मुनाफा कमाने वाली सभी सरकारी नवरत्न कंपनियों को बेचने पर उतारु है सरकार

लंबे समय से लॉजिस्टिक क्षेत्र की निजी कम्पनियां कर रही हैं कॉनकोर के खिलाफ साजिश

सरकार और देश के प्रबुद्ध लोगों से कॉनकोर को बचाने की कर्मचारी यूनियन की अपील

कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) भारतीय रेल की एकमात्र कंपनी (पीएसयू) है जिसको लॉजिस्टिक के क्षेत्र में नवरत्न स्टेटस हासिल है। कॉनकोर को ‘पब्लिक यूटिलिटी सर्विस’ घोषित किया गया है। वर्ष 1988-89 में कॉनकोर की शुरुआत करीब 65 करोड़ रुपये की लागत के साथ की गई थी, जो आज पूरे देश में 83 टर्मिनल के साथ देश के आयात-निर्यात को सुचारु एवं व्यवथित सहयोग में अपना योगदान दे रहा है। 65 करोड़ की कंपनी करीब 20 साल में सरकार को सीधे तौर पर 8000 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है और वर्तमान में 35000 करोड़ रुपये की कुल पूंजी (कैपिटल) के साथ बाजार में भागीदारी कर रही हैI

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) के शुरु होने के बाद कंपनी बहुमुखी विकास करेगी। तब यह करीब 4-5 गुना बड़ी कंपनी हो जाएगी। डीएफसी के  अगले वर्ष तक चालू होने की घोषणा सरकारी तौर पर पहले ही की जा चुकी है। इसके बाद कॉनकोर की कुल बाजार पूंजी करीब एक लाख करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगी और यह नवरत्न से महारत्न कंपनी बन जाएगी।

लॉजिस्टिक क्षेत्र में कॉनकोर भारत की एकमात्र ऐसी नवरत्न कंपनी है, जो आयात-निर्यात के लिए उचित माहौल बनाने में देश का सहयोग कर रही है और जहां भी अवसर मिलता है, लोगों को रोजगार देने के साथ अपना टर्मिनल बनाकर देश के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहती है। कॉनकोर ने अपने लाभांश का ज्यादा और सही उपयोग करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर हमेशा अपने सभी टर्मिनल्स पर सीआईएसएफ/डीजीआर के पूर्व जवानों को ही रोजगार दिया है। आयातकों-निर्यातकों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने पर ज़ोर दिया है।

कॉनकोर खुले तौर पर 17 निजी कंपनियों से बाजार में प्रतिस्पर्धा करती है और इस क्षेत्र में कुल व्यवसाय के 73 प्रतिशत हिस्से पर उसका कब्जा है। कॉनकोर की अपेक्षा इस क्षेत्र की यह 17 निजी कंपनियां इस व्यवसाय में आयतकों-निर्यातकों का विश्वास जीतने में विफल रही हैं, क्योंकि आज भी ज्यादातर व्यवसायी कॉनकोर पर ज्यादा भरोसा करते हैं। देश की एकमात्र सरकारी लॉजिस्टिक कंपनी कॉनकोर, जिसकी प्रतिस्पर्धा में  प्राइवेट कंपनियां कहीं भी ठहर नहीं दे पा रही हैं, इसका मुख्य कारण कॉनकोर के कर्मचारियों का सदव्यव्हार एवं ट्रेड का विश्वास हैI

कॉनकोर के कर्मचारी राष्ट्रीय आपदा के समय चाहे वह देश के किसी भी कोने में हो, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैंI कॉनकोर ने भारतीय रेल को 3500 करोड़ रुपये का एडवांस फ्रेट (मालभाड़ा) देकर रेलवे के वार्षिक घाटे को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान किया है, जो किसी भी प्राइवेट लॉजिस्टिक कंपनी ने आजतक नहीं किया हैI कॉनकोर ने रेल कोच फैक्ट्री से लगातार 5 वर्षों से ६०० वैगन खरीदकर राष्ट्र की ‘मेक इन इंडिया’ योजना में अपना महती सहयोग दिया है। इसके लिए कॉनकोर द्वारा प्रति वर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये की राशि का अग्रिम भुगतान रेलवे के कोच निर्माण कारखानों को किया जाता है और वैगनों की डिलीवरी किस्तों में कारखानों के उत्पादन शेड्यूल के मुताबिक लेती रहती है।

किसानों के लिए योगदान : बनारस एवं राजघाट में सब्जी हाट खोलने का निर्णय, नासिक में फूल के लिए, कोंकण सिंधुदुर्ग में आम के लिए, हरियाणा सोनीपत में मसाले एवं ड्राई फ़्रूट्स के लिए, आजादपुर दिल्ली में फल एवं सब्जी के लिए, बंगाल सिंगूर में किसान प्रोडक्ट के लिए, कोल्ड स्टोरेज एवं दादरी (उत्तर प्रदेश) में रेफेर पार्क पर कॉनकोर लगातार काम कर रही है। अभी करीब एक साल से ड्राई आइस बैटरी के तहत सौर्य ऊर्जा के द्वारा किसान उत्पादों को संरक्षित कर रही है एवं सीधे बाजार के पास ले जाकर किसान को सीधा फायदा कैसे हो, इसका प्रयास कर रही है।

जाली करेंसी एवं‌ प्रतिबंधित वस्तुएं, जिनको भारत में लाना अपराध है, प्राइवेट कंटेनर यार्डों में सरकारी मशीनरियों द्वारा पकड़ा जाता रहा है, लेकिन कॉनकोर के टर्मिनल्स एक्स-आर्मी गार्ड्स की देखरेख में होने से यहां कोई भी पार्टी कोई भी प्रतिबंधित वस्तु लाने का दुःसाहस नहीं करती है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय की सुरक्षा सामग्री, वोटिंग मशीन, मुद्रा, यूरेनियम एवं सामरिक सुरक्षा की हर सामग्री का परिवहन कॉनकोर ही करती है। इसके कर्मचारी हमेशा इसके विश्वास को बनाए रखने के लिए कृत-संकल्पित रहते हैंI

जब से निजी कंपनियों को ट्रेन चलाने का लाइसेंस मिला है, तब से लगातार आजतक कॉनकोर के खिलाफ साजिशें की जा रही हैं। कॉमनवेल्थ खेलों का बहाना बनाकर इसके सबसे बड़े ड्राई पोर्ट आईसीडी/तुगलकाबाद को बंद करने की साजिश की गई, जिसकी जानकारी यूनियन द्वारा उच्च सरकारी महकमों को दी गई। इससे समय रहते साजिशकर्ताओं की साजिश की पोल खुल गई। इसके बाद प्रदूषण का बहाना बनाकर इसे बंद करने का प्रयास किया गया। इसके बाद एनजीटी में इसके खिलाफ शिकायत की गई, जहां  भारत सरकार की कंपनी सीआरआरआई केंद्रीय एवं‌ राज्य सरकार के प्रदूषण विभाग ने अपनी रिपोर्ट कॉनकोर के पक्ष में दिया।

इसके बाद 6 मई 2017 को एक बड़ी साजिश के तहत कंटेनर में गैस लीक का बहाना बनाकर पूरी दिल्ली के महकमों एवं विभागों को गुमराह किया गया एवं कॉनकोर के सबसे बड़े पोर्ट तुगलकाबाद (टीकेडी) को बंद एवं बदनाम करने की साजिश रची गई, तब दिल्ली के एसडीएम ने विस्तृत जांच-पड़ताल करके अपनी रिपोर्ट में कहा कि कॉनकोर सुरक्षा/संरक्षा के सभी पैमानों और पर्यावरण संरक्षण के प्रतिमानों का पालन करते हुए काम कर रही है। इसके बाद कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया में जाकर इसे रोकने की गुहार लगाकर बहाना बनाया गया कि सरकारी मशीनरियां कॉनकोर को ज्यादा सहयोग कर रही हैं।

इन सारे आरोपों-प्रत्यरोपों के बावजूद कॉनकोर देश हित में सुरक्षा के सारे पैमानों को ध्यान में रखते हुए लगातार भरपूर परिणाम दे रही है और देश के औद्योगिक विकास में योगदान के साथ अपना भी विकास जारी रखा है। इस तरह उसके प्रति ट्रेड का विश्वास लगातार बढ़ रहा है।

इसके साथ टर्मिनल बनाने के लिए कॉनकोर ऐसी जगह का चयन करती है, जहां अमूमन किसी का ध्यान नहीं जाता है और उससे भारतीय उद्योग एवं मेक इन इंडिया के तहत रोजगार के अवसर, चौतरफा औद्योगिक विकास इत्यादि होने लगता है- जैसे चंदौसी उत्तर प्रदेश के बुनकर एवं दरी उद्योग के लिए मिर्ज़ापुर माधोसिंह (उत्तर प्रदेश) में टर्मिनल का निर्माण एवं राजस्थान के सुदूर इलाकों में टर्मिनल बनाकर वहां के पत्त्थर एवं मार्बल व्यवसाय को विश्व के मानचित्र पर पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया है। इसी के कारण देश एवं व्यवसाय का भरपूर सहयोग कॉनकोर को हमेशा मिला है और यह लगातार बढ़ता जा रहा हैI

अब विभिन्न माध्यमों द्वारा कॉनकोर के विनिवेश का हल्ला मचाया जा रहा है और कहा जा रहा है की अब कॉनकोर में सरकारी भागीदारी पचास प्रतिशत से नीचे चली जाएगी, जिससे इसका प्रबंधन निजी हाथों में चला जाएगा। कॉनकोर के खिलाफ की जा रही यह एक नई साजिश है, जिसका शिकार देश के सरकारी उद्योग न हों, इसके लिए सरकार को उचित क़दम उठाना चाहिए।

कॉनकोर अपने व्यावसायिक कार्यक्षेत्र में लगातार उत्कृष्ट परिणाम दे रही है। जैसे वित्तवर्ष 2015-16 में इसकी हैंड्लिंग 2924046 टीईयू से बढ़कर वर्ष  2018-19 में 3829419 टीईयू हो गई, यानि विगत तीन वर्षों में 76.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इसी प्रकार कॉनकोर भारत सरकार को अब तक करीब 4700 करोड़ रुपये का लाभांश दे चुकी है। इसके 45.2 प्रतिशत शेयर बेचकर भारत सरकार करीब 2500 करोड़ रुपये पहले ही प्राप्त कर चुकी है। आज कॉनकोर की कुल बाजार पूंजी 3600 करोड़ रुपये है। जबकि इसके बचे हुए 54.8 प्रतिशत सरकारी हिस्से की बाजार कीमत लगभग 20,000 करोड़ रुपये है।

अत: 1988-91 के दौरान इसमें निवेश गए 65 करोड़ रुपये के बदले भारत सरकार अब तक इससे 8000 करोड़ रुपये नगद प्राप्त कर चुकी है और 20,000 करोड़ को तुरंत भुनाने के चक्कर में कॉनकोर को हलाल कर देना चाहती है, जिससे लॉजिस्टिक के क्षेत्र में निजी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार के भीतर ही मुनाफा कमाने वाली सरकारी कम्पनियों को मुफ़्त में निजी उद्योगपतियों को सौंपने की साजिश हो रही है? इससे तो लाभ में चल रहे देश के तमाम सरकारी उद्योगों के साथ ही‌बड़ी संख्या में आयातक-निर्यातक भी बुरी तरह प्रभावित होंगे और भारत में विदेशी पूंजी निवेश पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

निजी कम्पनियां आपसी गठजोड़ (कार्टेल) बनाकर देश के तमाम आयातकों-निर्यातकों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाएंगी। इससे जहां एक तरफ़ देश का व्यापार प्रभावित होगा, तो दूसरी तरफ़ कॉनकोर के शेयर बेचने से इसके उन कर्मचारियों के साथ विश्वासघात भी किया जाएगा, जिन्होंने दिन-रात दिन कड़ा परिश्रम करके इसे इस मुकाम तक पहुंचाया है।

आज कॉनकोर में सरकार की हिस्सेदारी 54.08% है। यदि इसे कम किया गया अथवा यह 51% से नीचे आ गई, तो कंपनी का स्टेटस भी बदल जाएगा। यह भारत सरकार की नवरत्न पीएसयू कंपनी है, जो कि अपनी स्थापना के मात्र 30 वर्ष में ही खत्म हो जाएगी, क्योंकि 51% के नीचे आते ही इसका सीपीएसयू का दर्जा समाप्त हो जाएगा।

इससे कॉनकोर के कर्मचारियों की सर्विस कंडीशन भी बदल जाएंगी। यह श्रम कानून के तहत कानूनी रुप से भी अवैध होगा। इसके अलावा सरकार द्वारा अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों के साथ छल भी होगा। इससे देश के लोगों का सरकार पर भरोसा भी कम होगा।

अतः उपरोक्त तमाम तथ्यों को देखते हुए कॉनकोर कर्मचारी यूनियन ने देश प्रबुद्ध लोगों से सहयोग और सरकार से निवेदन किया है कि कॉनकोर के विनिवेश की प्रक्रिया को फ़ौरन रोका जाए और सरकारी उद्योगों के पर देश के लोगों, सरकारी श्रमिकों, उद्योग जगत, आयतकों-निर्यातकों के विश्वास को बनाए रखकर उनके भरोसे को मजबूत संबल प्रदान किया जाए, जिससे देश का विकास एवं शाइनिंग इंडिया हमेशा साथ-साथ चलता रहे।