October 6, 2019

चोर दरवाजे से भारत में हुई रेलवे के निजीकरण की शुरुआत

कुछ अति-सयाने लोग, जो निजीकरण के समर्थन में खड़े होकर उचकने लगते हैं, और अपनी हांकते हुए कहते हैं कि निजीकरण बहुत फायदेमंद होता है, ऐसे मति-मंद मूढ़ों को सर्वप्रथम ब्रिटिश रेलवे का ऐतिहासिक हश्र देखना चाहिए और ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ‘डेली मिरर’ में इसी साल 16 जनवरी 2019 को प्रकाशित वह खबर पढ़नी चाहिए, जिसमें कहा गया है कि ब्रिटिश नागरिकों द्वारा रेलवे का राष्ट्रीयकरण करने की मांग उठाए जाने पर वहां की सरकार अब फिर से इसका राष्ट्रीयकरण करने जा रही है.

रेलवे के निजीकरण के संदर्भ में हमेशा ब्रिटेन का ही उदाहरण दिया जाता है, जो कि अंततः फेल साबित हुआ है और ब्रिटेन के लोग निजी रेलवे कंपनी की मनमानी से आजिज आ चुके हैं. यह निजी कंपनी भी तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी के सांसद की ही है. यही प्रयोग अब भारतीय रेल के साथ दोहराया जाने वाला है और ब्रिटेन की ही तरह रेलवे को निचोड़कर पूरी तरह चूस लेने के कुछ वर्षों पश्चात् यहां भी रेलवे के पुनः राष्ट्रीयकरण की मांग होने लगेगी, यह निश्चित है, क्योंकि ब्रिटेन की अपेक्षा ज्यादा कुटिल, चालाक और भ्रष्ट हो चुके भारतीय राजनीतिज्ञों की आँखों में करीब डेढ़ सौ सालों से एक छत के नीचे संगठित और सुचारु रूप से परिचालित भारतीय रेल बुरी तरह खटक रही है.

वर्ष 1993 में मार्ग्रेट थैचर के उत्तराधिकारी जॉन मेजर ने ब्रिटिश रेलवे का निजीकरण कर दिया था. लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि निजी कंपनियों ने 1993 में ब्रिटिश रेल के निजीकरण करते वक्त रेल यात्रियों से जो वादे किए थे वह आज तक पूरे नहीं किए हैं. वर्तमान स्थिति में ब्रिटेन की हालत यह है कि अब यात्रियों के दबाव के कारण सरकार को कई रेलमार्गों का पुनः राष्ट्रीयकरण करने पर मजबूर होना पड़ा है. ब्रिटेन के परिवहन मंत्री ने 16 मई 2018 को घोषणा की थी कि पूर्वी तट रेल लाइन को राज्य नियंत्रण के तहत निजी कंपनियों से वापस ले लिया जाएगा. यह ब्रिटेन का एक प्रमुख रेल मार्ग है, जो लगभग 600 किमी लंबा है और लंदन को एडिनबर्ग से जोड़ता है. ब्रिटेन के अलावा अर्जेंटीना में भी रेलवे की यही हालत है. वहां भी निजी कंपनियां रेलवे में मोटा माल कमाने के बाद बाद भाग खड़ी हुई हैं.

अब जहां तक भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस की बात है, तो दिल्ली-लखनऊ रूट पर वर्तमान में 53 ट्रेनें चलाई जा रही हैं. उन्हीं में से तेजस भी एक है. इस रुट की सबसे प्रीमियम ट्रेन स्वर्ण शताब्दी है. इससे दिल्ली से लखनऊ के बीच की दूरी करीब 6.30 घंटे में तय हो जाती है, जबकि तेजस को 6.20 घंटे लग रहे हैं. यानि तेजस से कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा, जैसा कि सरकार द्वारा बताया और प्रचारित किया जा रहा है.

हालांकि सरकार ने यह चमत्कार यात्रा किराए के मामले में अवश्य किया है. परंतु यह चमत्कार अंधभक्तों और सरकारी/चाटुकार पत्रकारों को दिखाई नहीं देता है, अथवा वह जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर रहे हैं, या फिर वह इसे बताना ही नहीं चाहते हैं, फिर यह भी बात है कि देश की अंधी जनता के लिए इतनी मगजमारी भी क्यों की जाए!

तेजस एक्सप्रेस में एसी चेयरकार का किराया 1,125 रुपये वसूला जा रहा है, जबकि स्वर्ण शताब्दी का किराया 800 से ज्यादा नहीं है. उसमें भी सीनियर सिटीजन और माइनर बच्चों को रेलवे द्वारा दी जा रही सामान्य छूट प्राप्त है, लेकिन तेजस में यात्रियों को ऐसी कोई भी छूट प्राप्त नहीं है.

तेजस में किराया तय करने के लिए डायनेमिक फेयर सिस्टम लागू है. डायनेमिक फेयर सिस्टम फ्लाइट्स की बुकिंग के लिए भी लागू होता है. दिवाली के लिए तेजस का किराया फ्लाइट के किराए से भी ज्यादा हो गया है. इसके कारण 26 अक्टूबर के दिन तेजस का नई दिल्ली से लखनऊ का किराया 4300 से 4600 रुपये (एक्जीक्यूटिव चेयरकार) तक पहुंच गया है.

प्राइवेट ऑपरेटर को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है, उसे यात्रियों की जेब से पैसा निकालना आता है. वह जानता है कि जब सबसे ज्यादा अर्जेंसी होगी, तब वह सबसे ज्यादा किराया आसानी से वसूल कर लेगा. पूरे विश्व में रेलवे के निजीकरण के पक्ष में दी गई कोई भी दलील पूरी तरह तो क्या आधी-अधूरी भी अब तक सही साबित नहीं हुई है.

प्राइवेट ऑपरेटर को जनता की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने से कोई मतलब नहीं है, और न ही उसके लिए सामाजिक सरोकार का कोई महत्व है, बल्कि वह सिर्फ और सिर्फ प्रॉफिट कमाना जानता है. भारत में तो अभी यह शुरुआत है. ब्रिटेन का अनुभव तो यह कहता है कि जैसे ही रेलवे प्राइवेट ऑपरेटर के हाथ में आती है, वैसे ही व्यस्त और व्यस्ततम रूट पर किराए तीन से चार गुना ज्यादा तक बढ़ जाते हैं.

वर्ष 2016 में यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टफोर्डशर में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हूल्या डेगडिविरेन अपने लेख में कहती हैं ‘श्रमिक संगठनों की एक परिषद टीयूसी ने ब्रिटिश रेलवे में यात्रियों के किराए से जुड़ा एक अध्ययन कराया था. इससे पता चलता है कि चेम्सफोर्ड से एसेक्स होते हुए लंदन तक की 35 मिनट की रेल यात्रा का मासिक टिकट 358 पौंड का होता है. जबकि इटली में इतनी ही यात्रा के लिए 37, स्पेन में 56, जर्मनी में 95 और फ्रांस में 234 पौंड चुकाने होते हैं. इन सभी देशों में रेलवे का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा संचालित है.’

भारत में भी अब रेलवे के निगमीकरण के चोर दरवाजे से निजीकरण की शुरुआत हो चुकी है और कुछ सालों बाद लगभग हर प्रीमियम रूट पर प्राइवेट ट्रेनें दौड़ रही होंगी. अब वह दिन दूर नहीं रह गया है, जब यह अनपढ़-गंवार अथवा अंधभक्त या फिर निहितस्वार्थी लोगों का यह समूह, जो अपने निजी हित में रेलवे के निजीकरण की रट लगाए हुए है, भारतीय रेल को पूरी तरह से निजी हाथों में सौप देगा. और तब इस देश के अधिकांश भेड़चाल का शिकार यही लोग कुछ ही साल बाद पुनः ब्रिटेन वासियों की ही तरह रेल किरायों को लेकर रोने-गाने लगेंगे. यह निश्चित है.

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी