कानपुर पीएफटी में नियमों की अनदेखी, भारी भ्रष्टाचार, जांच सीबीआई को सौंपी जाए
वन-हुक रेक प्लेसमेंट की अनिवार्य शर्त पूरी किए बिना दिया गया पीएफटी का दर्जा
2011 से बकाया 1.31 करोड़ का साइडिंग चार्ज माफ करने का नियमतः कोई आधार नहीं
देशभर में स्थापित सभी प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल (पीएफटी) की जांच सीबीआई से कराई जाए
सुरेश त्रिपाठी
पिछले पांच वर्षों से केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कर रही है और भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए कई उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया है. रेलवे के भी कई अधिकारी, कर्मचारी उसके राडार पर हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में सरकार भ्रष्टाचार का खात्मा करना चाहती है? अथवा सरकार सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों के खिलाफ कार्यवाही करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान रही है?
यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि लगभग हर सरकारी महकमे में भ्रष्टाचारी मौजूद हैं और इनकी संख्या हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में है, जो सरकारी तंत्र को न सिर्फ खोखला कर चुके हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खोखला करने में आज भी लगे हुए हैं.
‘रेलसमाचार’ के पास ऐसे भ्रष्टों और भ्रष्ट व्यवस्था के आंकड़े तो बहुत हैं, लेकिन यह शुरुआत फिलहाल पुनः उसी उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) जोन से की जा रही है, जहां कुछ रेल अधिकारियों द्वारा केवल खुद के हित के लिए एक प्राइवेट साइडिंग कंपनी को वर्ष 2011 में नियम विरुद्ध ‘पीएफटी’ का दर्जा दे दिया गया और यह व्यवस्था आज भी बदस्तूर जारी है. इसके बारे में पहले भी ‘रेलसमाचार’ ने सरकार और रेल प्रशासन को आगाह किया था, (देखें, ‘रेलवे को दीमक की तरह चाट रहे हैं रेलवे के ही कुछ अधिकारी’) लेकिन जब पूरे कुंए में ही भांग पड़ी हो, तो कार्यवाही कौन करे?
उल्लेखनीय है कि इस कंपनी ने रेलवे को चूना लगाने के लिए प्रमोटर के रूप में रेलवे के ही वर्ष 1992 बैच के दो पूर्व ट्रैफिक अधिकारियों एवं एक इंजीनियरिंग अधिकारी को अपने यहां उच्च पदों पर नियुक्त किया, जिनका काम था रेलवे बोर्ड और उत्तर मध्य रेलवे, इलाहाबाद के उच्चाधिकारियों से समन्वय स्थापित करके किसी भी तरह से साइडिंग को पीएफटी का दर्जा हासिल किया जाए. ‘समन्वय’ अर्थात ‘तिकड़म’ इसलिए, क्योंकि कानपुर की जिस जगह पर केएलपीएल कंपनी काम कर रही है, वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर साइडिंग में एक बार में सीधे रेक का प्लेसमेंट हो ही नहीं सकता है, जो कि पीएफटी का दर्जा देने की एक अनिवार्य शर्त है.
‘तिकड़म’ के सारे खेल की शुरुआत यहीं होती है. कंपनी ने उपरोक्त पूर्व रेल अधिकारियों को इसी काम के लिए रखा ही था. उन लोगों ने रेलवे की लचर कार्य-प्रणाली और भ्रष्ट-मनोवृत्ति का फायदा उठाते हुए इसे पीएफटी का दर्जा इस शर्त पर दिला दिया कि जब तक साइडिंग में रेक का प्लेसमेंट वन-हुक में नहीं होता है, तब तक कंपनी रेलवे के नियमानुसार साइडिंग चार्ज इत्यादि का भुगतान रेलवे को करती रहेगी.
अब फिर से वही सवाल उठता है कि जब कंपनी ने निर्धारित नियम-शर्तों को पूरा ही नहीं किया था, तो फिर उसे पहले ही पीएफटी का दर्जा कैसे दे दिया गया? आखिर में यह अवैध पीएफटी का दर्जा दिलाने के लिए रेलवे बोर्ड और उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, इलाहाबाद के संबंधित विभागीय उच्चाधिकारियों ने कितना पैसा अथवा शेयर घूस के रूप में लिया?
देखने वाली बात यह है कि संबंधित अधिकारियों का यह भ्रष्टाचार सिर्फ यहीं पर खत्म नहीं होता है. केएलपीएल साइडिंग को थ्रू-डिस्टेंस का दर्जा नियम विरूद्ध दिया गया और उसकी फीडिंग ‘क्रिस’ (CRIS) में भी कराई गई, जबकि थ्रू-डिस्टेंस का नियम है कि यह दर्जा तभी मिलेगा, जब साइडिंग में पूरा रेक एक बार (वन-हुक) में सीधे प्लेस हो जाए. जबकि हकीकत यह है कि यहां पर एक रेक 4 से 5 बार की शंटिंग में प्लेस होता है. अर्थात् गलतियों पर गलतियां!
अब यह सीबीआई जांच का विषय है कि सिस्टम में इस थ्रू-डिस्टेंस की फीडिंग किस अधिकारी के द्वारा नियम विरुद्ध कराई गई? यही नहीं पार्टी के विरुद्ध साइडिंग चार्ज के रूप में रेलवे का 1.31 करोड़ रुपये का बकाया था, जिसे पार्टी ने दम ठोंककर उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय से मार्च 2019 में माफ करा लिया और रेलवे को उलझाने के लिए शंटिंग चार्ज देने का वादा कर दिया.
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि पार्टी 2011 से लेकर अब तक रेलवे को न सिर्फ कई करोड़ का नुकसान कर चुकी है, बल्कि उसका यह सिलसिला लगातार अभी भी जारी है. यही नहीं, रेलवे का काफी ट्रैफिक भी पार्टी ने अपनी तरफ खींच लिया है. सूत्रों का कहना है कि 23 जुलाई को इस संदर्भ में ‘रेलसमाचार’ द्वारा पीएमओ सहित सभी सरकारी अथॉरिटीज को टैग करते हुए की गई एक ट्वीट से हड़बड़ाकर उ.म.रे. मुख्यालय ने एक बार फिर उक्त पीएफटी की जांच का नाटक करने के लिए 24 जुलाई को एक टीम कानपुर भेजी है.
रेलवे बोर्ड द्वारा पत्र सं. 2008/टीसी/एफएम/14/2, दि. 31.05.2010 (एफएम सर्कुलर नं. 14/2010) के पैरा 4.3 में स्पष्ट कहा गया है कि पीएफटी का दर्जा प्राप्त करने के लिए पार्टी की साइडिंग की आधारभूत संरचना ऐसी होनी चाहिए कि वहां पर फुल रेक का प्लेसमेंट एक ही बार (वन-हुक) में हो जाए.
इसी पत्र के पैरा 4.9 में ‘इलेक्ट्रॉनिक इन मोशन वे-ब्रिज’ इंस्टॉल करने का भी प्रावधान है, जबकि पार्टी ने यह आज तक नहीं लगाया और लगा भी नहीं सकती, क्योंकि साइडिंग में जो दो फुल रेक क्षमता की लाइन है, वहां पर कर्व के कारण वे-ब्रिज स्थापित हो ही नहीं सकता है.
पैरा 4.10 के अनुसार साइडिंग के अंदर टीएमएस की स्थापना भी पार्टी करेगी, जहां पर रेलवे का गुड्स स्टाफ राउंड-द-क्लॉक कार्य करेगा. परंतु पूरे 9 साल बीत चुके हैं, इस दौरान न जाने कितने अधिकारी, ऑडिटर, विजिलेंस निरीक्षण के लिए आए, मगर किसी ने भी इन अनियमितताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया.
इससे स्पष्ट है कि पार्टी को नियमों और सिद्धांतों के विपरीत पीएफटी का दर्जा दिया गया. यह सब जानते-बुझते हुए कि भारी गलती और लापरवाही हुई है, पर इसकी मान्यता रद्द करने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है. जानकारों का कहना है कि पार्टी ने शायद रेलवे की इसी कमजोरी को भांप लिया है और अब वह दोनों तरफ से रेलवे को नुकसान पहुंचा रही है. उनका कहना है कि आखिर में ऐसी क्या हड़बड़ी थी कि पार्टी को पीएफटी की शर्तों को पूरा करने के लिए भविष्य का समय दिया गया और यह शर्त सात साल पूरे होने के बाद भी पूरी नहीं हुई?
पार्टी ने अस्थाई पीएफटी का दर्जा इस आधार पर लिया था कि जब तक आधारभूत ढांचा खड़ा नहीं हो जाता, तब तक वह रेलवे को साइडिंग, शंटिंग इत्यादि चार्जेज का भुगतान करती रहेगी. यह घोषणा उसने लिखित रूप में दी थी, लेकिन अब पार्टी ने रेलवे को ठेंगा दिखाकर रेलवे के साथ विश्वासघात किया है और वादे से मुकर गई है. अब जब तक इस मामले को उच्च स्तरीय जांच के साथ सीआरबी/एमटी स्तर पर नहीं देखा जाएगा, और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करते हुए पीएफटी का दर्जा रद्द नहीं किया जाएगा, तब तक पार्टी रेल राजस्व को नुकसान पहुंचाती रहेगी, यह तय है.
इस विषय से भलीभांति वाकिफ कुछ जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री को इसकी जांच सीबीआई को अविलंब सौंप देना चाहिए, जो न सिर्फ इस पीएफटी में हुए भ्रष्टाचार की गहराई से जांच करे, बल्कि पूरे देश में स्थापित की गई ऐसी सभी पीएफटी की भी जांच हो, तभी व्यापक रूप से हुए इस भ्रष्टाचार को उजागर किया जा सकेगा और दोषियों को कड़ी सजा मिल सकेगी, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में रेलवे बोर्ड से लेकर उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय सहित अन्य जोनल रेलों के भी उच्चाधिकारी शामिल हैं.