“राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-4”

रेलवे को दीमक की तरह चाट रहे हैं रेलवे के ही कुछ अधिकारी

एग्रीमेंट की शर्तों का पालन किए बिना दिया गया पीएफटी का दर्जा

पीएफटी दर्जा देने हेतु कर दिया गया निर्धारित नियमों को दरकिनार

नियमों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं उ.म.रे. के संबंधित अधिकारी

सुरेश त्रिपाठी

#उत्तर_मध्य_रेलवे के अंतर्गत कानपुर में नवंबर 2013 में एक #प्राइवेट_फ्रेट_टर्मिनल (#पीएफटी) बनाने की अनुमति रेलवे द्वारा एक निजी कंपनी को प्रदान की गई थी. कंपनी के साथ समझौते पर उत्तर मध्य रेलवे की तत्कालीन सीसीएम/एफएम श्रीमती गौरी सक्सेना ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते (एग्रीमेंट) की सभी सेवा-शर्तों का अनुपालन करवाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से परिचालन एवं वाणिज्य विभाग सहित उत्तर मध्य रेलवे के सभी संबंधित विभागों की भी थी. तथापि वन-टाइम रेक प्लेसमेंट, ई-वे-ब्रिज एवं टीएमएस की स्थापना सहित एग्रीमेंट की कई प्रमुख शर्तों का अनुपालन करवाए बिना ही उसे पीएफटी का दर्जा दे दिया गया. इसके चलते पिछले 6-7 सालों के दरम्यान अब तक रेलवे को साइडिंग चार्ज के रूप में करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो चुका है. जबकि संबंधित अधिकारियों की लापरवाही अथवा मिलीभगत के चलते 6 साल से बकाया 2 करोड़ रुपये के साइडिंग चार्ज को माफ किए जाने की भी प्रक्रिया चल रही है. स्टाफ का कहना है कि यह पहले ही माफ किया जा चुका है, क्योंकि अब इसे बकाया के रूप में किसी कागज पर दर्शाया नहीं जा रहा है.

उपरोक्त शीर्षक “राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट”वर्तमान में उत्तर मध्य रेलवे का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला कानपुर क्षेत्र चरितार्थ कर रहा है. कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पूरे परिक्षेत्र को 01 अप्रैल 2003 में उ.म.रे. की स्थापना के बाद इलाहाबाद मंडल में समाहित किया गया था. इससे पहले यह उत्तर रेलवे के अंतर्गत था. व्यवसाय के लिए कानपुर को कभी पूरब का ‘मैनचेस्टर’ भी कहा जाता था, जिसमें रेलवे साइडिंग्स की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका थी. तब यहां लगभग 30 रेलवे साइडिंग्स के माध्यम से मालभाड़ा के रूप में अत्यधिक रेल राजस्व अर्जित होता था. परंतु ‘लाल झंडे’ के उदय ने यहां के उद्योगों पर ताला लगा दिया और धीरे-धीरे यह शहर अपनी बरबादी पर आंसू बहाने लगा.

कानपुर शहर से कपड़ा मिलों की बरबादी का पर्याप्त नुकसान रेलवे को भी हुआ, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में यहां मात्र दस रेलवे साइडिंग ही बची रह गई हैं. इनमें भी प्राइवेट साइडिंग के रूप में केवल दो ही ऐसी साइडिंग बची हैं, जहां पर लोडिंग/अनलोडिंग दोनों होती है. एक समय कानपुर एरिया के मालभाड़ा यातायात को देखते हुए कानपुर सेंट्रल पर एसएजी स्तर का मुख्य यातायात प्रबंधक (सीटीएम) का पद हुआ करता था, परंतु मालभाड़ा यातायात में आई भारी कमी के कारण उक्त पद को डाउनग्रेड करके जेएजी रैंक में उप मुख्य यातायात प्रबंधक (डिप्टी सीटीएम) कर दिया गया, जिस पर एक ही अधिकारी पिछले 6-7 वर्षों से लगातार पदस्थ है. तथापि पीईडी/विजिलेंस/रे.बो. अथवा एसडीजीएम/उ.म.रे. का ध्यान कभी इस ओर नहीं गया.

बहरहाल, कानपुर में कार्यरत कुछ वरिष्ठ कर्मचारियों ने बताया कि जेएजी रैंक में सिर्फ एक ही अधिकारी मनोज सिन्हा को यहां के रेलकर्मी एक ईमानदार अधिकारी के रूप में अब तक याद करते हैं. उनका कहना है कि श्री सिन्हा की खासियत यह भी थी कि वह हमेशा रेल राजस्व बढ़ाने की दिशा में ही सोचते थे और रेलवे की एक-एक पाई वसूलना उनका लक्ष्य होता था. वरिष्ठ कर्मचारियों का यह भी कहना है कि श्री सिन्हा के जाने के बाद जैसे इस पद को ग्रहण लग गया. उनके बाद यहां जो भी आया, वह पहले अपने हित के बारे में सोचने लगा, उसके एजेंडे में रेलवे का हित कहीं रहा ही नहीं. उनका कहना है कि यहीं से कानपुर एरिया में रेलवे के माल गोदाम तथा प्राइवेट साइडिंग्स में वाणिज्य एवं ऑपरेटिंग विभागों की अराजकता शुरू हुई.

हालांकि आज ‘रेल समाचार’ का मुख्य विषय कानपुर शहर का इतिहास बताने अथवा कानपुर परिक्षेत्र में कार्यरत रेल अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्य-प्रणाली का विश्लेषण करना नहीं है, बल्कि आज का विषय यहां स्थापित हुई एक नई प्राइवेट रेलवे साइडिंग है. पनकी, कानपुर स्टेशन से सेवानिवृत एक स्टेशन अधीक्षक ने उसका नाम उजागर न करने की शर्त पर पनकी एरिया में स्थित एक प्राइवेट साइडिंग ‘कानपुर लॉजिस्टिक्स पार्क प्राइवेट लि.’ (केएलपीपीएल) को नियम विरुद्ध पीएफटी का दर्जा दिए जाने की जानकारी देते हुए बताया कि उ.म.रे. की तत्कालीन मुख्य वाणिज्य प्रबंधक/फ्रेट मार्केटिंग (सीसीएम/एफएम) श्रीमती गौरी सक्सेना (सेवानिवृत्त) ने रेलवे की तरफ से उक्त पार्टी के साथ पीएफटी का अनुबंध किया था, जबकि पार्टी न तब पीएफटी की शर्तों को पूरा नहीं कर रही थी, और न ही आज पूरा कर रही है.

उक्त रिटायर्ड स्टेशन अधीक्षक के अनुसार उ.म.रे. मुख्यालय में बैठे संबंधित अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इस पार्टी को एग्रीमेंट की लगभग सभी शर्तों का उल्लंघन करने की छूट दी गई और रेल राजस्व को जमकर चूना लगाया गया. उनका कहना है कि पहली बात यह है कि जब पार्टी पीएफटी के लिए नियमों के तहत एलिजिबल ही नहीं थी, तो उसे ये सुविधा क्यों दी गई? रिटायर एसएस का यह भी कहना है कि पार्टी के विरुद्ध रेलवे के लिए साइडिंग चार्ज के रूप में लगभग दो करोड़ रुपया बकाया था, जिसे पार्टी ने अपनी पहुंच के दम पर खत्म करा लिया. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि पार्टी द्वारा की जा रही अनियमितताओं की न जाने कितनी ही रिपोर्टें पनकी स्टेशन के एसएस, सीजीएस, सीएमआई और टीआईए के द्वारा की गईं, परंतु पार्टी के विरुद्ध उ.म.रे. मुख्यालय द्वारा आजतक कोई भी कारगर कार्रवाई नहीं की गई. (उक्त स्टाफ द्वारा किए गए समस्त पत्राचार की प्रतियां ‘रेल समाचार’ के पास सुरक्षित हैं).

यही नहीं, रिटायर्ड एसएस का कहना है कि पिछले करीब सात सालों से पार्टी को नियम विरुद्ध पीएफटी का दर्जा मिला हुआ है. उनका कहना है कि यदि पीएफटी को मान भी लिया जाए, तो एग्रीमेंट की शर्तों और रेलवे बोर्ड के मास्टर सर्कुलर 2015 के अनुसार पार्टी को टीएमएस एवं इलेक्ट्रॉनिक वे-ब्रिज का इंस्टालेशन ऑपरेशन शुरू होने से पहले कर लेना चाहिए था. उनका कहना है कि आज लगभग सात साल से ज्यादा समय बीत गया है, लेकिन पार्टी को कोई भय नहीं है, इसलिए वह बेधड़क अपना व्यापार कर रही है. रिटायर्ड स्टेशन अधीक्षक ने रेलवे की कार्य-प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने बड़े पैमाने पर हो रही अनियमितता के लगातार जारी रहने के बावजूद रेलवे के उच्च पदों पर बैठे तमाम संबंधित अधिकारी अब तक क्या कर रहे हैं? दो-ढ़ाई लाख रुपये के मासिक वेतन के साथ ही तमाम अन्य लक्झरी सुविधाएं देकर भारत सरकार ने उन्हें रेलवे में क्यों बैठा रखा है?

इसके अलावा उक्त रिटायर्ड स्टेशन अधीक्षक का यह भी कहना है कि नियमानुसार पार्टी को वहां पर गुड्स स्टाफ को राउंड-द-क्लॉक कार्य करने हेतु कार्यालय भी देना है और रेलवे को भी कम से कम एक स्टाफ प्रति शिफ्ट (प्रतिदिन तीन शिफ्ट) वहां पर पोस्ट करना है, लेकिन यहां तो लगता है कि रेलवे भी इस घोटाले में पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है? उन्होंने यह भी बताया कि उनकी जानकारी के अनुसार पार्टी द्वारा एक स्टाफ के वेतन का वहन किया जा रहा है, जो कि शाम 10 बजे तक का ही काम देखता है. जबकि पार्टी को 24X7 तीन शिफ्ट के लिए तीन स्टाफ का माहवार वेतन वहन करना है. तथापि रेलवे ने वहां आजतक एक भी स्टाफ की नियुक्ति नहीं की है. उनका यह भी कहना है कि यदि संबंधित रिकॉर्ड को देखा जाए, तो पता चलेगा कि 90% रेक प्लेसमेंट और रिमूवल का काम रात को 12 बजे से सुबह 6 बजे के बीच ही किया जाता है, क्योंकि उस समय वहां कोई रेलवे स्टाफ नहीं रहता है और वहां अपने मनमाने ढंग से काम चलता है. अर्थात रेल राजस्व को चूना दोनों तरफ से लगाया जा रहा है और बदले में ‘अमानत में खयानत’ का खेल चल रहा है.

पनकी गुड्स शेड में कार्यरत रेलवे के वाणिज्य स्टाफ से प्राप्त जानकारी के अनुसार पीएफटी-2010 के सर्कुलर नं. 2008/टीसी(एफएम)/14/2, दि. 31.05.2010 के आधार पर पार्टी के साथ वर्ष 2011 में अनुबंध किया गया था. तब से अब तक अनेकों बार पीएफटी के नियम रिवाइज किए जा चुके हैं. परंतु पिछले 7-8 सालों से उ.म.रे. मुख्यालय द्वारा मात्र औपचारिकता निभाने और फाइलों का पेट भरने के लिए ही पार्टी के साथ पत्राचार किया जाता रहा है कि वह अनुबंध की शर्तों को पूरा करे, लेकिन शर्तें पूरा न करने पर आजतक उक्त पीएफटी अनुबंध रद्द करने की हिम्मत किसी भी अधिकारी द्वारा नहीं जुटाई जा सकी है.

डिप्टी सीसीएम/एफएम/उ.म.रे. के पत्र सं. 2010/कमर्शियल/एमएंडआर/385/पीएफटी स्कीम, दि. 19.11.2013 के जवाब में केएलपीएल के निदेशक संजय मारवार द्वारा रेलवे को लिखित गारंटी दी गई थी कि जब तक उनकी साइडिंग में रेक का प्लेसमेंट एक हुक में नहीं होता है, तब तक रेलवे का जो भी चार्ज होगा, उसका भुगतान केएलपीएल द्वारा दिया जाएगा. ज्ञातव्य है कि केएलपीएल को पीएफटी का दर्जा 13 नवंबर 2013 को दिया गया था.

केएलपीएल के निदेशक संजय मारवार द्वारा उ.म.रे. को दी गई लिखित अंडरस्टैंडिंग का मजमून इस प्रकार है-

DyCCM/FM
NCR, Allahabad

Date: 19.11.2013

Sub: Execution of PFT agreement.

Ref.: DyCCM/FM’s letter no. 2010/Comml/M&R/385/PFT Scheme, dt. 19.11.2013.

On behalf of M/s. Kanpur Logistics Park Private Limited, I hereby undertake that para 15.4 Article 15 of the PFT Agreement will remain in abeyance till such time that placement can be made in one hook in the PFT.

During this interim period, shunting and other charges as leviable as per Railway Rules will be paid by the PFT owner.

This undertaking will remain effective till such time that rake is placed in one hook.

SANJAY MARWAR
DIRECTOR

इस संदर्भ में ‘रेल समाचार’ ने सर्वप्रथम केएलपीपीएल के मुख्य कर्ताधर्ता अविरल जैन से संपर्क करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि वह सिलीगुड़ी में हैं और कानपुर का समस्त कामकाज अमित कुमार देखते हैं, इसलिए उनसे संपर्क किया जाए. तत्पश्चात जब अमित कुमार से संपर्क किया गया और उनसे पूछा गया कि उनकी कंपनी ने पीएफटी एग्रीमेंट की शर्तें, जैसे वन-हुक रेक प्लेसमेंट, टीएमएस, ई-वे-ब्रिज इत्यादि, पूरी नहीं की हैं, तो उसे पीएफटी का दर्जा कैसे मिल गया? इसके जवाब में सबसे पहले उन्होंने कहा कि ‘रेल समाचार’ को पीएफटी पालिसी के बारे में कुछ पता नहीं है, पहले वह उसे पढ़ ले. तथापि जब उनसे यह कहा गया कि ठीक है, हमने पालिसी नहीं पढ़ी है, तो भी वह पूछे जाने वाले सवाल के जवाब में सिर्फ अपना पक्ष बताएं कि उन्होंने अब तक टीएमएस और वे-ब्रिज क्यों नहीं स्थापित किया है, क्या कारण है कि अब तक वन-हुक रेक प्लेसमेंट न हो पाने की स्थिति में भी और लिखित अंडरस्टैंडिंग के बावजूद कंपनी साइडिंग चार्जेज रेलवे को नहीं दे रही हैं?

उपरोक्त सवालों के जवाब में अमित कुमार का कहना था कि टीएमएस और वे-ब्रिज का पैसा तीन साल पहले ही उनकी कंपनी ने रेलवे के पास जमा करा दिया था और उक्त दोनों चीजें स्थापित करना रेलवे की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि जहां तक वन-हुक रेक प्लेसमेंट की बात है, तो उसके लिए रेलवे द्वारा जमीन उपलब्ध नहीं कराई गई है, इसलिए वह काम नहीं हो पाया है. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार जमीन का बंदोबस्त करना तो कंपनी की जिम्मेदारी है और वन-टाइम रेक प्लेसमेंट न हो पाने की स्थिति में पीएफटी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, तो उनकी कंपनी को यह दर्जा कैसे प्राप्त हुआ? इस पर वह चिढ़ गए और कोई वाजिब जवाब देने के बजाय असंवैधानिक भाषा और शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए बदतमीजी पर उतर आए. इसके बाद ‘रेल समाचार’ ने अपनी तरफ से ही ऐसे बदतमीज आदमी से बात को समाप्त कर दिया.

तत्पश्चात उ.म.रे. मुख्यालय के कुछ वरिष्ठ वाणिज्य एवं परिचालन अधिकारियों से संपर्क करके उनसे जब यह दरयाफ्त किया गया कि क्या केएलपीएल ने टीएमएस और वे-ब्रिज स्थापित करने की कुल लागत का पैसा तीन साल पहले रेलवे को दे दिया था, तो उनका कहना था कि जहां तक उनकी जानकारी है, कंपनी ने सिर्फ टीएमएस का पैसा दिया है, क्योंकि टीएमएस रेलवे को ही स्थापित करना है, मगर वे-ब्रिज का कोई पैसा कंपनी ने रेलवे को नहीं दिया है. हालांकि एक अन्य अधिकारी का यह भी कहना था कि कंपनी द्वारा बंगलौर की एक ई-वे-ब्रिज निर्माता कंपनी को वे-ब्रिज के लिए दिए गए आर्डर की इनवाईस रेलवे को प्रस्तुत की गई थी, मगर वह आजतक लगाया नहीं गया है.

इसके अलावा अधिकारियों का यह भी कहना था कि ई-वे-ब्रिज उक्त पीएफटी के अंदर स्थापित किया जाना है, जहां जगह ही उपलब्ध नहीं है. उनका यह भी कहना था कि यदि वे-ब्रिज रेलवे अपनी जमीन पर स्थापित करेगी, तो जमीन और वे-ब्रिज दोनों की लागत कंपनी को वहन करनी होगी. उनसे जब वन-हुक रेक प्लेसमेंट के बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था कि कंपनी ने अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है, जिसके कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि तब कंपनी से शंटिंग एवं अन्य चार्जेज क्यों नहीं वसूल किए जा रहे हैं और जब मुख्य शर्तें ही कंपनी द्वारा पूरी नहीं की गई हैं, तो उसे पीएफटी का दर्जा कैसे दे दिया गया? इस सवाल का संबंधित अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं था, बल्कि वह इस सवाल को यह कहते हुए टाल गए कि इस मामले में रेलवे बोर्ड स्तर पर विचार हो रहा है. जबकि यह मामला रेलवे बोर्ड स्तर का नहीं है, क्योंकि इसका निर्णय उ.म.रे. स्तर पर ही लिया जाना है, जिसमें संबंधित अधिकारीगण लगातार कोताही कर रहे हैं.

इसके अलावा संबंधित अधिकारियों से जब कंपनी पर बकाया दो करोड़ रुपये की वसूली अब तक नहीं किए जाने के बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था कि संबंधित फाइल फिलहाल प्रमुख वित्त सलाहकार (पीएफए) के पास पेंडिंग है. हालांकि यहां भी एक बड़ा झोल यह है कि यदि उक्त बकाया दो करोड़ रुपये की राशि फिलहाल(?) आज भी पेंडिंग है, तो उसका उल्लेख संबंधित दस्तावेजों में क्यों नहीं किया जा रहा है? और 6-7 साल से पेंडिंग उक्त बड़ी राशि की वसूली मय-व्याज के होगी, या नहीं, इस पर कोई भी अधिकारी जवाब देने को तैयार नहीं है.

इसके बाद ‘रेल समाचार’ द्वारा महाप्रबंधक/उ.म.रे. राजीव चौधरी से संपर्क किया गया और उपरोक्त पूरा मामला उनके संज्ञान में लाया गया. उधर कानपुर में कार्यरत रेलवे स्टाफ से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘रेल समाचार’ की उपरोक्त तमाम छानबीन और पूछताछ के फलस्वरूप मंगलवार, 11 दिसंबर को वाणिज्य एवं परिचालन सहित सभी संबंधित विभागों के अधिकारी केएलपीएल साइडिंग में पूरा दिन डेरा डाले रहे, तथापि किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए.

उल्लेखनीय है कि कुछ पूर्व आईआरटीएस अधिकारियों ने ही रेलवे से वीआरएस लेकर उक्त पार्टनरशिप कंपनी की स्थापना की है. इसके अलावा बताते हैं कि एक अन्य रिटायर्ड वरिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी ने भी हाल ही में इस कंपनी को ज्वाइन किया है. रेलकर्मियों का कहना है कि चूंकि रेलवे के ही कुछ पूर्व अधिकारी उक्त कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें नियमों के लूपहोल और रेलवे के तदर्थ कामकाज की कमियां बखूबी मालूम हैं. इसीलिए रेलवे बोर्ड से लेकर उ.म.रे. मुख्यालय तक बैठे अधिकारियों की मिलीभगत से अब तक रेलवे को करोड़ों का नुकसान हो चुका है.

रिटायर्ड स्टेशन अधीक्षक का कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ साइडिंग चार्जेज, टीएमएस और ई-वेब्रिज अथवा वन-हुक रेक प्लेसमेंट इत्यादि का नहीं है, मुद्दा यह है कि एग्रीमेंट की सभी शर्तों को पूरा किए बिना उक्त प्राइवेट साइडिंग को पीएफटी का दर्जा कैसे दे दिया गया? आखिर रेलवे के व्यापार करने के सैद्धांतिक नियमों को जोनल स्तर पर कैसे तोड़ा गया? क्या पार्टी की पहुंच इतनी बड़ी थी कि उसको पीएफटी का दर्जा देने के लिए सारे निर्धारित आवश्यक नियमों को ताक पर रखकर दरकिनार कर दिया गया? ऐसा करने वाले अधिकारीगण रेलवे का व्यापार बढ़ा रहे हैं, या रेलवे का भट्ठा बैठा रहे हैं?

‘रेल समाचार’ का मानना है कि यहां सवाल सिर्फ इस प्राइवेट साइडिंग को नियम विरुद्ध पीएफटी का दर्जा देने का ही नहीं है, बल्कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि संपूर्ण भारतीय रेल के स्तर पर इस प्रकार के कितने ऐसे प्रयास हो रहे हैं, जिससे रेलवे की आय के मुख्य स्रोत मालभाड़ा में भी सेंध लगाई जा रही है और प्राइवेट पार्टियों को अपना कंधा देकर सब कुछ ले जाने को कहा जा रहा है? ऐसी ही स्थिति कभी बीएसएनएल की थी, जिसके तथाकथित मूर्धन्य दूरसंचार अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत हित को तरजीह देकर और सरकार की लचर नीतियों का फायदा उठाते हुए प्राइवेट सेल्यूलर कंपनियों को मार्केट हथियाने की खुली छूट दे दी गई. परिणामस्वरूप आज बीएसएनएल दिवालिया होने के कगार पर है. यदि सभी निर्धारित रेलवे नियमों को दरकिनार करके प्राइवेट साइडिंग को बिना शर्तें पूरी किए ही पीएफटी का दर्जा देने वाले सभी संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल कारगर कार्रवाई नहीं की गई, तो वह दिन दूर नहीं है, जब रेलवे भी इन्हीं अधिकारियों की बदौलत पूरी तरह कंगाल हो जाएगी.