रेल मंत्रालय में तीन-तीन मंत्रियों के होने का क्या है औचित्य?
सुरेश त्रिपाठी
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा गुरूवार, 20 सितंबर को देर रात अंततः लगभग पांच महीने बाद पांच महाप्रबंधकों (जीएम) के पोस्टिंग ऑर्डर्स जारी कर दिए गए. यह भी तब हुआ, जब ‘रेल समाचार’ द्वारा गुरूवार को दोपहर बाद पीएमओ सहित सभी संबंधितों को एक ट्वीट किया गया, इस ट्वीट का पीएमओ द्वारा तुरंत संज्ञान लिया गया. इसके बाद पूरी मशीनरी फौरन हरकत में आ गई. आनन-फानन में अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ द कैबिनेट (एसीसी) ने जर्मनी दौरे पर गए सीआरबी की अनुपस्थिति में ही जीएम सूची की स्क्रीनिंग करके शाम करीब 7.30 बजे डीपीसी को अपना अप्रूवल दे दिया. इसके बाद करीब 8.30 बजे रेलवे बोर्ड ने अधिकृत रूप से सभी पांचों जीएम की पोस्टिंग के आदेश जारी कर दिए.
‘रेल समाचार’ ने गुरूवार को दोपहर बाद किए गए अपने ट्वीट में पीएमओ को लिखा था कि “पांच जोनल जीएम के पद पांच महीनों से खाली हैं और मेंबर रोलिंग स्टॉक, रेलवे बोर्ड (एमआरएस/रे.बो.) की पोस्ट को भी खाली हुए दो महीने होने जा रहे हैं. आखिर रेलमंत्री पीयूष गोयल को किस बात का इंतजार कर रहे हैं? यदि किसी अधिकारी को सेवा-विस्तार देने की उनकी बात नहीं मानी गई है, तो पीएमओ से बात करें, पोस्टिंग क्यों अटकाई है?”
पिछले काफी दिनों से जीएम पैनलिस्ट कई वरिष्ठ अधिकारी ‘रेल समाचार’ से यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि जीएम्स की पोस्टिंग कब हो रही है? आखिर उनकी पोस्टिंग में कहां और क्या अड़चन है? पोस्टिंग आर्डर में देरी होने के कारण ऐसे कुछ वरिष्ठ अधिकारी जीएम बनने से भी वंचित हो गए हैं, क्योंकि इसके लिए उनकी निर्धारित आयु सीमा कम हो गई है. हालांकि इन वरिष्ठ अधिकारियों को यह तो ज्ञात था कि कुछ अधिकारियों द्वारा अपनी वरिष्ठता और जीएम बनने के दावे को लेकर विभिन्न कैट्स में मामले दायर किए गए हैं, इसलिए जीएम पोस्टिंग में देरी हो रही है. परंतु उनका यह भी कहना था कि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है, जब कैट में मामले होने के बावजूद तदर्थ आधार पर जीएम्स की पोस्टिंग की गई है, तब इस बार ऐसा करने में क्या समस्या है?
संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों की चिंता और तर्क बिल्कुल वाजिब थे, तथा यह सब जानकर ‘रेल समाचार’ को भी उनकी बात उचित एवं न्यायसंगत लगी. ‘रेल समाचार’ ने इस बारे में कई बार रेलवे बोर्ड के अपने विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी प्राप्त करने की पर्याप्त कोशिश की, परंतु सूत्र कोई पुख्ता जानकारी नहीं दे पा रहे थे. ऐसे में पीएमओ को इस बारे में सूचित करना ही उचित जान पड़ा और पीएमओ ने भी ‘रेल समाचार’ की उक्त ट्वीट का फौरन संज्ञान लेकर रेलवे सहित जीएम में पोस्टिंग के लिए चातक की भांति इंतजार कर रहे संबंधित अधिकारियों पर बहुत बड़ा उपकार किया है.
रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेश के अनुसार प्रिंसिपल ईडी/स्टेशन डेवलपमेंट राजीव चौधरी (आईआरएसई) को महाप्रबंधक, उत्तर मध्य रेलवे, पीसीई/उ.म.रे. पी. के. मिश्रा को महाप्रबंधक, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, एजीएम/प.म.रे.प्रदीप कुमार (आईआरएसएसई) को डीजी/नायर, बड़ोदा, प्रिंसिपल सीओएम/प.रे. पी. एस. मिश्रा को महाप्रबंधक, दक्षिण पूर्व रेलवे, कोलकाता के पद पर भेजा गया है. सभी संबंधित अधिकारियों ने तत्काल अपना नया पदभार ग्रहण कर लिया है. हालांकि उक्त सभी पोस्टिंग आनंद देव, एम. के. गुप्ता, मनोज पांडेय द्वारा क्रमशः कैट, गुवाहाटी (नं. 168/2018), कैट, मुंबई (नं. 469/2018) एवं कैट, दिल्ली (नं. 100/2936/2017) में दायर याचिकाओं के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेंगी.
एसीसी के अप्रूवल और रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किए गए पोस्टिंग आदेशों के अनुसार दो जीएम की लेटरल शिफ्टिंग भी की है. तदनुसार अजय विजयवर्गीय को महाप्रबंधक, मेट्रो रेलवे, कोलकाता से शिफ्ट करके पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर का महाप्रबंधक बनाया गया है. इसी क्रम में मरगूब हुसैन को डीजी/ आरडीएसओ, लखनऊ से शिफ्ट करके रेलवे व्हील फैक्ट्री, येलाहांका, बंगलुरु भेजा गया है. हालांकि मरगूब हुसैन के साथ ज्यादती हुई है, क्योंकि उनके रिटायरमेंट में सिर्फ छह महीने ही बचे हैं और वह पूरी ईमानदारी एवं कुशलता के साथ पिछले करीब एक साल से आरडीएसओ का कामकाज संभाल रहे थे. श्री विजयवर्गीय की जगह सीओएस/प.रे. पी. सी. शर्मा को मेट्रो रेलवे, कोलकाता का महाप्रबंधक बनाया गया है, जबकि श्री हुसैन की जगह एडवाइजर/एमई/रे.बो. वीरेंद्र कुमार को डीजी/आरडीएसओ के पद पर पदस्थ किया गया है.
ज्ञातव्य है कि ‘रेल समाचार’ की ट्वीट के बाद उक्त पांच जीएम की पोस्टिंग के आदेश तो जारी कर दिए गए, मगर मेंबर रोलिंग स्टॉक, रेलवे बोर्ड (एमआरएस) की नियुक्ति का अब भी कोई अता-पता नहीं है, और न ही इस संबंध में रेलवे बोर्ड का कोई वरिष्ठ अधिकारी कुछ बताने को तैयार है. तथापि हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि एमआरएस की पोस्टिंग का प्रस्ताव करीब दो महीने से रेलमंत्री की टेबल पर पड़ा हुआ है. उन्होंने इस दरम्यान एक जीएम को सेवा-विस्तार देने का प्रस्ताव पीएमओ को भेजा था, जिसे पीएमओ ने अस्वीकार कर दिया था और फाइल वापस कर दी थी. देखें- ‘तीन अक्षम मेंबर्स से मिला भारतीय रेल को छुटकारा’.
सूत्रों का कहना है कि इसके बाद राजेश अग्रवाल, जीएम/एमसीएफ, टी. पी. सिंह, जीएम/उ.प.रे. और एल. सी. त्रिवेदी, जीएम/पू.म.रे. के नामों का नया पैनल/प्रस्ताव बनाकर करीब एक महीने पहले रेलवे बोर्ड ने फाइल रेलमंत्री को सौंप दी थी. सूत्रों ने बताया कि चर्चा यह थी कि 5 सितंबर को रेलमंत्री ने उक्त फाइल अपने हस्ताक्षर करके पीएमओ को भेज दी है. परंतु बाद में पता चला कि फाइल रेलमंत्री की टेबल पर ही पड़ी है और उन्होंने अब तक उस पर अपने हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं. सूत्रों ने रेलवे बोर्ड के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से बताया कि रेलमंत्री एक जीएम विशेष को सेवा-विस्तार देकर उन्हें एमआरएस बनाने पर अड़े हुए हैं.
उल्लेखनीय है कि इसी आधार पर ‘रेल समाचार’ ने उपरोक्त ट्वीट की थी. यहां यह भी ज्ञातव्य है कि रेलवे में अतिरिक्त सचिव (जीएम) स्तर के अधिकारी को सेवा-विस्तार दिए जाने की अब तक कोई परंपरा नहीं रही है. रेलवे बोर्ड के कई वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यदि ऐसा होता है, तो यह एक गलत परंपरा होगी, जिससे कार्यक्षम एवं योग्य अधिकारियों के काम करने का उत्साह खत्म हो जाएगा. उनका यह भी कहना है कि रेलमंत्री, सरकार के नक्शेकदम पर चलना चाहते हैं, जिसने कई विभागीय सचिवों को सेवा-विस्तार देकर उनकी सेवाएं ली हैं. तथापि रेल मंत्रालय में ए. के. मिताल उर्फ ‘स्टोरकीपर’ को एकमुश्त दो साल का सेवा-विस्तार देने का एकमात्र प्रयोग बुरी तरह असफल साबित हो चुका है. अब यदि सरकार निचले स्तर पर ऐसा कोई अन्य प्रयोग करती है, तो यह रेल प्रबंधन के लिए अत्यंत घातक साबित होगा.
उल्लेखनीय है कि पीयूष गोयल को कोयला मंत्रालय के साथ ही रेल मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाले एक साल पूरा हो चुका है. इस पूरे एक साल में वह मधेपुरा का डीजल लोको कारखाना बंद कर देने का आदेश करने के बाद अमेरिकी झाड़ पड़ने पर माफी मांगकर उसे जारी रखने, सेना से रेलवे पुल बनवाने, मध्य रेलवे मुख्यालय को मुर्दाघर में तब्दील करने, समय से पहले अरबों रुपये का यूरोपीय सिग्नलिंग सिस्टम लाने, अनावश्यक रेल विद्युतीकरण करने जैसे कई अन्य ऊलजलूल एवं फालतू निर्णय लेने और आरपीएफ को गृह मंत्रालय भेज देने जैसी लफ्फाजी करने के अलावा कोई ठोस काम नहीं कर पाए हैं.
पूरे साल पीक सीजन सहित भारतीय रेल की लगभग सभी प्रीमियम ट्रेनें न सिर्फ खाली दौड़ी हैं, बल्कि यह आज भी दो तिहाई से ज्यादा खाली चल रही हैं. साल भर ट्रेनों की लेट-लतीफी का आलम यह रहा है कि 35-40 घंटों तक गाड़ियों के लेट होने का रिकॉर्ड कायम हुआ है. वह भी तब, जब कहीं कोहरे का सीजन भी नहीं था. एसी फेल होने, साफ-सफाई नहीं होने की तो लाखों शिकायतें आज भी जारी हैं. ओबीएचएस और ईएनएचएम के माध्यम से रेलवे में भारी भ्रष्टाचार पैदा हो चुका है. जुगाड़ पोस्टिंग के जरिए स्टेशन डायरेक्टरों और एडीआरएम जैसे पदों पर बैठे कुछ अधिकारियों की चांदी हो रही है. पीयूष गोयल इस सबसे अनभिज्ञ होंगे, यह मानना मुश्किल है?
पीयूष गोयल ने रेलमंत्री का कार्यभार लेने के तत्काल बाद फरमान जारी कर दिया था कि हम हाथ जोड़कर यात्रियों से माफी मांग लेंगे, ट्रेनें भले ही लेट चलें, पर कोई दुर्घटना नहीं होनी चाहिए. उनका उद्देश्य या चालाकी स्पष्ट थी कि जब ट्रेनें कच्छप गति से चलेंगी, तो दुर्घटना होने का कोई कारण ही नहीं होगा. उस पर जले में खाज यह कि खतौली दुर्घटना की पृष्ठभूमि में इंजीनियरिंग विभाग ने जगह-जगह कॉशन आर्डर ठोंक दिए. ऑपरेटिंग विभाग को पीछे ढकेलकर बुनियादी या ढांचागत सुधार के लिए धड़ाधड़ ब्लाक दिए जाने लगे. उनकी न तो उचित मॉनिटरिंग की गई, और न ही उनमें निर्धारित काम हो पाया, मगर इससे समयानुसार गाड़ियों का संचालन बुरी तरह चौपट हो गया. परिणामस्वरूप आज पूरी भारतीय रेल का ऑपरेटिंग रेश्यो 135-140% के आसपास चला गया है. हालांकि पीयूष गोयल सब कुछ ठीक होने का ढिंढोरा पीटे जा रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उनकी रेल गर्त में जा चुकी है.
जब पूरे देश में रेलयात्रियों ने गाड़ियों की भयानक और असहनीय लेट-लतीफी को लेकर भारी हंगामा मचाया और प्रधानमंत्री ने भी इसका संज्ञान लिया, तो पीयूष गोयल ने रेलवे बोर्ड के सामने घुटने टेक दिए और हाथ जोड़कर कहा कि कुछ भी हो, पर गाड़ियां सही समय पर चलाओ. हालांकि प्रधानमंत्री ने समयानुसार हस्तक्षेप करके पीयूष गोयल की बचकानी हरकतों (परियोजनाओं) पर उचित लगाम लगाई और उनके द्वारा प्रस्तावित अनावश्यक परियोजनाओं को तत्काल रद्द करके रेलवे के करोड़ों-अरबों रुपये बरबाद होने से बचाए हैं. पूरे साल समय पर गाड़ियों का संचालन सुनिश्चित न करवा पाने पर सरकार की वाहवाही और ज्यादातर अन्य विभागों के कार्यों को प्रचारित करने में अतिसक्रिय पीयूष गोयल की यात्रियों द्वारा अभी-भी ट्वीटर पर भारी फजीहत की जा रही है. इस दरम्यान नियम विरुद्ध चार्टर्ड हवाई उड़ानों में आईआरसीटीसी का करोड़ों रुपया फूंकने और टेंडर कंडीशंस को कई सफाई ठेकेदारों के पक्ष में बनवाकर भ्रष्टाचार को अपना संरक्षण प्रदान करने में भी पीयूष गोयल ने कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
श्री गोयल, प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ की घोषणा की भी लाज नहीं रख पाए. रेलवे में पिछले साढ़े चार सालों के दौरान कई गुना भष्टाचार बढ़ा है, इस तथ्य की गवाही सीवीसी की सालाना रिपोर्टें दे रही हैं. इफरात पैसा नालियों के निर्माण और फर्जी यात्री सुविधाओं में बहाया जा रहा है, जबकि रेलकर्मियों के आवास बिना मरम्मत पड़े हैं. जिस गांव-खेड़े की लाइन पर चौबीस घंटों में सिर्फ एक ट्रेन की आवाजाही हो रही है, उसका विद्युतीकरण किया जा रहा है और इसका ढिंढोरा आसमान तक पीटा जा रहा है. ट्वीटर पर रेल परियोजनाओं की सिर्फ घोषणाएं हो रही हैं, जमीनी स्तर पर अब तक उनका समुचित विकास नजर नहीं आ रहा है.
एमटीआर द्वारा समय से पहले तमाम टेंडर रद्द कर दिए जाने से कई महत्वपूर्ण विद्युतीकरण परियोजनाएं अधर में लटक गई हैं. दलालों और बिचौलियों के माध्यम से चहेते विद्युत् अधिकारियों की पेड-पोस्टिंग हो रही हैं. तथापि रेलमंत्री ने एमटीआर जैसे सर्वज्ञात कदाचारी मेंबर को सार्वजनिक रूप से ईमानदारी का तमगा दिया है. इस दरम्यान श्री गोयल के ‘बरगदाकार मगर लफ्फाज अस्तित्व’ के चलते रेल मंत्रालय के दोनों राज्यमंत्रियों का अस्तित्व रेल भवन के गलियारों में कहीं गुम होकर रह गया है. रेलवे बोर्ड और पूरी भारतीय रेल में अब शायद ही किसी को यह याद हो कि रेल मंत्रालय में मनोज सिन्हा और राजेन गोहेन नामक दो रेल राज्यमंत्री भी हैं.
तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय व्यस्तताओं के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर हमेशा रेलवे पर रही है. यही कारण है कि रेलवे में तीन-तीन मंत्री होने के बावजूद प्रधानमंत्री लगभग हर महीने रेलवे बोर्ड के सभी मेंबर्स एवं वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर उनके साथ न सिर्फ राय-मशवरा करते हैं, बल्कि रेलवे की ताजा स्थिति की समीक्षा करते हुए तदनुरूप सुधार एवं विकास के नए दिशा-निर्देश भी जारी करते हैं. हाल ही में हुई ऐसी ही एक बैठक में उन्होंने रेलवे के कामकाज को लेकर पुनः काफी असंतोष व्यक्त किया है. रेलवे बोर्ड के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर ‘रेल समाचार’ से एक बातचीत में कहा जब सभी कामकाज की देखरेख और आवश्यक निर्णय एवं दिशा-निर्देश प्रधानमंत्री को ही लेने/देने हैं, तो तीन-तीन मंत्रियों के रेलवे में होने का औचित्य ही क्या है?