200 ड्राइवरों को बैठाकर किए गए 40 करोड़ के वेतन भुगतान का जिम्मेदार कौन?
रेलवे को 40 करोड़ का चूना लगाने वाले सीनि.डीईई/टीआरओ को जीएम ने किया पुरस्कृत
रेलवे को हुए 40 करोड़ के नुकसान की भरपाई सीनियर डीईई/टीआरओ/मुंबई से करवाई जाए
लोको पायलट और मोटरमैनों की सैकड़ों वैकेंसी के बावजूद 200 ड्राइवरों को 10 माह से बैठाकर दिया जा रहा वेतन
रेलसमाचार ब्यूरो, मुंबई : मध्य रेलवे, मुंबई मंडल के सीनियर डीईई/टीआरओ की कार्य-प्रणाली वास्तव में काबिले तारीफ है. वह मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) के सर्वाधिक प्रिय-पात्र भी हैं. इसके अलावा अभी कुछ दिन पहले ही उन्हें महाप्रबंधक द्वारा सम्मानित भी किया गया है. जानते हैं क्यों? क्योंकि वह अपने किसी भी वरिष्ठ अधिकारी की बात नहीं सुनते, ऐसा खुद वरिष्ठ अधिकारियों का ही कहना है, या फिर यह भी संभव है कि वरिष्ठ अधिकारीगण यूनियन को कुछ बता रहे हों, और सीनियर डीईई/टीआरओ को कुछ और ही दिशा-निर्देश दे रहे हों. ये महाशय अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में अब तक न जाने कितने ड्राइवरों की नौकरी खा चुके हैं. शायद इनका ही परिवार है, जबकि ड्राइवर तो परिवारविहीन होते हैं.
जातीय तौर पर पक्षपाती बताए जा रहे सीनियर डीईई/टीआरओ, मुंबई मंडल, मध्य रेलवे को पुरस्कृत करने का शायद यह भी एक कारण है कि करीब 200 मालगाड़ी चालकों को यह पिछले करीब 10 माह से कल्याण अप-यार्ड में बैठाकर खिला रहे हैं, जबकि मेल/एक्सप्रेस/पैसेंजर गाड़ियों में लोको पायलट्स और सबर्बन में मोटरमैनों की वैकेंसी का पहाड़ खड़ा हुआ पड़ा है. जहां सैकड़ों की संख्या में लोको पायलट्स और मोटरमैनों की वैकेंसी हों, वहां 200 लोको पायलट्स को सरप्लस रखकर और उनको बैठाकर वेतन दिया जाना अत्यंत आश्चर्यजनक है. ऐसा कैसे संभव है, यह सीनियर डीईई/टीआरओ से अविलंब पूछा जाना चाहिए और उनसे इस राशि की रिकवरी की जानी चाहिए.
यदि एक लोको पायलट का वेतन सामान्य तौर पर भी प्रतिमाह एक लाख रुपये भी माना जाए, तो 200 X 100000 = 2 करोड़ रुपये प्रतिमाह होता है. उधर सबर्बन में वैकेंसी के चलते करीब इतना ही ओवरटाइम मोटरमैनों को प्रतिमाह दिया जा रहा है, यानि कि मात्र 400,00,000 रुपये (चार करोड़ रुपये) प्रतिमाह का भारी नुकसान सीनियर डीईई/टीआरओ की सनक अथवा अहमन्यता के चलते रेलवे को उठाना पड़ रहा है. इसकी भरपाई कैसे होगी, क्योंकि पिछले 10 महीनों में (10 माह X 4 करोड़) कुल 40 करोड़ रुपये का स्पष्ट नुकसान रेलवे को हो चुका है.
रेलवे के नियमानुसार किसी डिपो की स्वीकृत संख्या से एक भी कर्मचारी ज्यादा होने पर उसका वेतन दिया जाना संभव नहीं हो सकता. परंतु सीनियर डीईई/टीआरओ, मुंबई ने इस नियम को झूठा साबित कर दिया है और डीआरएम सहित मध्य रेलवे के सभी उच्चाधिकारी कान में तेल डालकर सोये हुए हैं. जबकि सीनियर डीईई/टीआरओ ने 200 सरप्लस ड्राइवरों के वेतन भुगतान (40 करोड़ रुपये) का करिश्मा करके मंडल रेल प्रबंधक तथा महाप्रबंधक का दिल जीत लिया!
जाहिर है कि सीनियर डीईई/टीआरओ, मुंबई की सनक के सामने सीनियर डीपीओ तथा सीनियर डीएफएम ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं. यानि सीनियर डीईई/टीआरओ ने ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ के चलते सीनियर डीपीओ और सीनियर डीएफएम को भी अधिकारविहीन कर डाला. इनकी तत्परता से ऐसा महसूस होता है कि कुछ समय बाद संपूर्ण मुंबई मंडल को ये अकेले ही बड़ी आसानी से संभाल लेंगे और अन्य मंडल अधिकारियों को भी संभवतः ड्राइवरों की ही तरह रेलवे से बाहर जाना पड़ सकता है.
धन्य हैं ऐसे अधिकारी, धन्य हैं उनको शह देने वाले बड़े अधिकारी, बस सीनियर डीईई/टीआरओ जैसे अहंमन्य अधिकारियों के सामने यदि कोई बेबस है, तो वह रेलवे है, जो अपनी अस्मत लुटते देखकर भी बेबस है. यदि भारत की किसी भी एजेंसी, मंत्री, सरकार अथवा जन-प्रतिनिधि में तनिक सा भी राष्ट्र प्रेम बचा है, तो उपरोक्त तथ्यों का सत्यापन और जांच करके इसका उचित और अविलंब संज्ञान लिया जाए तथा 200 ड्राइवरों को 10 महीने तक बैठाकर किए गए 40 करोड़ के नुकसान की भरपाई संबंधित अधिकारियों के वेतन से करवाए जाने की कोशिश की जाए.