April 7, 2019

रेलवे बोर्ड को आखिर वापस लेना पड़ा अपना बचकाना ट्रांसफर आदेश

अदालत द्वारा मेंबर ट्रैफिक को तलब करने पर रद्द हुआ राहुल का तबादला

मामले में रेलवे बोर्ड और सुशासन बाबू की हुई एक बार फिर भारी किरकिरी

जगह बदल-बदलकर लंबे समय से टिके अधिकारियों को दिल्ली से हटाया जाए

सुरेश त्रिपाठी

विगत कुछ वर्षों में रेलवे बोर्ड द्वारा जानबूझकर अथवा जाने-अनजाने कुछ ऐसे निर्णय लिए गए, जिससे न सिर्फ ट्रैफिक एवं कमर्शियल अफसरों को नीचा और भ्रष्ट दर्शाने की कोशिश होती नजर आ रही है, बल्कि मैकेनिकल, सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल और एसएंडटी जैसे पृष्ठभूमि वाले सर्विस विभागों को कुछ इस प्रकार से वरीयता भी दी जाने लगी कि वे अपना निर्धारित तकनीकी कार्य छोड़कर बाकी सारा कार्य करने में ज्यादा तत्पर नजर आ रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से मेंबर ट्रैफिक की पोस्ट पर कुछ ऐसे अकर्मण्य और अहंकारी ट्रैफिक अधिकारियों को पदोन्नत किया गया, जो अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते ट्रैफिक कैडर का कोई भला तो नहीं कर पाए, मगर बुरा अवश्य कर गए.

उपरोक्त पृष्ठभूमि में विगत एक साल के दौरान जहां राहुल एवं पंकज कुमार जैसे कुछ ट्रैफिक एवं कमर्शियल अधिकारियों के विरुद्ध इंटर-रेलवे ट्रांसफर की अनावश्यक और पूर्वाग्रही कार्यवाही रेलवे बोर्ड ने की, वहीं मनोज कुमार, डिप्टी सीओएम/द.पू.रे. जैसे लंबे समय से एक ही जगह बैठे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भ्रष्ट अधिकारियों का बाल भी बांका करने में रेलवे बोर्ड का वर्तमान निजाम कामयाब नहीं हो सका. राहुल के साथ ज्यादती हुई, यह जग-जाहिर है और यह ज्यादती अदालत में भी साबित हो चुकी है, जिससे हड़बड़ाकर अब पांच महीने बाद रेलवे बोर्ड ने उनका तबादला रद्द कर दिया है.

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा सोमवार, 1 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया है कि ‘2 मई 2018 को उत्तर मध्य रेलवे में किया गया राहुल का तबादला रद्द माना जाए.’ उल्लेखनीय है कि नई एवं पुरानी दिल्ली स्टेशनों पर सक्रिय कुछ दलालों सहित जेटीबीएस/सीटीबीएस एवं पार्किंग ठेकेदारों की झूठी शिकायत पर अति-सक्रिय हो उठे रेल प्रशासन ने राहुल के तबादले का आदेश रात 10 बजे जारी करवाया था और उन्हें तत्काल स्पेयर भी करा दिया था. राहुल ने अपने खिलाफ हुई इस ज्यादती के विरुद्ध कैट की प्रिंसिपल बेंच दिल्ली का दरवाजा इस आधार पर खटखटाया कि यह आदेश पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर जारी किया गया है, जबकि उनकी पोस्टिंग दिल्ली में उनके बच्चे की बीमारी (आटिज्म) का इलाज करवाने के निवेदन पर हुई है.

राहुल द्वारा दिए गए सभी सबूतों के आधार पर अदालत ने रेल प्रशासन के विरुद्ध पहली ही सुनवाई में भारी नाराजगी जाहिर की और रेलवे बोर्ड से हलफनामा देते हुए स्पष्टीकरण मांगा. बताते हैं कि तब रेलवे बोर्ड निजाम को अपनी गलती का अहसास हुआ, और वह तत्काल भागे-भागे मेंबर ट्रैफिक के चैम्बर में पहुंचकर राहुल के तबादले को निरस्त करने की बात करने लगे, मगर तत्कालीन मेंबर ट्रैफिक ने निजाम की बात नहीं मानी, शायद इसी तरह वह निजाम साहब को यह अनुशासनिक संदेश देना चाहते रहे होंगे कि मामले की विस्तृत जांच और संबंधित मेंबर, एडीशनल मेंबर को विश्वास में लिए बिना ऐसा कोई कदम उनके स्तर से नहीं उठाया जाना चाहिए था. इसका परिणाम यह हुआ कि अदालत ने पिछली तारीख की सुनवाई के बाद वर्तमान मेंबर ट्रैफिक को उसके समक्ष व्यक्तिगत रूप से 8 अक्टूबर को हाजिर रहने का आदेश दे दिया.

कैट के समक्ष बोर्ड मेंबर (सेक्रेटरी, भारत सरकार) की व्यक्तिगत हाजिरी से पूरी व्यवस्था की भारी किरकिरी होने वाली थी. इस परिप्रेक्ष्य में अदालत के समक्ष उपस्थिति से बचने के लिए सर्वप्रथम राहुल को यह ऑफर दिया गया कि वह अपना केस वापस ले लें, तो उनका तबादला निरस्त कर दिया जाएगा. बताते हैं कि इस पर राहुल ने कहा कि पहले उनका तबादला रद्द किया जाए, उसके बाद ही वह अपना केस अदालत से वापस लेंगे, अन्यथा केस वापस लेने का उनके पास कोई आधार नहीं है. अंततः कोई और रास्ता न होने से रेलवे बोर्ड निजाम ने पहले राहुल का तबादला रद्द करने में ही अपनी भलाई समझी. इस तरह निजाम साहब के एक और बचकाने निर्णय की एक बार फिर किरकिरी हुई है.

यह सारा प्रकरण निश्चित रूप से भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है, परंतु रेलवे बोर्ड निजाम ने जिस प्रकार से हड़बड़ी में निर्णय लिया, वह उनकी प्रशासनिक अपरिपक्वता को दर्शाता है. जानकारों का कहना है कि कोई कितना भी मुंहलगा हो, उसकी बताई गई बात या उसके द्वारा की गई शिकायत की जब तक उचित जांच न करा ली जाए और संबंधित विभाग के बोर्ड मेंबर एवं अन्य उच्च अधिकारियों को भरोसे में न ले लिया जाए, तब तक उस पर कोई भी कदम उठाना वाजिब नहीं कहा जा सकता है. प्रस्तुत मामले में जिस मुख्य कार्यालय अधीक्षक (चीफ ओएस) ने पैसे की उगाही की थी, वह तो कैट से स्टे लेकर मौज से अपनी नौकरी कर रहा है, रेलवे बोर्ड निजाम और जीएम/उ.रे. उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए. वह उस डीसीएम का भी कुछ नहीं कर पाए, जिसके खिलाफ चार लाख रुपये लेने की शिकायत हुई है. मगर राहुल, जिनके विरुद्ध ऐसा कोई सबूत नहीं था, को अत्यंत अपमानजनक तरीके से रात 10 बजे इंटर-रेलवे तबादले का आदेश पकड़ाकर स्पेयर कर दिया गया.

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस जेटीबीएस/सीटीबीएस एवं पार्किंग कांट्रेक्ट को निरस्त करने के लिए राहुल के विरुद्ध उगाही करने की झूठी शिकायत रेलवे बोर्ड निजाम को उनके मुंहलगे दलालों ने जाकर की थी, उन्हें वास्तव में विजिलेंस की जांच के बाद और उसकी सिफारिश पर निरस्त किया गया था. तत्संबंधी रिकार्ड्स ‘रेल समाचार’ के पास मौजूद हैं. बताते हैं कि राहुल का कांड करवाने के बाद दलालों की यही लॉबी उत्तर रेलवे ट्रैफिक विजिलेंस के सीवीओ सहित उन सभी सतर्कता निरीक्षकों को भी ठिकाने लगाने यानि विजिलेंस से उन्हें हटवाने की मुहिम में लग गई थी, जिन्होंने उक्त जेटीबीएस/सीटीबीएस एवं पार्किंग कॉन्ट्रैक्ट्स में चल रही अवैध गतिविधियों की जांच की थी और जिनकी अनुशंसा पर उक्त कॉन्ट्रैक्ट्स को निरस्त किया गया था.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस संबंध में कई दलालों ने ‘रेल समाचार’ को ईमेल भेजकर तथा मोबाइल पर कॉल करके संबंधित सतर्कता अधिकारियों के विरुद्ध फर्जी और मनगढ़ंत मटीरियल प्रकाशित करवाने की भी कोशिश की थी. बताते हैं कि यही वह दलाल हैं, जिनकी चापलूसी में आकर ‘सुशासन बाबू’ ने नई एवं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों पर कुछ जगह आवंटित कर दी थी. कालांतर में दोनों स्टेशनों की यही दोनों जगहें इन दलालों की असामाजिक, अपराधिक और समस्त अवैध गतिविधियों का अड्डा बन गई हैं. उत्तर रेलवे के कई वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यही काम यदि किसी वाणिज्य अधिकारी ने किया होता, तो उसके खिलाफ विजिलेंस ही नहीं, बल्कि सीबीआई का मामला दर्ज हो जाता. ईडी/सीसी जैसे कुछ अधकचरे और गैर-अनुभवी तथा अपने में उलझे रहने वाले दिग्भ्रमित अधिकारियों से घिरे सुशासन बाबू तब अपने इस निर्णय को न तो सही ठहरा पाए थे, और न ही कोई वाजिब जवाब दे पाए थे.

अब जहां तक पंकज कुमार के तबादले की बात है, तो उनको उत्तर रेलवे से हटाने की साजिश के तहत ‘4के’ लॉबी ने उनके साथ दो प्रमोटियों के भी तबादले उ.म.रे. के लिए करवाए थे. अब दोनों प्रमोटियों को न ही जाना था, और न ही वह गए, दोनों के तबादले भी अब रद्द कर दिए गए हैं. बताते हैं कि इस लॉबी ने भविष्य को ध्यान में रखकर उन्हीं युवा अधिकारियों को उत्तर रेलवे से हटाने की साजिश की है, जो आगे चलकर इसके विभिन्न मंडलों में सीनियर डीसीएम और सीनियर डीओएम बनने वाले हैं और जिन्होंने इस लॉबी की जोड़तोड़ और भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने से इंकार कर दिया था.

इसी दरम्यान इस लॉबी की एक अन्य साजिश के तहत पंकज कुमार का नाम फॉरेन ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल कर दिया गया, जबकि वह उ.म.रे. में ज्वाइन नहीं किए थे. अब यदि वह ड्यूटी ज्वाइन नहीं करते, तो उनको आगे फॉरेन ट्रेनिंग का अवसर नहीं मिलता. अतः मजबूरी में उन्हें उ.म.रे. में ज्वाइन करना पड़ा. इस प्रकार यह ‘4के’ लॉबी कम से कम पंकज कुमार के मामले में अपने मकसद में कामयाब हो गई. वास्तव में जिस प्रकार अंशुल गुप्ता को दिल्ली/बोर्ड से हटाया गया, उसी प्रकार उत्तर रेलवे सहित दिल्ली में जगह बदल-बदलकर और यहां अपनी लॉबी बनाकर लंबे समय से टिके कुछ चोर, चापलूस और चरित्रहीन अधिकारियों को फौरन हटाए जाने की जरूरत है.

क्रमशः – ‘पेड प्रचार का पर्दाफाश होने पर सीपीआरओ/उ.रे. को बलि का बकरा बनाया गया!’