राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-6
भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी में गाड़ियां किराए पर लेने की नई परंपरा शुरू
‘नायर’ के प्रोफेसर्स को बंगला प्यून उपलब्ध कराए जाने का क्या औचित्य है?
वड़ोदरा : भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी, वड़ोदरा में सभी प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स को किराए पर लेकर गाड़ियां मुहैया कराए जाने के एक प्रकार के नए संदिग्ध कार्य-व्यवहार का मामला सामने आया है. यहां इस नए कार्य-व्यवहार को ‘रेल समाचार’ द्वारा दि. 08.12.2018 को “राष्ट्रीय रेल अकादमी, वड़ोदरा में चल रहा भावनात्मक कदाचार” शीर्षक से प्रकाशित खबर से उजागर हुए अन्य मामलों की ही तरह योजनाबद्ध तरीके से लागू किया गया है. जबकि बताते हैं कि ज्यादातर प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स अकादमी कैम्पस में ही रहते हैं. इसका अर्थ यह है कि रेलवे के खर्च पर यह गाड़ियां उन्हें निजी उपयोग हेतु मुहैया कराई गई हैं.
अकादमी के विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार कायदे से भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी में प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स को किराए पर गाड़ी (प्राइवेट अकाउंट) पर उपलब्ध कराने का कोई नियम नहीं है, लेकिन भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी, वड़ोदरा में उलटी गंगा बह रही है. भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी, वड़ोदरा में सभी प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स को गाड़ी किराए पर मुहैया कराने का स्थानीय नियम बनाकर यह काम किया गया है.
प्रोफेसर/आईएम एवं ट्रांसपोर्ट अधिकारी एस. के. पटनायक द्वारा 21 अगस्त 2018 को जारी स्वीकृति पत्र (सं. एमजीएस/ट्रांसपोर्ट/17/08) के अनुसार यह गाड़ियां अकादमी द्वारा वड़ोदरा की ही एक स्थानीय निजी ट्रेवल एजेंसी को प्रतिदिन चौबीसों घंटे की उपलब्धता के लिए प्रतिमाह 2000 किमी. के हिसाब से प्रतिमाह 54,199 रुपये के किराए पर ली गई हैं. इसके अलावा दो हजार किमी. के बाद प्रति किमी. 12 रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया जाएगा.
सूत्रों का कहना है कि फिलहाल छह महीने के लिए ली गई इस अनोखी सुविधा का लाभ यहां के सभी प्रोफेसर/ऑफिसर को मिल रहा है. इस तरह की तीन-चार गाड़ियां किराए पर ली गई हैं और इससे रेलवे को प्रतिमाह लाखों रुपया का चूना लगाया जा रहा है. जनता की गाढ़ी कमाई को मुफ्त की सुविधाओं में लुटाया जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सब जानबूझकर और रेलमंत्री को बताए बिना किया जा रहा है या इसमें भी रेलवे बोर्ड की कोई मिलीभगत है?
सूत्रों का यह भी कहना है कि इसी तरह रेलवे बोर्ड की मिलीभगत से यहां के प्रोफेसर्स को बंगला प्यून भी उपलब्ध करा दिए गए हैं, जिसका कोई औचित्य किसी की समझ में नहीं आ रहा है. जबकि बंगला प्यून उन अधिकारियों को उपलब्ध कराने का नियम है, जो फील्ड ड्यूटी करते हैं और अपने घर से बाहर रहते हैं. जबकि ‘नायर’ में कार्यरत प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स को फील्ड में जाने का कोई काम नहीं होता है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक अधिकारी/प्रोफेसर ने अपने ही सहकारी एक अन्य प्रोफेसर के लड़के को अपने यहां बंगला प्यून में रखा है, जिसका अर्थ यह है कि निकट भविष्य में उसकी पदोन्नति होने पर वह उक्त प्रोफेसर के लड़के अथवा उसके किसी अन्य नजदीकी नाते-रिश्तेदार को अपने पास बंगला प्यून में रख लेगा. आपस में एक-दूसरे के सगे-संबंधियों को बंगला प्यून, वह भी सिर्फ कागज पर, रखकर रेलवे में पिछले दरवाजे से नियुक्ति का यह खेल खूब धड़ल्ले से चल रहा है. इससे पहले यह खेल नांदेड़ मंडल दो अधिकारियों सहित सहित अन्य कई जोनल/मंडल अधिकारियों द्वारा खेला जा चुका है.