“राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-3”

‘भावनात्मक प्रशिक्षण’ के बहाने ‘भावनात्मक अत्याचार’

राष्ट्रीय रेल अकादमी, वड़ोदरा में चल रहा ‘भावनात्मक कदाचार’

41,500 रु. प्रति अधिकारी रेलवे सिखा रही है ‘इमोशनल इंटेलीजेंस’

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड अपने जीएम/डीआरएम जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को अब ‘इमोशनल इंटेलीजेंस’ का प्रशिक्षण दे रहा है. इसका मतलब यह है कि रेलवे बोर्ड में बैठे तथाकथित मूढ़-धन्य अधिकारी अपने अलावा फील्ड में रहकर तमाम कठिन समस्याओं का सामना करते हुए भारतीय रेल को सुचारु रूप से चलाने वाले इन वरिष्ठ रेल अधिकारियों को ‘भावना रहित’ अथवा ‘भावनात्मक रूप से शून्य’ मानकर उनके साथ ‘भावनात्मक अत्याचार’ कर रहे हैं? इसका अर्थ यह भी है कि उन्हें रेलयात्रियों, रेलकर्मियों और देश की जनता से कोई भावनात्मक लगाव नहीं रह गया है? या फिर इसका मतलब यह निकाला जाना चाहिए कि रेलवे बोर्ड में बैठकर कूप-मंडूक बने हुए बोर्ड के यह अधिकारी जन-राजस्व को लूटने और भ्रष्टाचार करने के रोज कोई न कोई नए तरीके खोजने में अपनी समस्त काबिलियत का इस्तेमाल कर रहे हैं? यदि ऐसा नहीं है, तो फिर प्रति जीएम/डीआरएम, यानि प्रति व्यक्ति, प्रति लेक्चर 41,500 रुपये जैसा महंगा प्रशिक्षण कार्यक्रम किस सोच का द्योतक है? वह भी बिना ओपन टेंडर किए ही यह प्रोग्राम सिर्फ ईमेल पर एक कंपनी से उसका कोटेशन मंगाकर दे दिया गया है.

रेलवे बोर्ड के निर्देशानुसार वड़ोदरा स्थित भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी यानि ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंडियन रेलवे उर्फ ‘नायर’ में जीएम/डीआरएम के लिए ‘लीडिंग विद इमोशनल इंटेलीजेंस’ की प्रशिक्षण कार्यशाला चलाई जा रही है. इसके लिए नवी मुंबई की एक कंपनी ‘पार एक्सीलेंस लीडरशिप सोल्यूशंस प्रा.लि.’ को ‘सिंगल कोटेशन कांट्रेक्ट’ दिया गया है. दि. 14.11.2018 को प्रोफेसर/एमएस एवं सेक्रेटरी/डीजी स्वयंभू आर्य द्वारा जारी किए गए ‘लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस’ के अनुसार डीआरएम के लिए तीन दिवसीय कोर्ष हेतु प्रति भागीदार (यानि प्रति डीआरएम) प्रति व्याख्यान (लेक्चर) की प्रोफेशनल फीस 41,500 रुपये + जीएसटी है. इस पत्र के अनुसार गत 17,18,19 नवंबर को डीआरएम का पहले समूह ‘इमोशनल इंटेलीजेंस’ उर्फ ‘प्रोफेशनल कदाचार’ का यह महंगा डोज ले चुका है. इससे पहले 10-11 नवंबर को दो दिवसीय कोर्ष में जीएम के एक समूह को यह डोज दिया जा चुका था. जबकि 8,9,10 दिसंबर को अगले तीन दिवसीय कोर्ष में डीआरएम के दूसरे समूह को यह डोज दिया जाना है.

‘नायर’ स्थित विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि ‘पार एक्सीलेंस लीडरशिप सोल्यूशंस’ को यह कांट्रेक्ट ईमेल पर उसका सिंगल कोटेशन अथवा सिंगल टेंडर मंगाकर दे दिया गया, जबकि नियमानुसार इसके लिए ओपन टेंडर होना चाहिए था. सूत्रों की यह बात इसलिए भी सही है, क्योंकि रेलवे बोर्ड ने भी अपने पत्र सं. 2018/ट्रांसफॉर्मेशन सेल/ईआई ट्रेनिंग/जीएम एंड डीआरएम, दि. 03.12.2018 में भी कहीं यह नहीं कहा है कि इसके लिए सिंगल टेंडर आधार पर कांट्रेक्ट दे दिया जाए.

इस पत्र के मुताबिक तीन चरणों में यह ‘इमोशनल इंटेलीजेंस’ का प्रशिक्षण सभी जोनल महाप्रबंधक (जीएम), सभी अपर महाप्रबंधक (एजीएम), सभी 69 मंडलों के मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम), रेलवे बोर्ड एवं आरडीएसओ के सभी प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स (पीईडी), सभी मुख्य कारखाना प्रबंधक (सीडब्ल्यूएम) और सभी अपर मंडल रेल प्रबंधकों (एडीआरएम) के बाद ब्रांच ऑफिसर्स के रूप में कार्यरत सभी मंडलों के एसजी/जेएजी स्तर के अधिकारियों को भी दिया जाने वाला है. इन सभी अधिकारियों के आने-जाने, रहने-खाने इत्यादि पर जो अतिरिक्त खर्च आएगा, वह कंपनी को किए जाने वाले भुगतान से अलग होगा.

जानकारों का कहना है कि सिंगल टेंडर सुरक्षा, बाढ़, अकाल या अन्य विशेष आपातकालीन परिस्थितियों में ही देश-समाज के हित में जारी किया जाता है, न कि किसी व्यक्ति विशेष को अथवा किसी चहेती कंपनी को पुरस्कृत करने के लिए दिया जाता है. लेकिन ‘नायर’ में उलटी गंगा बह रही है. सामान्यतः एक व्याख्यान (लेक्चर) में 35 से 40 अधिकारी उपस्थित होते हैं. इस प्रकार यदि देखा जाए तो प्रति व्यक्ति प्रति लेक्चर के लिए 41,500 रुपये के आधार पर एक दिन में कंपनी को लगभग 14.53 लाख से 16.60 लाख रुपये का भुगतान करना कहां तक जायज है?

आम तौर पर सिंगल टेंडर उस व्यक्ति को दिया जाता है, जिस काम को कोई अन्य नहीं कर सकता हो. जबकि आजकल ‘इमोशनल इंटेलीजेंस’ अथवा ‘भावनात्मक कार्य-व्यवहार’ सिखाने-बताने के लिए भारत में बहुत सारे नामी-गिरामी और जाने-माने प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट हैं. लेकिन नियम को दरकिनार करके ‘नायर’ द्वारा सिंगल टेंडर के आधार पर ‘पार एक्सीलेंस लीडरशिप सोल्यूशंस’ को प्रति व्यक्ति व्याख्यान के लिए 41,500 रुपये के आधार पर कांट्रेक्ट दिया गया है. यह कहां तक उचित है?

जानकारों का स्पष्ट मत है कि यह सब रेलवे बोर्ड की मिलीभगत से ही संभव है और इसमें रेलवे बोर्ड के तथाकथित ‘ट्रांसफॉर्मेशन सेल’ की संदिग्ध भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है. नायर के सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने फिलहाल दो लेक्चर दिए हैं, जबकि उसके यह लेक्चर भविष्य में भी जारी रहने की उम्मीद है, जैसा कि रेलवे बोर्ड के दि. 03.12.18 के उपरोक्त पत्र से भी जाहिर है. उनका कहना है कि यदि कंपनी ने महीने में दो-तीन लेक्चर भी दिए, तो रेलवे द्वारा उसे 30 से 40 लाख रुपये का भुगतान एक महीने में किया जाएगा. जनता की यह गाढ़ी कमाई इस तरह मुफ्त में लुटाने का कोई औचित्य नहीं है.

इसके अलावा जानकारों का यह भी कहना है कि देश में ऐसे तमाम इंस्टिट्यूट और सरकारी कार्यालयों के बहुत सारे काबिल अधिकारी हैं, जो ऐसे लेक्चर देने में सक्षम हैं, उन्हें इसके लिए बुलाया जा सकता था. उनका कहना है कि क्या रेल मंत्रालय में ऐसा कोई भी अधिकारी नहीं है, जो इस प्रकार का व्याख्यान दे सके? आज अचानक इस तथाकथित इमोशनल इंटेलीजेंस की जरूरत क्यों आ पड़ी है? जनता के टैक्स की खुली लूट इस प्रकार से कहां तक उचित है?

‘नायर’ में सभी सक्षम अधिकारियों को उनके दो-ढ़ाई लाख रुपये के मासिक मासिक वेतन के अलावा उन्हें वेतन का 24% टैक्स-फ्री ट्रेनिंग भत्ता दिया जा रहा है. एक-एक विभाग में तीन से चार सक्षम अधिकारी हैं. जैसे यांत्रिक में चार अधिकारी, कार्मिक में चार अधिकारी, सिंगनल में तीन और ऐसे ही अन्य सभी विभाग में हैं. कुछ अधिकारी तो एक दिन में एक भी व्याख्यान नहीं देते हैं, फिर भी पूरा ट्रेनिंग भत्ता ले रहे हैं. इसके अलावा यहां गेस्ट लेक्चर के लिए भी बाहरी लोगों अथवा रिटायर्ड अधिकारियों को बुलाया जाता है. ऐसे में यहां 25-30 अधिकारियों के होने का औचित्य क्या है?

सूत्रों ने बताया कि ऐसे लगभग सभी अधिकारियों को मेहमान भत्ता भी यहां दिया जाता है. जिसमें वह उक्त कथित मेहमान को चाहे होटल में ट्रीट करें या अपने घर पर, मगर उन्हें 5 से 10 हजार रुपये मेहमान भत्ता मिलता है, जिसे उन्हें बिना बिल के ही सिर्फ एक कागज पर लिखकर प्रस्तुत करना होता है. बाकी कुछ नहीं करना पड़ता. सूत्रों ने बताया कि ‘नायर’ में नई भर्ती हुई एक महिला डॉक्टर, जिसकी डिलीवरी रेलवे ज्वाइन करने से डेढ़-दो महीने पहले ही हो चुकी थी, ने रेलवे में ज्वाइन करने के बाद डिलीवरी बताकर दो साल के मातृत्व अवकाश का लाखों रुपये वेतन ले लिया और ट्रांसफर होकर दक्षिण रेलवे में चली गई. इसका पर्दाफाश होने के बाद अब उससे रिकवरी की जा रही है.

उपरोक्त विषय के प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में ‘रेल समाचार’ ने डीजी/नायर प्रदीप कुमार से संपर्क करके जब उनकी प्रतिक्रिया जानने का प्रयास किया, तो उन्होंने सीधे शब्दों में स्वीकार किया कि हां, रेलवे बोर्ड के निर्देशानुसार ऐसा प्रोग्राम नायर में चलाया जा रहा है. उनसे जब यह पूछा गया कि इतने महंगे प्रोग्राम के लिए सिर्फ एक कंपनी को कोटेशन देकर कांट्रेक्ट देने के बजाय ओपन टेंडर क्यों नहीं किया गया, तो इसके जवाब में उनका कहना था कि इस प्रकार के विशेष प्रोग्राम के लिए ज्यादा ऑप्शन (विकल्प) मौजूद नहीं हैं. यह एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण है, जिसे रेलवे में पहली बार शुरू किया गया है. इस पर जब उनसे पूछा गया कि यह पूरा देश ही पारिवारिक एवं सामाजिक भावनाओं और भावनात्मक लगाव के आधार पर चल रहा है, जहां हमें पैदा होने के साथ ही घर-परिवार-समाज से यह सब विरासत में मिलता है, वहां इस प्रकार के महंगे प्रशिक्षण से नया क्या होने वाला है? इसके जवाब में वह थोड़ा गड़बड़ा गए, मगर फिर कहा कि ऐसे सभी संबंधों में भी जिस प्रकार रिफ्रेशर की जरूरत होती है, उसी प्रकार प्रशासनिक कामकाज में इस प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है. उन्होंने यह भी कहा कि जहां तक देश में ऐसे अन्य इंस्टिट्यूट्स मौजूद होने की बात है, तो जिन लोगों को ऐसे इंस्टिट्यूट्स की जानकारी है, वह उनके बारे में अपना सुझाव दे सकते हैं.

बहरहाल, डीजी/नायर का पक्ष पर्याप्त रूप से संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. तथापि यह सही है कि रेलवे में इस प्रकार का कदाचार और मनमानी चरम पर है. लगभग सभी टेंडर्स में खुली मनमानी चल रही है. पिछले डेढ़ सालों में ‘सुशासन बाबू’ की तमाम नेक-नीयती किसी काम की साबित नहीं हुई है. प्रधानमंत्री और रेलमंत्री बढ़िया शब्दावली और लच्छेदार भाषा में भ्रष्टाचार के विरुद्ध बहुत लंबे-चौड़े भाषण देते हैं, मगर उनकी नौकरशाही पर उसका कोई प्रभाव पिछले चार-पांच सालों के दौरान पड़ते हुए कहीं देखने में नहीं आया है. जिस प्रकार ईमानदार पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की पीठ पीछे हजारों-लाखों करोड़ का भ्रष्टाचार होता रहा, उसी प्रकार वर्तमान प्रधानमंत्री के पीठ पीछे भी हो रहा है. बल्कि उनके भाषणों का संदेश यह लिया जा रहा है कि जितना भी भ्रष्टाचार करना हो, करो, लोग चिल्लाते हैं, तो चिल्लाने दो, उनके चिल्लाने पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि न तो भ्रष्टों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाएगी, और न ही किसी शिकायत पर कान दिया जाएगा. सीवीसी और सीबीआई जैसी प्रतिष्ठित केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी पंगु बना दिए जाने से घोर निराशा छाई हुई है. जबकि रेलवे विजिलेंस को चुप बैठा दिया गया है. यही वजह है कि पिछले चार-पांच सालों में किसी भी मामले में किसी बड़े अधिकारी के विरुद्ध कोई कारगर कार्रवाई नहीं हो पाई है, बल्कि अब तो खुलेआम एक-दूसरे को बचाने का खेल पूरी निर्लज्जता के साथ खेला जा रहा है.