टेंडर की टेक्निकल बिड स्क्रूटिनी में अनियमितता
मध्य रेलवे विजिलेंस द्वारा जांच में की जा रही कोताही
जांच को दिग्भ्रमित करके संबंधित अधिकारी को बचाने का प्रयास
‘टेलर मेड बजटरी प्रावधान’ सहित ‘इंफ्लेटेड रेट’ पर बनाया गया टेंडर
किसी कांट्रेक्टर, फर्म, पार्टी या कंपनी को टेंडर देने के लिए जब फेवर करना होता है, तो उसके लिए रेल अधिकारी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते. फिर इसके लिए चाहे उन्हें अतिरिक्त अनुमानित लागत (टेलर मेड बजटरी) का प्रावधान करना पड़े, या अनावश्यक दरों (इंफ्लेटेड रेट्स) पर टेंडर बनाना पड़े अथवा चार-पांच महीने बाद राष्ट्रीय छुट्टी के दिन बाकी टीसी मेंबर्स को दरकिनार करके अकेले ही लोएस्ट (एल-1) आने वाले बिडर को अयोग्य ठहराने की घोषणा वेबसाइट पर करने का भारी जोखिम लेना पड़े, यही नहीं, इस कदाचार के कारण विजिलेंस केस हो सकता है, इससे खुद की नौकरी भी जा सकती है, इत्यादि से बिना कोई भय खाए कुछ रेल अधिकारी ऐसे अनौचित्यपूर्ण निर्णय बेखौफ होकर ले रहे हैं. ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा सरकारी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की तमाम घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं ही साबित हुई हैं.
इसके अलावा ‘सुशासन बाबू’ द्वारा रेलवे विजिलेंस की कार्य-प्रणाली पर यथासंभव ब्रेक लगाए जाने से भी जोनल रेलों के विजिलेंस अधिकारी इसका लाभ उठाते हुए न सिर्फ ‘आदतन कदाचारी’ अधिकारियों को बचा रहे हैं, बल्कि खुद भी खुलकर उनके कदाचार में शामिल होकर भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं. मध्य रेलवे विजिलेंस का एक ऐसा ही मामला ‘रेल समाचार’ के संज्ञान में आया है, जहां खुद एक कांट्रेक्टर द्वारा ही की गई पुख्ता और स्पष्ट शिकायत के बावजूद संबंधित डिप्टी सीवीओ द्वारा बोगस कारणों पर न सिर्फ जांच को भटकाया जा रहा है, बल्कि शिकायत को ही आधारहीन बताकर और मामले को बंद करके सीवीसी तक फाइल को जाने से भी रोकने का आधार तैयार किया जा रहा है.
मुंबई मंडल, मध्य रेलवे पर डीजल इंजन पावर कार के सालाना अनुरक्षण के लिए जारी टेंडर नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/एलटीटी/2017-03, दि. 05.01.2018 के संबंध में सीवीसी को यह शिकायत मुंबई की एक फर्म ‘धारा रेल प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड’ ने 14 जुलाई 2018 को की थी, जिसमें कहा गया था कि एक खास फर्म को फेवर करने के लिए उसके एल-1 होने के बावजूद उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही उसे जानबूझकर अयोग्य घोषित किया गया. ‘रेल समाचार’ के पास उपलब्ध शिकायत की प्रति और टेंडर डाक्यूमेंट्स के अनुसार दो पैकेट सिस्टम वाले इस ओपन टेंडर की कुल विज्ञापित लागत, जिसे पहले ‘अनुमानित लागत’ लिखा जाता था, 14,91,20,206.37 रुपये (चौदह करोड़, इक्यानबे लाख बीस हजार दो सौ छह रुपये सैंतीस पैसे) थी.
इस टेंडर की पहली टेक्निकल बिड एक महीने बाद 5 फरवरी 2018 को खोली गई, जिसमें धारा रेल प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई, और कमिंस इंडिया लि., पुणे तथा दीव जेनसेट एंड सर्विसेज, दिल्ली नामक तीन फर्मों ने भाग लिया. इनके ऑफर क्रमशः रु. 5,85,10,049 (एल-1), और रु. 5,51,70,788.87 (एल-2), तथा रु. 6,29,93,512.67 (एल-3) थे. यहां यह देखने योग्य है कि जब कमिंस इंडिया का रेट 33% कम और दीव जेनसेट का रेट 23.50% कम है, तो धारा रेल प्रोजेक्ट्स का रेट इन दोनों फर्मों से भी कम रहा होगा. यानि उपरोक्त विज्ञापित लागत से यह सभी तीनों रेट औसतन 35% कम आए. इसका साफ मतलब है कि टेंडर की कुल लागत को बढ़ा-चढ़ाकर बनाया गया. जानकारों का कहना है कि इस टेंडर की कुल लागत अधिकतम 11-12 करोड़ से ज्यादा नहीं हो सकती थी, जो कि उक्त तीनों ऑफर्स से साफ जाहिर हो रहा है. इससे यह भी साबित होता है कि धारा रेल प्रोजेक्ट्स द्वारा सीवीसी को की गई शिकायत में कही गई यह बात सही है.
उल्लेखनीय है कि इस शिकायत की प्रतियां सभी संबंधित डाक्यूमेंट्स के साथ रेलमंत्री, सीआरबी, मेंबर रोलिंग स्टॉक, मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड सहित एसडीजीएम/म.रे. (दि.16.07.18) को भी दी गई हैं. शिकायत में कहा गया है कि वह यानि धारा रेल प्रोजेक्ट्स टेंडर की सभी सेवा-शर्तें पूरी कर रही थी और इससे संबंधित सभी आवश्यक कागजात भी जमा कराए थे. परंतु टेंडर खुलने के चार महीने दस दिन बाद शनिवार, दि. 16.06.2018 को रमजान ईद की राष्ट्रीय छुट्टी के दिन टीसी कन्वेनर (सीनियर डीईई/कोचिंग) ने बिना दोनों अन्य टीसी मेंबर्स को बताए अकेले के डिजिटल हस्ताक्षर से धारा रेल प्रोजेक्ट्स को वेबसाइट पर अयोग्य घोषित कर दिया. उल्लेखनीय है कि टेंडर प्रक्रिया के नियमानुसार किसी भी बिडर/फर्म को अयोग्य घोषित करने के लिए टीसी के कम से कम दो सदस्यों की उपस्थिति (डिजिटल हस्ताक्षर) अनिवार्य होती है.
यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि नियमानुसार किसी एक फर्म को अयोग्य घोषित करने के समय बाकी फर्मों के रेट्स भी उसके साथ वेबसाइट पर अपलोड करने होते हैं, जो कि धारा रेल प्रोजेक्ट्स को अयोग्य घोषित करने के समय अपलोड नहीं किए गए थे. इसी प्रक्रिया के अंतर्गत अयोग्य घोषित होने वाली फर्म की दूसरी बिड यानि फाइनेंसियल बिड नहीं खोली जाती है. जबकि उपलब्ध डॉक्यूमेंट के अनुसार बाकी दोनों फर्मों की फाइनेंसियल बिड भी 5 फरवरी 2018 को ही खोले जाने की बात कही गई है, जिसमें दोनों फर्मों के उपरोक्त रेट्स खुले थे. यहां बहुत स्वाभाविक सवाल यह उठता है कि यदि बाकी दोनों फर्मों की फाइनेंसियल बिड भी 5 फरवरी को ही खोल दी गई थी, तो चार महीने दस दिन बाद 16 जून को धारा रेल प्रोजेक्ट्स को अयोग्य घोषित करने के समय बाकी दोनों फर्मों के रेट्स भी वेबसाइट पर नियमानुसार अपलोड क्यों नहीं किए गए थे? इसका मतलब यह है कि टेंडर प्रक्रिया में भारी घालमेल किया गया है.
शिकायत में कहा गया है कि अयोग्य घोषित करने और नियमानुसार टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के संदर्भ में जब संबंधित अधिकारी (सीनियर डीईई/कोचिंग) से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने इस विषय पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कोई भी बात करने से मना कर दिया. शिकायत में यह भी कहा गया है कि इस संदर्भ टेंडर कमेटी (टीसी) के एक अन्य सदस्य (सीनियर डीएफएम) का कहना था कि सच यह है कि सीनियर डीईई/कोचिंग किसी भी हालत में धारा रेल प्रोजेक्ट्स को इस टेंडर से अलग (डिबार) करना चाहते थे, जो कि उन्होंने कर दिया और यह उन्होंने टेक्निकल टीसी होते ही अपने व्यक्तिगत प्रमाणीकरण (पर्सनल सर्टिफिकेशन) पर किया है.
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