बरेली रिश्वत कांड : स्वयं को बचाने में जुटे मंडल अधिकारी
सीबीआई द्वारा रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा गया कुख्यात ‘इंडियन’
विजिलेंस एडवाइस के बावजूद ‘इंडियन’ और टीआई को पदस्थ किया गया
‘इंडियन और टीआई’ की देखरेख में चलता है अवैध वेंडिंग का बड़ा कारोबार
बरेली : उत्तर रेलवे, मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत बरेली जंक्शन पर मंडल अधिकारियों के आशीर्वाद से लंबे समय से चलाया जा रहा अवैध वेंडिंग का बड़ा खेल शनिवार, 27 जनवरी को सीबीआई ने उजागर किया. बताते हैं कि जिस अनिल चंद्र नामक कार्यालय अधीक्षक (ओएस) को 17 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए सीबीआई ने रंगेहाथ पकड़ा है, उसका पूरा नाम ‘अनिल चंद्र श्रीवास्तव’ है, मगर वह अपनी नेम प्लेट पर सिर्फ ‘इंडियन’ लिखता है. यह ओएस अधिकृत वेंडर्स की स्वीकृति और उनका मेडिकल मेमो देने के लिए वेंडर सहकारी समिति के सेक्रेटरी और कैटरिंग कांट्रेक्टर राजकुमार शर्मा से प्रति वेंडर दो हजार रुपये के हिसाब से 17 हजार रुपये लेते हुए पकड़ा गया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ समय पहले इसी अवैध वेंडिंग के कारोबार के आरोप में विजिलेंस की एडवाइस पर बीसों साल से बरेली स्टेशन पर जमे एक स्टेशन अधीक्षक सहित इस कथित ‘इंडियन’ कार्यालय अधीक्षक को भी बरेली से बाहर पदस्थ किया गया था. परंतु मंडल के वर्तमान निजाम (डीआरएम एवं सीनियर डीओएम) ने विजिलेंस एडवाइस को धता बताते हुए स्टेशन अधीक्षक को बतौर ट्रैफिक इंस्पेक्टर (टीआई) और इंडियन को स्टेशन अधीक्षक कार्यालय में बतौर ओएस पुनः बरेली स्टेशन पर ही पदस्थ कर दिया.
कर्मचारियों का कहना है कि जाहिर है कि उक्त दोनों बदनाम और भ्रष्ट कर्मचारियों को पुनः बरेली में ही मुफ्त में तो संबंधित अधिकारियों ने पदस्थ नहीं किया होगा. उनका कहना है कि उक्त दोनों कमर्चारी पिछले बीसों साल से बरेली में पदस्थ रहकर बरेली-शाहजहांपुर सहित मंडल के लगभग सभी बड़े रेलवे स्टेशनों पर पानी बिकवाने का अवैध कारोबार करते रहे हैं. उन्होंने बताया कि इन दोनों ने अपने इस अवैध कारोबार के लिए एक रेलवे आवास को अपना गोदाम भी बना रखा रखा था. इन्हीं आरोपों के चलते हुई विजिलेंस जांच के बाद इन दोनों को भविष्य में बरेली स्टेशन पर पुनः पदस्थ नहीं किए जाने की एडवाइस विजिलेंस ने की थी.
कर्मचारियों का कहना है कि बरेली स्थित जाट रेजिमेंट की दारू और प्रतिदिन लाखों रुपये की अवैध कमाई मुफ्त में पाने के लालच के चलते संबंधित मंडल अधिकारियों ने इन दोनों कर्मचारियों को पुनः बरेली स्टेशन पर तैनात किया. उनका कहना है कि इस बात का प्रमाण यह है कि विजिलेंस ने ‘इंडियन’ को जिस जगह पुनः कभी पदस्थ नहीं किए जाने की एडवाइस की थी, संबंधित मंडल अधिकारियों ने उक्त एडवाइस को ताक पर रखकर उसे स्टेशन अधीक्षक कार्यालय में ही पदस्थ कर दिया, जिसका परिणाम आज सबके सामने है.
‘रेलवे समाचार’ को अपने सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वेंडर सहकारी समिति के सेक्रेटरी और कैटरिंग कांट्रेक्टर राजकुमार शर्मा को अपने खानपान स्टाल पर कुछ नए वेंडर रखने थे, क्योंकि उनके पुराने वेंडर काम छोड़कर चले गए थे. इसके लिए उन्होंने स्टेशन अधीक्षक कार्यालय में नए वेंडर्स के लिए मेडिकल मेमो देने का आवेदन किया था. इसके लिए प्रति वेंडर निर्धारित विभागीय फीस मात्र 20 रुपये है, जिसकी एवज में इंडियन बाबू द्वारा उनसे बतौर रिश्वत प्रति वेंडर 2000 रुपये की मांग की गई.
बताते हैं कि ओएस इंडियन द्वारा आजकल में मेमो देने की बात कहकर कांट्रेक्टर को लगातार दौड़ाया और परेशान किया जा रहा था. इस उत्पीड़न से तंग आकर कैटरिंग कांट्रेक्टर शर्मा ने सीबीआई से संपर्क किया और रिश्वत मांगे जाने की शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद सीबीआई ने ट्रैप लगाया और शनिवार, 27 जनवरी को स्टेशन अधीक्षक कार्यालय में कांट्रेक्टर शर्मा से 17 हजार रुपये की नकद रिश्वत लेते हुए ओएस इंडियन को रंगेहाथ गिरफ्तार करके सीबीआई अपने साथ लखनऊ ले गई.
उल्लेखनीय है कि इंडियन रेलवे कमर्शियल मैन्युअल-2 के पैरा 2824(वी) के अनुसार स्टेशन अधीक्षक/स्टेशन मास्टर को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह अपने स्टेशन के खानपान स्टालों पर कार्यरत वेंडर्स का मेडिकल परीक्षण सुनिश्चित करे. चूंकि वेंडर्स का मेडिकल परीक्षण करवाना स्टेशन अधीक्षक की जिम्मेदारी है और चूंकि सीबीआई द्वारा उसके कार्यालय में ही कार्यालय अधीक्षक ‘इंडियन’ को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़ा गया है, इसलिए सीनियर डीओएम द्वारा स्टेशन अधीक्षक को तत्काल बरेली से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया है और कार्यालय अधीक्षक को सीबीआई की प्राथमिक रिपोर्ट मिलने के बाद तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है.
‘रेलवे समाचार’ को अपने सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में डीआरएम/मुरादाबाद ने बरेली स्टेशन के मुख्य वाणिज्य निरीक्षक (सीएमआई) को तत्काल बरेली से बाहर ट्रांसफर किए जाने की तैयारी दिखाई है, मगर उन्होंने इसका कोई उचित कारण स्पष्ट नहीं किया है. जबकि जहां सूत्रों का यह कहना है कि संबंधित सीएमआई का इस मामले में कल्पना से परे भी कोई संबंध स्पष्ट नहीं है. वहीं कई कर्मचारियों का कहना है कि वर्तमान स्थिति में सीएमआई का ट्रांसफर किए जाने से गलत संदेश जा सकता है. उनका कहना है कि निर्धारित नियमों से स्वतः स्पष्ट है कि सीएमआई का वेंडर्स को मेडिकल मेमो देने या उनका परीक्षण करवाए जाने से कोई संबंध नहीं है. यह कार्य नियमानुसार स्टेशन अधीक्षक और कार्यालय अधीक्षक के अधिकार में है.
कर्मचारियों का कहना है कि डीआरएम साहेब शायद इस मामले में किसी तरह मंडल के वाणिज्य विभाग की भी भूमिका स्थापित करना चाहते हैं, जबकि नियम और जमीनी स्तर पर भी दूर-दूर तक इस मामले से वाणिज्य विभाग का कोई संबंध स्थापित नहीं है. उनका कहना है कि डीआरएम साहेब शायद इस तीर से मंडल के वाणिज्य विभाग पर अपना निशाना साधना चाहते हैं, जबकि पूर्व स्टेशन अधीक्षक को बतौर टीआई और कार्यालय अधीक्षक दोनों को विजिलेंस एडवाइस के बावजूद बरेली में ही पदस्थ करवाने में डीआरएम साहेब की प्रमुख भूमिका रही है.
इसके अलावा कई कर्मचारियों ने ‘रेलवे समाचार’ को यह भी बताया कि डीआरएम साहेब शिकायतकर्ता संबंधित कैटरिंग कांट्रेक्टर राजकुमार शर्मा का कैटरिंग लाइसेंस भी किसी भी तरह रद्द करने की भूमिका बना रहे हैं, जिससे वाणिज्य विभाग को इस मामले में फंसाया जा सके, मगर उनके इस भ्रष्ट प्रयास का परिणाम रेलवे की और ज्यादा बदनामी के सिवा कुछ नहीं होने वाला है.
कर्मचारियों ने यह भी बताया कि बरेली से जाट रेजिमेंट की दारू और डेली कलेक्शन लेकर मुरादाबाद पहुंचने वाले संबंधित टीआई को शाम से रात के 11 बजे तक डीआरएम बंगले पर कभी देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस तरह के अवैध कारोबार उच्च अधिकारियों के आशीर्वाद के बिना चलना संभव नहीं है. इस मामले की आंच चूंकि डीआरएम और सीनियर डीओएम तक पहुंच रही है, इसलिए स्वयं को बचाने के लिए उनके द्वारा अब अवैध कार्रवाई की भूमिका बनाई जा रही है.