20 एमएम कोटा स्टोन से सस्ता कैसे हो सकता है 25 एमएम कोटा स्टोन?

उत्तर रेलवे कंस्ट्रक्शन आर्गेनाईजेशन का कमाल, कॉन्ट्रैक्टर्स को बंदर बना दिया गया

अधिकारियों द्वारा बड़ी चालाकी से किया जा रहा है लागत में कमी करने अथवा दर्शाने का नाटक

टेंडर के साथ निर्धारित ड्राइंग नहीं देकर बाद में उसमें हेराफेरी करके कॉन्ट्रैक्टर्स को किया जाता है परेशान

रेलवे ने अपनी रेट लिस्ट में तमाम आइटम्स की दरें सीपीडब्ल्यूडी की दरों से हजार गुने से भी ज्यादा रखी हैं

विशेष प्रतिनिधि, नई दिल्ली

उत्तर रेलवे, कंस्ट्रक्शन आर्गेनाईजेशन में वैसे तो बहुत सारी कमियां और कमीनियां होती रही हैं, मगर यहां कुछ चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने और कुछ ठेकेदारों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अथवा किसी अधिकारी के निहितस्वार्थ के चलते उनके चालू टेंडर्स को बीच में ही रद्द करने जैसे कमाल भी होते रहे हैं. इसके अलावा किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा निकट भविष्य में रेलवे बोर्ड में मेंबर बनने की धौंस दिखाकर भी यहां किसी कांट्रेक्टर का न सिर्फ चालू टेंडर रद्द किए जाने का दबाव बनाया जाता है, बल्कि एक टेंडर में लोएस्ट होने के बावजूद उसको बायपास करके टेंडर किसी और को दे दिया जाता है. रेलवे बोर्ड के लिखित दिशा-निर्देश के बावजूद यहां किसी भी टेंडर के साथ पहले से निर्धारित ड्राइंग-डिजाइन नहीं दी जाती है और बाद में उसमें हेराफेरी करके कॉन्ट्रैक्टर्स को परेशान किया जाता है.

विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर रेलवे, कंस्ट्रक्शन आर्गेनाईजेशन ने अपनी रेट लिस्ट में 25 एमएम के कोटा स्टोन की दर 20 एमएम के कोटा स्टोन से कम रखी है, जबकि 25 एमएम कोटा स्टोन की बाजार दर 20 एमएम कोटा स्टोन से लगभग 35 प्रतिशत अधिक है. यही नहीं, सीपीडब्ल्यूडी की रेट लिस्ट को फॉलो करने में रेलवे के इन निर्माण अधिकारियों को अपनी हेठी महसूस होती है, जबकि इन्होंने अपनी रेट लिस्ट में तमाम जिंसों अथवा आइटम्स की दरें सीपीडब्ल्यूडी की दरों से एक-दो नहीं, बल्कि हजार गुना से भी ज्यादा रखी हुई हैं. कुछ समय पहले ‘रेलवे समाचार’ ने इस बात को सप्रमाण साबित किया था, तब उत्तर रेलवे ने इस संबंध में करेक्टिव नोटिफिकेशन भी जारी किया था.

इसके अलावा सूत्रों का यह भी कहना है कि उत्तर रेलवे, कंस्ट्रक्शन आर्गेनाईजेशन ने ‘इंडिविजुअल आइटम्स’ पर रिबेट देना भी प्रतिबंधित कर दिया है. उनका कहना है कि यह काम भी किसी अपने चहेते कांट्रेक्टर को उपकृत करने और किसी अन्य कांट्रेक्टर को दरकिनार और प्रताड़ित किए जाने के उद्देश्य से ही किया गया है. सूत्रों का कहना है कि ऐसे में रेलवे को समुचित बैलेंस रेट नहीं मिल पा रहे हैं, जबकि टेंडर के एक्जीक्यूशन के समय अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके संबंधित अधिकारियों द्वारा कॉन्ट्रैक्टर्स को परेशान और प्रताड़ित किया जाता है. इस संबंध में कई कॉन्ट्रैक्टर्स का कहना है कि ‘जब यूएसओआर 2010 में तमाम विसंगतियां हैं, तब इंडिविजुअल रिबेट को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है? इसके अलावा रेलवे बोर्ड अथवा सीवीसी का भी इंडिविजुअल आइटम्स पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाए जाने का ऐसा कोई ऑर्डर नहीं आया है.’

सूत्रों का कहना है कि यदि रेलवे द्वारा किसी कांट्रेक्टर से कुछ विशेष आइटम्स को रिबेट पर लिया जा रहा है, तो इसका मतलब यह है कि संबंधित कांट्रेक्टर को मालूम है कि उसके पास उक्त आइटम पहले से ही इफरात में पड़ा हुआ है और वह अपने पास पड़े उक्त आइटम को एवं उसकी मात्रा को ध्यान में रखकर ही टेंडर में रेट कोट कर रहा है. ऐसे ही कांट्रेक्टर अपनी ‘जुगाड़’ पर रेलवे में काम कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि यदि किसी आइटम की खरीद के लिए रेलवे द्वारा टेंडर किया जाता है, और उक्त आइटम किसी कांट्रेक्टर या सप्लायर के पास पहले से स्टॉक में है, और वह उक्त आइटम पर टेंडर में रिबेट डालकर अथवा रेलवे को डिस्काउंट देकर उसमें लोएस्ट आता है, तथा रेलवे को भी इससे फायदा होता है, तब ऐसे में रेलवे द्वारा रिबेट को प्रतिबंधित किए जाने का क्या औचित्य है?

सूत्रों के अनुसार खुले बाजार में 20 एमएम कोटा स्टोन की अपेक्षा 25 एमएम कोटा स्टोन करीब 35 प्रतिशत महंगा है. ऐसे में कोई कांट्रेक्टर इन दोनों आइटम के लिए समान दर रेलवे को कैसे दे सकता है? उनका कहना है कि जिस तरह मरे हुए आदमी और जानवर के शारीर पर मेडिकल या वैज्ञानिक प्रयोग किए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार कॉन्ट्रैक्टर्स को टेंडर अवार्ड करने के बाद रेलवे में उस पर प्रयोग किए जा रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि यहां सगाई में लड़की कोई दिखाई जाती है, और शादी के समय किस और लड़की को बैठा दिया जा रहा है. रेलवे में इसी प्रकार की घटिया चालबाजी कई कॉन्ट्रैक्टर्स के साथ की जा रही है. इस पर भी संबंधित रेल अधिकारियों द्वारा बड़ी चालाकी के साथ लागत में कमी करने अथवा दर्शाने का नाटक किया जा रहा है.