एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को जारी रखना रेलवे को आर्थिक रूप से डुबाने वाला कदम

पूर्व-सेवा अवधि का उपयोग एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने में नहीं होगा -सुप्रीम कोर्ट

सिर्फ रेलवे में ही लागू है एंटी-डेटिंग और कोनोटेशन ऑफ पे का विचित्र नियम

रेलवे अधिनियम द्वारा पारित रेलवे कोड में मौजूद नहीं है एंटी-डेटिंग का नियम

आर्थिक स्थिति खराब होने पर भी अधिकारियों को प्रमोशन में एंटी-डेटिंग देना जारी

पूर्णरूपेण असंवैधानिक है प्रमोशन के समय में दी जाने वाली एंटी-डेटिंग सीनियरिटी

पी.सुधाकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना एंटीडेटिंग नियम को अवैध और असंवैधानिक

असंवैधानिक एंटी-डेटिंग का नियम रेलवे पर डाल रहा है अरबों रुपयों का अतिरिक्त बोझ

प्रमोशन के दौरान किसी गफलत के चलते प्रचलित है एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का प्रावधान

खुला राष्ट्रद्रोह है एंटी-डेटिंग के लिए जानबूझकर किया जा रहा सरकारी खजाने का दुरुपयोग

संवैधानिक पीठ के दिशा-निर्देश के सामने आधारहीन और अमान्य हैं डिवीजनल बेंच के आदेश

ग्रुप’ए’ प्रमोशन के दौरान जोनल ट्रांसफर करके लगाई जाए रेलवे में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम

रेल राजस्व में नियम संगत सुधार के लिए रे.बो. में उच्च पदों पर पदस्थ अधिकारी हैं जिम्मेदार

सुरेश त्रिपाठी

गत सप्ताह रेलवे बोर्ड में एंटी-डेटिंग सीनियरिटी के संदर्भ में गठित समिति की बैठक में इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (इरपोफ) और फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशंस (एफआरओए) दोनों ने अपना-अपना पक्ष रखा. प्राप्त जानकारी के अनुसार इरपोफ के पदाधिकारी बिना कोई तर्कसंगत बात किए अथवा कोई वाजिब तर्क-वितर्क प्रस्तुत किए ही सिर्फ यही कहते रहे कि जो व्यवस्था वर्तमान में चल रही है, उसे ज्यों का त्यों जारी रहने दिया जाए. जबकि एफआरओए के प्रतिनिधियों ने पी. सुधाकर राव मामले सहित मुरलीधर, ए. के. निगम इत्यादि तमाम अदालती निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी की वर्तमान व्यवस्था न सिर्फ भेदभावपूर्ण, गैर-कानूनी, असंवैधानिक, नियमबाह्य, समयबाह्य और अमान्य है, बल्कि इससे रेल राजस्व को सालाना अरबों रुपयों का चूना लग रहा है. अतः इसे अविलंब समाप्त किया जाना चाहिए. बहरहाल, उक्त बैठक का अंतिम निष्कर्ष क्या रहा, यह तो ज्ञात नहीं हो सका है, परंतु विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार डायरेक्टर फाइनेंस ने वर्तमान एंटी-डेटिंग प्रक्रिया को न सिर्फ त्रुटिपूर्ण माना, बल्कि इसे समाप्त किए जाने के पक्षधर रहे.

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में पी. सुधाकर राव मामले में निर्णय देते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम अवैध और असंवैधानिक है. ज्ञातव्य है कि पूर्व में प्रमोशन के दौरान एंटी-डेटिंग सीनियरिटी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुल 9 आदेश जारी किए गए थे, जिनमें से चार मामलों में एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को सही ठहराया गया था, जबकि पांच मामलों में इसको समानता के खिलाफ बताते हुए अनुचित करार दिया गया था. इस वजह से प्रमोशन के समय दी जाने वाली एंटी-डेटिंग सीनियरिटी के मामले में सुप्रीम कोर्ट को अंतिम और परिपूर्ण आदेश देने की जरूरत पड़ी.

अतः इक्वेलिटी (समानता) और ब्रॉडर प्रॉस्पेक्टिव्स (व्यापक संभावनाओं) को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एंटी-डेटिंग सीनियरिटी मामले पर पी. सुधाकर राव मामले में तीन जजों वाली संवैधानिक पीठ के माध्यम से अंतिम निर्णय वर्ष 2013 में सुनाया गया. इस निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिया कि ‘प्रमोशन के समय पूर्व-सेवा अवधि का उपयोग सिर्फ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया की गणना में किया जाएगा तथा पूर्व-सेवा अवधि का उपयोग एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.’

इस प्रकार पूर्व के 9 मामले, जिन पर सुप्रीम कोर्ट की डिवीजनल बेंच द्वारा निर्णय दिया गया था, अब संवैधानिक पीठ के उपरोक्त दिशा-निर्देश के समक्ष आधारहीन, समयबाह्य और अमान्य हो चुके हैं. अतः वर्ष 2013 से ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के समय में दी जाने वाली एंटी-डेटिंग सीनियरिटी पूर्णरूपेण असंवैधानिक और नियम विरुद्ध है.

रेलवे में भी ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने का एक प्रावधान किसी मिलीभगत या गफलत के चलते पिछले कुछ वर्षों से प्रचलित है, जिसके तहत ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों को अधिकतम 5 वर्षों की सीनियरिटी में वरीयता दी जा रही है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के पी. सुधाकर राव मामले में दिए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है. इस तरह रेलवे में मौजूदा एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम असंवैधानिक होने के साथ-साथ रेलवे के खजाने पर वार्षिक अरबों रुपयों का अतिरिक्त बोझ डाल रहा है. चूंकि रेलवे के खजाने का पैसा राष्ट्र की संपत्ति है. इस प्रकार यदि कोई सरकारी तंत्र किसी षडयंत्र के तहत अथवा अनजान बनकर किसी एक खास वर्ग-विशेष को लाभ देता है, तो यह जानबूझकर सरकारी खजाने के दुरूपयोग का मामला बनता है, जो पूरी तरह राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है.

Apex court’s judgments on provision of ante-dating seniority

Hon’ble Apex court’s latest judgment in “P. Sudhakar Rao vs Govinda Rao civil Appeal Nos. 1712/1713 of 2002” by the decision of a constitutional (three Judge) Bench of Hon’ble Supreme court exercising Civil Appellate jurisdiction on dated 03.07.2013 clearly stated that..

“Weightage of service, past service can however be considered only for eligibility for promotion and not in assigning seniority with retrospective.”

1. It can easily understand that ante-dating seniority of Promote Officers of Indian Railways is nowhere mention in IREC (Indian Railway Establishment code).

Any executive instructions can’t overrule/bypass or deviate from statutory provisions. As per extant rule any modification/alteration in statutory rules i.e.  IREC in case of Indian Railways must be published in Gazette notification. Therefore provision of ante-dating seniority has been providing to promote officers of Indian Railways available in IREM, which is not only unconstitutional but also a burden on exchequer.

High Court in UoI (Indian Railway) versus Manisha Sharma & Ors, W.P.(C) 139/2000 stated that..

“No doubt, executive instructions cannot replace or supplant statutory provisions or statutory rules.”

Hon’ble Supreme Court in Daulat Ram Gupta (supra) held that the power to issue guidelines cannot control the manner of use of statutory power, or its discretion.

रेलवे में मौजूद रिक्रूटमेंट रूल्स (भर्ती नियम), रेलवे अधिनियम द्वारा पारित रेलवे कोर्ड (आईआरईसी) के प्रावधानों पर आधारित हैं. यह रेलवे अधिनियम संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन से बने हैं. इस तरह रेलवे कोड (आईआरईसी) में मौजूद सभी प्रोविजंस (प्रावधान) और स्टेट्युटरी रूल्स (सांविधिक नियमों) के अंतर्गत आते हैं. साथ ही साथ डे-टु-डे वर्किंग (दैनंदिन कामकाज) को ध्यान में रखते हुए रेलवे बोर्ड ने रेलवे कोड (आईआरईसी) पर आधारित भारतीय रेल स्थापना नियमावली (आईआरईएम) बनाया है. इस आईआरईएम में मौजूद सभी नियम एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शंस (कार्यकारी निर्देशों) के अंतर्गत आते हैं, जिसे रेलवे बोर्ड द्वारा रेलवे ऐक्ट 309 के तहत समय-समय पर जारी किया जाता है. चूंकि आईआरईएम में मौजूद नियम पूर्णरूपेण एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शंस पर आधारित हैं. अतः रेलवे बोर्ड किसी भी समय आईआरईएम के प्रस्तावित नियमों में स्वतः तबदीली कर सकता है तथा इसके लिए किसी संसदीय या राष्ट्रपति के अनुमोदन की जरूरत भी नहीं होती है.

चूंकि प्रमोशन के समय ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों को दी जाने वाली एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम रेलवे अधिनियम के द्वारा पारित रेलवे कोड (आईआरईसी) में मौजूद नहीं है. यह एंटी-डेटिंग सीनियरिटी सिर्फ आईआरईएम में मौजूद है और इसकी उत्पत्ति प्रमोटी अधिकारी संघ की मांग पर रेलमंत्री अथवा रेलवे बोर्ड द्वारा एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शंस के तहत की गई थी. परंतु वर्ष 2013 के सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ द्वारा पी. सुधाकर राव मामले में निर्गत आदेश, जो भारत के सभी नागरिकों, संस्थानों पर समान रूप से लागू होता है, के तहत एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को असंवैधानिक और अनुचित करार दिया गया है. अतः ऐसी स्थिति में घाटे में चल रही भारतीय रेल (रेलवे बोर्ड) द्वारा एंटी-डेटिंग सीनियरिटी वाले नियम को लगातार जारी रखना एक सरकारी तंत्र के लिए न सिर्फ अत्यंत अशोभनीय है, बल्कि यह भारतीय रेल को आर्थिक रूप से डुबाने वाला कदम भी है.

As per General Conditions of Recruitment and Service Rule of IREC, it has been reproduced here as under:-

209 (B) Promotion from Group ‘B’ to Group ‘A’ (Junior Scale) – (1) Appointments to the posts in the junior scale shall be made by selection on merit from amongst Group ‘B’ officers of the departments concerned with not less than 3 years of non-fortuitous service in the grade.

219 (iii) proportion of vacancies to be filled by direct recruitment and promotion of railway servants from subordinate services;

Note – In the case of recruitment to Group ‘A’ and ‘B’ posts, the rules should be published in the Gazette of India in the section allotted to the Statutory Rules and Orders, viz., Part II Section 3.

IREC (Indian Railway Establishment code) :

The State Railway Establishment Code, Vol. I was originally published in September, 1940. Subsequently four editions were brought out as Indian Railway Establishment Code, Volume I in 1945, 1951, 1959 and 1971 respectively. The 1971 edition has now been revised to incorporate all amendments issued up to 31.12.1983 in respect of relevant provisions, and is issued by the President in exercise of powers conferred on him by the proviso to Article 309 of the Constitution of India.

IREM (Indian Railway Establishment Manual) :

The first Manual for the guidance of staff dealing with Establishment matters was published in 1960. This edition embodied all administrative orders on Code Rules and allied Establishment matters issued by the Railway Board from time to time.

यह सर्वविदित है कि रेलवे में ग्रुप ‘ए’ के जूनियर टाइम स्केल (जेटीएस) पदों पर प्रारंभ में वर्ष 1953 तक ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के लिए सिर्फ 25% कोटे का प्रावधान था. धीरे-धीरे गजटेड नोटिफिकेशन के माध्यम से यह कोटा वर्ष 1953 में बढ़ाकर 33.33% और वर्ष 1978 में 40% तथा वर्ष 1997 में 50% किया गया था. प्रमोटी कोटे में यह सभी बढ़ोत्तरियां गजटेड नोटिफिकेशन के माध्यम से की गईं थीं, जो अब सांविधिक नियमों के अंतर्गत आ गई हैं.

परंतु यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रेलवे द्वारा कोनोटेशन ऑफ पे और एंटी-डेटिंग सीनियरिटी पर आज तक कोई गजटेड नोटिफिकेशन नहीं निकाला गया है. अतः यह किसी भी समय एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शंस (कार्यकारी निर्देश) के माध्यम से हटाया जा सकता है. एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम अन्य मंत्रालयों/विभागों में स्टेट्युटरी रूल्स (सांविधिक नियमों) के माध्यम से दिया गया है. रेलवे ही एक मात्र ऐसा मंत्रालय है, जो बदहाली की स्थिति में पहुंचकर भी आधारहीन, समयबाह्य और अमान्य हो चुके एंटी-डेटिंग सीनियरिटी के नियम, जो एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शंस (कार्यकारी निर्देश) के तहत हैं, को अब तक असंवैधानिक और नियम विरुद्ध ढ़ंग से ढ़ोए जा रहा है.

उदाहरणस्वरूप आईएएस और आईपीएस जैसी सेवाओं में जहां यूपीएससी और प्रोविंशियल सर्विसेज से अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, वहां पर सेंटर-स्टेट रिलेशनशिप तथा प्रोविंशियल सर्विसेज से आए अधिकरियों के कैरियर को ध्यान में रखते हुए एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का प्रावधान किया गया है. यह एंटी-डेटिंग सीनियरिटी दोनों सर्विसेज के स्टेट्युटरी रूल्स (सांविधिक नियमों) में दी गई है. अतः आईएएस/आईपीएस एवं रेलवे सर्विस में मौजूद रिक्रूटमेंट रूल्स और स्टेट्युटरी प्रोविजंस की भिन्नता की वजह से यह एकदम अलग हैं. इसलिए प्रमोटी अधिकारी संगठन द्वारा आईएएस/आईपीएस से तुलना वाली दलील पूरी तरह निराधार और स्वार्थपरक कही जा सकती है.

रेलवे में प्रमोटी अधिकारी संगठन ए. के. निगम के मामले का हवाला देते हुए एंटी-डेटिंग सीनियरिटी के नियम को अपने पक्ष में उचित ठहराता है. जबकि उन्हीं ए. के. निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुरलीधर के मामले का हवाला देते हुए एंटी-डेटिंग को सही करार दिया था. उल्लेखनीय है कि मुरलीधर केस, आंध्र प्रदेश के इंजीनियर्स का केस था. चूंकि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ‘लॉ ऑफ लैंड’ होता है, और देश के सभी नागरिकों/संस्थाओं पर समान रूप से लागू होता है. अतः आंध्र प्रदेश के इंजीनियर्स पर दिया गया सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ए. के. निगम के मामले में सभी आईआरपीएस पर भी लागू हुआ था.

रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 2006 में ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के वार्षिक ग्रुप ‘ए’ पदों को 255 से बढ़ाकर 318 कर दिया गया, जिसमें तत्कालीन एएम/स्टाफ द्वारा प्रमोटी और सीधी भर्ती अधिकारियों के बीच मौजूद अनुपात को 1:4 से बदलकर 1:3 कर दिया गया था. तब इस बदलाव के लिए एएम/स्टाफ ने डीओटी, सीपीडब्ल्यूडी और आईआरएस सेवाओं का उदाहरण दिया था. रेलवे में मौजूद एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का विचित्र नियम सिर्फ रेलवे में ही लागू है. एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का यह नियम डीओटी, सीपीडब्ल्यूडी और आईआरएस जैसी सेवाओं में भी मौजूद नहीं है. अतः सुप्रीम कोर्ट के पी. सुधाकर राव मामले में दिए गए निर्णय तथा उपरोक्त सेवाओं में मौजूद वरीयता के नियम के आधार पर रेलवे में मौजूद एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम गलत होने के साथ-साथ सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के साथ हो रहे भारी भेदभाव को उजागर करता है. अतः एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम आर्टिकल 14 और आर्टिकल 16 के भी खिलाफ है. इसलिए यह नियम पूरी तरह से गलत है.

Dated : 02.03.2006
AM [Staff] :- “Pending on in depth analysis in regard to sharing on 50:50 basis (between direct recruits quota vs promotee quota) on vacancies or on posts on a model similar to that available in deptt. Of Telecom of CPWD or Indian Revenue service etc. we may agree to fixation/application of ratio 1:3 [as against 1:4] which was a vogue for more than a decade. This may be applied on total junior scale posts identified as 1273 and communicated to DOP&T at the time of recent cadre review of posts for various organized services. This may result in increase of promotee quota from 255 to 318 in junior scale posts. This number can be reviewed, however on year to year basis depending upon the vertical modality of promotee officers to junior scale posts.”

Observation of Hon’ble Supreme Court in P. Sudhakar Rao case has been reproduced here as under:-

* There is a clear distinction between weightage given for years of service rendered by an employee for purposes of promotion and weightage given for years of service rendered by an employee for purposes of seniority in a grade. While the first concerns eligibility for promotion to a higher post, the other concerns seniority for being considered for promotion to a higher post.

* It has been noted therein that the grant of retrospective promotions and seniority was accepted by this Court in four decisions while grant of retrospective seniority was held to be ultra vires in five decisions.

* Judgment : The weightage of service given to the Supervisors can be taken advantage of only for the purpose of eligibility for promotion to the post of Assistant Engineer. The weightage cannot be utilized for obtaining retrospective seniority over and above the existing Junior Engineers.

Apex Court in recent judgment in “P. Sudhakar Rao vs Govinda Rao, civil Appeal Nos. 1712-1713 of 2002” clearly stated in Para-2..

To consider the validity of weightage for seniority purposes and its impact on the seniority of other employees, the following question has been referred to a larger Bench in these appeals. The reference order is reported as P. Sudhakar Rao vs. U. Govinda Rao, (2007) 12 SCC 148.

“Whether the decision given in Devi Prasad vs. Govt. of A. P. [1980 (Supp) SCC 206] and State of A. P. vs. K. S. Muralidhar [(1992) 2 SCC 241] laid down the correct law or the decision given in G. S. Venkat Reddy vs. Govt. of A. P. [1993 Supp (3) SCC 425], K. Narayanan vs. State of Karnataka [1994 Supp (1) SCC 44] and State of Gujarat vs. C. G. Desai [(1974) 1 SCC 188] laid down the correct proposition of law?”

Para 3 : “It appears to us that this question ought not to be answered in the narrow confines in which it is framed, nor should it be answered on the basis of the limited submission noted in the reference order relating to ‘the validity of the rule by which retrospective seniority benefit was given to the Junior Engineers by G. O. Ms No. 54 Irrigation (Service IV-2) dated 15.2.1983.’ The question has larger implications and we propose to answer it keeping the broad canvas in mind. We also propose, in this light, to answer the question on merits of these appeals, namely, whether, on appointment as a Junior Engineer, weightage of service given to a Supervisor can be taken into account for fixing his seniority as a Junior Engineer, thereby effectively refixing the seniority with retrospective effect.”

Apex Court in “P. Sudhakar Rao vs. Govinda Rao, Civil Appeal Nos. 1712/1713 of 2002” has been analyzed its own past judgments. These are as follows:-

Uttaranchal Forest Rangers’ Assn. (Direct Recruit) vs. State of U. P., (2006) 10 SCC 346, on referring to these judgments that:

“This Court has consistently held that no retrospective promotion can be granted nor any seniority can be given on retrospective basis from a date when an employee has not even borne in the cadre particularly when this would adversely affect the direct recruits who have been appointed validly in the meantime.”

In State of Bihar vs. Akhouri Sachindra Nath, [1991 Supp (1) SCC 334], “It was held that retrospective seniority cannot be given to an employee from a date when he was not even born in the cadre. So also, seniority cannot be given with retrospective effect so as to adversely affect others. Seniority amongst members of the same grade must be counted from the date of their initial entry into the grade.”

Keshav Chandra Joshi vs. Union of India, [1992 Supp (1) SCC 272]. “This Court held that when a quota is provided for, then the seniority of the employee would be reckoned from the date when the vacancy arises in his/her quota and not from any anterior date of promotion or subsequent date of confirmation. It was observed that injustice ought not to be done to one set of employees in order to do justice to another set.”

Pawan Pratap Singh vs. Reevan Singh, [(2011) 3 SCC 267] all relevant precedents on the subject were considered, including the Constitution Bench decision in –

“Inter se seniority in a particular service has to be determined as per the service rules. The date of entry in a particular service or the date of substantive appointment is the safest criterion for fixing seniority inter se between one officer or the other or between one group of officers and the other recruited from different sources. Any departure there from in the statutory rules, executive instructions or otherwise must be consistent with the requirements of Articles 14 and 16 of the Constitution.”

Devi Prasad
Devi Prasad which relates to the Andhra Pradesh Engineering Subordinate Service Rules, a Supervisor working as a Junior Engineer was given a weightage of 50% of service rendered by him. The effect of weightage was limited to eligibility for appointment to the post of Assistant Engineer from Junior Engineer – it had no reference to seniority.

‘This Court also concluded that the grant of weightage was a matter of government policy which needed no interference since it was not unreasonable or arbitrary.’

Desai
Desai is the earliest case mentioned in the reference order and this concerned the [Gujarat] Engineering Service Rules, 1960.

‘pre direct recruitment’ services should be counted as ‘eligibility service’ for purposes of their next promotion as Executive Engineers.’

“This Court found no basis – for such an interpretation of the relevant recruitment rules. This Court also found that the directly recruited Deputy Engineers were not discriminated against vis-à-vis promote Deputy Engineers in this regard since they fell in two distinct groups or classes having a rational basis.”

Muralidhar
“The dispute is regarding the inter-se seniority between the Supervisors who are upgraded as Junior Engineers and the degree holders who are directly appointed as Junior Engineers.”

‘This Court not only accepted weightage of service for the benefit of Supervisors for eligibility purposes, but also for purposes of seniority by accepting the concept of a notional date for such a determination.’

In Indian Railways
In Indian Railway, Seniority of promotee officers i.e. based on weightage and DITS was agitated before the Hon’ble Apex Court in the matter of A. K. Nigam Vs. Sunil Mishra, and Hob’ble Apex court held that the rules having been framed for determining the seniority based on the grant of increments and quoting in para-15..

Para (15) “The principle for conferment of limited benefit or weightage was held to be not unreasonable or illegal by this Court in the case of State of A. P. vs. K. S. Muralidhar.”

Para (13) “The principle of granting seniority on the basis of weightage of past service and lower service to the category of promoting (sic promoted) officers is well known and well recognized in the service jurisprudence.”

Conclusion :- “A. K. Nigam Vs. Sunil Mishra case is no longer valid now, because in the case Apex court had taken reference from Muralidhar case and the judgment in Muralidhar case is being now overruled by judgment of Apex court in P. Sudhakar Rao. Therefore providing antedating seniority to promotee officers of Indian Railways is now not only against the legal purview of Apex Court but also against hard earned money of Indian Railways.”

वर्ष 2013 में पी. सुधाकर राव मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ ने मुरलीधर केस सहित 8 अन्य मामलों का जिक्र करते हुए अपना अंतिम फैसला सुनाया था. यह फैसला इक्वेलिटी (समानता) और ब्रॉडर प्रॉस्पेक्ट्स (व्यापक संभावनाओं) को ध्यान में रखते हुए दिया गया है. इसलिए प्रमोटी अधिकारी संघ द्वारा ए. के. निगम मामले की दलील देना आज की तारीख में न सिर्फ अतार्किक है, बल्कि पूरी तरह से समयबाह्य है.

प्रमोटी अधिकारी संघ द्वारा तत्कालीन एएम/स्टाफ एवं रेलवे बोर्ड के अन्य स्थापना अधिकारियों के साथ साठ-गांठ करके समय-समय पर रेलवे बोर्ड से अनेकों एग्जीक्यूटिव इंस्ट्रक्शन (कार्यकारी निर्देश/आदेश) प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में जारी करवाए गए हैं. जिन कार्यकारी निर्देश/आदेशों से प्रमोटी अधिकरियों का कोई भला नहीं होने वाला था, ऐसे आदेशों/निर्देशों का सभी माध्यमों से खुलेआम विरोध प्रकट किया जाता रहा है.

इसी संदर्भ में 11 अगस्त 2016 को जारी जूनियर टाइम स्केल (जेटीएस) से सीनियर टाइम स्केल (एसटीएस) में प्रमोशन के नियम में रेलवे बोर्ड द्वारा बदलाव करने के विरोध में प्रमोटी अधिकारी संगठन ने रेलवे बोर्ड के उक्त निर्देश/आदेश की प्रतियां जलाने सहित अनेकों कदम उठाए हैं, जो किसी भी अधिकारी संगठन के लिए अत्यंत ही अशोभनीय और राष्ट्र विरोधी हैं. कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं.. काला बैज बांधकर धरना-प्रदर्शन किया गया. विभिन्न राजनीतिज्ञों/मंत्रियों को गुमराह करके उनसे उक्त नियम/निर्देश के खिलाफ रेलवे बोर्ड (रेलमंत्री) को पत्र लिखवाए गए. एससी/एसटी आयोग/मंत्रालय को गुमराह करके बदले हुए नए नियम को आरक्षण के खिलाफ बताकर पत्र लिखवाया गया. रेलवे के दोनों मजदूर संगठनों (एआईआरएफ और एनएफआईआर) को इस बात पर राजी करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है कि इस नए नियम से ग्रुप ‘सी’ से ग्रुप ‘बी’ में प्रमोशन रुक जाएंगे. संसद के पटल पर इस बदले हुए नियम पर अनेकों प्रश्न पुछवाकर रेलवे बोर्ड पर दबाव बनाने का व्यापक प्रयास किया जा रहा है.

हालांकि किसी संगठन अथवा व्यक्ति विशेष द्वारा अपने अधिकार के लिए न्यायसंगत प्रयास करने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. परंतु किसी प्रमाणित अन्यायकारक प्रावधान, जो कि किन्हीं क्षुद्र प्रयासों के तहत किया गया हो, को बनाए रखने के लिए वैध-अवैध तरीकों का अपनाया जाना आपतिजनक माना जाना चाहिए. इस प्रकार ‘सर्विस कंडक्ट रूल’ के खिलाफ सभी कार्य प्रमोटी अधिकारी कर सकते हैं. तथापि, इस पर रेल प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है. जबकि हाल ही में जब यूपीएससी से सीधी भर्ती वाले एक युवा अधिकारी ने अपने स्थानांतरण की बात किसी राजनेता के माध्यम से कहलाई, तो सर्विस कंडक्ट रूल के तहत उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही का पत्र जारी कर दिया गया. यह सरासर खुला भेदभाव कहां तक उचित है?

रेलवे में ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान जोन से बाहर स्थानांतरण नहीं किया जाता है. प्रमोटी अधिकारियों को अपने भाई-भतीजों के बीच में रखकर काम लेना, रेलवे द्वारा भ्रष्टाचार को खुलेआम बढ़ावा देना है, जो किसी भी ग्रुप ‘ए’ पदों की गरिमा के खिलाफ है. अतः ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि सर्वप्रथम ग्रुप ‘ए’ में पदोन्नति के समय सभी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को उनके वर्तमान जोन से बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए और उसके बाद लगातार पीरियोडिकल ट्रांसफर पालिसी के अंतर्गत उनके साथ भी ग्रुप ‘ए’ की पालिसी अपनाई जानी चाहिए.

‘रेलवे समाचार’ की यह भी मांग है कि राष्ट्रधर्म का पालन करते हुए रेल मंत्रालय पदोन्नति के समय में दी जाने वाली एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को तुरंत प्रभाव से समाप्त करे. इसके साथ ही वर्ष 2013 से दी गई एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का रिव्यु (पुनरावलोकन) कर सुप्रीम कोर्ट के पी. सुधाकर राव मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर दुबारा सीनियरिटी लिस्ट (वरिष्ठता सूची) जारी की जाए. ऐसा करने से रेलवे पर अरबों रुपयों का अतिरिक्त वार्षिक बोझ कम हो जाएगा, इस बचत का पैसा देश के विकास में कहीं अन्यत्र सदुपयोग किया जा सकेगा.

इसके साथ ही रेलवे बोर्ड के उच्च पदों पर आसीन उन सभी अधिकारियों पर जिम्मेदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो वर्ष 2013 से कान में तेल डालकर न सिर्फ सो रहे हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना भी कर रहे हैं. ‘रेलवे समाचार’ यह भी मांग करता है कि प्रमोटी अधिकारियों का ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान जोनल स्थानांतरण अवश्य किया जाना चाहिए, जिसके रेलवे में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके.