भारतीय रेल : मर्ज और दवा

भारतीय रेल की नौकरशाही को हवा का रुख भांपने में देर नहीं लगती

नौकरशाही को भी उपलब्ध होता है बहती गंगा में हाथ धोने का पूरा अवसर

मंत्री से संतरी तक सब राजा-सामंतों की तरह सिर्फ अय्याशी करने के लिए हैं?

अब न नाचने-गाने से काम चलेगा, न मेरिट की जगह दर्जनों कोटा आरक्षण से

प्रेमपाल शर्मा

पिछले दो-तीन महीनों के दरम्यान तीन बड़ी रेल दुर्घटनाओं से लोग अब रेल यात्रा से भी डरने लगे हैं. इस बीच बिलासपुर (छत्‍तीसगढ़) में रेल विभाग द्वारा एक महिला कर्मचारी (क्लर्क) के निलंबन से रेल विभाग की और थुक्‍का-फजीती हुई है. महिला कर्मचारी का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने महाप्रबंधक के साथ मंच पर फिल्‍मी जोड़ी-गाना गाने से मना कर दिया था. यह महाप्रबंधक 31 जनवरी 2017 को रिटायर हो रहे थे. उन्‍हीं की विदाई श्रंखला में यह आयोजन था. बात छोटी लग सकती है, लेकिन रेल के सामंती मिजाज, विलासिता, रंगरेलियों में डूबे अफसरों की मानसिकता को समझने के लिए यह पर्याप्‍त है. महिला कर्मचारी पर आरोप यह लगाया गया कि चूंकि उसकी नियुक्ति सांस्‍कृतिक कोटा के अंतर्गत हुई है, अत: उसे ऐसे इंकार का हक नहीं है और यह अनुशासनहीनता है. इसी का उसे दंड मिला दूरदराज स्‍थानांतरण का.

क्‍या है यह सांस्‍कृतिक कोटा और क्या हैं इसके तहत रेलवे में भर्ती के नियम? पहले एक तथ्‍यात्‍मक किस्‍सा – लगभग दस वर्ष पहले बिहार के एक पूर्व मुख्‍यमंत्री रेलमंत्री थे. कई वजहों से सारी प्रेस में उनकी वाहवाही के किस्‍से रोज छपते थे. एक दिन महाप्रबंधक को खुश करने की तर्ज पर बिहार में रेलमंत्री के लिए भी कोई आयोजन था. ठुमके लगे, गाना बजाना हुआ, जय-जयकार हुई. मंत्री जी मोगाम्‍बो के अंदाज में खुश हुए. तुरंत घोषणा की, कि इन्‍हें रेलवे में भर्ती किया जाए. महाराज की जय के नारे दूर दिगंत में सुने गए. वस फिर क्‍या था, ठुमकों, गानों की बाढ़ आ गई रेल के आसपास, विशेषकर उत्‍तर भारत में.

भर्ती के आवेदनों की आंधी. किसको मना करें? नौकरशाही को हवा का रुख मापने में देर नहीं लगती. उनको सारा प्रशिक्षण ही इसी चेतना के विकास के लिए होता है. सभी रेलों में सांस्‍कृतिक कोटा के तहत दनादन और तुरंत भर्ती होने लगी. जाहिर है मंत्री के लोग तो उसमें आने ही थे, नौकरशाही को भी बहती गंगा में हाथ धोने का पूरा अवसर मिला. ऐसा वर्षों से हो रहा है.

रेलवे का मुख्‍य काम यातायात है. माल और यात्रियों को सुरक्षित और शीघ्र पंहुचाना. सांस्‍कृतिक कर्म इसमें कैसे मदद कर सकता है? क्‍या रेल कर्मचारी और महकमा गाने-बजाने तथा मनोरंजन के लिए है? क्‍या रेलवे में इतनी समृद्धि है कि जो लाखों इसी पर उलीचते रहें? क्‍या जनता टैक्‍स भी दे और दुर्घटनाओं में अपनी जान भी? और मंत्री से महाप्रबंधक, संतरी इत्यादि सब 15वीं सदी के राजा-सामंतों की तरह सिर्फ अय्याशी करने के लिए हैं? क्‍या ऐसा तंत्र 21वीं सदी की दुनिया भर की रेलों के सामने ठहर पाएगा? कहां थरथराती जमीन और भूकंपों के बीच जापान और दूसरे देशों में 10-20 वर्षों में कोई एक रेल दुर्घटना और भारतीय रेल में जब तक एक दुर्घटना के आंसू भी नहीं सूखते, तब तक दूसरी हो जाती है. बार-बार वही मुआवजे, जांच समिति की घोषणा, लेकिन जमीन पर कोई सुधार नहीं.

आधुनिकीकरण, जनसंख्‍या, ज्‍यादा गाड़ियां, सुविधाएं, स्‍पीड का दबाव तो भारतीय रेल पर है ही, भर्ती की कई अनियमितताओं और सही प्रशिक्षण का अभाव भी रेलवे की कार्य-दक्षता को बिगाड़ने के लिए कम जिम्‍मेदार नहीं है. ऊपर से निजी चापलूसी के लिए इन कर्मियों का शोषण.