बोर्ड अधिकारियों पर ‘अपराधिक साजिश’ के तहत हो कार्रवाई
गुणवत्ता के साथ-साथ रेलवे को लग रहा है वार्षिक अरबों रुपये का चूना
नए सीआरबी को विरासत में मिली संरक्षा के साथ खर्च नियंत्रण की चुनौती
पदोन्नति घोटाले पर कोर्ट के आदेशों को अमल में लाने की भी है जवाबदेही
रेलवे बोर्ड के पत्र दि. 24.04.2017 ने खोला ग्रुप ‘ए’ पदोन्नति घोटाले का राज
रेलवे बोर्ड के वर्ष 2017 के पत्र और आरटीआई के जवाब में है भारी विरोधाभाष
रेलवे बोर्ड ने खत्म हो चुके ग्रुप ‘ए’ पदों को बैकलॉग के नाम पर पुनर्जीवित किया
बैकलॉग भरने के लिए वार्षिक प्रमोटी कोटा 180 से बढ़ाकर 1042 कर दिया गया
रिव्यू डीपीसी कराकर पुनर्जीवित किए गए ग्रुप ‘ए’ के सभी पदों पर बैठाए गए प्रमोटी
सुरेश त्रिपाठी
रेलवे में बढ़ती हुई ट्रेन दुर्घटनाओं ने अपने निजाम तक को बदल दिया. रेलवे के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि कर्मचारी से लेकर अधिकारी, सीआरबी और रेलमंत्री सभी को एक साथ दरबदर होना पड़ा है. अर्थात स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसी दुर्गति इससे पहले किसी भी मंत्रालय की कभी नहीं हुई है. सरकार के साथ-साथ भारतीय नागरिकों को भी रेलवे की कार्य-प्रणाली पर संदेह होने लगा है, जो मंत्रालय अपनी कर्मठता का लोहा मनवाए हुए था, अचानक भरभराकर ढह गया. यह वास्तव में यकीन से परे है. लगातार हो रही ट्रेन दुर्घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि विगत कुछ वर्षों में नीति-निर्माताओं और फील्ड में काम कर रहे रेल कर्मचारियों के बीच पालिसी और टारगेट को लेकर भारी संवादहीनता पैदा हो गई है. किसी भी संस्था में इस तरह तरह की संवादहीनता तभी पैदा होती है, जब ‘मिडल मैनेजमेंट’ एकदम निरंकुश हो गया हो.
रेलवे में मिडल मैनेजमेंट में जूनियर टाइम स्केल (जेटीएस), सीनियर टाइम स्केल (एसटीएस) और जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (जेएजी) के पद आते हैं. इसमें सबसे जिम्मेदार जेएजी अधिकारी होते हैं. अर्थात ये जेएजी अधिकारी या तो आरामतलब हो गए हैं या भ्रष्टाचार में संलिप्त हो चुके हैं. यही कारण है कि विगत कुछ सालों से जोनल रेलों में विभाग प्रमुखों के बीच यह जुमला आम हो गया है कि ‘ढ़ंग के अधिकारी मिलते नहीं, जिनको जिम्मेदार पदों पर बैठाया जा सके.’ अर्थात अधिकारियों की गुणवत्ता में कमी ने पूरे रेल प्रशासन की कमर तोड़ रखी है. रेल प्रशासन की इस विफलता में मिडल मैनेजमेंट की गुणवत्ता के साथ विगत कुछ वर्षों के दरम्यान किस बुरी तरह से समझौता किया गया है, इस तथ्य को आंकड़ों और दस्तावेजों के माध्यम से ‘रेलवे समाचार’ द्वारा बार-बार बताया गया है.
तथापि, इसे यहां एक बार पुनः समझने की कोशिश की जा सकती है. स्वयं रेलवे बोर्ड के पत्र सं. ई(ओ)1/2013/एसआर-6/7/पीटी, दि. 24.04.2017 ने ही मिडल मैनेजमेंट की इस रीढ़ को तोड़ने वाली कड़वी सच्चाई से पर्दा उठाया है. रेलवे बोर्ड के इस पत्र को पढ़ने के बाद ग्रुप ‘ए’ अधिकारी पदोन्नति घोटाले की काली दुनिया के घिनौने राज की सच्चाई परत-दर-परत समझ में आने लगती है. इस पूरे मुद्दे पर लगातार ‘रेलवे समाचार’ बड़ी बेबाकी से प्रमाणित दस्तावेजों और साक्ष्यों के आधार पर पूरा कवरेज देता आ रहा है.
विभिन्न संस्थाओं ने रेलवे के मिडल मैनेजमेंट को औसतन निरंकुश होने का कारण बताया है-
1. डेलायट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे ने वर्ष 2006 और 2012 के बीच 1714 ग्रुप ‘ए’ की रिक्तियों की जगह 4367 ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की भर्ती की गई. इस रिपोर्ट में अतिरिक्त सभी पदों को प्रमोटी अधिकारियों से भरे जाने की बात कही गई है.
2. पटना हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि रेलवे ने प्रमोटी अधिकारियों को उनके कोटे से ज्यादा ग्रुप ‘ए’ के पदों की बख्शीश दी है.
3. कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) ने भी रेलवे से 50:50 नियम के उल्लंघन पर जवाब-तलब किया है.
4. वित्त मंत्रालय ने रेलवे द्वारा मनमानी ढंग से ग्रुप ‘ए’ पदों की बढ़ोत्तरी की वजह से कैडर रिस्ट्रक्चरिंग की फाइल अनेकों बार लौटाई है.
5. सातवें वेतन आयोग ने रेलवे बोर्ड से कमेटी बनाकर इस पूरे प्रकरण पर रिपोर्ट मांगी है.
रेलवे के मिडल मैनेजनमेंट के चौपट होने की कहानी तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्रित्व काल में शुरु हुई थी. तब से लेकर अब तक चरणबद्ध तरीके से इस ग्रुप ‘ए’ पदोन्नति महाघोटाले को अंजाम दिया गया. इस खेल को क्रमागत एक बार पुनः समझने की कोशिश करते हैं-
1. वाजपेयी सरकार ने वर्ष 2001 में ऑप्टिमाइजेशन पालिसी लागू की, जिसमें रेलवे सहित सभी केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को कुल कैडर के 2% पद प्रतिवर्ष खत्म करने थे. तत्कालीन रेलमंत्री की मध्यस्थता के बाद भी रेलवे को इस नियम से छूट की इजाजत नहीं मिली थी और यूपीएससी ने भी रेलवे द्वारा भेजे गए इंडेंट के एक तिहाई (1/3) पदों पर ही ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का चयन किया.
The issue was discussed at the Board meeting in 2002, and consequently, with the approval of MR, a Memorandum was sent to the DOP&T, seeking exemption from the purview of their guidelines. However, DOP&T refused any exemption. The matter was given to Railways and UPSC reduced the indents to 1/3rd of the original.
The Board was strongly seeking exemption and hence it was decided to send indent at original level. However, UPSC reduced the indents to 1/3rd of the original indent.
2. ऑप्टिमाइजेशन का नियम स्पष्ट कहता है कि प्रतिवर्ष 2% के हिसाब से ग्रुप ‘ए’ के पदों को खत्म करना है तथा बचे हुए रिक्त पदों को भर्ती नियम के अनुसार सीधी भर्ती और प्रमोटी कोटे में 1:1 के अनुपात में बांटने के बाद ही नई भर्तियां करनी हैं. परंतु रेलवे बोर्ड द्वारा इस मूलभूत नियम को ताक पर रखते हुए प्रमोटी अधिकारियों को लाभ देने के चक्कर में सिर्फ सीधी भर्ती वाले पदों में कमी की गई, जिससे 2% कटौती वाले वाजपेई सरकार के लक्ष्य का उल्लंघन हुआ.
3. वर्ष 2004 में लालू प्रसाद यादव ने रेलमंत्री का कार्यभार संभाला था तथा मंत्री बनते ही उन्होंने अथवा उनके कुछ चापलूसों ने उन्हें भ्रमित करके स्थापित नियमों और उनके अनुपात में फेरबदल कर क्रमवार और सुनियोजित ढंग से वार्षिक प्रमोटी कोटे को 180 से बढ़ाकर 255, 318 और अंत में 411 कर दिया. इतनी भारी संख्या में प्रमोटी कोटे में बढ़ोत्तरी महज तीन वर्षों के रेलमंत्रित्व काल (2004-07) में कर दिया, जिसका पूरा ब्यौरा ‘रेलवे समाचार’ द्वारा पहले के अंकों में प्रकाशित किया जा चुका है.
It was also decided that a ratio of 4:1 instead of 3:1 should be adopted as Direct Recruits normally take 4 years to leave junior scale while in respect of Group ‘B’ officers it may be taken as a maximum of one year. Accordingly, with approval Board and Hon’ble MR, the junior scale strength was fixed at 1273 with DR and PQ being fixed at 255 (1273 divided by 5).
Review and redistribution of cadre in 2006:- while the junior scale strength was maintained at 1273, the ratio of 3:1 was adopted in the lieu of 4:1 (2005) on the consideration that a direct recruits has to work against a working post for 2&1/2 years before being promoted to a senior scale .Accordingly, the DR and PQ were increased from 255 to 318 with the approval of Board and Hon’ble MR.
The proposal of IRPOF as at para 3 above, to re-fix the Jr. Scale Cadre strength at 1647 including JTS (Reserved) based on the strength approved by DOP&T/Cabinet, is put up for consideration of Board. Therse 1647 posts will be devided into DR and PQ in the ratio of 3:1 as already decided. Since the JS cadre strength of 1273 was fixed with the approval of MR, the upward revision of the cadre strength to 1647 will also require approval of Hon’ble MR.
रेलवे बोर्ड ने ऑप्टिमाइजेशन नियम से खत्म हो चुके ग्रुप ‘ए’ पदों को एक साजिश के तहत बैकलॉग घोषित कर पुनर्जीवित किया
4. ग्रुप ‘ए’ के खत्म हो चुके पदों को बैकलॉग के नाम पर पुनर्सृजित करने का काला धंधा इंजीनियरिंग और सिविल एग्जाम-2007 से शुरू हुआ था. परीक्षा वर्ष 2007 के लिए रेलवे की आठ संगठित सेवाओं में 318 ग्रुप ‘ए’ पदों का इंडेंट यूपीएससी को भेजा गया. इसके साथ ही अतिरिक्त में वर्ष 2002, 2003 और 2004 के खत्म हो चुके ग्रुप ‘ए’ के 365 पदों को भी इस वर्ष जोड़कर कुल वार्षिक इंडेंट 683 भेजा गया. परंतु यूपीएससी ने एक तिहाई के हिसाब से सिर्फ 220 पदों पर ही सीधी भर्ती से अधिकारियों का चयन किया. 50:50 नियम के अनुसार जितनी इंडेंट सीधी भर्ती के लिए भेजी गई थी, उतनी ही संख्या वाली इंडेंट प्रमोटी अधिकारियों के लिए भी कराई गई. अर्थात परीक्षा वर्ष 2007 के समानांतर प्रमोटी पैनल वर्ष 2008-09 में 683 ग्रुप ‘ए’ पदों पर डीपीसी कराकर प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ पदों से नवाजा गया. चूंकि 683 पद देखने में बहुत अधिक लगते हैं, इसलिए रेलवे बोर्ड ने एक षड्यंत्र के तहत पहले 318 पदों पर डीपीसी करवाया. तत्पश्चात बचे हुए पदों को रिव्यू डीपीसी के तहत कुल 683 ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोटी अधिकारी बैठा दिए गए. अतः परीक्षा वर्ष 2007 में सुनियोजित साजिश के तहत एक तरफ सिर्फ 220 ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोटी अधिकारियों को प्रमोशन दिया गया.
As per DOP&T O. M. dated 16.05.2001
Restricting the overall direct recruitment to one-third of vacancies meant for direct recruitment subject to the condition that the total vacancies proposed for filling up should be within the 1% ceiling. The remaining vacancies meant for direct recruitment which are not cleared by screening committees will not be filled up by promotion or otherwise and these posts will stand abolished.
According to Railway Board’s letter dated 24.04.2017
The low intake of officers due to the indents for the year 2002, 2003 and 2004 having been reduced to 1/3rd was treated as backlog vacancies and the same added to the current requirement for 2007 and a consolidated indent placed on the Union Public Service Commission i.e. the residual vacancies approx. 365 (for a period of three years) were added to the current requirement – 318 (assuming that the JS cadre strength remained at 1273) taking the total vacancies to 683.
5. यही समान कसरत परीक्षा वर्ष 2008 के लिए भी की गई. परीक्षा वर्ष 2008 के लिए संगठित सेवाओं (आर्गेनाइज्ड सर्विसेस) में सीधी भर्ती से सिर्फ 264 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी चयनित हुए, जबकि प्रमोटी अधिकारियों के कोटे में 884 पद आए.
6. यह सिलसिला परीक्षा वर्ष 2009 में भी दोहराया गया. पूर्व में खत्म हो चुके ग्रुप ‘ए’ के पदों को बैकलॉग करार देकर पुनर्जीवित किया गया. परीक्षा वर्ष 2008 के लिए बैकलॉग के कुल 620 अतिरिक्त ग्रुप ‘ए’ के पदों को जोड़कर यूपीएससी को इंडेंट भेजा गया, जिस पर सीधी भर्ती से सिर्फ 1042/3=347 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी चयनित हुए, जबकि 1032 ग्रुप ‘ए’ पदों पर प्रमोटी अधिकारियों के लिए डीपीसी करवाई गई.
7. गणना के अनुसार सिर्फ तीन वर्षों यानी परीक्षा वर्ष 2007, 2008 और 2009 के द्वारा सीधी भर्ती से कुल 831 और प्रमोटी कोटे से 2600 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी बनाए गए तथा सभी 2600 प्रमोटी अधिकारियों को 5 साल के एंटी-डेटिंग नियम के तहत वरीयता निर्धारण कर रेलवे की मिडल मैनेजमेंट का हिस्सा बना दिया गया. इतनी भारी संख्या में प्रमोटी कोटे से ग्रुप ‘ए’ पद आने से प्रमोटी अधिकारियों के वारे-न्यारे हो गए. इसमें भारी भ्रष्टाचार हुआ, जिससे बहुत सारे प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ की वरीयता उनकी ग्रुप ‘सी’ सेवा के तुरंत बाद ही दे दी गई.
उदाहणस्वरूप एस. एस. रायप्पा, जो 29.10.2009 को ग्रुप ‘सी’ के पद पर कार्यरत थे, परंतु पदोन्नति घोटाले की वजह से उनको आईआरएसएमई में ग्रुप ‘ए’ की वरीयता 30.10.2009 को ही निर्धारित कर दी गई. अर्थात कागज पर एस. एस. रायपा ग्रुप ‘सी’ से सीधे ग्रुप ‘ए’ बना दिए गए. ऐसी घटनाएं कराकर ‘प्रमोटी भक्त’ रेलवे बोर्ड ने मिडल मैनेजनेंट का सत्यानाश करना शुरू कर दिया. डेलायट कमेटी की रिपोर्ट भी यही कहती है कि 1714 रिक्त ग्रुप ‘ए’ के पदों की एवज में 4367 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी बनाए गए, जिसमें से अधिकतर रेलवे के आंतरिक प्रमोटी अधिकारी हैं.
रेलवे बोर्ड से प्राप्त आरटीआई का जवाब और रेलवे बोर्ड का पत्र दि. 24.04.2017 के बीच पाई गई विषमताएं
8. आरटीआई से प्राप्त जानकारी में रेलवे बोर्ड द्वारा दो बातें बताई गई हैं. पहली यह कि सीधी भर्ती से कम किए गए दो तिहाई पदों का इंडेंट यूपीएससी को कभी नहीं भेजा गया, और दूसरी यह कि पूरी ऑप्टिमाइजेशन प्रक्रिया में रेलवे में ग्रुप ‘ए’ के कोई भी पद खत्म नहीं हुए. अर्थात 2% वार्षिक कमी करने के हिसाब से 9 वर्षों तक चले नियम के अनुसार ग्रुप ‘ए’ कैडर में कुल 18% की कमी होनी थी, परंतु रेलवे बोर्ड ने सरकार के नियम का उल्लंघन करते हुए सिर्फ सीधी भर्ती वाले कोटे में कमी की तथा इन सभी पदों को एक षड्यंत्र के माध्यम से बैकलॉग घोषित कर सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ के पदों को प्रमोटी कोटे में डायवर्ट कर दिया. फिर भी तथ्यों को छुपाते हुए रेलवे बोर्ड ने आरटीआई में जवाब दिया कि कम किए गए दो तिहाई पदों पर कोई इंडेंट नहीं भेजा गया, जो सरासर गलत और खुल्ला झूठ है.
सिर्फ तीन दस्तावेजों के माध्यम से 5 मिनट में समझा जा सकता है पदोन्नति घोटाला का पूरा सच
9. ये तीनों दस्तावेज हैं, डीओपीटी का वर्ष 2001 का ओ.एम., रेलवे बोर्ड द्वारा आरटीआई में दिया गया जवाब और रेलवे बोर्ड का पत्र दि. 24.04.2017. इनके माध्यम से बहुत कम समय में भ्रष्टाचार के तहत रेलवे बोर्ड और प्रमोटी संघ की मिलीभगत एवं जोड़तोड़ के इस पूरे खेल को समझा जा सकता है. इन तीनों दस्तावेजों में काफी भिन्नता है. इसके साथ ही रेलवे बोर्ड द्वारा खुद ही दिए गए आरटीआई के जवाब और पत्र दि. 24.04.2017 में काफी विरोधाभाष भी है. जो यह दर्शाता है कि इस भ्रष्टाचार में पूरा रेलवे महकमा कितनी गहराई तक लिप्त रहा है. रेलवे के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि रेलवे बोर्ड के तत्कालीन भ्रष्ट अधिकारियों ने मिडल मैनेजमेंट के पदों को अयोग्य लोगों के हाथों बेच दिया?
रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों और बाबुओं के विरुद्ध एफआईआर करके रेलवे राजस्व को हुए नुकसान की भरपाई की जाए
10. हाई कोर्ट के आदेश पर जिस प्रकार हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में हुई राजस्व क्षति को डेरा सच्चा सौदा से वसूला जा रहा है, उसी प्रकार इसकी भरपाई पदोन्नति घोटाले की वजह से प्रमोशन प्राप्त और सेवानिवृत्त हुए प्रमोटी अधिकारियों, जिनको अधिक वेतन दिया जा रहा है या दिया गया है, और इस पदोन्नति घोटाले की नोटिंग पर सिग्नेचर करने वाले रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों और बाबुओं के वेतन और पेंशन में कटौती करके की जाए. रेलवे बोर्ड के तत्कालीन सभी आरबीएसएस अधिकारियों, जिन्होंने प्रमोटी संघ के साथ मिलकर इस महाघोटाले को अंजाम दिया था, को चिन्हित करके कानून-संगत दंड दिया जाए.
पटना हाईकोर्ट ने स्वयंभू बन चुके रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के कार्य-कलापों के साथ-साथ तय रोटा-कोटा के उल्लंघन का भी जिम्मेदार रेलवे बोर्ड को ही माना है, जो किसी भी सरकारी तंत्र के लिए अत्यंत शर्मनाक है. अब यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि रेलवे के नए निजाम द्वारा अपनी छवि के अनुरूप मिडल मैनेजमेंट में काम कर रहे अधिकारियों को न्याय दिलाते हैं या फिर औरों की तरह ही वह भी आरबीएसएस और प्रमोटी संघ के हाथों की कठपुतली बन जाते हैं?