आखिर यूरोपीय देश एशिया की ताकतों को पछाड़कर आगे कैसे बढ़े?
#सेपियंस: #युवाल_हरारी की पुस्तक का एक अंश – “विज्ञान और साम्राज्य”!
1750 से 1850 के बीच एशिया को पछाड़ते हुए यूरोप दुनिया में ताकत का केंद्र बन गया। 1775 में दुनिया के आर्थिक साम्राज्य का 80% एशिया में था।
भारत और चीन के हिस्से उसका दो तिहाई। लेकिन 1900 तक आते-आते पूरा नियंत्रण यूरोप के हाथ में आ गया।
और आप मानें या न मानें, यूरोप का खानपान, ड्रेस अर्थात पहनावा, विचार धीरे-धीरे आज पूरी दुनिया मानती है।
चीन आर्थिक रूप से जरूर आगे बढ़ रहा है, लेकिन उसका मॉडल यूरोप का ही है।
यूरोप की इस प्रगति का श्रेय बहुत कुछ उनके विज्ञान और वैज्ञानिकों को जाता है, जिसे उनके साम्राज्य से भी पूरा समर्थन मिला।
भारत के संदर्भ में कहें, तो जब तुर्क, मुगल, मुस्लिम ज्यादातर यहां की धन-दौलत और लूट के लिए आए, तलवार के बूते धर्म का प्रचार किया।
मगर यूरोपियन जब दुनिया भर के देशों में गए, तो उन्हें ज्ञान की एक भूख भी थी। और उसी के बूते, और चंद सैनिकों के बल पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, चीन के राजाओं को विज्ञान और ज्ञान से पैदा हुए हथियारों से चुटकियों में हरा दिया।
वे अपने साथ वैज्ञानिकों, भाषाविदों, इतिहासकारों, भू-विज्ञानियों इत्यादि की पूरी टीम के साथ चलते थे। उन्हें ज्ञान-विज्ञान की ताकत का अहसास हो गया था।
उन्होंने इन देशों की भाषा, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान को अपनी भाषाओं में अनूदित किया और यह प्रक्रिया आज भी जारी है।
एक और मशहूर किताब “Why Nations Fail” का हवाला दें, तो 1445 में गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार कर लिया था।
विलियम कैक्स्टन ने इसे और आगे बढ़ाया, और अगले 30-40 वर्षों में प्रेस से पूरे यूरोप में किताबों, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान का प्रसार बहुत तेजी से बढ़ा।
जबकि इसके उलट 1485 में ऑटोमन सुल्तान बायेजिद-II ने अरबी में ऐसी किसी भी प्रिंटिंग सामग्री पर रोक लगा दी थी।
1515 में सुल्तान सलीम ने इस पर और कड़े प्रतिबंध लगाए। यह दौर लगभग 1800 तक चलता रहा।
वर्ष 1800 में ऑटोमन साम्राज्य के केवल 2% लोग पढ़े-लिखे थे, जबकि इंग्लैंड के 60% पुरुष और 40% महिलाएं शिक्षित हो चुकी थीं। (पृष्ठ 215)।
भारत के संदर्भ में मुझे बार-बार लगता है कि महत्वपूर्ण ताजमहल और लाल किला बनवाना नहीं था और न ही धर्म का प्रचार!
जब ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज पूरी ऊंचाईयों पर थे, तब उत्तर भारत में विशेषकर अय्याशी और भक्ति के राग गाए जा रहे थे। (भक्तिकाल, रीतिकाल)
#निष्कर्ष: मौजूदा भारत की सत्ताओं को पूरे दिल और दिमाग से दुनिया भर के देशों से ज्ञान-विज्ञान की समझ लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। न धर्म से विकास होगा और न भारत महान महान के राग से!
यह संभव होगा हमारे स्कूलों और विश्वविद्यालयों की तस्वीर तुरंत बदलने से! चीन भी आज विज्ञान के बूते ही दुनिया में नंबर वन बनने की ओर अग्रसर है!
सभी बंधुओं को दीपावली की शुभकामनाएं!
#प्रेमपाल_शर्मा, दिल्ली, 4 नवंबर 2021.
#विज्ञान_और_साम्राज्य #Why_Nations_Fail