रेल दुर्घटनाओं के लिए सर्वप्रथम ब्रांच अफसरों को जिम्मेदार ठहराया जाए
दुर्घटना होने के तुरंत बाद सर्वप्रथम सभी संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया जाए
सिर्फ निचले स्तर के कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाने से नहीं थमेंगी रेल दुर्घटनाएं
कानपुर : शुक्रवार, 20.04.19 को देर रात करीब 1 बजे लगभग 110 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ती 12303 अप, हावड़ा-नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस कपलिंग टूटने से कानपुर से करीब 15 किमी दूर रूमा इंडस्ट्रिल एस्टेट कस्बे के पास डिरेल हो गई. 8 एसी कोच और पैंट्रीकार सहित कुल 12 डिब्बे डिरेल हुए. इसमें कुल 15 यात्री घायल हुए. जबकि मीडिया में सौ से ज्यादा यात्रियों के घायल होने की खबर दी गई. सभी घायल यात्रियों को उचित इलाज के बाद उनके गंतव्य तक भेजने की पर्याप्त व्यवस्था की गई. हालांकि दैवयोग से कोई जनहानि नहीं हुई है. इतनी बड़ी दुर्घटना के बावजूद कोई जनहानि न होना एक चमत्कार ही था.
तथापि पूर्वा एक्सप्रेस की यह दुर्घटना कोच मेंटीनेंस और ट्रैक के रख-रखाव की भारी कोताही को उजागर करती है. इसके लिए प्राइमरी पीओएच डिपो और सीएंडडब्ल्यू इंचार्ज तथा संबंधित सेक्शनल सीनियर डीएमई/कोचिंग सहित सीनियर डीईएन और एसएसई/पी-वे एवं अन्य सभी संबंधित लोगों को भी जिम्मेदार ठहराते हुए तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए. जब तक ऐसी घटनाओं के लिए खंड अभियंताओं सहित सेक्शनल अधिकारियों को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, तब तक ऐसी दुर्घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं.
हालांकि कुछ मैकेनिकल अधिकारियों का यह भी कहना है कि कपलिंग टूटने से कभी डिरेलमेंट नहीं होता है, पूर्वा एक्सप्रेस वास्तव में ट्रैक की खराबी के कारण डिरेल हुई है, जिसके झटके से कपलिंग टूटी होगी. हो सकता है कि उनका कहना अथवा अनुमान सही हो, पर यहां दुर्घटना के कारणों पर विचार करने से पहले दुर्घटना होने के तुरंत बाद जिम्मेदारी के मद्देनज़र उक्त सेक्शन से संबंधित सभी अधिकारियों को अविलंब निलंबित किए जाने की जरूरत पर “रेल समाचार” का आग्रह रहा है. उल्लेखनीय है कि पिछले एक पखवाड़े में आगजनी की करीब 10-15 घटनाएं हुई थीं. कई यार्डों में एक ही प्वाइंट पर दो-तीन बार लदी हुई मालगाड़ियां डिरेल हुई हैं. ऐसी घटनाएं भारतीय रेल में आए दिन जहां-तहां घटित हो रही हैं. काम के दबाव को समझा जा सकता है, परंतु किसी भी स्थिति में सेफ्टी को दरकिनार नहीं किया जा सकता. यह ध्यान रखना आवश्यक है.
“रेल समाचार” हमेशा इस बात के लिए आग्रही रहा है कि जिसका जो निर्धारित कार्य है, उससे वही करवाया जाना चाहिए. परंतु क्वालिफाइड अभियांत्रिकी अधिकारियों को लांड्री संभालने यानि धोबी बनाने, साफ-सफाई करवाने, लिनन बांटने, जनसंपर्क इत्यादि अन्यथा अभियांत्रिकी कार्यों में लगाया जा रहा है, क्योंकि इन हलके एवं बाबूगीरी वाले कार्यों में टेंडर करने और आसान ऊपरी आय का मौका मिलता है, जिम्मेदारी भी कोई खास नहीं होती है. एक तरह से यह उनकी क्वॉलिफ़िकेशन और काबिलियत को वास्तव में बरबाद करने जैसा ही है.
इसके अलावा “रेल समाचार” इस कोताही की तरफ भी रेल प्रशासन का ध्यान बार-बार आकर्षित करने की कोशिश करता रहा है कि ट्रेन परिचालन में अभियांत्रिकी अधिकारियों को आगे लाने और गैर-अभियांत्रिकी यानि परिचालन से संबंधित अधिकारियों को पीछे ढ़केले जाने की दोषपूर्ण नीति के परिणामस्वरूप ही आज भारतीय रेल की सेफ्टी, सिक्योरिटी और पंक्चुअलिटी का पूरा बंटाधार हो रहा है. रेल प्रशासन द्वारा यदि इस नीति पर अविलंब पुनर्विचार नहीं किया गया, तो निकट भविष्य में बड़ी रेल दुर्घटनाओं को टालना अत्यंत मुश्किल होगा.