September 4, 2020

विडम्बना: एक “री-एंगेज्ड” को भारतीय रेल का पहला सीईओ बनाया गया

पुनर्गठित रेलवे बोर्ड मेंबर्स की पांचों पोस्टें हुईं एक्स-कैडर

रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन, काबिल अधिकारियों का पड़ा रेलवे में भारी अकाल

मेंबर इंजीनियरिंग, मेंबर स्टाफ और मेंबर मटीरियल मैनेजमेंट की पोस्टें खत्म

मेंबर रोलिंग स्टॉक की पोस्ट को डीजी/एचआर में परिवर्तित किया गया

मेंबर ट्रैक्शन रहे राजेश तिवारी को एक माह के लिए ओएसडी/सेफ्टी में सरकाया गया

यह रेलवे में काबिल अधिकारियों की इंसल्ट है कि एक “री-एंगेज्ड” को रेलवे बोर्ड का पहला सीईओ बनाया गया। इससे रेलवे में आने का आईएएस का रास्ता साफ हो गया है।

अब रेल अधिकारी भी सीबीडीटी बोर्ड की तरह आईएएस (रेवेन्यू सेक्रेटरी) को सलाम ठोकेंगे। ऐसा लगता है कि रेलवे में काबिल अधिकारियों का अकाल पड़ गया है। पीएमओ से यह सवाल पूछ रहे हैं रेल अधिकारी!

इधर मंत्री या सरकार ने अपनी मंशा के अनुरूप रेलवे बोर्ड का आईआरएमएस के तहत पुनर्गठन तो कर लिया, जिसमें मेंबर पोस्टों को एक्स-कैडर करके ऐसा करने में कोई खास अड़चन नहीं थी, मगर इस प्रक्रिया की असली परीक्षा अब होनी है, क्योंकि उधर यूपीएससी ने सीएसई के बजाय ईएसई के तहत सेलक्शन करने से साफ मना कर दिया है।

ऐसे में एक संभावना यह जताई जा रही है कि हो सकता है अब बारगेनिंग (भाव-ताव) यानि पैसे का खेल शुरू हो। इसके लिए पांचों विभाग मिलकर यदि मंत्री को ईएसई और फाइनेंस का महत्व समझाने में सफल हो जाते हैं, तो सब कुछ संभव हो सकता है। इसके प्रयास भी किए जा रहे हैं।

अब देखना यह है कि मंत्री/सरकार यूपीएससी का क्या करते हैं? क्या अब यूपीएससी का भी तिया-पांचा किया जाएगा और उसे भी सरकार या मंत्री की मंशा के अनुरूप तोड़ा-मरोड़ा जाएगा? इन सवालों का भी जवाब शीघ्र ही सामने आ जाएगा।

बहरहाल, इस तमाम उठापटक से रेल का तो शायद ही कोई भला हो पाएगा, वर्ष 2003-04 की तरह रेल का नुकसान अवश्य होगा। जनता और देश को भी इसका कोई लाभ होना तय नहीं है। परंतु सरकार की वह मंशा जरूर पूरी होती नजर आ रही है कि जमीनी स्तर पर भले ही कुछ पुख्ता हो, न हो, मगर बहुत कुछ होता नजर अवश्य आना चाहिए।

यदि रेल डूबेगी, तो वह भी डूबेंगे

भारतीय रेल के उच्च प्रबंधन की यह दुर्दशा और एक बड़ी विडंबना है कि रेलवे बोर्ड का पहला सीईओ एक री-एंगेज्ड सेवानिवृत्त अधिकारी को बनाया गया है।

कर्मचारियों के मान्यताप्रात संगठनों के लगभग सभी कर्ताधर्ता सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जमीनी स्तर पर रेलवे की क्या दुर्दशा हो रही है और आगे कितनी होने वाली है।

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कार्यरत रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में भयंकर असंतोष पनप रहा है, लेकिन देश के तथाकथित सर्वेसर्वा के इवेंट मैनेजरों की पूरी टीम रेलवे में आमूलचूल परिवर्तन का ढ़िंढ़ोरा पीटने में लगी है।

वैसे देखा जाए तो ये ठीक भी हो रहा है, क्योंकि जब तक अधिकारी कुर्सी पर बना रहता है, वह दंभ में रहता है। अधिकारियों को उनके अधीनस्थ कर्मचारी बेकार और कामचोर नजर आते हैं, तो अब वर्तमान समय शायद उसी का जवाब दे रहा है।

इसी तरह मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों को लगता है कि सभी रेलकर्मी उनकी कारगुजारियों से अनभिज्ञ हैं। नाकाबिल सीईओ को बड़ा-बड़ा हार पहनाकर वह जो उनकी चापलूसी में लगे हुए हैं, आने वाले समय में उनका भी पत्ता यही सीईओ साफ कर देगा।

अब इन सब लोगों को समझ में आएगा कि इस पूरी व्यवस्था में उनकी क्या हैसियत है! यदि रेल डूबेगी, तो उनका भी डूबना तय है।

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