लुधियाना स्टेशन पर करोड़ों का पार्किंग घोटाला
कुर्सी और पद के हिसाब से बंटती रही लूट की काली कमाई
भ्रष्ट सिस्टम के चलते डेढ़ साल तक जारी रहा हेराफेरी का खेल
फिरोजपुर मंडल के वाणिज्य अधिकारियों ने भी किए करोड़ों के वारे-न्यारे
अमित जेतली, ब्यूरो प्रमुख, उत्तर क्षेत्र
भारतीय रेल का देश भर में जितना विस्तार, उसी के अनुपात में हो रहा है इस महकमे में भ्रष्टाचार. एक-एक स्टेशन पर कई-कई करोड़ का घोटाला. उच्च अधिकारियों की ओर से प्रत्येक वर्ष में दर्जनों निरीक्षण होते हैं, मगर भ्रष्टाचार, घूसखोरी और घोटालेबाजी पर कोई लगाम नहीं है इस महकमे में. इसी भ्रष्ट सिस्टम की बदौलत फिरोजपुर मंडल के सबसे बड़े स्टेशन लुधियाना जंक्शन पर करीब डेढ़ वर्ष तक विभागीय रेल राजस्व की लूट होती रही और इस पर अंकुश लगाने वाले वाणिज्य अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहे.
लुधियाना स्टेशन की मेन साइड और सिविल लाइन साइड पर एक-एक दोपहिया पार्किंग तथा एक-एक कार पार्किंग को मिलाकर कुल चार पार्किंग का ठेका वर्ष 2016-17 में अलग-अलग तारीख को खत्म हुआ था. इसके बाद वाणिज्य विभाग ने चारों पार्किंग को अपने मातहत ले लिया. पार्किंग की जिम्मेदारी विभाग के पास आते ही वाणिज्य कर्मचारियों ने हेराफेरी का खेल शुरू कर दिया और फिरोजपुर मंडल के वाणिज्य अधिकारियों से सेटिंग कर पार्किंग फीस के रूप में एकत्रित होने वाली राशि का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा मिल बांटकर खाने लगे.
यहां पार्किंग फीस वसूलने के लिए चेकिंग स्टाफ को लगाया जाना जरूरी था. मगर सीआईटी स्टेशन के अधीन कार्यरत चेकिंग स्टाफ सिर्फ सरकारी कागजों में ही पार्किंग ड्यूटी करता रहा, जबकि पार्किंग पर पुराने ठेकेदार के कारिंदों ने लगातार अपना कब्जा जमाए रखा और ठेका खत्म होने के बावजूद वाणिज्य विभाग की मिलीभगत से मार्च 2018 तक पार्किंग फीस वसूलते रहे. पार्किंग फीस के रूप में प्रतिदिन एकत्रित होने वाली राशि में हेराफेरी न हो, इसके लिए पार्किंग पर्चियों पर स्टेशन अधीक्षक या सीआईटी स्टेशन के हस्ताक्षर होने आवश्यक थे, परंतु यहां पर ऐसे किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया.
इस दौरान एक ही सीरीज की कई रसीद बुक्स छपवाई गईं, जिन्हें बिना किसी हस्ताक्षर तथा मुहर के इस्तेमाल किया गया. मगर रेलवे रिकार्ड में असली अर्थात सिंगल रसीद बुक वाली एंट्री ही दर्ज हुई. इस डेढ़ वर्ष के दौरान चारों पार्किंग से कुल मिलाकर करीब 60 से 70 हजार रुपये प्रतिदिन एकत्रित होते रहे. परंतु रेलवे के खजाने में औसतन मात्र 15 से 17 हजार रुपये ही प्रतिदिन जमा करवाए गए. जबकि बाकी की रकम लुधियाना स्टेशन से लेकर फिरोजपुर मंडल के वाणिज्य अधिकारियों तक कुर्सी तथा पद के हिसाब से बंटती चली रही. नियमानुसार पार्किंग फीस के रूप में एकत्रित होने वाली राशि शिफ्ट वाइज जमा होनी थी. मगर इसे 24-24 घंटे के अंतराल पर जमा करवाया गया. ताकि पहली नजर में देखने पर यह राशि कम न लगे और इस तरफ किसी का ध्यान न जाए.
इसके अलावा तकरीबन 800 दैनिक यात्रियों से पार्किंग फीस के रूप में लाखों रुपये वसूले गए. परंतु यह पैसा विभागीय खजाने में जमा नहीं हुआ. इस मामले में दैनिक यात्रियों से हर महीने रुपये लेने के बाद कच्ची पर्ची पर रिसीविंग दी गई.
रेलवे रिकार्ड के मुताबिक मेन साइड की कार पार्किंग का ठेका 11.02.2017, सिविल लाइन साइड कार पार्किंग का ठेका 01.10.2017 और सिविल लाइन साइड की दुपहिया वाहन पार्किंग का ठेका 03.07.2017 को खत्म होने के पश्चात ये तीनों पार्किंग रेलवे के सुपुर्द की गई थीं. इसी तरह मेन साइड की दुपहिया पार्किंग का ठेका मई 2016 में खत्म हुआ, जिसे वाणिज्य विभाग ने तीन महीने की एक्सटैंशन देकर आगे बढ़ा दिया. मगर ठेकेदार से पूरा पैसा न मिलने का कारण बताकर जुलाई 2016 में यह आवंटन रद्द कर दिया गया. सीनियर डीसीएम, फिरोजपुर कार्यालय की ओर से अगस्त 2016 में तीन महीने की अवधि के लिए कार तथा दुपहिया पार्किंग का नया टेंडर निकाला गया और पार्किंग को तीन महीने के लिए आवंटित कर दिया.
यह टेंडर आवंटित होने के बावजूद नए ठेकेदार ने चार्ज नहीं लिया. इस दौरान पार्किंग को पुराना ठेकेदार चलाता रहा और वाणिज्य अधिकारियों की कार्रवाई अपनी जेब गर्म करने तक सीमित रही. वह अधिक रिजर्व प्राइस का हवाला देकर विभाग को गुमराह करते रहे और समय रहते पार्किंग को अपने कब्जे में लेने और दोबारा टेंडर करवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उन्होंने खुद को सुरक्षित रखने के लिए पत्राचार की कार्रवाई जारी रखी और ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करते रहे. हालांकि इस दौरान जनवरी 2017 में पार्किंग को कब्जे में लेने की मात्र औपचारिकता पूरी की गई. मगर सीआईटी स्टेशन ने एक दिन के लिए भी चेकिंग स्टाफ को पार्किंग फीस वसूलने के कार्य पर नहीं लगाया और चेकिंग स्टाफ के कर्मचारी मात्र कागजी ड्यूटी कर वेतन प्राप्त करते रहे.
आंकड़ों पर गौर करें, तो वर्ष 2010 से 2016 के दौरान इन चार पार्किंग से ठेकेदारों ने अपने सभी खर्चे तथा कमाई निकालने के बाद प्रत्येक तिमाही औसतन 23,46,351 रुपये रेलवे के खाते में जमा करवाए, जिसमें वर्ष 2013-16 के दौरान मेन साइड कार पार्किंग के लिए 8,48,331 रुपये तथा सिविल लाइन साइड कार पार्किंग के लिए 4,37,358 रुपये तिमाही जमा करवाए गए. इसी प्रकार वर्ष 2012-15 के दौरान मेन साइड दुपहिया पार्किंग के लिए 8,15,331 रुपये तथा वर्ष 2010-13 के दौरान सिविल लाइन साइड दुपहिया पार्किंग के लिए 2,45,331 रुपये की तिमाही फीस जमा हुई, जिससे रेलवे को औसतन 26,070 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से (बहुत बड़ी!) आमदनी हुई.
इसके पश्चात पार्किंग से होने वाली आमदनी में कई गुणा इजाफा होता गया, जिसके अनुसार टेंडर प्राइस और रेलवे की आमदनी दोनों ही बढ़ते चले गए. मगर वाणिज्य अधिकारियों ने विभाग को इसका ज्यादा फायदा नहीं होने दिया और चारों पार्किंग को विभागीय कागजात में ‘डिपार्टमेंटल’ दिखाकर निजी हाथों में दिए रखा. दूसरी तरफ वह विभाग को अधिक रिजर्व प्राइस का हवाला देकर टेंडर को सिरे न चढ़ने देने में भी कामयाब होते रहे. हालांकि इस दौरान तत्कालीन सीनियर डीसीएम, फिरोजपुर के खासमखास सीआईटी स्टेशन का चार वर्षों का कार्यकाल पूरा हो चुका था. तथापि उन्होंने अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में सीआईटी स्टेशन का तबादला नहीं होने दिया और विभागीय खजाने की लूट को डेढ़ वर्षों तक चुपचाप सहन करते रहे.
इस दौरान वाणिज्य विभाग के कुछ कर्मचारियों ने रेलवे विजिलेंस को इससे संबंधित पूरे मामले से अवगत करवाया. मगर विजिलेंस की कार्रवाई सिर्फ स्टेशन से हाकर पकड़ने तक ही सीमित रही. जबकि मामले में संलिप्त वाणिज्य कर्मचारियों को विजिलेंस मूवमेंट की सभी जानकारियां पहले ही प्राप्त होती रहीं, जिसके चलते वह विजिलेंस टीम के आने से पहले ही चेकिंग स्टाफ को पार्किंग में तैनात करने लगे और मामले का खुलासा होने के बावजूद रेलवे को करोड़ों रुपये की चपत लगाने में कामयाब हो गए.
यह मामला मार्च 2018 में स्थानीय मीडिया की सुर्खियों में भी आया था. इसके बाद वाणिज्य अधिकारियों ने अपनी खाल बचाने के लिए लुधियाना स्टेशन की सभी पार्किंग को तुरंत फ्री कर दिया. मगर इतना सब होने के बावजूद उत्तर रेलवे मुख्यालय और रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) कुंभकर्णी नींद सोता रहा. उन्होंने न तो इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाई, और न ही घोटाले में संलिप्त वाणिज्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की विभागीय कार्रवाई करना जरूरी समझा. हालांकि डीआरएम, फिरोजपुर ने जांच के नाम पर संबंधित वाणिज्य कर्मचारियों को रिकार्ड समेत फिरोजपुर तलब किया था, लेकिन वह डीआरएम को गच्चा देने में भी कामयाब हो गए.
इस घोटाले को दबाने और मीडिया का ध्यान बंटाने के लिए आनन-फानन में सीनियर डीसीएम, फिरोजपुर मोनू लूथरा का तबादला 15 जून को चीफ एरिया मैनेजर, श्रीनगर के पद पर कर दिया गया और वहां से हरिमोहन को मोनू लूथरा की जगह फिरोजुर मंडल का सीनियर डीसीएम बना दिया गया है. जबकि एक चालाकी और 4के गैंग की पहले की सेटिंग के चलते सीनियर डीओएम, फिरोजपुर को लखनऊ मंडल में सीनियर डीसीएम के पद पर ट्रांसफर कर दिया गया. यही नहीं, लखनऊ में उन्हें चार्ज सौंपे जाने की इतनी जल्दी थी कि तत्कालीन सीनियर डीसीएम, लखनऊ के प्रशिक्षण दौरे पर विदेश में होने और उनके वापस आने पर चार्ज सौंपे जाने का इंतजार किए बिना उन्हें लगभग चोरी-चोरी चार्ज सौंप दिया गया. जानकार बताते हैं कि चोरी-चोरी इसलिए, क्योंकि किसी को पता न चले इसलिए यह अधिकारी कहीं और का प्रोग्राम बनाकर लखनऊ पहुंचा था और चारबाग में उतरने के बजाय इसने मानक नगर में ही ट्रेन छोड़ दी थी.
उत्तर रेलवे वाणिज्य विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला इसलिए है, क्योंकि यहां अन्य रेलों की तरह प्रिंसिपल सीसीएम का अपने विभाग के तबादलों पर कोई नियंत्रण नहीं है. जानकारों का कहना है कि उत्तर रेलवे में प्रिंसिपल सीसीएम से पूछे बगैर यहां वाणिज्य विभाग के सभी अधिकारियों की पोस्टिंग प्रिंसिपल सीओएम द्वारा मनमाने ढ़ंग से तय किए जाने की लीक चली आ रही है. उनका कहना है कि कैडर कंट्रोलिंग भले ही प्रिंसिपल सीओएम के पास होती है, मगर वह प्रिंसिपल सीसीएम की सहमति अथवा सुझाव पर ही वाणिज्य अधिकारियों के तबादले करते हैं. यही नैतिक रूप से भी सही है और अन्य सभी जोनल रेलों में भी यही तरीका अपनाया जा रहा है. रेलवे बोर्ड को इस पर लगाम लगानी चाहिए.